गोःवामी तुलसीदास
िवरिचत
रामचिरतमानस
अरण्यकाण्ड
Sant Tulsidas’s
Rāmcharitmānas
Aranya Kānd
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रामचिरतमानस - 2- अरण्यकांड
RAMCHARITMANAS : AN INTRODUCTION
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रामचिरतमानस - 3- अरण्यकांड
ौीगणेशाय नमः
अरण्यकाण्ड
ोक
सोरठा
उमा राम गुन गूढ़ पं डत मुिन पाव हं िबरित ।
पाव हं मोह िबमूढ़ जे हिर िबमुख न धम रित ॥
दोहा
अित कृ पाल रघुनायक सदा दन पर नेह ।
ता सन आइ क न्ह छलु मूरख अवगुन गेह ॥१॥
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रामचिरतमानस - 4- अरण्यकांड
सोरठा
क न्ह मोह बस िोह ज िप ते ह कर बध उिचत ।
ूभु छाड़े उ किर छोह को कृ पाल रघुबीर सम ॥२॥
सोरठा
ूभु आसन आसीन भिर लोचन सोभा िनर ख ।
मुिनबर परम ूबीन जोिर पािन अःतुित करत ॥३॥
छं द
नमािम भ व सलं । कृ पालु शील कोमलं ॥
भजािम ते पदांबुजं । अकािमनां ःवधामदं ॥
िनकाम ँयाम सुंदरं । भवा बुनाथ मंदरं ॥
ूफु ल कंज लोचनं । मदा द दोष मोचनं ॥
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रामचिरतमानस - 5- अरण्यकांड
तमेकम दतं
ु ूभुं । िनर हमी रं िवभुं ॥
जग ु ं च शा तं । तुर यमेव केवलं ॥
भजािम भाव व लभं । कुयोिगनां सुदलभं
ु ॥
ःवभ क प पादपं । समं सुसे यमन्वहं ॥
दोहा
िबनती किर मुिन नाइ िस कह कर जोिर बहोिर ।
चरन सरो ह नाथ जिन कबहँु तजै मित मोिर ॥४॥
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रामचिरतमानस - 6- अरण्यकांड
सोरठा
सहज अपाविन नािर पित सेवत सुभ गित लहइ ।
जसु गावत ौुित चािर अजहु तुलिसका हिर ह िूय ॥५(क)॥
सनु सीता तव नाम सुिमर नािर पितॄत कर ह ।
तो ह ूानिूय राम क हउँ कथा संसार हत ॥५(ख)॥
छं द
तन पुलक िनभर ूेम पुरन नयन मुख पंकज दए ।
मन यान गुन गोतीत ूभु म दख जप तप का कए ॥
जप जोग धम समूह त नर भगित अनुपम पावई ।
रधुबीर चिरत पुनीत िनिस दन दास तुलसी गावई ॥
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रामचिरतमानस - 7- अरण्यकांड
दोहा
किलमल समन दमन मन राम सुजस सुखमूल ।
सादर सुन ह जे ितन्ह पर राम रह हं अनुकूल ॥६(क)॥
सोरठा
क ठन काल मल कोस धम न यान न जोग जप ।
पिरहिर सकल भरोस राम ह भज हं ते चतुर नर ॥६(ख)॥
दोहा
दे खी राम मुख पंकज मुिनबर लोचन भृंग ।
सादर पान करत अित धन्य जन्म सरभंग ॥७॥
दोहा
सीता अनुज समेत ूभु नील जलद तनु ःयाम ।
मम हयँ बसहु िनरं तर सगुन प ौीराम ॥८॥
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रामचिरतमानस - 8- अरण्यकांड
दोहा
िनिसचर हन करउँ मह भुज उठाइ पन क न्ह ।
सकल मुिनन्ह के आौम न्ह जाइ जाइ सुख द न्ह ॥९॥
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रामचिरतमानस - 9- अरण्यकांड
दोहा
तब मुिन दयँ धीर धीर गह पद बार हं बार ।
िनज आौम ूभु आिन किर पूजा िबिबध ूकार ॥१०॥
दोहा
अनुज जानक स हत ूभु चाप बान धर राम ।
