गोःवामी तुलसीदास
िवरिचत
रामचिरतमानस
लंकाकाण्ड
Sant Tulsidas’s
Rāmcharitmānas
Lankā Kānd
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रामचिरतमानस - 2- लंकाकांड
RAMCHARITMANAS : AN INTRODUCTION
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रामचिरतमानस - 3- लंकाकांड
ौीगणेशाय नमः
ौीरामचिरतमानस ष सोपान
लंकाकाण्ड
ोक
दोहा
लव िनमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड ।
भजिस न मन ते ह राम को कालु जासु कोदं ड ॥
सोरठा
िसंधु बचन सुिन राम सिचव बोिल ूभु अस कहे उ ।
अब िबलंबु के ह काम करहु सेतु उतरै कटकु ॥
सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोिर कह ।
नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ भव सागर तिर हं ॥
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रामचिरतमानस - 4- लंकाकांड
दोहा
अित उतंग िगिर पादप लील हं ले हं उठाइ ।
आिन दे हं नल नील ह रच हं ते सेतु बनाइ ॥१॥
दोहा
संकर िूय मम िोह िसव िोह मम दास ।
ते नर कर ह कलप भिर धोर नरक महँु बास ॥२॥
दोहा
ौी रघुबीर ूताप ते िसंधु तरे पाषान ।
ते मितमंद जे राम तिज भज हं जाइ ूभु आन ॥३॥
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रामचिरतमानस - 5- लंकाकांड
दोहा
सेतुबंध भइ भीर अित किप नभ पंथ उड़ा हं ।
अपर जलचरिन्ह ऊपर चढ़ चढ़ पार ह जा हं ॥४॥
दोहा
बां यो बनिनिध नीरिनिध जलिध िसंधु बार स ।
स य तोयिनिध कंपित उदिध पयोिध नद स ॥५॥
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रामचिरतमानस - 6- लंकाकांड
दोहा
राम ह सौिप जानक नाइ कमल पद माथ ।
सुत कहँु राज समिप बन जाइ भिजअ रघुनाथ ॥६॥
दोहा
अस कह नयन नीर भिर गह पद कंिपत गात ।
नाथ भजहु रघुनाथ ह अचल होइ अ हवात ॥७॥
दोहा
सब के बचन ौवन सुिन कह ूहःत कर जोिर ।
िनित िबरोध न किरअ ूभु मिऽंन्ह मित अित थोिर ॥८॥
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रामचिरतमानस - 7- लंकाकांड
सुनत नीक आग दख
ु पावा । सिचवन अस मत ूभु ह सुनावा ॥२॥
जे हं बार स बँधायउ हे ला । उतरे उ सेन समेत सुबेला ॥
सो भनु मनुज खाब हम भाई । बचन कह हं सब गाल फुलाई ॥३॥
तात बचन मम सुनु अित आदर । जिन मन गुनहु मो ह किर कादर ॥
िूय बानी जे सुन हं जे कहह ं । ऐसे नर िनकाय जग अहह ं ॥४॥
बचन परम हत सुनत कठोरे । सुन हं जे कह हं ते नर ूभु थोरे ॥
ूथम बसीठ पठउ सुनु नीती । सीता दे इ करहु पुिन ूीती ॥५॥
दोहा
नािर पाइ फिर जा हं ज तौ न बढ़ाइअ रािर ।
ना हं त सन्मुख समर मह तात किरअ हठ मािर ॥९॥
दोहा
सुनासीर सत सिरस सो संतत करइ िबलास ।
परम ूबल िरपु सीस पर त िप सोच न ऽास ॥१०॥
दोहा
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रामचिरतमानस - 8- लंकाकांड
दोहा
कह हनुमंत सुनहु ूभु सिस तु हारा िूय दास ।
तव मूरित िबधु उर बसित सोइ ःयामता अभास ॥१२(क)॥
दोहा
छऽ मुकुट ताटं क तब हते एकह ं बान ।
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रामचिरतमानस - 9- लंकाकांड
दोहा
िबःव प रघुबंस मिन करहु बचन िबःवासु ।
लोक क पना बेद कर अंग अंग ूित जासु ॥१४॥
दोहा
अहं कार िसव बुि अज मन सिस िच महान ।
मनुज बास सचराचर प राम भगवान ॥१५(क)॥
अस िबचािर सुनु ूानपित ूभु सन बय िबहाइ ।
ूीित करहु रघुबीर पद मम अ हवात न जाइ ॥१५(ख)॥
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रामचिरतमानस - 10 - लंकाकांड
दोहा
एह िबिध करत िबनोद बहु ूात ूगट दसकंध ।
सहज असंक लंकपित सभाँ गयउ मद अंध ॥१६(क)॥
सोरठा
फूलह फरइ न बेत जदिप सुधा बरष हं जलद ।
मू ख दयँ न चेत ज गुर िमल हं िबरं िच सम ॥१६(ख)॥
सोरठा
ूभु अ या धिर सीस चरन बं द अंगद उठे उ ।
सोइ गुन सागर ईस राम कृ पा जा पर करहु ॥१७(क)॥
ःवयं िस सब काज नाथ मो ह आद दयउ ।
अस िबचािर जुबराज तन पुल कत हरिषत हयउ ॥१७(ख)॥
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रामचिरतमानस - 11 - लंकाकांड
