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सतत ऊर्जा एवं पर्यावरण के लिए हरित उत्‍पादकता

हरित उत्‍पादकता की परिकल्‍पना 1994 में तब प्रारं भ हई जब 1992 में रियों (ब्राजील) में पथ्
ृ ‍वी
सम्‍मेलन में 178 दे शों की सरकारों ने 21 सत्र
ू ीय कार्यक्रम को अपनाया जिसमें पर्यावरण को बचाते हुए
सतत आर्थिक विकास का नारा दिया गया था महात्‍मा गांधी ने कहा था ‘’ प्रकृति मनुष्‍य की
आवश्‍यकताओं को पूरा कर सकती है पर लालच को नहीं’’

हरित उत्‍पादकता एक प्रमुख मंच World Summit on sustainable development – WSSD) ने अपने
प्राथमिक उद्देश्‍य निर्धारित किए है जिनमें मुख्‍य हैं

 संसाधनों का दक्षता से उपयोग

 पर्यावरणीय बचाव

 गरीबी कम करना

साथ ही WSSD ने अपने कुछ लक्ष्‍य निर्धारित किये जो निम्‍न है

निजी क्षेत्रों में क्रय शक्ति बढाने हे तु आपर्ति


ू श्रंख
ृ ला को प्रभावी बनाना।

पथ्
ृ ‍वी के बहुमूल्‍य संसाधनों का उन्‍नत ढं ग से उपयोग करते हुए जल संसाधनों का प्रबंधन करना।

नवीकरणीय संसाधनों का उपयोग करते हुए ऊर्जा दक्षता बढाना जिससे लागत एवं उत्‍सर्जन में कमी
लायी जा सके।

ग्रीन हाउस गैसों के उत्‍सर्जन में कमी हे तु स्‍वच्‍छ विकास तंत्र अपनानास्रोत पर ही ठोस अपशिष्‍ट
प्रबंधन एवं उचित उपचार एवं पुन:चक्रण (Recycle)

हरित उत्‍पादकता (जी पी) को एक सिद्धांत एवं साधन के रूप में व्‍यापक पहचान और अधिक
मजबूत समर्थन मिला है तथा इसे सामाजिक एवं आर्थिक सतत विकास हे तु उत्‍पादकता एवं पर्यावरण
अनुपालन को बढाने में संभवत: प्रयोग मे लाया जा रहा है । औद्योगिक क्रांति एवं भूमड
ं लीकरण को
याण रूपी वरदान में दे खा गया है । किंतु यह विकास मख्
मानव कल्‍ ु ‍यत: कोयले और तेल को जलाकर
प्राप्‍त की गई ऊर्जा की अत्‍याधिक खपत करने के बाद हुआ है । एक तरफ जहां इन अनवीकरणीय
ऊर्जा स्रोतों के दोहन से प्राकृतिक ऊर्जा भंडार घटे है वहां दस
ू री ओर इसके अ‍त्‍यधिक एवं असंतलि
ु त
प्रयोग से संसार के सामने ग्‍लोबल वार्मिंग जैसी कठिन चुनौती उत्‍पन्‍न कर दी है । समुद्री जल स्‍तर
का बढना, मानसून की अनिश्चितता एवं बार बार अकाल पडना पर्यावरणीय नुकसान से होने वाले कुछ
प्रभाव है । इन सभी चिंताओं ने हमें इस स्थिति पर आत्‍
ममंथन करने पर विवश किया तथा इससे ही
सतत विकास हे तु हरित उत्‍पादन की धारणा का उदय हुआ।
पर्यावरणीय संकट बढ़ा कैसे ?

पर्यावरणीय संकट को बढ़ाने वाले मुख्‍य कारक है – बढ़ती जनसंख्‍या, विलासितापूर्ण जीवन तथा
उत्‍पादकता प्रौद्योगिकी का प्रदष
ू ण यक्
ु ‍त होना। वायु प्रदष
ू ण एवं अपशिष्‍ट प्रबंधन मख्
ु ‍य पर्यावरणीय
मुद्दे है तथा साथ ही औद्योगिक वायु उत्‍सर्जन एवं वाहन द्वारा निकलने वाले अपशिष्‍ट स्‍थानीय
पर्यावरण को दषि
ू त करने वाले दो मुख्‍य स्रोत है । तथापि इन समस्‍याओं में वायु प्रदष
ु ण का समाधान
मिलना अपेक्षाकृत कठिन है । वायु प्रदष
ू ण के लिए पिछले कुछ दशकों में यह दे खा गया है कि
वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों जैसे कार्बन डाई ऑक्‍साइड तथा अन्‍य उत्‍सर्जन जिनसे पर्यावरण के ऊपर
कुप्रभाव पडता है , की सांद्रता बढ़ रही है । निर्जनीकरण, ओजोन क्षरण व जलवायु परिवर्तन वैश्विक
पर्यावरणीय दशाओं के लिए अहितकर है । इसके साथ जल प्रदष
ू ण एक मुख्‍य पारिस्थितिक समस्‍या के
रूप में सामने है । हरित उत्‍पादकता ऐसा एक उन्‍नत सामाजिक आर्थिक विकास है जो मानव जीवन
की गुणवत्‍ता में सतत सुधार करने पर जोर दे ता है तथा इसमें पर्यावरण को कम से कम अथवा कुछ
भी क्षति नहीं होती है । यह उपयक्
ु ‍त उत्‍पादकता एवं ऐसी पर्यावरणीय प्रबंधन उपकरणों, तकनीकों एवं
प्रौद्योगिकों जो लाभ एवं प्रतिस्‍पर्धात्‍मक अवसर बढाते हुए किसी संगठन की गतिविधियों, इसकी
सेवाओं एवं इसके उत्‍
पादों के कारण पर्यावरण पर पडने वाले प्रभाव को कम करती है ।

