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सससससससससस ससससससस सससससससससस "सससससस" (१९११-१९८७) का जनम ७ माचर १९११

को उतर पदेश के देविरया िजले के कुशीनगर नामक ऐितहािसक सथान मे हुआ था।

ससससससस
[छुपाएं]

• 1 िशका
• 2 कायरकेत
• 3 पमुख कृितया

• 4 एक और पिरचय

सससससस
पारंिभक िशका-दीका िपता की देख रेख मे घर पर ही संसकृत, फारसी, अंगेजी, और बागला भाषा व सािहतय के
अधययन के साथ। १९२५ मे पंजाब से एंटेस की परीका पास की और उसके बाद मदास िकसचन कॉलेज मे
दािखल हुए। वहा से िवजान मे इंटर की पढाई पूरी कर १९२७ मे वे बी ए़़़

स स़ी करने के िलए लाहौर के
फॅरमन कॉलेज के छात बने। १९२९ मे बी ए़़़़
स स़ी करने के बाद एम ए़़़ म़े उनहोने अंगेजी िवषय रखा;
पर काितकारी गितिविधयो मे िहससा लेने के कारण पढाई पूरी न हो सकी।

सससससससससससस
१९३० से १९३६ तक िविभन जेलो मे कटे। १९३६-३७ मे ससससस और ससससस सससस नामक पितकाओं
का संपादन िकया। १९४३ से १९४६ तक िबिटश सेना मे रहे; इसके बाद इलाहाबाद से पतीक नामक पितका
िनकाली और ऑल इंिडया रेिडयो की नौकरी सवीकार की। देश-िवदेश की याताएं की। िजसमे उनहोने
कैिलफोिनरया िवशिवदालय से लेकर जोधपुर िवशिवदालय तक मे अधयापन का काम िकया। िदलली लौटे और
िदनमान सापतािहक, नवभारत टाइमस, अंगेजी पत सससस और सससससससस जैसी पिसद पत-पितकाओं का
संपादन िकया। १९८० मे उनहोने ससससससससस नामक एक नयास की सथापना की िजसका उदेशय सािहतय
और संसकृित के केत मे कायर करना था। िदलली मे ही ४ अपैल १९८७ को उनकी मृतयु हुई। १९६४ मे |
सससस सस ससस ससससस पर उनहे सािहतय अकादमी का पुरसकार पापत हुआ और १९७९ मे ससससस
ससससस ससस ससससस ससस पर भारतीय जानपीठ पुरसकार

सससससस ससससससस
• ससससस सससससस भगनदूत, इतयलम, हरी घास पर कण भर, बावरा अहेरी, इंद धनु रौदे हुए ये, अरी
ओ करणा पभामय, आंगन के पार दार, िकतनी नावो मे िकतनी बार, कयोिक मै उसे जानता हूँ, सागर-
मुदा, महावृक के नीचे, और ऐसा कोई घर आपने देखा है।

• ससससस-सससससस : िवपथगा, परंपरा, कोठरी की बात, शरणाथी, जयदोल, ये तेरे पितरप |

• ससससससस: शेखर: एक जीवनी, नदी के दीप, अपने अपने अजनबी।

• सससससस सससससससस: अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली।


• ससससस सससससस : सबरंग, ितशंकु, आतमनेपद, आधुिनक सािहतय: एक आधुिनक पिरदृशय,
आलवाल,

• ससससससस :समृित लेखा


• सससससससस : भवंती, अंतरा और शाशती।
• ससससस सससस :संवत्‍सर

उनका लगभग समग कावय सदानीरा (दो खंड) नाम से संकिलत हुआ है तथा अनयानय िवषयो पर िलखे गए सारे
िनबंध केद और पिरिध नामक गंथ मे संकिलत हुए है।

िविभन पत-पितकाओं के संपादन के साथ-साथ अजेय ने तारसपतक, दूसरा सपतक, और | तीसरा सपतक जैसे
युगातरकारी कावय संकलनो का भी संपादन िकया तथा ससससससससस और सससससससस जैसे कावय-
संकलनो का भी।

वे वतसलिनिध से पकािशत आधा दजरन िनबंध- संगहो के भी संपादक है। िनससंदेह वे आधुिनक सािहतय के एक
शलाका-पुरष थे िजसने िहंदी सािहतय मे भारतेदु के बाद एक दूसरे आधुिनक युग का पवतरन िकया।