दोहा
गयउ सभा दरबार तब सुिमिर राम पद कंज ।
िसंह ठविन इत उत िचतव धीर बीर बल पुज
ं ॥१८॥
दोहा
जथा म गज जूथ महँु पंचानन चिल जाइ ।
राम ूताप सुिमिर मन बैठ सभाँ िस नाइ ॥१९॥
दोहा
ूनतपाल रघुबंसमिन ऽा ह ऽा ह अब मो ह ।
आरत िगरा सुनत ूभु अभय करै गो तो ह ॥२०॥
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रामचिरतमानस - 12 - लंकाकांड
दोहा
हम कुल घालक स य तु ह कुल पालक दससीस ।
अंधउ बिधर न अस कह हं नयन कान तव बीस ॥२१॥
दोहा
जिन ज पिस जड़ जंतु किप सठ िबलोकु मम बाहु ।
लोकपाल बल िबपुल सिस मसन हे तु सब राहु ॥२२(क)॥
पुिन नभ सर मम कर िनकर कमलिन्ह पर किर बास ।
सोभत भयउ मराल इव संभु स हत कैलास ॥२२(ख)॥
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रामचिरतमानस - 13 - लंकाकांड
चलइ बहत
ु सो बीर न होई । पठवा खबिर लेन हम सोई ॥५॥
दोहा
स य नग किप जारे उ िबनु ूभु आयसु पाइ ।
फिर न गयउ सुमीव प हं ते हं भय रहा लुकाइ ॥२३(क)॥
स य कह ह दसकंठ सब मो ह न सुिन कछु कोह ।
कोउ न हमार कटक अस तो सन लरत जो सोह ॥२३(ख)॥
ूीित िबरोध समान सन किरअ नीित अिस आह ।
ज मृगपित बध मेड़ु किन्ह भल क कहइ कोउ ता ह ॥२३(ग)॥
ज िप लघुता राम कहँु तो ह बध बड़ दोष ।
तदिप क ठन दसकंठ सुनु छऽ जाित कर रोष ॥२३(घ)॥
बब उि धनु बचन सर दय दहे उ िरपु कस ।
ूितउ र सड़िसन्ह मनहँु काढ़त भट दससीस ॥२३(ङ)॥
हँ िस बोलेउ दसमौिल तब किप कर बड़ गुन एक ।
जो ूितपालइ तासु हत करइ उपाय अनेक ॥२३(छ)॥
दोहा
एक कहत मो ह सकुच अित रहा बािल क काँख ।
इन्ह महँु रावन त कवन स य बद ह तिज माख ॥२४॥
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रामचिरतमानस - 14 - लंकाकांड
दोहा
ते ह रावन कहँ लघु कहिस नर कर करिस बखान ।
रे किप बबर खब खल अब जाना तव यान ॥२५॥
दोहा
सेन स हत तब मान मिथ बन उजािर पुर जािर ॥
कस रे सठ हनुमान किप गयउ जो तव सुत मािर ॥२६॥
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रामचिरतमानस - 15 - लंकाकांड
दोहा
कुंभकरन अस बंधु मम सुत ूिस सबािर ।
मोर पराबम न हं सुने ह िजतेउँ चराचर झािर ॥२७॥
दोहा
सूर कवन रावन सिरस ःवकर का ट जे हं सीस ।
हने
ु अनल अित हरष बहु बार सािख गौर स ॥२८॥
दोहा
जर हं पतंग मोह बस भार बह हं खर बृंद ।
ते न हं सूर कहाव हं समुिझ दे खु मितमंद ॥२९॥
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रामचिरतमानस - 16 - लंकाकांड
दोहा
तो ह पट क मह सेन हित चौपट किर तव गाउँ ।
तव जुबितन्ह समेत सठ जनकसुत ह लै जाउँ ॥३०॥
दोहा
अगुन अमान जािन ते ह द न्ह िपता बनबास ।
सो दख
ु अ जुबती िबरह पुिन िनिस दन मम ऽास ॥३१(क)॥
िजन्ह के बल कर गब तो ह अइसे मनुज अनेक ।
खाह ं िनसाचर दवस िनिस मूढ़ समुझु तिज टे क ॥३१(ख)॥
दोहा
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रामचिरतमानस - 17 - लंकाकांड
एह िबिध बेिग सूभट सब धावहु । खाहु भालु किप जहँ जहँ पावहु ॥
मकटह न करहु मह जाई । िजअत धरहु तापस ौ भाई ॥१॥
पुिन सकोप बोलेउ जुबराजा । गाल बजावत तो ह न लाजा ॥
म गर का ट िनलज कुलघाती । बल िबलो क िबहरित न हं छाती ॥२॥
रे िऽय चोर कुमारग गामी । खल मल रािस मंदमित कामी ॥
सन्यपात ज पिस दबादा
ु । भएिस कालबस खल मनुजादा ॥३॥
याको फलु पाव हगो आग । बानर भालु चपेटिन्ह लाग ॥
रामु मनुज बोलत अिस बानी । िगर हं न तव रसना अिभमानी ॥४॥
िगिरह हं रसना संसय नाह ं । िसरिन्ह समेत समर मह माह ं ॥५॥
सोरठा
सो नर य दसकंध बािल ब यो जे हं एक सर ।
बीसहँु लोचन अंध िधग तव जन्म कुजाित जड़ ॥३३(क)॥
तब सोिनत क यास तृिषत राम सायक िनकर ।
तजउँ तो ह ते ह ऽास कटु ज पक िनिसचर अधम ॥३३(ख)॥
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रामचिरतमानस - 18 - लंकाकांड
दोहा
को टन्ह मेघनाद सम सुभट उठे हरषाइ ।
झपट हं टरै न किप चरन पुिन बैठ हं िसर नाइ ॥३४(क)॥
भूिम न छाँडत किप चरन दे खत िरपु मद भाग ॥