हरित उत्‍पादकता सामाजिक आर्थिक विकास का एक नया प्रतिमान है जिसका उद्देश्‍य पर्यावरण को
बचाते हुए आर्थिक एवं उत्‍पादकता वद्धि
ृ की जांच करता है ।

पारं परिक रूप से उत्‍पादकता का लक्ष्‍य लागत में कमी, गण


ु वत्‍ता एवं ग्राहक संतष्टि
ु करना था। अब
इनके साथ उत्‍पादकता सुधार कार्यक्रम पर्यावरणीय मुद्दों को एकीकृत करने के लिए भी आवश्‍यक है ।
जब व्‍यवसाय के दौरान अपशिष्‍ट निकलता है तो यह संसाधनों को बिक्रीयोग्‍य उत्‍पादों में परिवर्तित
करने की असफलता को दर्शाता है । इस परिप्रेक्ष्‍य से प्रदष
ू ण और अपशिष्‍ट कारपेरेट उत्‍पादकता के
विलोम है :- ये उत्‍पन्‍न होते है जब कंपनी को उत्‍पादकता के अनक
ु ू ल नहीं बनाया जा रहा हो। यह उन
नवाचारों को बढाती है जिससे नए मल्
ू ‍यवान उत्‍पाद एवं प्रक्रियाएं निर्मित हो सके। अपशिष्‍ट कम
करके एवं नवाचार अथवा innovation को बढाकर हरित उत्‍पादकता द्वारा कंपनी की उत्‍पादकता में
वद्धि
ृ की जा सकती है ।

आरं भ में लागत में कमी के उपाय को उत्‍पादकता के रूप में जाना जाता था। गुणवत्‍ता के सहारे ,
उत्‍पादकता ने पर्यावरण बचाव तथा समद्धि
ृ बढाने के रूप में समुदाय की उन्‍नति लाने में आमूलचूल
परिवर्तन किया है ।ऊर्जा एवं पर्यावरणीय मुद्दों को साथ लेते हुए सतत विकास के रूपांतरण संबंधी
चुनौतियां जारी है । वास्‍तव में यह कहना उचित है कि किसी रूपांतरणीय नीति संबंधी दृष्टिकोण की
आवश्‍यकता है । ऊर्जा प्रबंधन में सध
ु ार तथा प्रदष
ु ण में कमी लाने वाली प्रौ‍द्योगिकियां भावी जनसंख्‍या
वद्धि
ृ से जड
ु ी कुछ समस्‍याओं को कम करे गी। अत: हरित उत्‍पादकता की शुरूआत लाभप्रदता में वद्धि
ृ ,
स्‍वास्‍थ्‍य एवं संरक्षा में सुधार, गुणवत्‍ता वाले उत्‍पादों का निर्माण, पर्यावरणीय संरक्षण को बढाने ,
नियामक अनुपालन, कंपनी की छवि बनाने तथा कार्मिकों का मनोबल बढाने के मुख्‍य उद्देश्‍यों को
ध्‍यान में रखकर किया गया जिससे उत्‍तरोतर वद्धि
ृ और विकास होगा। इसमें प्रबंधन उपकरणों,
तकनीकों तथा प्रौद्यौगिकीयों का संयुक्‍त रूप से प्रयोग होता है जिससे नवाचार को प्रोत्‍साहित किया
जा सके और उत्‍पादकता लाभ का चक्र निरं तर चलता रहे । इसका परिणाम है – प्रतिस्‍पर्धात्‍मक उद्यम,
प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण तथा जीवन की बेहतर गण
ु वत्‍ता।

इसमें कम के साथ अधिक करने की धारणा निहित है तथा यह एक महत्‍वपूर्ण रणनीति है जिससे
संसाधनों के उत्‍पादकता दक्ष प्रयोग संबंधी लक्ष्‍यों को प्राप्‍त किया जा सके । उत्‍पादकता तथा
प्रतिर्स्‍पधात्‍मकता एक ही सिक्‍के के दो पहलू है । किसी राष्‍ट्र की प्रतिस्‍पर्धात्‍मक उत्‍पादकता वद्धि
ृ के
साथ जुडी होती है तथा किसी राष्‍ट्र की इसी प्रतिर्स्‍पधात्‍मकता में सुधार की योग्‍यता इसके पर्यावरण
अनुपालन द्वारा मापी जाती है । यह पारं परिक दृष्टिकोण से कुछ ज्‍यादा है ।