मम हय गगन इं द ु इव बसहु सदा िनहकाम ॥११॥
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रामचिरतमानस - 10 - अरण्यकांड
दोहा
मुिन समूह महँ बैठे सन्मुख सब क ओर ।
सरद इं द ु तन िचतवत मानहँु िनकर चकोर ॥१२॥
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रामचिरतमानस - 11 - अरण्यकांड
दोहा
गीधराज स भट भइ बहु िबिध ूीित बढ़ाइ ॥
गोदावर िनकट ूभु रहे परन गृह छाइ ॥१३॥
दोहा
ईःवर जीव भेद ूभु सकल कहौ समुझाइ ॥
जात होइ चरन रित सोक मोह ॅम जाइ ॥१४॥
दोहा
माया ईस न आपु कहँु जान क हअ सो जीव ।
बंध मो छ ूद सबपर माया ूेरक सीव ॥१५॥
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रामचिरतमानस - 12 - अरण्यकांड
दोहा
बचन कम मन मोिर गित भजनु कर हं िनःकाम ॥
ितन्ह के दय कमल महँु करउँ सदा िबौाम ॥१६॥
भगित जोग सुिन अित सुख पावा । लिछमन ूभु चरन न्ह िस नावा ॥
एह िबिध गए कछुक दन बीती । कहत िबराग यान गुन नीती ॥१॥
सूपनखा रावन कै ब हनी । दु दय दा न जस अ हनी ॥
पंचबट सो गइ एक बारा । दे ख िबकल भइ जुगल कुमारा ॥२॥
ॅाता िपता पुऽ उरगार । पु ष मनोहर िनरखत नार ॥
होइ िबकल सक मन ह न रोक । जिम रिबमिन िव रिब ह िबलोक ॥३॥
िचर प धिर ूभु प हं जाई । बोली बचन बहत
ु मुसुकाई ॥
तु ह सम पु ष न मो सम नार । यह सँजोग िबिध रचा िबचार ॥४॥
मम अनु प पु ष जग माह ं । दे खेउँ खो ज लोक ितहु नाह ं ॥
ताते अब लिग र हउँ कुमार । मनु माना कछु तु ह ह िनहार ॥५॥
सीत ह िचतइ कह ूभु बाता । अहइ कुआर मोर लघु ॅाता ॥
गइ लिछमन िरपु भिगनी जानी । ूभु िबलो क बोले मृद ु बानी ॥६॥
सुंदिर सुनु म उन्ह कर दासा । पराधीन न हं तोर सुपासा ॥
ूभु समथ कोसलपुर राजा । जो कछु कर हं उन ह सब छाजा ॥७॥
सेवक सुख चह मान िभखार । यसनी धन सुभ गित िबिभचार ॥
लोभी जसु चह चार गुमानी । नभ दु ह दध
ू चहत ए ूानी ॥८॥
पुिन फिर राम िनकट सो आई । ूभु लिछमन प हं बहिर
ु पठाई ॥
लिछमन कहा तो ह सो बरई । जो तृन तोिर लाज पिरहरई ॥९॥
तब खिसआिन राम प हं गई । प भयंकर ूगटत भई ॥
सीत ह सभय दे ख रघुराई । कहा अनुज सन सयन बुझाई ॥१०॥
दोहा
लिछमन अित लाघवँ सो नाक कान िबनु क न्ह ।
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रामचिरतमानस - 13 - अरण्यकांड
छं द
कोदं ड क ठन चढ़ाइ िसर जट जूट बाँधत सोह य ।
मरकत सयल पर लरत दािमिन को ट स जुग भुजग य ॥
क ट किस िनषंग िबसाल भुज ग ह चाप िबिसख सुधािर कै ॥
िचतवत मनहँु मृगराज ूभु गजराज घटा िनहािर कै ॥
सोरठा
आइ गए बगमेल धरहु धरहु धावत सुभट ।
जथा िबलो क अकेल बाल रिब ह घेरत दनुज ॥१८॥
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रामचिरतमानस - 14 - अरण्यकांड
छं द
उर दहे उ कहे उ क धरहु धाए िबकट भट रजनीचरा ।
सर चाप तोमर सि सूल कृ पान पिरघ परसु धरा ॥
ूभु क न्ह धनुष टकोर ूथम कठोर घोर भयावहा ।
भए बिधर याकुल जातुधान न यान ते ह अवसर रहा ॥
दोहा
सावधान होइ धाए जािन सबल आराित ।