को ट िब न ते संत कर मन िजिम नीित न याग ॥३४(ख)॥
दोहा
िरपु बल धरिष हरिष किप बािलतनय बल पुंज ।
पुलक सर र नयन जल गहे राम पद कंज ॥३५(क)॥
साँझ जािन दसकंधर भवन गयउ िबलखाइ ।
मंदोदर रावन ह बहिर
ु कहा समुझाइ ॥३५(ख)॥
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रामचिरतमानस - 19 - लंकाकांड
दोहा
बिध िबराध खर दषन
ू ह लीलाँ ह यो कबंध ।
बािल एक सर मारयो ते ह जानहु दसकंध ॥३६॥
दोहा
दइु सुत मरे दहे उ पुर अजहँु पूर िपय दे हु ।
कृ पािसंधु रघुनाथ भिज नाथ िबमल जसु लेहु ॥३७॥
दोहा
धमह न ूभु पद िबमुख काल िबबस दससीस ।
ते ह पिरहिर गुन आए सुनहु कोसलाधीस ॥३८(((क)॥
परम चतुरता ौवन सुिन िबहँ से रामु उदार ।
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रामचिरतमानस - 20 - लंकाकांड
दोहा
जयित राम जय लिछमन जय कपीस सुमीव ।
गज हं िसंघनाद किप भालु महा बल सींव ॥३९॥
दोहा
नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर ।
कोट कँगूरिन्ह चढ़ गए को ट को ट रनधीर ॥४०॥
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रामचिरतमानस - 21 - लंकाकांड
छं द
धिर कुधर खंड ूचंड ककट भालु गढ़ पर डारह ं ।
झपट हं चरन गह पट क मह भिज चलत बहिर
ु पचारह ं ॥
अित तरल त न ूताप तरप हं तम क गढ़ चढ़ चढ़ गए ।
किप भालु चढ़ मं दरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए ॥
दोहा
एकु एकु िनिसचर गह पुिन किप चले पराइ ।
ऊपर आपु हे ठ भट िगर हं धरिन पर आइ ॥४१॥
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रामचिरतमानस - 22 - लंकाकांड
दसर
ु सूत िबकल ते ह जाना । ःयंदन घािल तुरत गृह आना ॥४॥
दोहा
अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल ।
रन बाँकुरा बािलसुत तर क चढ़े उ किप खेल ॥४३॥
दोहा
एक एक स मद हं तोिर चलाव हं मुंड ।
रावन आग पर हं ते जनु फूट हं दिध कुंड ॥४४॥
दोहा
भुज बल िरपु दल दलमिल दे िख दवस कर अंत ।
कूदे जुगल िबगत ौम आए जहँ भगवंत ॥४५॥
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रामचिरतमानस - 23 - लंकाकांड
दोहा
दे िख िनिबड़ तम दसहँु दिस किपदल भयउ खभार ।
एक ह एक न दे खई जहँ तहँ कर हं पुकार ॥४६॥
दोहा
कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ ।
गज हं भालु बलीमुख िरपु दल बल िबचलाइ ॥४७॥
दोहा
हरन्या छ ॅाता स हत मधु कैटभ बलवान ।
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रामचिरतमानस - 24 - लंकाकांड
छं द
ढाहे मह धर िसखर को टन्ह िबिबध िबिध गोला चले ।
घहरात िजिम पिबपात गजत जनु ूलय के बादले ॥
मकट िबकट भट जुटत कटत न लटत तन जजर भए ।
गह सैल ते ह गढ़ पर चलाव हं जहँ सो तहँ िनिसचर हए ॥
दोहा
मेघनाद सुिन ौवन अस गढ़ु पुिन छका आइ ।
उतय बीर दग
ु त सन्मुख च यो बजाइ ॥४९॥
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रामचिरतमानस - 25 - लंकाकांड
दोहा
दस दस सर सब मारे िस परे भूिम किप बीर ।
िसंहनाद किर गजा मेघनाद बल धीर ॥५०॥
दोहा
जासु ूबल माया बल िसव िबरं िच बड़ छोट ।
ता ह दखावइ िनिसचर िनज माया मित खोट ॥५१॥
दोहा
आयसु मािग राम प हं अंगदा द किप साथ ।
लिछमन चले बु होइ बान सरासन हाथ ॥५२॥
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रामचिरतमानस - 26 - लंकाकांड
दोहा
िधर गाड़ भिर भिर ज यो ऊपर धूिर उड़ाइ ।
जनु अँगार रािसन्ह पर मृतक धूम र ो छाइ ॥५३॥
दोहा
मेघनाद सम को ट सत जोधा रहे उठाइ ।
जगदाधार सेष किम उठै चले िखिसआइ ॥५४॥
दोहा
राम पदारिबंद िसर नायउ आइ सुषेन ।
कहा नाम िगिर औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥५५॥
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रामचिरतमानस - 27 - लंकाकांड
दोहा
सुिन दसकंठ िरसान अित ते हं मन क न्ह िबचार ।
राम दत
ू कर मर ब यह खल रत मल भार ॥५६॥
दोहा
सर पैठत किप पद गहा मकर ं तब अकुलान ।
मार सो धिर द य तनु चली गगन चढ़ जान ॥५७॥
दोहा
दे खा भरत िबसाल अित िनिसचर मन अनुमािन ।
