Anda di halaman 1dari 61

रामचिरतमानस - 1- लंकाकांड

गोःवामी तुलसीदास
िवरिचत

रामचिरतमानस
लंकाकाण्ड

Sant Tulsidas’s

Rāmcharitmānas
Lankā Kānd

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 2- लंकाकांड

RAMCHARITMANAS : AN INTRODUCTION

Ramayana, considered part of Hindu Smriti, was written originally in Sanskrit by


Sage Valmiki (3000 BC). Contained in 24,000 verses, this epic narrates Lord Ram of
Ayodhya and his ayan (journey of life). Over a passage of time, Ramayana did not remain
confined to just being a grand epic, it became a powerful symbol of India's social and
cultural fabric. For centuries, its characters represented ideal role models - Ram as an ideal
man, ideal husband, ideal son and a responsible ruler; Sita as an ideal wife, ideal daughter
and Laxman as an ideal brother. Even today, the characters of Ramayana including Ravana
(the enemy of the story) are fundamental to the grandeur cultural consciousness of India.
Long after Valmiki wrote Ramayana, Goswami Tulsidas (born 16th century) wrote
Ramcharitamanas in his native language. With the passage of time, Tulsi's Ramcharitmanas,
also known as Tulsi-krita Ramayana, became better known among Hindus in upper India
than perhaps the Bible among the rustic population in England. As with the Bible and
Shakespeare, Tulsi Ramayana’s phrases have passed into the common speech. Not only are
his sayings proverbial: his doctrine actually forms the most powerful religious influence in
present-day Hinduism; and, though he founded no school and was never known as a Guru
or master, he is everywhere accepted as an authoritative guide in religion and conduct of
life.
Tulsi’s Ramayana is a novel presentation of the great theme of Valmiki, but is in no
sense a mere translation of the Sanskrit epic. It consists of seven books or chapters namely
Bal Kand, Ayodhya Kand, Aranya Kand, Kiskindha Kand, Sundar Kand, Lanka Kand and
Uttar Kand containing tales of King Dasaratha's court, the birth and boyhood of Rama and
his brethren, his marriage with Sita - daughter of Janaka, his voluntary exile, the result of
Kaikeyi's guile and Dasaratha's rash vow, the dwelling together of Rama and Sita in the
great central Indian forest, her abduction by Ravana, the expedition to Lanka and the
overthrow of the ravisher, and the life at Ayodhya after the return of the reunited pair.
Ramcharitmanas is written in pure Avadhi or Eastern Hindi, in stanzas called chaupais,
broken by 'dohas' or couplets, with an occasional sortha and chhand.
Here, you will find the text of Lanka Kand, 6th chapter of Ramcharitmanas.

☼ ☼ ☼ ☼ ☼

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 3- लंकाकांड

ौीगणेशाय नमः

ौीरामचिरतमानस ष सोपान

लंकाकाण्ड

ोक

रामं कामािरसे यं भवभयहरणं कालम ेभिसंहं


योगीन्िं ानग यं गुणिनिधमिजतं िनगुणं िनिवकारम ।
मायातीतं सुरेशं खलवधिनरतं ॄ वृन्दै कदे वं
वन्दे कन्दावदातं सरिसजनयनं दे वमुव श पम ॥१॥

शंखेन् ाभमतीवसुन्दरतनुं शादलचमा


ू बरं
काल यालकरालभूषणधरं गंगाशशांकिूयम ।
काशीशं किलक मषौघशमनं क याणक पिमं

नौमी यं िगिरजापितं गुणिनिधं कन्दपहं श करम ॥२॥

यो ददाित सतां श भुः कैव यमिप दलभम


ु ।
खलानां दण्डकृ ोऽसौ श करः शं तनोतु मे ॥३॥

दोहा
लव िनमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड ।
भजिस न मन ते ह राम को कालु जासु कोदं ड ॥
सोरठा
िसंधु बचन सुिन राम सिचव बोिल ूभु अस कहे उ ।
अब िबलंबु के ह काम करहु सेतु उतरै कटकु ॥
सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोिर कह ।
नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ भव सागर तिर हं ॥

यह लघु जलिध तरत कित बारा । अस सुिन पुिन कह पवनकुमारा ॥


ूभु ूताप बड़वानल भार । सोषेउ ूथम पयोिनिध बार ॥१॥
तब िरपु नार दन जल धारा । भरे उ बहोिर भयउ ते हं खारा ॥
सुिन अित उकुित पवनसुत केर । हरषे किप रघुपित तन हे र ॥२॥
जामवंत बोले दोउ भाई । नल नील ह सब कथा सुनाई ॥
राम ूताप सुिमिर मन माह ं । करहु सेतु ूयास कछु नाह ं ॥३॥
बोिल िलए किप िनकर बहोर । सकल सुनहु िबनती कछु मोर ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 4- लंकाकांड

राम चरन पंकज उर धरहू । कौतुक एक भालु किप करहू ॥४॥


धावहु मकट िबकट ब था । आनहु िबटप िगिरन्ह के जूथा ॥
सुिन किप भालु चले किर हहा
ू । जय रघुबीर ूताप समूहा ॥५॥

दोहा
अित उतंग िगिर पादप लील हं ले हं उठाइ ।
आिन दे हं नल नील ह रच हं ते सेतु बनाइ ॥१॥

सैल िबसाल आिन किप दे ह ं । कंदक


ु इव नल नील ते लेह ं ॥
दे िख सेतु अित सुंदर रचना । िबहिस कृ पािनिध बोले बचना ॥१॥
परम र य उ म यह धरनी । म हमा अिमत जाइ न हं बरनी ॥
किरहउँ इहाँ संभु थापना । मोरे दयँ परम कलपना ॥२॥
सुिन कपीस बहु दत
ू पठाए । मुिनबर सकल बोिल लै आए ॥
िलंग थािप िबिधवत किर पूजा । िसव समान िूय मो ह न दजा
ू ॥३॥
िसव िोह मम भगत कहावा । सो नर सपनेहुँ मो ह न पावा ॥
संकर िबमुख भगित चह मोर । सो नारक मूढ़ मित थोर ॥४॥

दोहा
संकर िूय मम िोह िसव िोह मम दास ।
ते नर कर ह कलप भिर धोर नरक महँु बास ॥२॥

जे रामेःवर दरसनु किरह हं । ते तनु तिज मम लोक िसधिरह हं ॥


जो गंगाजलु आिन चढ़ाइ ह । सो साजु य मुि नर पाइ ह ॥१॥
होइ अकाम जो छल तिज सेइ ह । भगित मोिर ते ह संकर दे इ ह ॥
मम कृ त सेतु जो दरसनु किरह । सो िबनु ौम भवसागर तिरह ॥२॥
राम बचन सब के िजय भाए । मुिनबर िनज िनज आौम आए ॥
िगिरजा रघुपित कै यह र ती । संतत कर हं ूनत पर ूीती ॥३॥
बाँधा सेतु नील नल नागर । राम कृ पाँ जसु भयउ उजागर ॥
बूड़ हं आन ह बोर हं जेई । भए उपल बो हत सम तेई ॥४॥
म हमा यह न जलिध कइ बरनी । पाहन गुन न किपन्ह कइ करनी ॥५॥

दोहा
ौी रघुबीर ूताप ते िसंधु तरे पाषान ।
ते मितमंद जे राम तिज भज हं जाइ ूभु आन ॥३॥

बाँिध सेतु अित सु ढ़ बनावा । दे िख कृ पािनिध के मन भावा ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 5- लंकाकांड

चली सेन कछु बरिन न जाई । गज हं मकट भट समुदाई ॥१॥


सेतुबंध ढग चढ़ रघुराई । िचतव कृ पाल िसंधु बहताई
ु ॥
दे खन कहँु ूभु क ना कंदा । ूगट भए सब जलचर बृंदा ॥२॥
मकर नब नाना झष ब्याला । सत जोजन तन परम िबसाला ॥
अइसेउ एक ितन्ह ह जे खाह ं । एकन्ह क डर तेिप डे राह ं ॥३॥
ूभु ह िबलोक हं टर हं न टारे । मन हरिषत सब भए सुखारे ॥
ितन्ह क ओट न दे िखअ बार । मगन भए हिर प िनहार ॥४॥
चला कटकु ूभु आयसु पाई । को कह सक किप दल िबपुलाई ॥५॥

दोहा
सेतुबंध भइ भीर अित किप नभ पंथ उड़ा हं ।
अपर जलचरिन्ह ऊपर चढ़ चढ़ पार ह जा हं ॥४॥