लागे बरषन राम पर अ स बहु भाँित ॥१९(क)॥
ितन्ह के आयुध ितल सम किर काटे रघुबीर ।
तािन सरासन ौवन लिग पुिन छाँड़े िनज तीर ॥१९(ख)॥
छं द
तब चले जान बबान कराल । फुंकरत जनु बहु याल ॥
कोपेउ समर ौीराम । चले िबिसख िनिसत िनकाम ॥
अवलो क खरतर तीर । मुिर चले िनिसचर बीर ॥
भए बु तीिनउ भाइ । जो भािग रन ते जाइ ॥
ते ह बधब हम िनज पािन । फरे मरन मन महँु ठािन ॥
छं द
कटकट हं ज़ंबुक भूत ूेत िपसाच खपर संचह ं ।
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रामचिरतमानस - 15 - अरण्यकांड
दोहा
राम राम कह तनु तज हं पाव हं पद िनबान ।
किर उपाय िरपु मारे छन महँु कृ पािनधान ॥२०(क)॥
हरिषत बरष हं सुमन सुर बाज हं गगन िनसान ।
अःतुित किर किर सब चले सोिभत िबिबध िबमान ॥२०(ख)॥
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रामचिरतमानस - 16 - अरण्यकांड
सोरठा
िरपु ज पावक पाप ूभु अह गिनअ न छोट किर ।
अस कह िबिबध िबलाप किर लागी रोदन करन ॥२१(क)॥
दोहा
सभा माझ पिर याकुल बहु ूकार कह रोइ ।
तो ह जअत दसकंधर मोिर क अिस गित होइ ॥२१(ख)॥
दोहा
सुपनख ह समुझाइ किर बल बोलेिस बहु भाँित ।
गयउ भवन अित सोचबस नीद परइ न हं राित ॥२२॥
दोहा
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रामचिरतमानस - 17 - अरण्यकांड
दोहा
किर पूजा मार च तब सादर पूछ बात ।
कवन हे तु मन यम अित अकसर आयहु तात ॥२४॥
दोहा
जे हं ताड़का सुबाहु हित खंडेउ हर कोदं ड ॥
खर दषन
ू ितिसरा बधेउ मनुज क अस बिरबंड ॥२५॥
जाहु भवन कुल कुसल िबचार । सुनत जरा द न्हिस बहु गार ॥
गु जिम मूढ़ करिस मम बोधा । कहु जग मो ह समान को जोधा ॥१॥
तब मार च दयँ अनुमाना । नव ह िबरोध न हं क याना ॥
स ी मम ूभु सठ धनी । बैद बं द किब भानस गुनी ॥२॥
उभय भाँित दे खा िनज मरना । तब ता किस रघुनायक सरना ॥
उत दे त मो ह बधब अभाग । कस न मर रघुपित सर लाग ॥३॥
अस जयँ जािन दसानन संगा । चला राम पद ूेम अभंगा ॥
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रामचिरतमानस - 18 - अरण्यकांड
छं द
िनज परम ूीतम दे ख लोचन सुफल किर सुख पाइह ।
ौी स हत अनुज समेत कृ पािनकेत पद मन लाइह ॥
िनबान दायक बोध जा कर भगित अबस ह बसकर ।
िनज पािन सर संधािन सो मो ह बिध ह सुखसागर हर ॥
दोहा
मम पाछ धर धावत धर सरासन बान ।
फिर फिर ूभु ह िबलो कहउँ धन्य न मो सम आन ॥२६॥
दोहा
िबपुल सुमन सुर बरष हं गाव हं ूभु गुन गाथ ।
िनज पद द न्ह असुर कहँु द नबंधु रघुनाथ ॥२७॥
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रामचिरतमानस - 19 - अरण्यकांड
जाहु बेिग संकट अित ॅाता । लिछमन िबहिस कहा सुनु माता ॥
भृकु ट िबलास सृि लय होई । सपनेहुँ संकट परइ क सोई ॥२॥
मरम बचन जब सीता बोला । हिर ूेिरत लिछमन मन डोला ॥
बन दिस दे व स िप सब काहू । चले जहाँ रावन सिस राहू ॥३॥
सून बीच दसकंधर दे खा । आवा िनकट जती क बेषा ॥