िबनु फर सायक मारे उ चाप ौवन लिग तािन ॥५८॥
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रामचिरतमानस - 28 - लंकाकांड
सोरठा
लीन्ह किप ह उर लाइ पुल कत तनु लोचन सजल ।
ूीित न दयँ समाइ सुिमिर राम रघुकुल ितलक ॥५९॥
दोहा
तव ूताप उर रािख ूभु जेहउँ नाथ तुरंत ।
अस कह आयसु पाइ पद बं द चलेउ हनुमंत ॥६०(क)॥
भरत बाहु बल सील गुन ूभु पद ूीित अपार ।
मन महँु जात सराहत पुिन पुिन पवनकुमार ॥६०(ख)॥
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रामचिरतमानस - 29 - लंकाकांड
सोरठा
ूभु ूलाप सुिन कान िबकल भए बानर िनकर ।
आइ गयउ हनुमान िजिम क ना महँ बीर रस ॥६१॥
दोहा
सुिन दसकंधर बचन तब कुंभकरन िबलखान ।
जगदं बा हिर आिन अब सठ चाहत क यान ॥६२॥
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रामचिरतमानस - 30 - लंकाकांड
दोहा
राम प गुन सुिमरत मगन भयउ छन एक ।
रावन मागेउ को ट घट मद अ म हष अनेक ॥६३॥
दोहा
बचन कम मन कपट तिज भजेहु राम रनधीर ।
जाहु न िनज पर सूझ मो ह भयउँ कालबस बीर ।६४॥
दोहा
अंगदा द किप मु िछत किर समेत सुमीव ।
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रामचिरतमानस - 31 - लंकाकांड
दोहा
जय जय जय रघुबंस मिन धाए किप दै हह
ू ।
एक ह बार तासु पर छाड़े िन्ह िगिर त जूह ॥६६॥
दोहा
सुनु सुमीव िबभीषन अनुज सँभारे हु सैन ।
म दे खउँ खल बल दल ह बोले रािजवनैन ॥६७॥
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रामचिरतमानस - 32 - लंकाकांड
दोहा
छन महँु ूभु के सायकिन्ह काटे िबकट िपसाच ।
पुिन रघुबीर िनषंग महँु ूिबसे सब नाराच ॥६८॥
दोहा
महानाद किर गजा को ट को ट गह कस ।
मह पटकइ गजराज इव सपथ करइ दससीस ॥६९॥
दोहा
किर िच कार घोर अित धावा बदनु पसािर ।
गगन िस सुर ऽािसत हा हा हे ित पुकािर ॥७०॥
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रामचिरतमानस - 33 - लंकाकांड
छं द
संमाम भूिम िबराज रघुपित अतुल बल कोसल धनी ।
ौम िबंद ु मुख राजीव लोचन अ न तन सोिनत कनी ॥
भुज जुगल फेरत सर सरासन भालु किप चहु दिस बने ।
कह दास तुलसी कह न सक छिब सेष जे ह आनन घने ॥
दोहा
िनिसचर अधम मलाकर ता ह द न्ह िनज धाम ।
िगिरजा ते नर मंदमित जे न भज हं ौीराम ॥७१॥
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रामचिरतमानस - 34 - लंकाकांड
दोहा
मेघनाद मायामय रथ चढ़ गयउ अकास ॥
गजउ अ टहास किर भइ किप कटक ह ऽास ॥७२॥
दोहा
िगिरजा जासु नाम जिप मुिन काट हं भव पास ।
सो क बंध तर आवइ ब्यापक िबःव िनवास ॥७३॥
दोहा
खगपित सब धिर खाए माया नाग ब थ ।
माया िबगत भए सब हरषे बानर जूथ ।७४(क)॥
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रामचिरतमानस - 35 - लंकाकांड
दोहा
रघुपित चरन नाइ िस चलेउ तुरंत अनंत ।
अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत ॥७५॥
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रामचिरतमानस - 36 - लंकाकांड
दोहा
रामानुज कहँ रामु कहँ अस कह छाँड़ेिस ूान ।
धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान ॥७६॥
दोहा
तब दसकंठ िबिबध िबिध समुझा सब नािर ।
नःवर प जगत सब दे खहु दयँ िबचािर ॥७७॥
छं द
अित गब गनइ न सगुन असगुन व हं आयुध हाथ ते ।
भट िगरत रथ ते बािज गज िच करत भाज हं साथ ते ॥
गोमाय गीध कराल खर रव ःवान बोल हं अित घने ।
जनु कालदत
ू उलूक बोल हं बचन परम भयावने ॥
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रामचिरतमानस - 37 - लंकाकांड
दोहा
ता ह क संपित सगुन सुभ सपनेहुँ मन िबौाम ।
भूत िोह रत मोहबस राम िबमुख रित काम ॥७८॥
छं द
धाए िबसाल कराल मकट भालु काल समान ते ।
मानहँु सप छ उड़ा हं भूधर बृंद नाना बान ते ॥
नख दसन सैल महािमायु
ु ध सबल संक न मानह ं ।
जय राम रावन म गज मृगराज सुजसु बखानह ं ॥
दोहा
दहु ु दिस जय जयकार किर िनज िनज जोर जािन ।
िभरे बीर इत राम ह उत रावन ह बखािन ॥७९॥