अस कौतुक िबलो क ौ भाई । िबहँ िस चले कृ पाल रघुराई ॥


सेन स हत उतरे रघुबीरा । कह न जाइ किप जूथप भीरा ॥१॥
िसंधु पार ूभु डे रा क न्हा । सकल किपन्ह कहँु आयसु द न्हा ॥
खाहु जाइ फल मूल सुहाए । सुनत भालु किप जहँ तहँ धाए ॥२॥
सब त फरे राम हत लागी । िरतु अ कुिरतु काल गित यागी ॥
खा हं मधुर फल बटप हलाव हं । लंका सन्मुख िसखर चलाव हं ॥३॥
जहँ कहँु फरत िनसाचर पाव हं । घेिर सकल बहु नाच नचाव हं ॥
दसनिन्ह का ट नािसका काना । कह ूभु सुजसु दे हं तब जाना ॥४॥
िजन्ह कर नासा कान िनपाता । ितन्ह रावन ह कह सब बाता ॥
सुनत ौवन बािरिध बंधाना । दस मुख बोिल उठा अकुलाना ॥५॥

दोहा
बां यो बनिनिध नीरिनिध जलिध िसंधु बार स ।
स य तोयिनिध कंपित उदिध पयोिध नद स ॥५॥

िनज िबकलता िबचािर बहोर । िबहँ िस गयउ मह किर भय भोर ॥


मंदोदर ं सुन्यो ूभु आयो । कौतुकह ं पाथोिध बँधायो ॥१॥
कर गह पित ह भवन िनज आनी । बोली परम मनोहर बानी ॥
चरन नाइ िस अंचलु रोपा । सुनहु बचन िपय पिरहिर कोपा ॥२॥
नाथ बय क जे ताह स । बुिध बल स कअ जीित जाह स ॥
तु ह ह रघुपित ह अंतर कैसा । खलु ख ोत दनकर ह जैसा ॥३॥
अितबल मधु कैटभ जे हं मारे । महाबीर दितसुत संघारे ॥
जे हं बिल बाँिध सहजभुज मारा । सोइ अवतरे उ हरन मह भारा ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 6- लंकाकांड

तासु िबरोध न क िजअ नाथा । काल करम िजव जाक हाथा ॥

दोहा
राम ह सौिप जानक नाइ कमल पद माथ ।
सुत कहँु राज समिप बन जाइ भिजअ रघुनाथ ॥६॥

नाथ द नदयाल रघुराई । बाघउ सनमुख गएँ न खाई ॥


चा हअ करन सो सब किर बीते । तु ह सुर असुर चराचर जीते ॥१॥
संत कह हं अिस नीित दसानन । चौथपन जाइ ह नृप कानन ॥
तासु भजन क िजअ तहँ भता । जो कता पालक संहता ॥२॥
सोइ रघुवीर ूनत अनुरागी । भजहु नाथ ममता सब यागी ॥
मुिनबर जतनु कर हं जे ह लागी । भूप राजु तिज हो हं िबरागी ॥३॥
सोइ कोसलधीस रघुराया । आयउ करन तो ह पर दाया ॥
ज िपय मानहु मोर िसखावन । सुजसु होइ ितहँु पुर अित पावन ॥४॥

दोहा
अस कह नयन नीर भिर गह पद कंिपत गात ।
नाथ भजहु रघुनाथ ह अचल होइ अ हवात ॥७॥

तब रावन मयसुता उठाई । कहै लाग खल िनज ूभुताई ॥


सुनु तै िूया बृथा भय माना । जग जोधा को मो ह समाना ॥१॥
ब न कुबेर पवन जम काला । भुज बल िजतेउँ सकल दगपाला ॥
दे व दनुज नर सब बस मोर । कवन हे तु उपजा भय तोर ॥२॥
नाना िबिध ते ह कहे िस बुझाई । सभाँ बहोिर बैठ सो जाई ॥
मंदोदर ं हदयँ अस जाना । काल बःय उपजा अिभमाना ॥३॥
सभाँ आइ मंिऽन्ह तह बूझा । करब कवन िबिध िरपु स जूझा ॥
कह हं सिचव सुनु िनिसचर नाहा । बार बार ूभु पूछहु काहा ॥४॥
कहहु कवन भय किरअ िबचारा । नर किप भालु अहार हमारा ॥५॥

दोहा
सब के बचन ौवन सुिन कह ूहःत कर जोिर ।
िनित िबरोध न किरअ ूभु मिऽंन्ह मित अित थोिर ॥८॥

कह हं सिचव सठ ठकुरसोहाती । नाथ न पूर आव एह भाँती ॥


बािरिध नािघ एक किप आवा । तासु चिरत मन महँु सबु गावा ॥१॥
छुधा न रह तु ह ह तब काहू । जारत नग कस न धिर खाहू ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 7- लंकाकांड

सुनत नीक आग दख
ु पावा । सिचवन अस मत ूभु ह सुनावा ॥२॥
जे हं बार स बँधायउ हे ला । उतरे उ सेन समेत सुबेला ॥
सो भनु मनुज खाब हम भाई । बचन कह हं सब गाल फुलाई ॥३॥
तात बचन मम सुनु अित आदर । जिन मन गुनहु मो ह किर कादर ॥
िूय बानी जे सुन हं जे कहह ं । ऐसे नर िनकाय जग अहह ं ॥४॥
बचन परम हत सुनत कठोरे । सुन हं जे कह हं ते नर ूभु थोरे ॥
ूथम बसीठ पठउ सुनु नीती । सीता दे इ करहु पुिन ूीती ॥५॥

दोहा
नािर पाइ फिर जा हं ज तौ न बढ़ाइअ रािर ।
ना हं त सन्मुख समर मह तात किरअ हठ मािर ॥९॥

यह मत ज मानहु ूभु मोरा । उभय ूकार सुजसु जग तोरा ॥


सुत सन कह दसकंठ िरसाई । अिस मित सठ के हं तो ह िसखाई ॥१॥
अबह ं ते उर संसय होई । बेनुमूल सुत भयहु घमोई ॥
सुिन िपतु िगरा प ष अित घोरा । चला भवन कह बचन कठोरा ॥२॥
हत मत तो ह न लागत कैस । काल िबबस कहँु भेषज जैस ॥
सं या समय जािन दससीसा । भवन चलेउ िनरखत भुज बीसा ॥३॥
लंका िसखर उपर आगारा । अित िबिचऽ तहँ होइ अखारा ॥
बैठ जाइ तेह मं दर रावन । लागे कंनर गुन गन गावन ॥४॥
बाज हं ताल पखाउज बीना । नृ य कर हं अपछरा ूबीना ॥५॥

दोहा
सुनासीर सत सिरस सो संतत करइ िबलास ।
परम ूबल िरपु सीस पर त िप सोच न ऽास ॥१०॥

इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा । उतरे सेन स हत अित भीरा ॥


िसखर एक उतंग अित दे खी । परम र य सम सुॅ िबसेषी ॥१॥
तहँ त कसलय सुमन सुहाए । लिछमन रिच िनज हाथ डसाए ॥
ता पर िचर मृदल
ु मृगछाला । तेह ं आसान आसीन कृ पाला ॥२॥
ूभु कृ त सीस कपीस उछं गा । बाम द हन दिस चाप िनषंगा ॥
दहँु ु कर कमल सुधारत बाना । कह लंकेस मंऽ लिग काना ॥३॥
बड़भागी अंगद हनुमाना । चरन कमल चापत िबिध नाना ॥
ूभु पाछ लिछमन बीरासन । कट िनषंग कर बान सरासन ॥४॥

दोहा

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 8- लंकाकांड

एह िबिध कृ पा प गुन धाम रामु आसीन ।


धन्य ते नर ए हं यान जे रहत सदा लयलीन ॥११(क)॥
पूरब दसा िबलो क ूभु दे खा उ दत मंयक ।
कहत सब ह दे खहु सिस ह मृगपित सिरस असंक ॥११(ख)॥