सस सस ससससस
सिचचदानंद हीरानंद वातसयायन 'अजेय'

अजेय का जनम 7 माचर, 1911 को कसया मे हआ। बचपन 1911 से ’15 तक लखनऊ मे। िशका का पारमभ
संसकृत-मौिखक परमपरा से हुआ 1915 से ’19 तक शीनगर और जममू मे। यही पर संसकृत पंिडत से रघुवश ं
रामायण, िहतोपदेश, फारसी मौलवी से शेख सादी और अमेिरकी पादरी से अंगेजी की िशका घर पर शुर हुई।
शासती जी को सकूल िशका मे िवशास नही था। बचपन मे वयाकरण के पिणडत से मेल नही हुआ। घर पर धािमरक
अनुषान समातर ढंग से होते थे। बडी बहन जो लगभग आठ की थी, िजतना अिधक सनेह करती थी। उतना ही
दोनो बडे भाई (बहाननद और जीवाननद जो’ 34 मे िदवंगत हो गए) पितसपधा रखते थे। छोटे भाई वतसराज के
पित सिचचदाननद का सनेह बचपन से ही था, 1919 मे िपता के साथ नालनदा आए, इसके बाद’ 25 तक िपता के
ही साथ रहे, िपता जी ने िहनदी िसखाना शुर िकया। वे सहज और संसकारी भाषा के पक मे थे। िहनदुसतानी के
सख्त िखलाफ थे। नालनदा से शासती जी पटना आए और वही सव- काशी पसाद जायसवाल और सव.
राखालदास वनदोपाधयाय से इस पिरवार का समबनध हुआ, पटना मे ही अंगेजी से िवदोह का बीज सिचचदाननद के
मन मे अंकुिरत हुआ।

शासतीजी के पुराने िमत रायबहादुर हीरालाल ही उनकी िहनदी भाषा की िलखाई की जाच करते। राखालदास के
समपकर मे आने से बंगला की िलखाई की जाच करते। राखालदास के संपकर मे आने से बंगला सीखी और इसी
अविध मे इिणडयन पेस से छपी बाल रामायण बाल महाभारत, बालभोज इिनदरा (बिकमचनद) जैसी पुसतके पढने
को िमली और हिरनारायण आपटे और राखालदास वनदोपाधयाय के ऐितहािसक उपनयास इसी अविध मे पढे गए।
1921-’25 तक ऊटकमंड मे रहे यहा नीिलिगिर की शयामल उपतयका ने बहुत अिधक पभाव डाला। 1921 मे
उिडपी के मधयाचायर के दारा इनका यजोपवीत संसकार हुआ। इसी मठ के पिणडत ने छः महीने तक संसकृत और
तिमल की िशका दी। इस समय ‘भडोत’ से ‘वातसयायन’ मे पिरवतरन भी हुआ, जो पाचीनतम संसकार के नये
उतसाह से जीने का एक संकलप था। िपता ने संकीणर पदेिशका से ऊपर उठकर गोतनाम का पचलन कराया।
इसी समय पहली बार गीता पढी।

िपताजी के आगह से अनय धमों के गनथ भी पढे और घर पर ही िपताजी के पुसतकालयो का सदुपयोग शुर
िकया। वडसरवथर, टेिनसन, लागफेलो और िवहटमैन की किवताएं इस अविध मे पढी। शेिकसयर, मारलो, वेबसटर
के नाटक तथा िलटन, जाजर एिलयट, थैकरे, गोलडिसमथ, तोलसतोय, तुगरनेव, गोगोल, िवकटर हूगो तथा मेलिवल
के उपनयास भी पढे गये। लयबद भाषा के कारण टेिनसन का पभाव बडा गहरा पडा। टेिनसन के अनुकरण मे,
अंगेजी मे ढेरो किवताएं भी िलखी। उपनयासकारो मे हूगो का पभाव, िवशेषकर उनकी रचना टॉयलर ऑफ द सी
का बडा गहरा पभाव पडा। इसी अविध मे िवशेशर नाथ रेऊ तथा गौरीचनद हीराचनद ओझा की िहनदी मे िलखी
इितहास की रचनाएं पढने को िमली तथा मीरा, तुलसी के सािहतय का अधययन भी इनहोने िकया। सािहितयक
कृिततव के नाम पर इस अविध की देन है आननद बनधु जो इस पिरवार की िनजी पितका थी। इस पितका के
समीकक थे हीरालाल जी और डॉ.. मौिदगल। इस अविध मे एक छोटा उपनयास भी िलखा और इसी अविध मे
जब मैिटक की तैयारी ये कर रहे थे, मा के साथ इनहोने जिलयावाला बाग-काणड की घटना के आसपास पंजाब
की याता की थी और अंगेजी सामाजयवाद के िवरद िवदोह की भावना ने जनम िलया था। इनके िपताजी सवयं
अंगेजी की अधीनता की चुभन कभी-कभी वयकत करते थे।