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रामचिरतमानस - 38 - लंकाकांड
दोहा
महा अजय संसार िरपु जीित सकइ सो बीर ।
जाक अस रथ होइ ढ़ सुनहु सखा मितधीर ॥८०(क)॥
सुिन ूभु बचन िबभीषन हरिष गहे पद कंज ।
एह िमस मो ह उपदे सेहु राम कृ पा सुख पुंज ॥८०(ख)॥
उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान ।
लरत िनसाचर भालु किप किर िनज िनज ूभु आन ॥८०(ग)॥
छं द
बु े कृ तांत समान किप तन वत सोिनत राजह ं ।
मद हं िनसाचर कटक भट बलवंत घन िजिम गाजह ं ॥
मार हं चपेटिन्ह डा ट दातन्ह का ट लातन्ह मीजह ं ।
िच कर हं मकट भालु छल बल कर हं जे हं खल छ जह ं ॥
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रामचिरतमानस - 39 - लंकाकांड
छं द
संधािन धनु सर िनकर छाड़े िस उरग िजिम उड़ लागह ं ।
रहे पूिर सर धरनी गगन दिस िबदिस कहँ किप भागह ं ॥
भयो अित कोलाहल िबकल किप दल भालु बोल हं आतुरे ।
रघुबीर क ना िसंधु आरत बंधु जन र छक हरे ॥
दोहा
िनज दल िबकल दे िख कट किस िनषंग धनु हाथ ।
लिछमन चले बु होइ नाइ राम पद माथ ॥८२॥
छं द
सो ॄ द ूचंड सि अनंत उर लागी सह ।
पय बीर िबकल उठाव दसमुख अतुल बल म हमा रह ॥
ॄ ांड भवन िबराज जाक एक िसर िजिम रज कनी ।
ते ह चह उठावन मूढ़ रावन जान न हं िऽभुअन धनी ॥
दोहा
दे िख पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर ।
आवत किप ह हन्यो ते हं मुि ूहार ूघोर ॥८३॥
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रामचिरतमानस - 40 - लंकाकांड
छं द
आतुर बहोिर िबभंिज ःयंदन सूत हित ब्याकुल कयो ।
िगर यो धरिन दसकंधर िबकलतर बान सत बे यो हयो ॥
सारथी दसर
ू घािल रथ ते ह तुरत लंका लै गयो ।
रघुबीर बंधु ूताप पुंज बहोिर ूभु चरनिन्ह नयो ॥
दोहा
उहाँ दसानन जािग किर करै लाग कछु ज य ।
राम िबरोध िबजय चह सठ हठ बस अित अ य ॥८४॥
छं द
न हं िचतव जब किर कोप किप गह दसन लातन्ह मारह ं ।
धिर केस नािर िनकािर बाहे र तेऽितद न पुकारह ं ॥
तब उठे उ बु कृ तांत सम गह चरन बानर डारई ।
एह बीच किपन्ह िबधंस कृ त मख दे िख मन महँु हारई ॥
दोहा
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रामचिरतमानस - 41 - लंकाकांड
छं द
सारं ग कर सुंदर िनषंग िसलीमुखाकर कट कःयो ।
भुजदं ड पीन मनोहरायत उर धरासुर पद लःयो ॥
कह दास तुलसी जब हं ूभु सर चाप कर फेरन लगे ।
ॄ ांड द गज कमठ अह मह िसंधु भूधर डगमगे ॥
दोहा
सोभा दे िख हरिष सुर बरष हं सुमन अपार ।
जय जय जय क नािनिध छिब बल गुन आगार ॥८६॥
छं द
कादर भयंकर िधर सिरता चली परम अपावनी ।
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रामचिरतमानस - 42 - लंकाकांड
छं द
बो ल हं जो जय जय मुंड ंड ूचंड िसर िबनु धावह ं ।
ख पिरन्ह ख ग अलुि झ जु झ हं सुभट भटन्ह ढहावह ं ॥
बानर िनसाचर िनकर मद हं राम बल दिपत भए ।
संमाम अंगन सुभट सोव हं राम सर िनकरिन्ह हए ॥
दोहा
रावन दयँ िबचारा भा िनिसचर संघार ।
म अकेल किप भालु बहु माया कर अपार ॥८८॥
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रामचिरतमानस - 43 - लंकाकांड
छं द
बहु राम लिछमन दे िख मकट भालु मन अित अपडरे ।
जनु िचऽ िलिखत समेत लिछमन जहँ सो तहँ िचतव हं खरे ॥
िनज सेन च कत िबलो क हँ िस सर चाप सिज कोसल धनी ।
माया हर हिर िनिमष महँु हरषी सकल मकट अनी ॥
दोहा
बहिर
ु राम सब तन िचतइ बोले बचन गँभीर ।
ं दजु दे खहु सकल ौिमत भए अित बीर ॥८९॥
छं द
जिन ज पना किर सुजसु नास ह नीित सुन ह कर ह छमा ।
संसार महँ पू ष िऽिबध पाटल रसाल पनस समा ॥
एक सुमनूद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागह ं ।
एक कह हं कह हं कर हं अपर एक कर हं कहत न बागह ं ॥
दोहा
राम बचन सुिन िबहँ सा मो ह िसखावत यान ।
बय करत न हं तब डरे अब लागे िूय ूान ॥९०॥
कह दबचन
ु बु दसकंधर । कुिलस समान लाग छाँड़ै सर ॥
नानाकार िसलीमुख धाए । दिस अ िब दस गगन मह छाए ॥१॥
पावक सर छाँड़ेउ रघुबीरा । छन महँु जरे िनसाचर तीरा ॥