पूरब दिस िगिरगुहा िनवासी । परम ूताप तेज बल रासी ॥


म नाग तम कुंभ िबदार । सिस केसर गगन बन चार ॥१॥
िबथुरे नभ मुकुताहल तारा । िनिस सुंदर केर िसंगारा ॥
कह ूभु सिस महँु मेचकताई । कहहु काह िनज िनज मित भाई ॥२॥
कह सुग़ीव सुनहु रघुराई । सिस महँु ूगट भूिम कै झाँई ॥
मारे उ राहु सिस ह कह कोई । उर महँ पर ःयामता सोई ॥३॥
कोउ कह जब िबिध रित मुख क न्हा । सार भाग सिस कर हिर लीन्हा ॥
िछि सो ूगट इं द ु उर माह ं । ते ह मग दे िखअ नभ पिरछाह ं ॥४॥
ूभु कह गरल बंधु सिस केरा । अित िूय िनज उर द न्ह बसेरा ॥
िबष संजुत कर िनकर पसार । जारत िबरहवंत नर नार ॥५॥

दोहा
कह हनुमंत सुनहु ूभु सिस तु हारा िूय दास ।
तव मूरित िबधु उर बसित सोइ ःयामता अभास ॥१२(क)॥

नवान्हपारायण सातवाँ िवौाम

पवन तनय के बचन सुिन िबहँ से रामु सुजान ।


दि छन दिस अवलो क ूभु बोले कृ पा िनधान ॥१२(ख)॥

दे खु िबभीषन दि छन आसा । घन घंमड दािमिन िबलासा ॥


मधुर मधुर गरजइ घन घोरा । होइ बृि जिन उपल कठोरा ॥१॥
कहत िबभीषन सुनहु कृ पाला । होइ न त ड़त न बािरद माला ॥
लंका िसखर उपर आगारा । तहँ दसकंघर दे ख अखारा ॥२॥
छऽ मेघडं बर िसर धार । सोइ जनु जलद घटा अित कार ॥
मंदोदर ौवन ताटं का । सोइ ूभु जनु दािमनी दमंका ॥३॥
बाज हं ताल मृदंग अनूपा । सोइ रव मधुर सुनहु सुरभूपा ॥
ूभु मुसुकान समुिझ अिभमाना । चाप चढ़ाइ बान संधाना ॥४॥

दोहा
छऽ मुकुट ताटं क तब हते एकह ं बान ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 9- लंकाकांड

सबक दे खत मह परे मरमु न कोऊ जान ॥१३(क)॥


अस कौतुक किर राम सर ूिबसेउ आइ िनषंग ।
रावन सभा ससंक सब दे िख महा रसभंग ॥१३(ख)॥

कंप न भूिम न म त िबसेषा । अ स कछु नयन न दे खा ॥


सोच हं सब िनज दय मझार । असगुन भयउ भयंकर भार ॥१॥
दसमुख दे िख सभा भय पाई । िबहिस बचन कह जुगुित बनाई ॥
िसरउ िगरे संतत सुभ जाह । मुकुट परे कस असगुन ताह ॥२॥
सयन करहु िनज िनज गृह जाई । गवने भवन सकल िसर नाई ॥
मंदोदर सोच उर बसेऊ । जब ते ौवनपूर मह खसेऊ ॥३॥
सजल नयन कह जुग कर जोर । सुनहु ूानपित िबनती मोर ॥
कंत राम िबरोध पिरहरहू । जािन मनुज जिन हठ मन धरहू ॥४॥

दोहा
िबःव प रघुबंस मिन करहु बचन िबःवासु ।
लोक क पना बेद कर अंग अंग ूित जासु ॥१४॥

पद पाताल सीस अज धामा । अपर लोक अँग अँग िबौामा ॥


भृकु ट िबलास भयंकर काला । नयन दवाकर कच घन माला ॥१॥
जासु यान अिःवनीकुमारा । िनिस अ दवस िनमेष अपारा ॥
ौवन दसा दस बेद बखानी । मा त ःवास िनगम िनज बानी ॥२॥
अधर लोभ जम दसन कराला । माया हास बाहु दगपाला ॥
आनन अनल अंबुपित जीहा । उतपित पालन ूलय समीहा ॥३॥
रोम रािज अ ादस भारा । अिःथ सैल सिरता नस जारा ॥
उदर उदिध अधगो जातना । जगमय ूभु का बहु कलपना ॥४॥

दोहा
अहं कार िसव बुि अज मन सिस िच महान ।
मनुज बास सचराचर प राम भगवान ॥१५(क)॥
अस िबचािर सुनु ूानपित ूभु सन बय िबहाइ ।
ूीित करहु रघुबीर पद मम अ हवात न जाइ ॥१५(ख)॥

िबहँ सा नािर बचन सुिन काना । अहो मोह म हमा बलवाना ॥


नािर सुभाउ स य सब कहह ं । अवगुन आठ सदा उर रहह ं ॥१॥
साहस अनृत चपलता माया । भय अिबबेक असौच अदाया ॥
िरपु कर प सकल त गावा । अित िबसाल भय मो ह सुनावा ॥२॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 10 - लंकाकांड

सो सब िूया सहज बस मोर । समुिझ परा ूसाद अब तोर ॥


जािनउँ िूया तोिर चतुराई । एह िबिध कहहु मोिर ूभुताई ॥३॥
तव बतकह गूढ़ मृगलोचिन । समुझत सुखद सुनत भय मोचिन ॥
मंदोदिर मन महँु अस ठयऊ । िपय ह काल बस मितॅम भयऊ ॥४॥

दोहा
एह िबिध करत िबनोद बहु ूात ूगट दसकंध ।
सहज असंक लंकपित सभाँ गयउ मद अंध ॥१६(क)॥

सोरठा
फूलह फरइ न बेत जदिप सुधा बरष हं जलद ।
मू ख दयँ न चेत ज गुर िमल हं िबरं िच सम ॥१६(ख)॥

इहाँ ूात जागे रघुराई । पूछा मत सब सिचव बोलाई ॥


कहहु बेिग का किरअ उपाई । जामवंत कह पद िस नाई ॥१॥
सुनु सब य सकल उर बासी । बुिध बल तेज धम गुन रासी ॥
मंऽ कहउँ िनज मित अनुसारा । दत
ू पठाइअ बािलकुमारा ॥२॥
नीक मंऽ सब के मन माना । अंगद सन कह कृ पािनधाना ॥
बािलतनय बुिध बल गुन धामा । लंका जाहु तात मम कामा ॥३॥
बहत
ु बुझाइ तु ह ह का कहऊँ । परम चतुर म जानत अहऊँ ॥
काजु हमार तासु हत होई । िरपु सन करे हु बतकह सोई ॥४॥

सोरठा
ूभु अ या धिर सीस चरन बं द अंगद उठे उ ।
सोइ गुन सागर ईस राम कृ पा जा पर करहु ॥१७(क)॥
ःवयं िस सब काज नाथ मो ह आद दयउ ।
अस िबचािर जुबराज तन पुल कत हरिषत हयउ ॥१७(ख)॥

बं द चरन उर धिर ूभुताई । अंगद चलेउ सब ह िस नाई ॥


ूभु ूताप उर सहज असंका । रन बाँकुरा बािलसुत बंका ॥१॥
पुर पैठत रावन कर बेटा । खेलत रहा सो होइ गै भटा ॥
बात हं बात करष बढ़ आई । जुगल अतुल बल पुिन त नाई ॥२॥
ते ह अंगद कहँु लात उठाई । गह पद पटकेउ भूिम भवाँई ॥
िनिसचर िनकर दे िख भट भार । जहँ तहँ चले न सक हं पुकार ॥३॥
एक एक सन मरमु न कहह ं । समुिझ तासु बध चुप किर रहह ं ॥
भयउ कोलाहल नगर मझार । आवा किप लंका जेह ं जार ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 11 - लंकाकांड

अब ध कहा किर ह करतारा । अित सभीत सब कर हं िबचारा ॥


िबनु पूछ मगु दे हं दखाई । जे ह िबलोक सोइ जाइ सुखाई ॥५॥

दोहा
गयउ सभा दरबार तब सुिमिर राम पद कंज ।
िसंह ठविन इत उत िचतव धीर बीर बल पुज
ं ॥१८॥

तुरत िनसाचर एक पठावा । समाचार रावन ह जनावा ॥


सुनत िबहँ िस बोला दससीसा । आनहु बोिल कहाँ कर क सा ॥१॥
आयसु पाइ दत
ू बहु धाए । किपकुंजर ह बोिल लै आए ॥
अंगद दख दसानन बस । स हत ूान क जलिगिर जैस ॥२॥
भुजा िबटप िसर सृंग समाना । रोमावली लता जनु नाना ॥
मुख नािसका नयन अ काना । िगिर कंदरा खोह अनुमाना ॥३॥
गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा । बािलतनय अितबल बाँकुरा ॥
उठे सभासद किप कहँु दे खी । रावन उर भा बौध िबसेषी ॥४॥

