वमी ीरमस खदसजी महरज
वमी ीरमस खदसजी महरज
परमक उति धनके आति नह
आज मन यके मनम धनक महव बै ठ आ है ।
वह हरेक जगह समझि है क धनसे ही कयण होि है ।
अरे भई ! धन एक जड़ चीज है, इससे जड़ चीज ही
खरीदी ज सकिी ह, परमम नह खरीदे ज सकिे । अगर परमम धनसे खरीदे जिे, िो हमरे
-
जै सक य दश होिी ? बड़ी म तकल हो जिी ! पर ऐसी बि नह है ।
शो ‒
धम का अनुषान िो धनसे ही होिा है ?
सवा ी ी‒
तबलकल गलि है । रीभर भी सही नह, परि धनके लोभीको यही दखि है; यक धनम ब त बे च दय, अपनी अलक तब कर दी । अब
वमी ीरमस खदसजी महरज
अलके तबन वे य समझ ? अल होिी िो समझिे । शम आय है ‒
धम यय तवे ह वरं िय तनरीहि ।
लनत पं कय दू रदपश नं वरम् ॥
अ ि् जो मनय धम के तलये धनक इछ करि हो, उसके तलये धनक इछक यग करन ही उम है । करण क कचड़ लगकर धोने क अपे उसक पश न
करन ही उम है । रज रतिदे वक प य बि बड़
मन जि है । उनके समने , तवण, महेश‒सब
कट हो गये । बि य ी ? गरीबको दुखी दे खकर
उहने अपन सवव दन कर दय । एक बर उनको और उनके परवरको अड़िलीस दनिक कछ भी खने
-
पीने को नह तमल । उनचसव दन उनको ोड़ घी, खीर, हलव और जल तमल । वे अ
-
जल हण करन ही चहिे े क एक ण अतित आ गय । रतिदे वने उस
ण दे विको भोजन कर दय । णके चले जने के
बद रतिदे व बच आ अ परवरम बा टकर खन ही चहिे े क एक शू अतित आ गय । रतिदे वने बच
आ खन, कछ अ उसे दे दय । इिने म ही कको
स ले कर एक और मन य वहा आय और बोल क ये
के बि भू खे ह, कछ खने को दीतजये । रतिदे वने बच
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