छा ड़िस तीॄ सि िखिसआई । बान संग ूभु फेिर चलाई ॥२॥
को टक चब िऽसूल पबारै । िबनु ूयास ूभु का ट िनवारै ॥
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रामचिरतमानस - 44 - लंकाकांड
छं द
भए बु जु िब रघुपित ऽोन सायक कसमसे ।
कोदं ड धुिन अित चंड सुिन मनुजाद सब मा त मसे ॥
मँदोदर उर कंप कंपित कमठ भू भूधर ऽसे ।
िच कर हं द गज दसन गह मह दे िख कौतुक सुर हँ से ॥
दोहा
तानेउ चाप ौवन लिग छाँड़े िबिसख कराल ।
राम मारगन गन चले लहलहात जनु ब्याल ॥९१॥
छं द
जनु राहु केतु अनेक नभ पथ वत सोिनत धावह ं ।
रघुबीर तीर ूचंड लाग हं भूिम िगरन न पावह ं ॥
एक एक सर िसर िनकर छे दे नभ उड़त इिम सोहह ं ।
जनु कोिप दनकर कर िनकर जहँ तहँ िबधुंतुद पोहह ं ॥
दोहा
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रामचिरतमानस - 45 - लंकाकांड
छं द
कहँ रामु कह िसर िनकर धाए दे िख मकट भिज चले ।
संधािन धनु रघुबंसमिन हँ िस सरिन्ह िसर बेधे भले ॥
िसर मािलका कर कािलका गह बृंद बृंदिन्ह बहु िमलीं ।
किर िधर सिर म जनु मनहँु संमाम बट पूजन चलीं ॥
दोहा
पुिन दसकंठ बु होइ छाँड़ सि ूचंड ।
चली िबभीषन सन्मुख मनहँु काल कर दं ड ॥९३॥
छं द
उर माझ गदा ूहार घोर कठोर लागत मह पर यो ।
दस बदन सोिनत वत पुिन संभािर धायो िरस भर यो ॥
ौ िभरे अितबल म लजु िब एकु एक ह हनै ।
रघुबीर बल दिपत िबभीषनु घािल न हं ता कहँु गनै ॥
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रामचिरतमानस - 46 - लंकाकांड
दोहा
उमा िबभीषनु रावन ह सन्मुख िचतव क काउ ।
सो अब िभरत काल य ौीरघुबीर ूभाउ ॥९४॥
छं द
संभािर ौीरघुबीर धीर पचािर किप रावनु हन्यो ।
मह परत पुिन उठ लरत दे वन्ह जुगल कहँु जय जय भन्यो ॥
हनुमंत संकट दे िख मकट भालु बोधातुर चले ।
रन म रावन सकल सुभट ूचंड भुज बल दलमले ॥
दोहा
तब रघुबीर पचारे धाए कस ूचंड ।
किप बल ूबल दे िख ते हं क न्ह ूगट पाषंड ॥९५॥
छं द
जाना ूताप ते रहे िनभय किपन्ह िरपु माने फुरे ।
चले िबचिल मकट भालु सकल कृ पाल पा ह भयातुरे ॥
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रामचिरतमानस - 47 - लंकाकांड
दोहा
सुर बानर दे खे िबकल हँ ःयो कोसलाधीस ।
सिज सारं ग एक सर हते सकल दससीस ॥९६॥
छं द
गह भूिम पार यो लात मार यो बािलसुत ूभु प हं गयो ।
संभािर उठ दसकंठ घोर कठोर रव गजत भयो ॥
किर दाप चाप चढ़ाइ दस संधािन सर बहु बरषई ।
कए सकल भट घायल भयाकुल दे िख िनज बल हरषई ॥
दोहा
तब रघुपित रावन के सीस भुजा सर चाप ।
काटे बहत
ु बढ़े पुिन िजिम तीरथ कर पाप ।९७॥
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रामचिरतमानस - 48 - लंकाकांड
छं द
उर लात घात ूचंड लागत िबकल रथ ते मह परा ।
गह भालु बीसहँु कर मनहँु कमलिन्ह बसे िनिस मधुकरा ॥
मु िछत िबलो क बहोिर पद हित भालुपित ूभु प हं गयौ ।
िनिस जािन ःयंदन घािल ते ह तब सूत जतनु करत भयो ॥
दोहा
मु छा िबगत भालु किप सब आए ूभु पास ।
िनिसचर सकल रावन ह घेिर रहे अित ऽास ॥९८॥
छं द
एह के दयँ बस जानक जानक उर मम बास है ।
मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है ॥
सुिन बचन हरष िबषाद मन अित दे िख पुिन िऽजटाँ कहा ।
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रामचिरतमानस - 49 - लंकाकांड
अस कह बहत
ु भाँित समुझाई । पुिन िऽजटा िनज भवन िसधाई ॥
राम सुभाउ सुिमिर बैदेह । उपजी िबरह िबथा अित तेह ॥१॥
िनिस ह सिस ह िनंदित बहु भाँती । जुग सम भई िसराित न राती ॥
करित िबलाप मन हं मन भार । राम िबरहँ जानक दखार
ु ॥२॥
जब अित भयउ िबरह उर दाहू । फरकेउ बाम नयन अ बाहू ॥
सगुन िबचािर धर मन धीरा । अब िमिलह हं कृ पाल रघुबीरा ॥३॥
इहाँ अधिनिस रावनु जागा । िनज सारिथ सन खीझन लागा ॥
सठ रनभूिम छड़ाइिस मोह । िधग िधग अधम मंदमित तोह ॥४॥
ते हं पद गह बहु िबिध समुझावा । भौ भएँ रथ चढ़ पुिन धावा ॥
सुिन आगवनु दसानन केरा । किप दल खरभर भयउ घनेरा ॥५॥