दोहा
जथा म गज जूथ महँु पंचानन चिल जाइ ।
राम ूताप सुिमिर मन बैठ सभाँ िस नाइ ॥१९॥

कह दसकंठ कवन त बंदर । म रघुबीर दत


ू दसकंधर ॥
मम जनक ह तो ह रह िमताई । तव हत कारन आयउँ भाई ॥१॥
उ म कुल पुलिःत कर नाती । िसव िबरं िच पूजेहु बहु भाँती ॥
बर पायहु क न्हे हु सब काजा । जीतेहु लोकपाल सब राजा ॥२॥
नृप अिभमान मोह बस कंबा । हिर आिनहु सीता जगदं बा ॥
अब सुभ कहा सुनहु तु ह मोरा । सब अपराध छिम ह ूभु तोरा ॥३॥
दसन गहहु तृन कंठ कुठार । पिरजन स हत संग िनज नार ॥
सादर जनकसुता किर आग । एह िबिध चलहु सकल भय याग ॥४॥

दोहा
ूनतपाल रघुबंसमिन ऽा ह ऽा ह अब मो ह ।
आरत िगरा सुनत ूभु अभय करै गो तो ह ॥२०॥

रे किपपोत बोलु संभार । मूढ़ न जाने ह मो ह सुरार ॥


कहु िनज नाम जनक कर भाई । के ह नात मािनऐ िमताई ॥१॥
अंगद नाम बािल कर बेटा । तास कबहँु भई ह भेटा ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 12 - लंकाकांड

अंगद बचन सुनत सकुचाना । रहा बािल बानर म जाना ॥२॥


अंगद तह ं बािल कर बालक । उपजेहु बंस अनल कुल घालक ॥
गभ न गयहु ब्यथ तु ह जायहु । िनज मुख तापस दत
ू कहायहु ॥३॥
अब कहु कुसल बािल कहँ अहई । िबहँ िस बचन तब अंगद कहई ॥
दन दस गएँ बािल प हं जाई । बूझेहु कुसल सखा उर लाई ॥४॥
राम िबरोध कुसल जिस होई । सो सब तो ह सुनाइ ह सोई ॥
सुनु सठ भेद होइ मन ताक । ौीरघुबीर दय न हं जाक ॥५॥

दोहा
हम कुल घालक स य तु ह कुल पालक दससीस ।
अंधउ बिधर न अस कह हं नयन कान तव बीस ॥२१॥

िसव िबरं िच सुर मुिन समुदाई । चाहत जासु चरन सेवकाई ॥


तासु दत
ू होइ हम कुल बोरा । अइिसहँु मित उर िबहर न तोरा ॥१॥
सुिन कठोर बानी किप केर । कहत दसानन नयन तरे र ॥
खल तव क ठन बचन सब सहऊँ । नीित धम म जानत अहऊँ ॥२॥
कह किप धमसीलता तोर । हमहँु सुनी कृ त पर िऽय चोर ॥
दे खी नयन दत
ू रखवार । बू ड़ न मरहु धम ॄतधार ॥३॥
कान नाक िबनु भिगिन िनहार । छमा क िन्ह तु ह धम िबचार ॥
धमसीलता तव जग जागी । पावा दरसु हमहँु बड़भागी ॥४॥

दोहा
जिन ज पिस जड़ जंतु किप सठ िबलोकु मम बाहु ।
लोकपाल बल िबपुल सिस मसन हे तु सब राहु ॥२२(क)॥
पुिन नभ सर मम कर िनकर कमलिन्ह पर किर बास ।
सोभत भयउ मराल इव संभु स हत कैलास ॥२२(ख)॥

तु हरे कटक माझ सुनु अंगद । मो सन िभिर ह कवन जोधा बद ॥


तव ूभु नािर िबरहँ बलह ना । अनुज तासु दख
ु दखी
ु मलीना ॥१॥
तु ह सुमीव कूलिम
ु दोऊ । अनुज हमार भी अित सोऊ ॥
जामवंत मंऽी अित बूढ़ा । सो क होइ अब समरा ढ़ा ॥२॥
िसि प कम जान हं नल नीला । है किप एक महा बलसीला ॥
आवा ूथम नग ज हं जारा । सुनत बचन कह बािलकुमारा ॥३॥
स य बचन कहु िनिसचर नाहा । साँचेहुँ कस क न्ह पुर दाहा ॥
रावन नगर अ प किप दहई । सुिन अस बचन स य को कहई ॥४॥
जो अित सुभट सराहे हु रावन । सो सुमीव केर लघु धावन ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 13 - लंकाकांड

चलइ बहत
ु सो बीर न होई । पठवा खबिर लेन हम सोई ॥५॥

दोहा
स य नग किप जारे उ िबनु ूभु आयसु पाइ ।
फिर न गयउ सुमीव प हं ते हं भय रहा लुकाइ ॥२३(क)॥
स य कह ह दसकंठ सब मो ह न सुिन कछु कोह ।
कोउ न हमार कटक अस तो सन लरत जो सोह ॥२३(ख)॥
ूीित िबरोध समान सन किरअ नीित अिस आह ।
ज मृगपित बध मेड़ु किन्ह भल क कहइ कोउ ता ह ॥२३(ग)॥
ज िप लघुता राम कहँु तो ह बध बड़ दोष ।
तदिप क ठन दसकंठ सुनु छऽ जाित कर रोष ॥२३(घ)॥
बब उि धनु बचन सर दय दहे उ िरपु कस ।
ूितउ र सड़िसन्ह मनहँु काढ़त भट दससीस ॥२३(ङ)॥
हँ िस बोलेउ दसमौिल तब किप कर बड़ गुन एक ।
जो ूितपालइ तासु हत करइ उपाय अनेक ॥२३(छ)॥

धन्य कस जो िनज ूभु काजा । जहँ तहँ नाचइ पिरहिर लाजा ॥


नािच कू द किर लोग िरझाई । पित हत करइ धम िनपुनाई ॥१॥
अंगद ःवािमभ तव जाती । ूभु गुन कस न कहिस एह भाँती ॥
म गुन गाहक परम सुजाना । तव कटु रटिन करउँ न हं काना ॥२॥
कह किप तव गुन गाहकताई । स य पवनसुत मो ह सुनाई ॥
बन िबधंिस सुत बिध पुर जारा । तदिप न ते हं कछु कृ त अपकारा ॥३॥
सोइ िबचािर तव ूकृ ित सुहाई । दसकंधर म क िन्ह ढठाई ॥
दे खेउँ आइ जो कछु किप भाषा । तु हर लाज न रोष न माखा ॥४॥
ज अिस मित िपतु खाए क सा । कह अस बचन हँ सा दससीसा ॥
िपत ह खाइ खातेउँ पुिन तोह । अबह ं समुिझ परा कछु मोह ॥५॥
बािल िबमल जस भाजन जानी । हतउँ न तो ह अधम अिभमानी ॥
कहु रावन रावन जग केते । म िनज ौवन सुने सुनु जेते ॥६॥
बिल ह िजतन एक गयउ पताला । राखेउ बाँिध िससुन्ह हयसाला ॥
खेल हं बालक मार हं जाई । दया लािग बिल द न्ह छोड़ाई ॥७॥
एक बहोिर सहसभुज दे खा । धाइ धरा िजिम जंतु िबसेषा ॥
कौतुक लािग भवन लै आवा । सो पुलिःत मुिन जाइ छोड़ावा ॥८॥

दोहा
एक कहत मो ह सकुच अित रहा बािल क काँख ।
इन्ह महँु रावन त कवन स य बद ह तिज माख ॥२४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 14 - लंकाकांड

सुनु सठ सोइ रावन बलसीला । हरिगिर जान जासु भुज लीला ॥


जान उमापित जासु सुराई । पूजेउँ जे ह िसर सुमन चढ़ाई ॥१॥
िसर सरोज िनज करिन्ह उतार । पूजेउँ अिमत बार िऽपुरार ॥
भुज िबबम जान हं दगपाला । सठ अजहँू िजन्ह क उर साला ॥२॥
जान हं द गज उर क ठनाई । जब जब िभरउँ जाइ बिरआई ॥
िजन्ह के दसन कराल न फूटे । उर लागत मूलक इव ू
टटे ॥३॥
जासु चलत डोलित इिम धरनी । चढ़त म गज िजिम लघु तरनी ॥
सोइ रावन जग िब दत ूतापी । सुने ह न ौवन अलीक ूलापी ॥४॥

