शाऱमचरतम़नस
ब़लक़ड
थम सोप़न
-
मं गल़चरण
ोक :
*
वण़ ऩमथ सं घ़ऩंरस़ऩंछदस़मऽप।
मं गल़ऩंच क़ रौ वदेव़णऽवऩयकौ॥
1
॥
भ़व़थ:
-
अर
,
अथसमी ह
,
रस
,
छद और मं गल को करनेव़ल सरवतज और गणेशज क मवं दऩ करत़ ू॥
1
॥
*
भव़नशं करौ वदे़ऽव़सऽपणौ।
य़य़ंऽवऩ न पयऽत ऽस़ा व़ताथमरम्॥
2
॥
भ़व़थ:
-
़ और
ऽव़स के वप प़वतज और शं करज क मवं दऩ करत़ ू
,
ऽजनके ऽबऩ ऽसजन अपनेअताकरण मऽथत ईर को नह दे ख सकते॥
2
॥
*
वदेबोधमयंऽनयंग ं शं करऽपणम्।
यम़ऽतो ऽह वोऻऽप चा सव वते॥
3
॥
भ़व़थ:
-
़नमय
,
ऽनय
,
शं कर प ग क मवदऩ करत़ ू
,
ऽजनकेआऽत होनेसेह टे़ चम़ भ सव वऽदत होत़ है॥
3
॥
*
सत़ऱमग ण़मप य़रयऽवह़रणौ।
वदेऽवश ऽव़नौ कवरकपरौ॥
4
॥
भ़व़थ:
-
सत़ऱमज
के ग णसमी ह प पऽव वन मऽवह़र करने
व़ले
,
ऽवश ऽव़न सप
कवर व़मकज और कपर हन म़नज क मवदऩ करत़
ू॥
4
॥
*
उवऽथऽतसं ह़रक़रण लेशह़रणम्।
सवे यकर सत़ंनतोऻहंऱमवलभ़म्॥
5
॥
भ़व़थ:
-
उपऽ
,
ऽथऽत (प़लन) और सं ह़र करनेव़ल
,
लेश को हरनेव़ल तथ़ सपी ण
कय़ण को करनेव़ल ऱमचज क ऽयतम़ सत़ज को म
नमक़र करत़ ू॥
5
॥
*
यम़य़वशवत ऽवमऽखलं़ददे व़स ऱ
यसव़दमु षै व भ़ऽत सकलंरौ यथ़हे मा।
यप़दलवमे कमे व ऽह भव़भोधे ऽततष़ वत़ं
वदेऻहंतमशे षक़रणपरं ऱम़यमशंहरम् ॥
6
॥
भ़व़थ:
-
ऽजनक म़य़ के
वशभी त सपी णऽव
,
़द दे वत़ और अस र ह
,
ऽजनक स़ सेरस
मसपके म क भ़ू ऽत यह स़ऱ दुय
जगत्सय ह तत होत़ हैऔर
ऽजनके केवल चरण ह भवस़गर से तरनेक इछ़ व़ल के ऽलए एकम़ नौक़
ह
,
उन समत क़रण से पर (सब क़रण के क़रण और सबसेे ) ऱम
कहल़नेव़लेभगव़न हर क मवं दऩ करत़ ू॥
6
॥
*
ऩऩप ऱणऽनगम़गमसमतंयद्
ऱम़यणेऽनगदतंऽचदयतोऻऽप।
व़तास ख़य त लस रघ ऩथग़थ़
भ़ष़ऽनबधमऽतमं ज लम़तनोऽत॥
7
॥
भ़व़थ:
-
अने क प ऱण
,
वे द और (तं ) श़ सेसमत तथ़ जो
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