एक घटना भी बलैकसटोन नामक अंगेजी अिधकारी के साथ घट चुकी थी। वह शासतीजी और राखालदास के साथ
याता कर रहा था। िडबबे मे राखालदास की पती भी थी। वह सनानकक से अधरनगन िडबबे के भीतर आया।
शासतीजी ने उस से पूछा, ‘‘कया इस रप मे तुम िकसी अंगेज मिहला के सामने आ सकते थे ?’ उतर मे वह
कुछ बोला नही, हंसता रहा। शासतीजी ने उसे उठाकर िडबबे से बाहर फेक िदया। उसने आजीवन शतुता िनभाई,
यहा तक िक िपता दारा िकए गए इस अपमान का बदला पुत से चुकाया, जब वे लाहौर िकले मे नजरबनद हुए।
दूसरी घटना ऊटी मे सवंय सिचचदाननद के साथ घटी थी, जब वे दो-तीन महीने अंगेजो के साथ सकूल मे पढने
गए। वहा अंगेज लडको की मरममत करके ही इनहे सकूल मे काडर िमला, िजसे फेक कर ये घर चले आए।
1925 मे पंजाब से मैिटक की पाइवेट परीका दी और उसी वषर इणटरमीिडएट साइंस पढने मदास िकिशयन कालेज
मे दािखल हुए। यहा उनहोने गिणत, भौितकशासत और संसकृत िवषय िलए थे। यहा इनके अंगेजी पोफेसर हेणडरसन
ने (िजनहे ितशंकु समिपरत की गई) सािहतय के अधययन की पेरणा दी।

ये सवयं भारत के भकत थे। इनही के साथ टैगोर अधययन-मणडल की सथापना की और रिसकन के सौनदयरशासत
तथा आचरणशासत का अधययन िकया। कला-केतो के बीच घूमते-घूमते सथापतय और िशलप दोनो का राग-बोध
पिरपकव होता गया। दिकण के मिनदर और नीलिगिर के दृशय ने उनके वयिकततव मे पकृित-पेम और कलापेम को
िनखार िदया। मदास मे सामािजक िवषमता की चेतना जगने लगी थी और जाित के िवरद िवदोह मन मे इसी
अविध मे उमडना शुर हुआ। शासतीजी सवयं जाित मे िवशास न कर के वणर मे िवशास करते थे और पुतो से
आशा करते थे िक बाहणवणर का सवभाव—तयाग, अभय और सतय—उनहे कभी नही छोडना चािहए।

बचपन से िकशोरावसथा तक की यह अविध उलझन और आकुलता के बीच किठन अधयवसाय की अविध है।
एक ओर पिरवार के और बाहर के अनेक पकार के िपय-अिपय पभावो ने उनके िचत को उदेिलत िकया, तो दूसरी
ओर िपता के किठन अनुशासन ने पिरशम मे लगातार लगाए रख कर मन और शरीर को संयम मे ढाला। बचपन
मे इनहे ‘सचचा’ के नाम से पुकारा जाता था और जब-जब इनकी सचचाई पर िवशास नही िकया गया, इनहोने मौन
िवदोह िकया। एक बार की घटना ऐसी है िक बडे भाई और इनमे होड लगी िक चौदह रोटी कौन खा सकता है ?
बडे भाई ने कहा िक तुम खाओ तो तुमहे मै इनाम दूँगा। ये खाने बैठे, िपता जी को इसकी सूचना िमली, उनहोने बडे
भाई को डाटा और इनसे कहा िक तुम न खाओ, उठ जा। ये चौदह के आस-पास तक पहंुच रहे थे, अपने मन से
उठे नही, इसिलए उनहोने भाई से इनाम मागा। उनहोने देने से इनकार िकया तो मौन िवरोध मे इनहोने खाना ही कम
कर िदया इस पकार का आतमपीडक कोध इनमे बहुत िदनो तक रहा है। और अब भी िकसी न िकसी रप मे कभी
न कभी उभर आता है। इसी कोध मे आकर इनहोने अपनी आिथरक बबादी भी कम नही की।