दोहा
ते ह रावन कहँ लघु कहिस नर कर करिस बखान ।
रे किप बबर खब खल अब जाना तव यान ॥२५॥

सुिन अंगद सकोप कह बानी । बोलु सँभािर अधम अिभमानी ॥


सहसबाहु भुज गहन अपारा । दहन अनल सम जासु कुठारा ॥१॥
जासु परसु सागर खर धारा । बूड़े नृप अगिनत बहु बारा ॥
तासु गब जे ह दे खत भागा । सो नर य दससीस अभागा ॥२॥
राम मनुज कस रे सठ बंगा । धन्वी कामु नद पुिन गंगा ॥
पसु सुरधेनु क पत खा । अन्न दान अ रस पीयूषा ॥३॥
बैनतेय खग अह सहसानन । िचंतामिन पुिन उपल दसानन ॥
सुनु मितमंद लोक बैकुंठा । लाभ क रघुपित भगित अकुंठा ॥४॥

दोहा
सेन स हत तब मान मिथ बन उजािर पुर जािर ॥
कस रे सठ हनुमान किप गयउ जो तव सुत मािर ॥२६॥

सुनु रावन पिरहिर चतुराई । भजिस न कृ पािसंधु रघुराई ॥


जौ खल भएिस राम कर िोह । ॄ ि सक रािख न तोह ॥१॥
मूढ़ बृथा जिन मारिस गाला । राम बयर अस होइ ह हाला ॥
तव िसर िनकर किपन्ह के आग । पिरह हं धरिन राम सर लाग ॥२॥
ते तव िसर कंदक
ु सम नाना । खेलह हं भालु कस चौगाना ॥
जब हं समर कोप ह रघुनायक । छु टह हं अित कराल बहु सायक ॥३॥
तब क चिल ह अस गाल तु हारा । अस िबचािर भजु राम उदारा ॥
सुनत बचन रावन परजरा । जरत महानल जनु घृत परा ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 15 - लंकाकांड

दोहा
कुंभकरन अस बंधु मम सुत ूिस सबािर ।
मोर पराबम न हं सुने ह िजतेउँ चराचर झािर ॥२७॥

सठ साखामृग जोिर सहाई । बाँधा िसंधु इहइ ूभुताई ॥


नाघ हं खग अनेक बार सा । सूर न हो हं ते सुनु सब क सा ॥१॥
मम भुज सागर बल जल पूरा । जहँ बूड़े बहु सुर नर सूरा ॥
बीस पयोिध अगाध अपारा । को अस बीर जो पाइ ह पारा ॥२॥
दगपालन्ह म नीर भरावा । भूप सुजस खल मो ह सुनावा ॥
ज पै समर सुभट तव नाथा । पुिन पुिन कहिस जासु गुन गाथा ॥३॥
तौ बसीठ पठवत के ह काजा । िरपु सन ूीित करत न हं लाजा ॥
हरिगिर मथन िनरखु मम बाहू । पुिन सठ किप िनज ूभु ह सराहू ॥४॥

दोहा
सूर कवन रावन सिरस ःवकर का ट जे हं सीस ।
हने
ु अनल अित हरष बहु बार सािख गौर स ॥२८॥

जरत िबलोकेउँ जब हं कपाला । िबिध के िलखे अंक िनज भाला ॥


नर क कर आपन बध बाँची । हसेउँ जािन िबिध िगरा असाँची ॥१॥
सोउ मन समुिझ ऽास न हं मोर । िलखा िबरं िच जरठ मित भोर ॥
आन बीर बल सठ मम आग । पुिन पुिन कहिस लाज पित यागे ॥२॥
कह अंगद सल ज जग माह ं । रावन तो ह समान कोउ नाह ं ॥
लाजवंत तव सहज सुभाऊ । िनज मुख िनज गुन कहिस न काऊ ॥३॥
िसर अ सैल कथा िचत रह । ताते बार बीस त कह ॥
सो भुजबल राखेउ उर घाली । जीतेहु सहसबाहु बिल बाली ॥४॥
सुनु मितमंद दे ह अब पूरा । काट सीस क होइअ सूरा ॥
इं िजािल कहु क हअ न बीरा । काटइ िनज कर सकल सर रा ॥५॥

दोहा
जर हं पतंग मोह बस भार बह हं खर बृंद ।
ते न हं सूर कहाव हं समुिझ दे खु मितमंद ॥२९॥

अब जिन बतबढ़ाव खल करह । सुनु मम बचन मान पिरहरह ॥


दसमुख म न बसीठ ं आयउँ । अस िबचािर रघुबीष पठायउँ ॥१॥
बार बार अस कहइ कृ पाला । न हं गजािर जसु बध सृकाला ॥
मन महँु समुिझ बचन ूभु केरे । सहे उँ कठोर बचन सठ तेरे ॥२॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 16 - लंकाकांड

ना हं त किर मुख भंजन तोरा । लै जातेउँ सीत ह बरजोरा ॥


जानेउँ तव बल अधम सुरार । सून हिर आिन ह परनार ॥३॥
त िनिसचर पित गब बहता
ू । म रघुपित सेवक कर दता
ू ॥
ज न राम अपमान ह डरउँ । तो ह दे खत अस कौतुक करऊँ ॥४॥

दोहा
तो ह पट क मह सेन हित चौपट किर तव गाउँ ।
तव जुबितन्ह समेत सठ जनकसुत ह लै जाउँ ॥३०॥

जौ अस कर तदिप न बड़ाई । मुए ह बध न हं कछु मनुसाई ॥


कौल कामबस कृ िपन िबमूढ़ा । अित दिरि अजसी अित बूढ़ा ॥१॥
सदा रोगबस संतत बोधी । िबंनु िबमूख ौुित संत िबरोधी ॥
तनु पोषक िनंदक अघ खानी । जीवन सव सम चौदह ूानी ॥२॥
अस िबचािर खल बधउँ न तोह । अब जिन िरस उपजाविस मोह ॥
सुिन सकोप कह िनिसचर नाथा । अधर दसन दिस मीजत हाथा ॥३॥
रे किप अधम मरन अब चहसी । छोटे बदन बात बड़ कहसी ॥
कटु ज पिस जड़ किप बल जाक । बल ूताप बुिध तेज न ताक ॥४॥

दोहा
अगुन अमान जािन ते ह द न्ह िपता बनबास ।
सो दख
ु अ जुबती िबरह पुिन िनिस दन मम ऽास ॥३१(क)॥
िजन्ह के बल कर गब तो ह अइसे मनुज अनेक ।
खाह ं िनसाचर दवस िनिस मूढ़ समुझु तिज टे क ॥३१(ख)॥

जब ते हं क न्ह राम कै िनंदा । बोधवंत अित भयउ किपंदा ॥


हिर हर िनंदा सुनइ जो काना । होइ पाप गोघात समाना ॥१॥
कटकटान किपकुंजर भार । दहु ु भुजदं ड तम क मह मार ॥
डोलत धरिन सभासद खसे । चले भािज भय मा त मसे ॥२॥
िगरत सँभािर उठा दसकंधर । भूतल परे मुकुट अित सुंदर ॥
कछु ते हं लै िनज िसरिन्ह सँवारे । कछु अंगद ूभु पास पबारे ॥३॥
आवत मुकुट दे िख किप भागे । दनह ं लूक परन िबिध लागे ॥
क रावन किर कोप चलाए । कुिलस चािर आवत अित धाए ॥४॥
कह ूभु हँ िस जिन दयँ डे राहू । लूक न असिन केतु न हं राहू ॥
ए कर ट दसकंधर केरे । आवत बािलतनय के ूेरे ॥५॥

दोहा

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 17 - लंकाकांड

तर क पवनसुत कर गहे आिन धरे ूभु पास ।


कौतुक दे ख हं भालु किप दनकर सिरस ूकास ॥३२(क)॥
उहाँ सकोिप दसानन सब सन कहत िरसाइ ।
धरहु किप ह धिर मारहु सुिन अंगद मुसुकाइ ॥३२(ख)॥

एह िबिध बेिग सूभट सब धावहु । खाहु भालु किप जहँ जहँ पावहु ॥
मकटह न करहु मह जाई । िजअत धरहु तापस ौ भाई ॥१॥
पुिन सकोप बोलेउ जुबराजा । गाल बजावत तो ह न लाजा ॥
म गर का ट िनलज कुलघाती । बल िबलो क िबहरित न हं छाती ॥२॥
रे िऽय चोर कुमारग गामी । खल मल रािस मंदमित कामी ॥
सन्यपात ज पिस दबादा
ु । भएिस कालबस खल मनुजादा ॥३॥
याको फलु पाव हगो आग । बानर भालु चपेटिन्ह लाग ॥
रामु मनुज बोलत अिस बानी । िगर हं न तव रसना अिभमानी ॥४॥
िगिरह हं रसना संसय नाह ं । िसरिन्ह समेत समर मह माह ं ॥५॥