जहँ तहँ भूधर िबटप उपार । धाए कटकटाइ भट भार ॥६॥
छं द
धाए जो मकट िबकट भालु कराल कर भूधर धरा ।
अित कोप कर हं ूहार मारत भिज चले रजनीचरा ॥
िबचलाइ दल बलवंत क सन्ह घेिर पुिन रावनु िलयो ।
चहँु दिस चपेटिन्ह मािर नखिन्ह िबदािर तनु ब्याकुल कयो ॥
दोहा
दे िख महा मकट ूबल रावन क न्ह िबचार ।
अंतर हत होइ िनिमष महँु कृ त माया िबःतार ॥१००॥
छं द
जब क न्ह ते हं पाषंड । भए ूगट जंतु ूचंड ॥
बेताल भूत िपसाच । कर धर धनु नाराच ॥१॥
जोिगिन गह करबाल । एक हाथ मनुज कपाल ॥
किर स सोिनत पान । नाच हं कर हं बहु गान ॥२॥
ध मा बोल हं घोर । रह पूिर धुिन चहँु ओर ॥
मुख बाइ धाव हं खान । तब लगे कस परान ॥३॥
जहँ जा हं मकट भािग । तहँ बरत दे ख हं आिग ॥
भए िबकल बानर भालु । पुिन लाग बरषै बालु ॥४॥
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रामचिरतमानस - 50 - लंकाकांड
छं द
ते हं म य कोसलराज सुंदर ःयाम तन सोभा लह ।
जनु इं िधनुष अनेक क बर बािर तुंग तमालह ॥
ूभु दे िख हरष िबषाद उर सुर बदत जय जय जय कर ।
रघुबीर एक ह तीर कोिप िनमेष महँु माया हर ॥१॥
दोहा
ताके गुन गन कछु कहे जड़मित तुलसीदास ।
िजिम िनज बल अनु प ते माछ उड़इ अकास ॥१०१(क)॥
काटे िसर भुज बार बहु मरत न भट लंकेस ।
ूभु ब ड़त सुर िस मुिन ब्याकुल दे िख कलेस ॥१०१(ख)॥
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रामचिरतमानस - 51 - लंकाकांड
छं द
ूितमा द हं पिबपात नभ अित बात बह डोलित मह ।
बरष हं बलाहक िधर कच रज असुभ अित सक को कह ॥
उतपात अिमत िबलो क नभ सुर िबकल बोल ह जय जए ।
सुर सभय जािन कृ पाल रघुपित चाप सर जोरत भए ॥
दोहा
खैिच सरासन ौवन लिग छाड़े सर एकतीस ।
रघुनायक सायक चले मानहँु काल फनीस ॥१०२॥
छं द
जय कृ पा कंद मुकंद ंद हरन सरन सुखूद ूभो ।
खल दल िबदारन परम कारन का नीक सदा िबभो ॥
सुर सुमन बरष हं हरष संकुल बाज दं द
ु िभ
ु गहगह ।
संमाम अंगन राम अंग अनंग बहु सोभा लह ॥
दोहा
कृ पा ि किर ूभु अभय कए सुर बृंद ।
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रामचिरतमानस - 52 - लंकाकांड
छं द
जान्यो मनुज किर दनुज कानन दहन पावक हिर ःवयं ।
जे ह नमत िसव ॄ ाद सुर िपय भजेहु न हं क नामयं ॥
आजन्म ते परिोह रत पापौघमय तव तनु अयं ।
तु हहू दयो िनज धाम राम नमािम ॄ िनरामयं ॥
दोहा
अहह नाथ रघुनाथ सम कृ पािसंधु न हं आन ।
जोिग बृंद दल
ु भ गित तो ह द िन्ह भगवान ॥१०४॥
दोहा
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रामचिरतमानस - 53 - लंकाकांड
मंदोदर आद सब दे इ ितलांजिल ता ह ।
भवन गई रघुपित गुन गन बरनत मन मा ह ॥१०५॥
छं द
कए सुखी कह बानी सुधा सम बल तु हार िरपु हयो ।
पायो िबभीषन राज ितहँु पुर जसु तु हारो िनत नयो ॥
मो ह स हत सुभ क रित तु हार परम ूीित जो गाइह ।
संसार िसंधु अपार पार ूयास िबनु नर पाइह ॥
दोहा
ूभु के बचन ौवन सुिन न हं अघा हं किप पुंज ।
बार बार िसर नाव हं गह हं सकल पद कंज ॥१०६॥
छं द
अित हरष मन तन पुलक लोचन सजल कह पुिन पुिन रमा ।
का दे उँ तो ह ऽेलोक महँु किप कमिप न हं बानी समा ॥
सुनु मातु म पायो अिखल जग राजु आजु न संसयं ।
रन जीित िरपुदल बंधु जुत पःयािम राममनामयं ॥
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रामचिरतमानस - 54 - लंकाकांड
दोहा
सुनु सुत सदगुन सकल तव दयँ बसहँु हनुमंत ।
सानुकूल कोसलपित रहहँु समेत अनंत ॥१०७॥
दोहा
ते ह कारन क नािनिध कहे कछुक दबाद
ु ।
सुनत जातुधानीं सब लागीं करै िबषाद ॥१०८॥
छं द
ौीखंड सम पावक ूबेस कयो सुिमिर ूभु मैिथली ।
जय कोसलेस महे स बं दत चरन रित अित िनमली ॥
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रामचिरतमानस - 55 - लंकाकांड
दोहा
बरष हं सुमन हरिष सुन बाज हं गगन िनसान ।
गाव हं कंनर सुरबधू नाच हं चढ़ ं िबमान ॥१०९(क)॥
जनकसुता समेत ूभु सोभा अिमत अपार ।
दे िख भालु किप हरषे जय रघुपित सुख सार ॥१०९(ख)॥
दोहा
किर िबनती सुर िस सब रहे जहँ तहँ कर जोिर ।