1927 मे लाहौर फॉरमन कॉलेज मे ये बी. एस-सी. मे भती हुए। इसी कालेज मे नवजवान भारत-सभा के समपकर
मे आए और िहनदुसतान सोशिलसट िरपिबलकन आमी के पमुख सदसय आजाद, सुखदेव और भगवतीचरण बोहरा
से पिरचय हुआ। इस कालेज मे बी.एस-सी. तक तो ये सिकय रप से कािनतकारी आनदोलन मे पिवष नही हुए
थे, यदिप 1929 मे पं. मोतीलाल नेहर की अधयकता मे कागेस का जो अिधवेशन लाहौर मे हुआ, उस मे ये सवयं
सेवक अफसर के रप मे मौजूद थे। यही इनही के सवयं सेवक दल ने उन लोगो को जबरदसती सवयंसेवक कैमप
मे बनद रखा था, जो गाधीजी के उस पसताव का अिपय रप मे िवरोध करने वाले थे, जो उनहोने इरिवन को बधाई
देने के िलए रखा था। इसी सवयंसेवक िशिवर मे कदािचत पहली बार कागेस के मंच से ‘इनकलाब िजनदाबाद’
का नारा लगाया गया था।

1929 मे बी.एस-सी. करके अंगेजी एम.ए. मे दािखल हुए। इसी साल से ये कािनतकारी दल मे भी पिवष हुए
इनके साथ थे देवराज, कमलकृषण और वेदपकाश ननदा। कालेज मे िजन दो अधयापको ने सबसे अिधक इनहे
पभािवत िकया, वे थे, जे.एम. बनेड और डेिनयल। जे.एम.बनेड ने तो इनके जेल जाने पर भी अपना सनेह समबनध
बनाए रखा। बनेड ने ही (यदिप वे भौितकशासत के अधयापक थे) िविभन धमों के तुलनातमक अधययन की पेरणा
दी। पो. डेिनयल ने इनहे बाउिनंग की ओर उनमुख िकया। इनके कािनतकारी जीवन की अविध 1929 से आरमभ
होकर 1936 तक है। इस अविध का अिधकाशतः इितहास देश के इितहास से समबद है। उसमे कहने की
इतनी बाते है िक यहा उन पर िवसतार से िवचार करना अनावशयक है। घटनाकम कुल यह है िक पहला कयरकम
इन का और इनके सािथयो का भगतिसंह को छुडाने का हुआ। इस बीच मे भगवती चरण वोहरा एक दुघरटना मे
शहीद हुए और यह कायरकम सथिगत हो गया।

दूसरा कायरकम िदलली-िहमालयन-टॉयलेटस फैकटी के बहाने बम बनाने का कारखाना कायम करने का था।
उस फैकटी मे अजेय वैजािनक के रप मे सलाहकार थे। तीसरा कायरकम अमृतसर मे िपसतौल की मरममत और
कारतूस भरने का कारखाना कायम करने का शुर हुआ और यही देवराज और कमलकृषण के साथ 15 नवमबर,
1930 को िगरफतार हएु । िगरफतारी के बाद एक महीने लाहौर िकले मे, िफर अमृतसर की हवालात मे। यही से
यातना शुर हुई। आमसर ऐकट वाले मुकदमे मे ये छू टे, पर िदलली मे 1931 मे नया मुकदमा शुर िकया गया। यह
मुकदमा 1933 तक चलता रहा। िदलली जेल मे ही काल-कोठरी मे बनद रहे और यही रह कर छायावाद से
मनोिवजान, राजनीित अथरशासत और कानून—ये सारे िवषय पढे। यही रहकर िचनता, िवपथगा की अनेक
कहािनया और शेखर िलखा; पर यह पूरी अविध कुल ले-देकर घोर आतममनथन, शारीिरक यातना और सवपभंग
की पीडा की अविध रही।