सोरठा
सो नर य दसकंध बािल ब यो जे हं एक सर ।
बीसहँु लोचन अंध िधग तव जन्म कुजाित जड़ ॥३३(क)॥
तब सोिनत क यास तृिषत राम सायक िनकर ।
तजउँ तो ह ते ह ऽास कटु ज पक िनिसचर अधम ॥३३(ख)॥

मै तव दसन तोिरबे लायक । आयसु मो ह न द न्ह रघुनायक ॥


अिस िरस होित दसउ मुख तोर । लंका गह समुि महँ बोर ॥१॥
गूलिर फल समान तव लंका । बसहु म य तु ह जंतु असंका ॥
म बानर फल खात न बारा । आयसु द न्ह न राम उदारा ॥२॥
जुगित सुनत रावन मुसुकाई । मूढ़ िसिख ह कहँ बहत
ु झुठाई ॥
बािल न कबहँु गाल अस मारा । िमिल तपिसन्ह त भएिस लबारा ॥३॥
साँचेहुँ म लबार भुज बीहा । ज न उपािरउँ तव दस जीहा ॥
समुिझ राम ूताप किप कोपा । सभा माझ पन किर पद रोपा ॥४॥
ज मम चरन सकिस सठ टार । फर हं रामु सीता म हार ॥
सुनहु सुभट सब कह दससीसा । पद गह धरिन पछारहु क सा ॥५॥
इं िजीत आ दक बलवाना । हरिष उठे जहँ तहँ भट नाना ॥
झपट हं किर बल िबपुल उपाई । पद न टरइ बैठ हं िस नाई ॥६॥
पुिन उठ झपटह ं सुर आराती । टरइ न कस चरन एह भाँती ॥
पु ष कुजोगी िजिम उरगार । मोह िबटप न हं सक हं उपार ॥७॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 18 - लंकाकांड

दोहा
को टन्ह मेघनाद सम सुभट उठे हरषाइ ।
झपट हं टरै न किप चरन पुिन बैठ हं िसर नाइ ॥३४(क)॥
भूिम न छाँडत किप चरन दे खत िरपु मद भाग ॥
को ट िब न ते संत कर मन िजिम नीित न याग ॥३४(ख)॥

किप बल दे िख सकल हयँ हारे । उठा आपु किप क परचारे ॥


गहत चरन कह बािलकुमारा । मम पद गह न तोर उबारा ॥१॥
गहिस न राम चरन सठ जाई । सुनत फरा मन अित सकुचाई ॥
भयउ तेजहत ौी सब गई । म य दवस िजिम सिस सोहई ॥२॥
िसंघासन बैठेउ िसर नाई । मानहँु संपित सकल गँवाई ॥
जगदातमा ूानपित रामा । तासु िबमुख किम लह िबौामा ॥३॥
उमा राम क भृकु ट िबलासा । होइ िबःव पुिन पावइ नासा ॥
तृन ते कुिलस कुिलस तृन करई । तासु दत
ू पन कहु किम टरई ॥४॥
पुिन किप कह नीित िबिध नाना । मान न ता ह कालु िनअराना ॥
िरपु मद मिथ ूभु सुजसु सुनायो । यह क ह च यो बािल नृप जायो ॥५ ॥
हत न खेत खेलाइ खेलाई । तो ह अब हं का कर बड़ाई ॥
ूथम हं तासु तनय किप मारा । सो सुिन रावन भयउ दखारा
ु ॥६॥
जातुधान अंगद पन दे खी । भय ब्याकुल सब भए िबसेषी ॥

दोहा
िरपु बल धरिष हरिष किप बािलतनय बल पुंज ।
पुलक सर र नयन जल गहे राम पद कंज ॥३५(क)॥
साँझ जािन दसकंधर भवन गयउ िबलखाइ ।
मंदोदर रावन ह बहिर
ु कहा समुझाइ ॥३५(ख)॥

कंत समुिझ मन तजहु कुमितह । सोह न समर तु ह ह रघुपितह ॥


रामानुज लघु रे ख खचाई । सोउ न हं नाघेहु अिस मनुसाई ॥१॥
िपय तु ह ता ह िजतब संमामा । जाके दत
ू केर यह कामा ॥
कौतुक िसंधु नाघी तव लंका । आयउ किप केहर असंका ॥२॥
रखवारे हित िबिपन उजारा । दे खत तो ह अ छ ते हं मारा ॥
जािर सकल पुर क न्हे िस छारा । कहाँ रहा बल गब तु हारा ॥३॥
अब पित मृषा गाल जिन मारहु । मोर कहा कछु दयँ िबचारहु ॥
पित रघुपित ह नृपित जिन मानहु । अग जगनाथ अतुल बल जानहु ॥४॥
बान ूताप जान मार चा । तासु कहा न हं माने ह नीचा ॥
जनक सभाँ अगिनत भूपाला । रहे तु हउ बल अतुल िबसाला ॥५॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 19 - लंकाकांड

भंिज धनुष जानक िबआह । तब संमाम िजतेहु कन ताह ॥


सुरपित सुत जानइ बल थोरा । राखा िजअत आँिख गह फोरा ॥६॥
सूपनखा कै गित तु ह दे खी । तदिप दयँ न हं लाज िबषेषी ॥

दोहा
बिध िबराध खर दषन
ू ह लीलाँ ह यो कबंध ।
बािल एक सर मारयो ते ह जानहु दसकंध ॥३६॥

जे हं जलनाथ बँधायउ हे ला । उतरे ूभु दल स हत सुबेला ॥


का नीक दनकर कुल केतू । दत
ू पठायउ तव हत हे तू ॥१॥
सभा माझ जे हं तव बल मथा । किर ब थ महँु मृगपित जथा ॥
अंगद हनुमत अनुचर जाके । रन बाँकुरे बीर अित बाँके ॥२॥
ते ह कहँ िपय पुिन पुिन नर कहहू । मुधा मान ममता मद बहहू ॥
अहह कंत कृ त राम िबरोधा । काल िबबस मन उपज न बोधा ॥३॥
काल दं ड गह काहु न मारा । हरइ धम बल बुि िबचारा ॥
िनकट काल जे ह आवत सा । ते ह ॅम होइ तु हािर ह ना ॥४॥

दोहा
दइु सुत मरे दहे उ पुर अजहँु पूर िपय दे हु ।
कृ पािसंधु रघुनाथ भिज नाथ िबमल जसु लेहु ॥३७॥

नािर बचन सुिन िबिसख समाना । सभाँ गयउ उठ होत िबहाना ॥


बैठ जाइ िसंघासन फूली । अित अिभमान ऽास सब भूली ॥१॥
इहाँ राम अंगद ह बोलावा । आइ चरन पंकज िस नावा ॥
अित आदर सपीप बैठार । बोले िबहँ िस कृ पाल खरार ॥२॥
बािलतनय कौतुक अित मोह । तात स य कहु पूछउँ तोह ॥
रावनु जातुधान कुल ट का । भुज बल अतुल जासु जग लीका ॥३॥
तासु मुकुट तु ह चािर चलाए । कहहु तात कवनी िबिध पाए ॥
सुनु सब य ूनत सुखकार । मुकुट न हो हं भूप गुन चार ॥४॥
साम दान अ दं ड िबभेदा । नृप उर बस हं नाथ कह बेदा ॥
नीित धम के चरन सुहाए । अस िजयँ जािन नाथ प हं आए ॥५॥

दोहा
धमह न ूभु पद िबमुख काल िबबस दससीस ।
ते ह पिरहिर गुन आए सुनहु कोसलाधीस ॥३८(((क)॥
परम चतुरता ौवन सुिन िबहँ से रामु उदार ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 20 - लंकाकांड