जाक डर सुर असुर डे राह ं । िनिस न नीद दन अन्न न खाह ं ॥४॥
सो दससीस ःवान क नाई । इत उत िचतइ चला भ ड़हाई ॥
इिम कुपंथ पग दे त खगेसा । रह न तेज बुिध बल लेसा ॥५॥
नाना िबिध किर कथा सुहाई । राजनीित भय ूीित दे खाई ॥
कह सीता सुनु जती गोसा । बोलेहु बचन दु क ना ॥६॥
तब रावन िनज प दे खावा । भई सभय जब नाम सुनावा ॥
कह सीता धिर धीरजु गाढ़ा । आइ गयउ ूभु रहु खल ठाढ़ा ॥७॥
जिम हिरबधु ह छुि सस चाहा । भएिस कालबस िनिसचर नाहा ॥
सुनत बचन दससीस िरसाना । मन महँु चरन बं द सुख माना ॥८ ॥
दोहा
बोधवंत तब रावन ली न्हिस रथ बैठाइ ।
चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँ क न जाइ ॥२८॥
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रामचिरतमानस - 20 - अरण्यकांड
राम रोष पावक अित घोरा । होइ ह सकल सलभ कुल तोरा ॥
उत न दे त दसानन जोधा । तब हं गीध धावा किर बोधा ॥९॥
धिर कच िबरथ क न्ह मह िगरा । सीत ह रा ख गीध पुिन फरा ॥
चौचन्ह मािर िबदारे िस दे ह । दं ड एक भइ मु छा तेह ॥१०॥
तब सबोध िनिसचर खिसआना । काढ़े िस परम कराल कृ पाना ॥
काटे िस पंख परा खग धरनी । सुिमिर राम किर अदभुत करनी ॥११॥
सीत ह जािन चढ़ाइ बहोर । चला उताइल ऽास न थोर ॥
करित िबलाप जाित नभ सीता । याध िबबस जनु मृगी सभीता ॥१२॥
िगिर पर बैठे किपन्ह िनहार । कह हिर नाम द न्ह पट डार ॥
एह िबिध सीत ह सो लै गयऊ । बन असोक महँ राखत भयऊ ॥१३॥
दोहा
हािर परा खल बहु िबिध भय अ ूीित दे खाइ ।
तब असोक पादप तर रा खिस जतन कराइ ॥२९(क)॥
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रामचिरतमानस - 21 - अरण्यकांड
एह िबिध खौजत िबलपत ःवामी । मनहँु महा िबरह अित कामी ॥८॥
पूरनकाम राम सुख रासी । मनुज चिरत कर अज अिबनासी ॥
आगे परा गीधपित दे खा । सुिमरत राम चरन जन्ह रे खा ॥९॥
दोहा
कर सरोज िसर परसेउ कृ पािसंधु रधुबीर ॥
िनर ख राम छिब धाम मुख िबगत भई सब पीर ॥३०॥
दोहा
सीता हरन तात जिन कहहु िपता सन जाइ ॥
ज म राम त कुल स हत कहह दसानन आइ ॥३१॥
छं द
जय राम प अनूप िनगुन सगुन गुन ूेरक सह ।
दससीस बाहु ूचंड खंडन चंड सर मंडन मह ॥
पाथोद गात सरोज मुख राजीव आयत लोचनं ।
िनत नौिम रामु कृ पाल बाहु िबसाल भव भय मोचनं ॥१॥
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रामचिरतमानस - 22 - अरण्यकांड
दोहा
अिबरल भगित मािग बर गीध गयउ हिरधाम ।
ते ह क बया जथोिचत िनज कर क न्ह राम ॥३२॥
दोहा
मन बम बचन कपट तज जो कर भूसुर सेव ।
मो ह समेत िबरं िच िसव बस ताक सब दे व ॥३३॥
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रामचिरतमानस - 23 - अरण्यकांड
दोहा
कंद मूल फल सुरस अित दए राम कहँु आिन ।
ूेम स हत ूभु खाए बारं बार बखािन ॥३४॥
दोहा
गुर पद पंकज सेवा तीसिर भगित अमान ।
चौिथ भगित मम गुन गन करइ कपट तज गान ॥३५॥
छं द
कह कथा सकल िबलो क हिर मुख दयँ पद पंकज धरे ।
तज जोग पावक दे ह हिर पद लीन भइ जहँ न हं फरे ॥