1934 की फरवरी मे छू टे, िफर लाहौर मे दूसरे कानून के अनतगरत नजरबनद िकये गये। यही रह कर कोठरी की
बात और िचनता की रचना की और इसी अविध मे कहािनयो का छपना शुर हुआ। 1934 के मधय मे घर के
अनदर नजरबनद हो गई और घर आने पर एक साथ छोटे भाई और माता की मृतयु और िपता जी की नौकरी से
िनवृित—इन सभी घटनाओं ने रोते िचत मे नये उदेलन पैदा िकए नजरबनदी हटने तक ये डलहौजी़़़ और लाहौर
रहे। सात साल के इस असे ने कई छाप छोडी है। रावी के पुल से छलाग मारने पर घुटने की टोपी उतरी और
वह ददर मौका पाते ही आज भी लौट आता है। कािनतकारी जीवन के सािथयो मे जो लोग आदशरचयुत हुए या जो
टू टने लगे उनके कारण घोर आतमपीडन का भाव जाग गया और एकाकीपन का अभयास जो बढा, वह अभी भी नही
छू टा। अजेय को अतयिधक सामािजकता इतनी असह है, इसका पमाण मै सवयं दे सकता हूं। कभी-कभी वे
सवागत-समारोहो के बाद लौटने पर ऐसा अनुभव करते है िक िकसी यनतणा से गुजर कर आए है। पर सबसे
अिधक महततवपूणर छाप इस जीवन की उनकी राग अनुभूित को सघन बनाने मे है। इस जीवन मे पखर शिकत और
ताप िजस सोत से िमला था, उसके आकिसमक िनधन की चोट बडी गहरी पडी है।

यह िवयोग उनही के शबदो मे ‘सथायी िवयोग’ है। उस ‘अतयनतगता’ की समृित एक अमूलय थाती है। इसी के
सहारे हािरल का धमर िनभाना सबसे बडा पािथरव धमर उनहोने जाना है। यह उनहोने जाना और अपनी ‘माग को
सवंय अपना खंडन’ माना। ‘आहुित बनकर’ ही उनहोने पेम को ‘यज की जवाला’ के रप मे देखा। ‘वंचनाओं के
दुगर के रद िसंहदार खोल कर मुकत आकाश’ के िलए जो अदमय आशा उनके िचत मे हमेशा भरती रहती है अपने
को तटसथ और एकाकी रख सकने का वह लमबा अभयास। यह सही है िक िशलप की दृिष से और भाषा की
दृिष से इस अविध की किवताओं पर छायावाद का गहरा पभाव है, पर साथ ही यह भी िनिवरवाद है िक कथय
छायावाद की भूिमका से िबलकुल अलग है। उसका आधार अरप पेम नही, न िमटने वाली पयास नही, रहसय-
अनवेषण नही, है ऊजरसवी और मासल पेम, पतयंचा तोड धनुष का सनधान (शिकत के परे आतमोतसगर) और एक
दुिनरवार ऊधवरग जवाल। इस दृिष से इस अविध को भटी मे गलाई की अविध कहा जा सकता है।

गदहपचीसी पार करके 1936 मे जब जीिवका के िलए कमरकेत मे उतरे तो पहले एक आशम खोलने की बात
सोची। पर िपता की एक डाट ने इस िभखमंगी से इनहे िवरत कर िदया। िफर सैिनक के समपादन-मणडल मे आए
और वहा साल-भर रहे। इसी समय मेरठ के िकसान आनदोलन मे भी काम िकया और इस अविध मे रामिवलास
शमा, पकाश चनद गुपत, भारतभूषण अगवाल, पभाकर माचवे और नेिमचनद जैन से पिरचय हुआ। राजनैितक
िवचारो मे भी उथल-पुथल शुर हुई। गाधीजी के पित जहा शदा िबलकुल नही थी, वहा आदर-भाव जगा, पर
कागेस के मिनतमणडल मे सिममिलत न होने के पक मे न होते हुए भी, और सुभाष चनद बसु के साथ ितपुरी मे नयाय
नही हुआ यह मानते हएु भी, सुभाष बाबू के िलए शदा न कर सके। जवाहरलाल नेहर के खतरनाक िवचार और
खतरनाक जीवन के नारे ने पहले बहुत पभािवत िकया था, बाद मे उनकी बौिदक सचचाई की ही छाप मन मे
अिधक गहरी पडी।

