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सन 1885 मे का लल माकस ल की मतृयु पर उसके परम िमत एव understudy फेड िरक एं जे लस ने शोक

संवाद मे कहा था िक माकसल ने अब सोचना बनद कर िदया है । अथात


ल िजनदगी और मौत के दमयान
ल का
फकल िसफल सोचने या नहीं सोचने का है । अतएव जो लोग नहीं सोचते है वे तो मर चुके है और जो दस
ू रे
की सोच पर अंकुश लगाते है वे उनकी हतया कर रहे है ।

अभी हाल मे तथाकिथत धमल समबिनधत दो घटनाये हुंई। पहली मैगलौर मे जहां िकसी शी राम सेना ने
पब मे शराब पीती हुई लड़िकयो के साथ हाथापाई की और उनहे वहां से भाग जाने पर मजबुर िकया। एक
समपूणत
ल या िननदनीय वाकया है । िकसी वयिि िवशेष को िकसी अनय वयिि पर अपनी मानयताये थोपने
का कोई अिधकार नहीं है ।कानून अपने हाथ मे लेने वाले के साथ सखती से पेश आना सरकार की
जवाबदे ही है ।
इसके साथ एक और पश उठता है मीडीया मे इस घटना के पकेपण का । इस आम घटना को इतना तूल
िदया गया िक मानो एक और मुमबई घट रहा हो।सारे टी वी चैनेलो ने इस समाचार को काफी
Prominence दी। आरोपी के िकसी पुराने विवय से जोड़ कर उसे मालेगांव बम धमाके से जोड़ने का पयास
भी िकया। साथ ही तमाम "िहनदव
ु ादी संसथाओं" यािन संघ से जुड़ी सभी संसथाओं को भी िबना िकसी
सबूत के इस घटना के अपतयक दोषी के रप मे रं गने का पयास भी िकया।
वहीं एक दस
ू री घटना ::पांच फनवरी को अंगेजी के समाचार पत ने एक आलेख छापा "Why should i
respect oppressive Religions". यह लेख िििटश समाचार पत "The Independent" से उदत
ृ है । इस लेख
मे िकसी भी "Oppressive Religion" के िखलाफ िलखा गया है । इसमे मूलतः इसाई एवं इसलाम धमगुर
ल ओं
की मानिसकता पर पश खड़े िकये गये है ।मूल मुदा है िक सोचने और िवशास (Thought, belief) पर अंकुश
लगाने का अिधकार िकसी को नहीं है । िकसी भी िवषय पर सवसथ बहस सवीकायल ही नहीं लािजमी भी
होनी चािहये।

ख़ितपय इसलाम धमगुर


ल ओं को यह लेख बहुत नागवार लगा। उनहोए िलख कर पुिलस कमीशर को
िशकायत की। यहां तक तो औिचतय या अनौिचतय से परे गणतािनतक अिधकार की पिरसीमा का उललंघन
नहीं िकया।
लेिकन 6 फनवरी और सात फनवरी लगातार दो िदन तक The Statesman की कलकते की Office के
बाहर अवैध पदशन
ल एवं मागल अवरोध सीधे सीधे अपराध की शण
े ी मे आते है ।यह एक समाचार पत की
सवतनतता पर अंकुश लगानेए का कुितसत पयास है । लेिकन कमाल है हमारी िकसी भी SECULAR
मीिडया ने इस समाचार पर दो शबद की िटपपणी भी नहीं की।कहां एक कुछ दसेक वयिियो दारा पब मे
शराब पीती हुई लड़िकयो के साथ की गयी हाथापाई और दस
ू री तरफ एक सममाननीय समाचार पत मे छपे
एक आलेख को लेकर एक बड़े जनसमूह दार शहर के एक पमुख मागल का दो िदनो तक अवरोध । समाचार
पत मे छपे आलेख का शािनतपद िवरोध करने का कानूनी तरीका भी है । अगर धम ल िवरोधी या धािमक

भावनाओं को उकसाने का आरोप सािबत िकया जा सके तो यह एक दणडनीय अपराध है । लेिकन शी राम
सेना की तजल मे इसलािमक शिियो का कानून की परवाह न करना एक दणडनीय अपराध है । उधर यहां
चुंिक कलकते मे मुिसलम अपरािधयो की संखया एव कारवाई को दे खते हुये यह कहा जा सकता है ।िक यह
अपराध हर मायने मे बैगलौर की घटना से अिधक दणडनीय है । लेिकन कलकते की इस घटना को अनय
िकसी भी समाचार पत या टी वी ने Cover ही नहीं िकया। वहां मीिडया को बुला कर िमिडया की उपिसथित
मे दस िमनट तक इस घटना को अनजाम होने िदया गया।
भारतीय मीिडया पतीत होता है िक सब समय िहनदओ
ु ं के िखलाफ बोलने का मौका ढु ढं ता रहता है ।
समाचार पत पर रोक लगाने का पयास अतयनत घिृणत उपकम है ।समाचार पत या टी वी को समाज के
चौथे सतमभ के रप मे माना गया है ।मीिडया हमारी सोच को ही पितिबिमबत करता है । लेिकन नहीं
इनके मापदणद अलग समाज के िलये अलग अलग है । िकसी भी अलपसंखयको के जुमल को IGNORE
करना और कहीं से भी िहनदओ
ु ं के िखलफ कोई महक आजाये मीिडया का तुरनत दौड़ पड़ना ।
मनुषय और पशु मे एक मात फकल सोचने की शिि का है । वैचिरक व लेखन की सवतनतता सभय समाज
का पहला सोपान है । एक चीनी कहावत है िक "Growth is the only sign of life" वहीं एनजेलस के
कथनानुसार सोचना ही िजनदगी का दोतक है । हम सोच की हतया कर समाज की हतया कर रहे है ।
एक शायर ने सही ही कहा है ,
"हम आह भी भरते है तो हो जाते है बदनाम।
वो कतल तक कर दे ते है , चचाल नहीं होती।"

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