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रामचिरतमानस - 24 - अरण्यकांड
दोहा
जाित हन अघ जन्म मह मु क न्ह अिस नािर ।
महामंद मन सुख चहिस ऐसे ूभु ह िबसािर ॥३६॥
दोहा
िबरह िबकल बलह न मो ह जानेिस िनपट अकेल ।
स हत िबिपन मधुकर खग मदन क न्ह बगमेल ॥३७(क)॥
दे ख गयउ ॅाता स हत तासु दत
ू सुिन बात ।
डे रा क न्हे उ मनहँु तब कटकु हट क मनजात ॥३७(ख)॥
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रामचिरतमानस - 25 - अरण्यकांड
दोहा
तात तीिन अित ूबल खल काम बोध अ लोभ ।
मुिन िब यान धाम मन कर हं िनिमष महँु छोभ ॥३८(क)॥
लोभ क इ छा दं भ बल काम क केवल नािर ।
बोध के प ष बचन बल मुिनबर कह हं िबचािर ॥३८(ख)॥
दोहा
पुरइिन सबन ओट जल बेिग न पाइअ मम ।
मायाछन्न न दे खऐ जैसे िनगुन ॄ ॥३९(क)॥
सु ख मीन सब एकरस अित अगाध जल मा हं ।
था धमसीलन्ह के दन सुख संजुत जा हं ॥३९(ख)॥
दोहा
फल भारन निम िबटप सब रहे भूिम िनअराइ ।
पर उपकार पु ष जिम नव हं सुसंपित पाइ ॥४०॥
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रामचिरतमानस - 26 - अरण्यकांड
दोहा
नाना िबिध िबनती किर ूभु ूसन्न जयँ जािन ।
नारद बोले बचन तब जोिर सरो ह पािन ॥४१॥
दोहा
राका रजनी भगित तव राम नाम सोइ सोम ।
अपर नाम उडगन िबमल बसुहुँ भगत उर योम ॥४२(क)॥
एवमःतु मुिन सन कहे उ कृ पािसंधु रघुनाथ ।
तब नारद मन हरष अित ूभु पद नायउ माथ ॥४२(ख)॥
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रामचिरतमानस - 27 - अरण्यकांड
दोहा
काम बोध लोभा द मद ूबल मोह कै धािर ।
ितन्ह महँ अित दा न दखद
ु माया पी नािर ॥४३॥
सुिन मुिन कह पुरान ौुित संता । मोह िबिपन कहँु नािर बसंता ॥
जप तप नेम जलाौय झार । होइ मीषम सोषइ सब नार ॥१॥
काम बोध मद म सर भेका । इन्ह ह हरषूद बरषा एका ॥
दबासना
ु कुमुद समुदाई । ितन्ह कहँ सरद सदा सुखदाई ॥२॥
धम सकल सरसी ह बृंदा । होइ हम ितन्ह ह दहइ सुख मंदा ॥
पुिन ममता जवास बहताई
ु । पलुहइ नािर िसिसर िरतु पाई ॥३॥
पाप उलूक िनकर सुखकार । नािर िनिबड़ रजनी अँिधआर ॥
बुिध बल सील स य सब मीना । बनसी सम िऽय कह हं ूबीना ॥४॥
दोहा
अवगुन मूल सूलूद ूमदा सब दख
ु खािन ।
ताते क न्ह िनवारन मुिन म यह जयँ जािन ॥४४॥
दोहा
गुनागार संसार दख
ु र हत िबगत संदेह ॥
तज मम चरन सरोज िूय ितन्ह कहँु दे ह न गेह ॥४५॥
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रामचिरतमानस - 28 - अरण्यकांड
छं द
कह सक न सारद सेष नारद सुनत पद पंकज गहे ।
अस द नबंधु कृ पाल अपने भगत गुन िनज मुख कहे ॥
िस नाह बार हं बार चरन न्ह ॄ पुर नारद गए ॥
ते धन्य तुलसीदास आस िबहाइ जे हिर रँ ग रँ ए ॥
दोहा
रावनािर जसु पावन गाव हं सुन हं जे लोग ।
राम भगित ढ़ पाव हं िबनु िबराग जप जोग ॥४६(क)॥
दप िसखा सम जुबित तन मन जिन होिस पतंग ।
भज ह राम तज काम मद कर ह सदा सतसंग ॥४६(ख)॥
अरण्यकाण्ड समा
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