समाचार पुिन सब कहे गढ़ के बािलकुमार ॥३८(ख)॥

िरपु के समाचार जब पाए । राम सिचव सब िनकट बोलाए ॥


लंका बाँके चािर दआरा
ु । के ह िबिध लािगअ करहु िबचारा ॥१॥
तब कपीस िर छे स िबभीषन । सुिमिर दयँ दनकर कुल भूषन ॥
किर िबचार ितन्ह मंऽ ढ़ावा । चािर अनी किप कटकु बनावा ॥२॥
जथाजोग सेनापित क न्हे । जूथप सकल बोिल तब लीन्हे ॥
ूभु ूताप कह सब समुझाए । सुिन किप िसंघनाद किर धाए ॥३॥
हरिषत राम चरन िसर नाव हं । गह िगिर िसखर बीर सब धाव हं ॥
गज हं तज हं भालु कपीसा । जय रघुबीर कोसलाधीसा ॥४॥
जानत परम दग
ु अित लंका । ूभु ूताप किप चले असंका ॥
घटाटोप किर चहँु दिस घेर । मुख हं िनसान बजावह ं भेर ॥५॥

दोहा
जयित राम जय लिछमन जय कपीस सुमीव ।
गज हं िसंघनाद किप भालु महा बल सींव ॥३९॥

लंकाँ भयउ कोलाहल भार । सुना दसानन अित अहँ कार ॥


दे खहु बनरन्ह केिर ढठाई । िबहँ िस िनसाचर सेन बोलाई ॥१॥
आए कस काल के ूेरे । छुधावंत सब िनिसचर मेरे ॥
अस कह अ टहास सठ क न्हा । गृह बैठे अहार िबिध द न्हा ॥२॥
सुभट सकल चािरहँु दिस जाहू । धिर धिर भालु कस सब खाहू ॥
उमा रावन ह अस अिभमाना । िजिम टि टभ खग सूत उताना ॥३॥
चले िनसाचर आयसु मागी । गह कर िभं डपाल बर साँगी ॥
तोमर मु दर परसु ूचंडा । सुल कृ पान पिरघ िगिरखंडा ॥४॥
िजिम अ नोपल िनकर िनहार । धाव हं सठ खग मांस अहार ॥
चच भंग दख
ु ितन्ह ह न सूझा । ितिम धाए मनुजाद अबूझा ॥५॥

दोहा
नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर ।
कोट कँगूरिन्ह चढ़ गए को ट को ट रनधीर ॥४०॥

कोट कँगूरिन्ह सोह हं कैसे । मे के सृंगिन जनु घन बैसे ॥


बाज हं ढोल िनसान जुझाऊ । सुिन धुिन होइ भटिन्ह मन चाऊ ॥१॥
बाज हं भेिर नफ िर अपारा । सुिन कादर उर जा हं दरारा ॥
दे िखन्ह जाइ किपन्ह के ठ टा । अित िबसाल तनु भालु सुभ टा ॥२॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 21 - लंकाकांड

धाव हं गन हं न अवघट घाटा । पबत फोिर कर हं गह बाटा ॥


कटकटा हं को टन्ह भट गज हं । दसन ओठ काट हं अित तज हं ॥३॥
उत रावन इत राम दोहाई । जयित जयित जय पर लराई ॥
िनिसचर िसखर समूह ढहाव हं । कू द धर हं किप फेिर चलाव हं ॥४॥

छं द
धिर कुधर खंड ूचंड ककट भालु गढ़ पर डारह ं ।
झपट हं चरन गह पट क मह भिज चलत बहिर
ु पचारह ं ॥
अित तरल त न ूताप तरप हं तम क गढ़ चढ़ चढ़ गए ।
किप भालु चढ़ मं दरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए ॥

दोहा
एकु एकु िनिसचर गह पुिन किप चले पराइ ।
ऊपर आपु हे ठ भट िगर हं धरिन पर आइ ॥४१॥

राम ूताप ूबल किपजूथा । मद हं िनिसचर सुभट ब था ॥


चढ़े दग
ु पुिन जहँ तहँ बानर । जय रघुबीर ूताप दवाकर ॥१॥
चले िनसाचर िनकर पराई । ूबल पवन िजिम घन समुदाई ॥
हाहाकार भयउ पुर भार । रोव हं बालक आतुर नार ॥२॥
सब िमिल दे हं रावन ह गार । राज करत ए हं मृ यु हँ कार ॥
िनज दल िबचल सुनी ते हं काना । फेिर सुभट लंकेस िरसाना ॥३॥
जो रन िबमुख सुना म काना । सो म हतब कराल कृ पाना ॥
सबसु खाइ भोग किर नाना । समर भूिम भए ब लभ ूाना ॥४॥
उम बचन सुिन सकल डे राने । चले बोध किर सुभट लजाने ॥
सन्मुख मरन बीर कै सोभा । तब ितन्ह तजा ूान कर लोभा ॥५॥
दोहा
बहु आयुध धर सुभट सब िभर हं पचािर पचािर ।
ब्याकुल कए भालु किप पिरघ िऽसूलिन्ह मार ॥४२॥

भय आतुर किप भागन लागे । ज िप उमा जीितह हं आगे ॥


कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता । कहँ नल नील दिबद
ु बलवंता ॥१॥
िनज दल िबकल सुना हनुमाना । पि छम ार रहा बलवाना ॥
मेघनाद तहँ करइ लराई । ू
टट न ार परम क ठनाई ॥२॥
पवनतनय मन भा अित बोधा । गजउ ूबल काल सम जोधा ॥
कू द लंक गढ़ ऊपर आवा । गह िगिर मेघनाद कहँु धावा ॥३॥
भंजेउ रथ सारथी िनपाता । ता ह दय महँु मारे िस लाता ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 22 - लंकाकांड

दसर
ु सूत िबकल ते ह जाना । ःयंदन घािल तुरत गृह आना ॥४॥

दोहा
अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल ।
रन बाँकुरा बािलसुत तर क चढ़े उ किप खेल ॥४३॥

जु िब बु ौ बंदर । राम ूताप सुिमिर उर अंतर ॥


रावन भवन चढ़े ौ धाई । कर ह कोसलाधीस दोहाई ॥१॥
कलस स हत गह भवनु ढहावा । दे िख िनसाचरपित भय पावा ॥
नािर बृंद कर पीट हं छाती । अब दइु किप आए उतपाती ॥२॥
किपलीला किर ितन्ह ह डे राव हं । रामचंि कर सुजसु सुनाव हं ॥
पुिन कर गह कंचन के खंभा । कहे िन्ह किरअ उतपात अरं भा ॥३॥
गिज परे िरपु कटक मझार । लागे मद भुज बल भार ॥
काहु ह लात चपेटिन्ह केहू । भजहु न राम ह सो फल लेहू ॥४॥

दोहा
एक एक स मद हं तोिर चलाव हं मुंड ।
रावन आग पर हं ते जनु फूट हं दिध कुंड ॥४४॥

महा महा मुिखआ जे पाव हं । ते पद गह ूभु पास चलाव हं ॥


कहइ िबभीषनु ितन्ह के नामा । दे हं राम ितन्हहू िनज धामा ॥१॥
खल मनुजाद जािमष भोगी । पाव हं गित जो जाचत जोगी ॥
उमा राम मृदिचत
ु क नाकर । बयर भाव सुिमरत मो ह िनिसचर ॥२॥
दे हं परम गित सो िजयँ जानी । अस कृ पाल को कहहु भवानी ॥
अस ूभु सुिन न भज हं ॅम यागी । नर मितमंद ते परम अभागी ॥३॥
अंगद अ हनुमंत ूबेसा । क न्ह दग
ु अस कह अवधेसा ॥
लंकाँ ौ किप सोह हं कैस । मथ ह िसंधु दइु मंदर जैस ॥४॥

दोहा
भुज बल िरपु दल दलमिल दे िख दवस कर अंत ।
कूदे जुगल िबगत ौम आए जहँ भगवंत ॥४५॥

ूभु पद कमल सीस ितन्ह नाए । दे िख सुभट रघुपित मन भाए ॥


राम कृ पा किर जुगल िनहारे । भए िबगतौम परम सुखारे ॥१॥
गए जािन अंगद हनुमाना । फरे भालु मकट भट नाना ॥
जातुधान ूदोष बल पाई । धाए किर दससीस दोहाई ॥२॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 23 - लंकाकांड

िनिसचर अनी दे िख किप फरे । जहँ तहँ कटकटाइ भट िभरे ॥


ौ दल ूबल पचािर पचार । लरत सुभट न हं मान हं हार ॥३॥
महाबीर िनिसचर सब कारे । नाना बरन बलीमुख भारे ॥
सबल जुगल दल समबल जोधा । कौतुक करत लरत किर बोधा ॥४॥
ूािबट सरद पयोद घनेरे । लरत मनहँु मा त के ूेरे ॥
अिनप अकंपन अ अितकाया । िबचलत सेन क िन्ह इन्ह माया ॥५॥
भयउ िनिमष महँ अित अँिधयारा । बृि होइ िधरोपल छारा ॥६॥