अब दे खें कि हरित उत्‍पादकता को अपनाना जरूरी क्‍यों है । 1. अभी सारे विश्‍व में चीन के साथ भरत
ही आर्थिक प्रगति की दिशा में सबसे विकासशील दे श है । पर बढ़ते तापमान से अमीर एवं गरीब के
बीच की खाई और बढ़े गी। गरीब पिसेगा, भुखमरी बढ़े गी।2. समुद्री स्‍तर बढ़ने से किनारे के शहर, बीचेज
आदि विलप्ु ‍त हो जाएंगे। यदि गैस उत्‍सर्जन एवं ग्‍लोबल तापमान में बढ़ोतरी न रूकी तो कोलकाता,
मंब
ु ई, चेन्‍नई जैसे शहर 2020 के बाद कभी भी डूबने की स्थिति में आ सकते हैं।

3. ऋतु चक्र की अनियमितता बढ़ने से खाद्यान्‍न उत्‍पादन घटे गा, अकाल, सूखा, महामारी बढ़े गी एवं
अपराधों में वद्धि
ृ होगी। वर्ग संघर्ष, छीना झपटी इस कदर बढ़े गी कि यह एक सिविल वार का रूप ले
सकती है जैसा कि हमने अफ्रीका में दे खा है । 4. हिमालय पर जमी बर्फ पिघलेगी, नदियों-समुद्रों का जल
स्‍तर बढ़े गा। आधुनिक जीवन शैली के कारण ऊर्जा की मांग एवं ऊर्जा स्‍त्रोतों में कमी, प्रदषि
ू त होती
नदियां एक सतत बनी रहने वाली आपदा को जन्‍म दें गी जिससे जो भी आर्थिक प्रगति बड़े शहरों में
दिखाई दे ती है , बडे-बडे मॉल्‍
स दिखाई दे ते हैं, सब अप्रासंगिक ही नहीं हो जाएंगे, समाप्ति के कगार पर
होंगे - कंकाल की तरह खड़े होंगे।

5. समुद्री तफ
ू ानों के आने की दर बढ़े गी इससे भारत का लगभग आधा सघन आबादी वाला क्षेत्र
सर्वाधिक प्रभावी होगा। अचानक अकाल से लेकर जल प्रलय के आने के खतरे हर वर्ष बढ़ते जाएंगे।

हम करें क्‍या ?अब जब हमारे सामने ऐसी भयावह परिस्थितियां दिख रहीं हों तो हम करें क्‍या ?एक
जन आंदोलन, जन जागति
ृ का मोर्चा खड़ा करें । स्‍वयं अपने जीवन से परिवर्तन आरं भ करें । ग्रीन
टे क्‍नोलोजी का अधिक से अधिक उपयोग करें । पानी बचाएं। पानी की खेती करना आरं भ करें ।
नदियों, जलाशयों, नहरों को प्रदषि
ू त होने से बचाएं। गांवों को पुन: आबाद करें । शहरों की तरफ
पलायन रोकें। जहां तक बहुत जरूरी हो उतना ही पेट्रोलियम-गैस उत्‍सर्जन वाली तकनीक इस्‍तम
े ाल
करें इसमें वाहन, गैस पर भोजन, माइक्रोवेव आदि सभी आते हैं। पैदल चलें – साइकिल का उपयोग
जहां संभव हो करें । ग्रीन फ्यूल पर निर्भरता अधिक बढ़ाएं। सौर ऊर्जा का अधिकाधिक इस्‍तम
े ाल
करें । ज्‍यादा से ज्‍यादा वनौषधि प्रधान वक्ष
ृ ों का आरोपण करें ।

मैं ये भी जानता हूं कि इनमें से जो भी बातें आपके सामने रखीं इनमें से सभी पर अमल
करना हमारे लिए आसान नहीं है और न तो हमें विश्‍व को 18 वीं शताब्‍दी में ले जाना है । हमें
निरं तर प्रगति तो करनी ही है । पर वह Sustainable हो जिसमें सबका विकास हो ऐसा जिसमें विश्‍व
का हर नागरिक सांस ले सके, ऋतुएं अनुकूल होती चली जाएं और धरती वैसी ही सद
ुं र बन जाए जैसी
हमें विधाता ने सौंपी है । मात्र एक कोपेनहे गन से कुछ नहीं होगा। तबाही रोकने के लिए विश्‍व
स्‍तरीय सामहि
ू क प्रयास करने होंगे। इसके लिए मानसिक सोच को परू ी तरह बदलना होगा। ऊर्जा
आज की एक अनिवार्य आवश्‍यकता बन गई है । सौर ऊर्जा आदि उपाय बड़े खर्चीले हैं पर यदि छोटे -
छोटे स्‍तर पर और सरकारी व गैर सरकारी स्‍तर पर मिलकर सामूहिक प्रयास किए जाएं, इन उपायों में
से हम थोड़े बहुत पर अमल करते रहें और इसमें कारपोरे ट जगत की भी भागीदारी हो तो हम सबकी
मिली जल
ु ी भागीदारी धरती को महाविनाश से बचा सकती है , यही मेरा आप सभी से आह्वान है ।

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