1937 के अनत मे बनारसीदास चतुवेदी के आगह से िवशाल भारत मे गये। लगभग डेढ वषर कलकता रहे। यहा
सुधीनद दत, बुददेव बसु, हजारी पसाद िदवेदी, बलराज साहनी और पुिलन सेन पिरचय की पिरिध मे आए।
कलकता के महानगर का पहला अनुभव बहुत तीखा रहा। इसके िवमानवीकृत पहलू ने इनके संवेदनशील िचत
को बहुत वयिथत िकया। िवशाल भारत को वयिकतगत कारणो से इनहोने छोडा और 1939 मे िपताजी के पास
बडौदा गये। िपताजी ने िवदेश जाकर अधययन पूरा करने के िलए कहा। इतने मे ही महायुद िछड गया और
िदलली आल इिणडया रेिडयो मे नौकरी करने चले आये। इसी अनतराल मे िहनदी सािहतय के अनेकानेक आयामो
और चको से तो पिरिचत हएु ही, पतकािरता के आदशर और वयवहार के वैषमय का भी साकात् अनुभव पापत
िकया। इन आकाशवृितयो के लाभ मुखयतः दो हुए। एक तो िहनदी की सािहितयक पिरिध के भीतर पैठ और
दूसरा-अपना जीवन-पथ िनमाण करने का एक िवशास। यह िवशास कुछ आवशयकता से अिधक ही हुआ और
इसी के कारण 1940 मे एक बहुत बडी गलती िसिवल मैरेज करके इनहोने की। यह शादी बहुत बडी चुभन बनी।
इस चुभन के कारण, कुछ अपने फािससट-िवरोधी िवशास के उफान मे इनहोने 1942 के आनदोलन को उपयोगी न
समझा और उसी साल िदलली मे अिखल भारतीय फािससट-िवरोधी सममेलन का आयोजन िकया। इस सममेलन
के बाद मे पगितशील लेखक संघ का एक अलग गुट बन गया।

पर उससे इनका समबनध नही था। शािहद और ये एक साथ थे और कृशचनदर, रामिवलास और िशवदानिसंह दूसरी
ओर। दोनो िवचारधाराओं के लोग अलग-अलग उदेशयो से फािससट-िवरोधी युद मे शरीक हो रहे थे। युद को
गलत मानते हुए सुरकातमक युद की अिनवायरता ये मानते थे। इसीिलए अपने िवशास को मात पमािणत करने के
िलए युद मे 1943 मे सिममिलत हुए। युद के पहले इनका समय अपनी पूवरपती से अलग मेरठ और िदलली मे
अिधक बीता था। युद मे िजस यूिनट मे ये सिममिलत हुए, उसका कायर पितरोध अिभयान (रेिजसटेस मूवमेट) की
तैयारी करना था।
ससससस सससससस

• सससससस ससससस ससससस /


सससससस
• ससस स ससससस ससससससस /
सससससस
• सससससस सससस / सससससस
(लमबी रचना)
• सससस सस ससस ससससस / सससस: 07
सससससस माचर 1911
• ससससससस सस ससस ससस सससस: 1987
ससस‍स ससससससस / सससससस
(अजेय की अंगेजी किवताओं का ससससस अजेय
अनुवाद)
• ससससस ससससस ससस ससससस सससस ससससस कुशीनगर, देविरया िजला, उतर
ससस / सससससस पदेश
• ससस सस सससस सस सससस / ससस सससससस हरी घास पर कण भर, बावरा अहेरी,
सससससस ससससससस इंद धनु रौदे हुए, आंगन के पार दार,
• सससस ससस ससससससस िकतनी नावो मे िकतनी बार
ससससस ससस / सससससस
ससससस िकतनी नावो मे िकतनी बार नामक
• ससससस ससससस / सससससस
कावय संगह के िलये 1978 मे
• सससससससस सस सससस /
भारतीय जानपीठ पुरसकार से
सससससस
सममािनत। आँगन के पार दार के
• ससससससस सस सससस /
िलये 1964 का सािहतय अकादमी
सससससस
पुरसकार
• ससस ससस सस सससस सस /
सससससस ससससस अजेय / पिरचय