अित सूेम तन पुल क िबिध अःतुित करत बहोिर ॥११०॥
छं द
जय राम सदा सुखधाम हरे । रघुनायक सायक चाप धरे ॥
भव बारन दारन िसंह ूभो । गुन सागर नागर नाथ िबभो ॥
तन काम अनेक अनूप छबी । गुन गावत िस मुनींि कबी ॥
जसु पावन रावन नाग महा । खगनाथ जथा किर कोप गहा ॥
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रामचिरतमानस - 56 - लंकाकांड
दोहा
िबनय क िन्ह चतुरानन ूेम पुलक अित गात ।
सोभािसंधु िबलोकत लोचन नह ं अघात ॥१११॥
दोहा
अनुज जानक स हत ूभु कुसल कोसलाधीस ।
सोभा दे िख हरिष मन अःतुित कर सुर ईस ॥११२॥
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रामचिरतमानस - 57 - लंकाकांड
छं द
जय राम सोभा धाम । दायक ूनत िबौाम ॥
धृत ऽोन बर सर चाप । भुजदं ड ूबल ूताप ॥१॥
जय दषनािर
ू खरािर । मदन िनसाचर धािर ॥
यह दु मारे उ नाथ । भए दे व सकल सनाथ ॥२॥
जय हरन धरनी भार । म हमा उदार अपार ॥
जय रावनािर कृ पाल । कए जातुधान िबहाल ॥३॥
लंकेस अित बल गब । कए बःय सुर गंधब ॥
मुिन िस नर खग नाग । हठ पंथ सब क लाग ॥४॥
परिोह रत अित दु । पायो सो फलु पािप ॥
अब सुनहु दन दयाल । राजीव नयन िबसाल ॥५॥
मो ह रहा अित अिभमान । न हं कोउ मो ह समान ॥
अब दे िख ूभु पद कंज । गत मान ूद दख
ु पुंज ॥६॥
कोउ ॄ िनगुन याव । अब्य जे ह ौुित गाव ॥
मो ह भाव कोसल भूप । ौीराम सगुन स प ॥७॥
बैदे ह अनुज समेत । मम दयँ करहु िनकेत ॥
मो ह जािनए िनज दास । दे भि रमािनवास ॥८॥
छं द
दे भि रमािनवास ऽास हरन सरन सुखदायकं ।
सुख धाम राम नमािम काम अनेक छिब रघुनायकं ॥
सुर बृंद रं जन ंद भंजन मनुज तनु अतुिलतबलं ।
ॄ ाद संकर सेब्य राम नमािम क ना कोमलं ॥
दोहा
अब किर कृ पा िबलो क मो ह आयसु दे हु कृ पाल ।
काह कर सुिन िूय बचन बोले द नदयाल ॥११३॥
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रामचिरतमानस - 58 - लंकाकांड
दोहा
सुमन बरिष सब सुर चले चढ़ चढ़ िचर िबमान ।
दे िख सुअवस ूभु प हं आयउ संभु सुजान ॥११४(क)॥
परम ूीित कर जोिर जुग निलन नयन भिर बािर ।
पुल कत तन गदगद िगराँ िबनय करत िऽपुरािर ॥११४(ख)॥
दोहा
नाथ जब हं कोसलपुर ं होइ ह ितलक तु हार ।
कृ पािसंधु म आउब दे खन चिरत उदार ॥११५॥
दोहा
तोर कोस गृह मोर सब स य बचन सुनु ॅात ।
भरत दसा सुिमरत मो ह िनिमष क प सम जात ॥११६(क)॥
तापस बेष गात कृ स जपत िनरं तर मो ह ।
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रामचिरतमानस - 59 - लंकाकांड
दोहा
मुिन जे ह यान न पाव हं नेित नेित कह बेद ।
कृ पािसंधु सोइ किपन्ह सन करत अनेक िबनोद ॥११७(क)॥
उमा जोग जप दान तप नाना मख ॄत नेम ।
राम कृ पा नह कर हं तिस जिस िनंकेवल ूेम ॥११७(ख)॥
दोहा
ूभु ूेिरत किप भालु सब राम प उर रािख ।
हरष िबषाद स हत चले िबनय िबिबध िबिध भािष ॥११८(क)॥
किपपित नील र छपित अंगद नल हनुमान ।
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रामचिरतमानस - 60 - लंकाकांड
दोहा
इहाँ सेतु बाँ यो अ थापेउँ िसव सुख धाम ।
सीता स हत कृ पािनिध संभु ह क न्ह ूनाम ॥११९(क)॥
जहँ जहँ कृ पािसंधु बन क न्ह बास िबौाम ।
सकल दे खाए जान क ह कहे सबिन्ह के नाम ॥११९(ख)॥
दोहा
सीता स हत अवध कहँु क न्ह कृ पाल ूनाम ।
सजल नयन तन पुल कत पुिन पुिन हरिषत राम ॥१२०(क)॥
पुिन ूभु आइ िऽबेनीं हरिषत म जनु क न्ह ।
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रामचिरतमानस - 61 - लंकाकांड
छं द
िलयो दयँ लाइ कृ पा िनधान सुजान रायँ रमापती ।
बैठािर परम समीप बूझी कुसल सो कर बीनती ।
अब कुसल पद पंकज िबलो क िबरं िच संकर सेब्य जे ।
सुख धाम पूरनकाम राम नमािम राम नमािम ते ॥१॥
दोहा
समर िबजय रघुबीर के चिरत जे सुन हं सुजान ।
िबजय िबबेक िबभूित िनत ितन्ह ह दे हं भगवान ॥१२१(क)॥
यह किलकाल मलायतन मन किर दे खु िबचार ।
ौीरघुनाथ नाम तिज ना हन आन अधार ॥१२१(ख)॥
लंकाकाण्ड समा
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