ससससससस किवता कोश पता


www.kavitakosh.org/agyeya

• ससस ससससस / सससससस


• ससससस ससससस / सससससस
• ससससस ससससस / सससससस

ससससससस

• अनुभव-पिरपकव / अजेय
• अलाव / अजेय
• आंगन के पार दार खुले / अजेय
• उड चल हािरल / अजेय
• उधार / अजेय
• उषा-दशरन / अजेय
• औदोिगक बसती / अजेय
• कतकी पूनो / अजेय
• कदमब-कािलनदी-1 / अजेय
• कदमब-कािलनदी-2 / अजेय
• कापती है / अजेय
• कयोिक मै / अजेय
• कवार की बयार / अजेय
• खुल गई नाव / अजेय
• घर-1 / अजेय
• घर-2 / अजेय
• घर-3 / अजेय
• घर-4 / अजेय
• घर-5 / अजेय
• चादनी चुपचाप सारी रात / अजेय
• चादनी जी लो / अजेय
• चुप-चाप / अजेय
• जाडो मे / अजेय
• जीवन-छाया / अजेय
• जो कहा नही गया / अजेय
• जो पुल बनाएंगे / अजेय
• ताजमहल की छाया मे / अजेय
• तुमहारी पलको का कँपना / अजेय
• दूवाचल / अजेय
• दृिष-पथ से तुम जाते हो जब / अजेय
• देिखये न मेरी कारगुजारी / अजेय
• देना-पाना / अजेय
• धूप / अजेय
• ननदा देवी-1 / अजेय
• ननदा देवी-2 / अजेय
• ननदा देवी-3 / अजेय
• ननदा देवी-4 / अजेय
• ननदा देवी-5 / अजेय
• ननदा देवी-6 / अजेय
• ननदा देवी-7 / अजेय
• ननदा देवी-8 / अजेय
• ननदा देवी-9 / अजेय
• ननदा देवी-10 / अजेय
• ननदा देवी-11 / अजेय
• ननदा देवी-12 / अजेय
• ननदा देवी-13 / अजेय
• ननदा देवी-14 / अजेय
• नया किव : आतम-सवीकार / अजेय
• नाता-िरशता-1 / अजेय
• नाता-िरशता-2 / अजेय
• नाता-िरशता-3 / अजेय
• नाता-िरशता-4 / अजेय
• नाता-िरशता-5 / अजेय
• पक गई खेती / अजेय
• पराजय है याद / अजेय
• पहाडी याता / अजेय
• पानी बरसा / अजेय
• पतीका-गीत / अजेय
• पथम िकरण / अजेय
• पाण तुमहारी पदरज फूली / अजेय
• मुिकत की कामना / अजेय
• मेरे देश की आँखे / अजेय
• मैने आहुित बन कर देखा / अजेय
• मै ने देखा, एक बूँद / अजेय
• मै ने देखा : एक बूंद / अजेय
• मै वह धनु हूँ / अजेय
• यह दीप अकेला / अजेय
• याद / अजेय
• ये मेघ साहिसक सैलानी / अजेय
• योगफल / अजेय
• रात मे गाव / अजेय
• रात होते-पात होते / अजेय
• वन झरने की धार / अजेय
• वसंत आ गया / अजेय
• वसीयत / अजेय
• वासनती / अजेय
• िवपयरय / अजेय
• शबद और सतय / अजेय
• शरद / अजेय
• िशिशर ने पहन िलया / अजेय
• शोषक भैया / अजेय
• सतय तो बहुत िमले / अजेय
• सजरना के कण / अजेय
• साप / अजेय
• सारस अकेले / अजेय
• सोन-मछली / अजेय
• हँसती रहने देना / अजेय
• हमारा देश / अजेय
• हवाएँ चैत की / अजेय
• हीरो / अजेय

• कलगी बाजरे की
• मैने पूछा कया कर रही हो / अजेय

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