दोहा
दे िख िनिबड़ तम दसहँु दिस किपदल भयउ खभार ।
एक ह एक न दे खई जहँ तहँ कर हं पुकार ॥४६॥

सकल मरमु रघुनायक जाना । िलए बोिल अंगद हनुमाना ॥


समाचार सब कह समुझाए । सुनत कोिप किपकुंजर धाए ॥१॥
पुिन कृ पाल हँ िस चाप चढ़ावा । पावक सायक सप द चलावा ॥
भयउ ूकास कतहँु तम नाह ं । यान उदयँ िजिम संसय जाह ं ॥२॥
भालु बलीमुख पाइ ूकासा । धाए हरष िबगत ौम ऽासा ॥
हनूमान अंगद रन गाजे । हाँक सुनत रजनीचर भाजे ॥३॥
भागत पट पटक हं धिर धरनी । कर हं भालु किप अ त
ु करनी ॥
गह पद डार हं सागर माह ं । मकर उरग झष धिर धिर खाह ं ॥४॥

दोहा
कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ ।
गज हं भालु बलीमुख िरपु दल बल िबचलाइ ॥४७॥

िनसा जािन किप चािरउ अनी । आए जहाँ कोसला धनी ॥


राम कृ पा किर िचतवा सबह । भए िबगतौम बानर तबह ॥१॥
उहाँ दसानन सिचव हँ कारे । सब सन कहे िस सुभट जे मारे ॥
आधा कटकु किपन्ह संघारा । कहहु बेिग का किरअ िबचारा ॥२॥
मा यवंत अित जरठ िनसाचर । रावन मातु िपता मंऽी बर ॥
बोला बचन नीित अित पावन । सुनहु तात कछु मोर िसखावन ॥३॥
जब ते तु ह सीता हिर आनी । असगुन हो हं न जा हं बखानी ॥
बेद पुरान जासु जसु गायो । राम िबमुख काहँु न सुख पायो ॥४॥

दोहा
हरन्या छ ॅाता स हत मधु कैटभ बलवान ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 24 - लंकाकांड

जे ह मारे सोइ अवतरे उ कृ पािसंधु भगवान ॥४८(क)॥

मासपारायण, पचीसवाँ िवौाम

काल प खल बन दहन गुनागार घनबोध ।


िसव िबरं िच जे ह सेव हं तास कवन िबरोध ॥४८(ख)॥

पिरहिर बय दे हु बैदेह । भजहु कृ पािनिध परम सनेह ॥


ताके बचन बान सम लागे । किरआ मुह किर जा ह अभागे ॥१॥
बूढ़ भएिस न त मरतेउँ तोह । अब जिन नयन दे खाविस मोह ॥
ते ह अपने मन अस अनुमाना । ब यो चहत एह कृ पािनधाना ॥२॥
सो उठ गयउ कहत दबादा
ु । तब सकोप बोलेउ घननादा ॥
कौतुक ूात दे िखअहु मोरा । किरहउँ बहत
ु कह का थोरा ॥३॥
सुिन सुत बचन भरोसा आवा । ूीित समेत अंक बैठावा ॥
करत िबचार भयउ िभनुसारा । लागे किप पुिन चहँू दआरा
ु ॥४॥
कोिप किपन्ह दघट
ु गढ़ु घेरा । नगर कोलाहलु भयउ घनेरा ॥
िबिबधायुध धर िनिसचर धाए । गढ़ ते पबत िसखर ढहाए ॥५॥

छं द
ढाहे मह धर िसखर को टन्ह िबिबध िबिध गोला चले ।
घहरात िजिम पिबपात गजत जनु ूलय के बादले ॥
मकट िबकट भट जुटत कटत न लटत तन जजर भए ।
गह सैल ते ह गढ़ पर चलाव हं जहँ सो तहँ िनिसचर हए ॥

दोहा
मेघनाद सुिन ौवन अस गढ़ु पुिन छका आइ ।
उतय बीर दग
ु त सन्मुख च यो बजाइ ॥४९॥

कहँ कोसलाधीस ौ ॅाता । धन्वी सकल लोक िब याता ॥


कहँ नल नील दिबद
ु सुमीवा । अंगद हनूमंत बल सींवा ॥१॥
कहाँ िबभीषनु ॅातािोह । आजु सब ह हठ मारउँ ओह ॥
अस कह क ठन बान संधाने । अितसय बोध ौवन लिग ताने ॥२॥
सर समुह सो छाड़ै लागा । जनु सप छ धाव हं बहु नागा ॥
जहँ तहँ परत दे िखअ हं बानर । सन्मुख होइ न सके ते ह अवसर ॥३॥
जहँ तहँ भािग चले किप र छा । िबसर सब ह जु कै ईछा ॥
सो किप भालु न रन महँ दे खा । क न्हे िस जे ह न ूान अवसेषा ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 25 - लंकाकांड

दोहा
दस दस सर सब मारे िस परे भूिम किप बीर ।
िसंहनाद किर गजा मेघनाद बल धीर ॥५०॥

दे िख पवनसुत कटक िबहाला । बोधवंत जनु धायउ काला ॥


महासैल एक तुरत उपारा । अित िरस मेघनाद पर डारा ॥१॥
आवत दे िख गयउ नभ सोई । रथ सारथी तुरग सब खोई ॥
बार बार पचार हनुमाना । िनकट न आव मरमु सो जाना ॥२॥
रघुपित िनकट गयउ घननादा । नाना भाँित करे िस दबादा
ु ॥
अ स आयुध सब डारे । कौतुकह ं ूभु का ट िनवारे ॥३॥
दे िख ूताप मूढ़ िखिसआना । करै लाग माया िबिध नाना ॥
िजिम कोउ करै ग ड़ स खेला । डरपावै गह ःव प सपेला ॥४॥

दोहा
जासु ूबल माया बल िसव िबरं िच बड़ छोट ।
ता ह दखावइ िनिसचर िनज माया मित खोट ॥५१॥

नभ चढ़ बरष िबपुल अंगारा । मह ते ूगट हो हं जलधारा ॥


नाना भाँित िपसाच िपसाची । मा काटु धुिन बोल हं नाची ॥१॥
िब ा पूय िधर कच हाड़ा । बरषइ कबहँु उपल बहु छाड़ा ॥
बरिष धूिर क न्हे िस अँिधआरा । सूझ न आपन हाथ पसारा ॥२॥
किप अकुलाने माया दे ख । सब कर मरन बना एह लेख ॥
कौतुक दे िख राम मुसुकाने । भए सभीत सकल किप जाने ॥३॥
एक बान काट सब माया । िजिम दनकर हर ितिमर िनकाया ॥
कृ पा ि किप भालु िबलोके । भए ूबल रन रह हं न रोके ॥४॥

दोहा
आयसु मािग राम प हं अंगदा द किप साथ ।
लिछमन चले बु होइ बान सरासन हाथ ॥५२॥

छतज नयन उर बाहु िबसाला । हमिगिर िनभ तनु कछु एक लाला ॥


इहाँ दसानन सुभट पठाए । नाना अ स गह धाए ॥१॥
भूधर नख िबटपायुध धार । धाए किप जय राम पुकार ॥
िभरे सकल जोिर ह सन जोर । इत उत जय इ छा न हं थोर ॥२॥
मु ठकन्ह लातन्ह दातन्ह काट हं । किप जयसील मािर पुिन डाट हं ॥
मा मा ध ध ध मा । सीस तोिर गह भुजा उपा ॥३॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 26 - लंकाकांड

अिस रव पूिर रह नव खंडा । धाव हं जहँ तहँ ंड ूचंडा ॥


दे ख हं कौतुक नभ सुर बृंदा । कबहँु क िबसमय कबहँु अनंदा ॥४॥

दोहा
िधर गाड़ भिर भिर ज यो ऊपर धूिर उड़ाइ ।
जनु अँगार रािसन्ह पर मृतक धूम र ो छाइ ॥५३॥

घायल बीर िबराज हं कैसे । कुसुिमत कंसुक के त जैसे ॥


लिछमन मेघनाद ौ जोधा । िभर हं परसपर किर अित बोधा ॥१॥
एक ह एक सकइ न हं जीती । िनिसचर छल बल करइ अनीती ॥
बोधवंत तब भयउ अनंता । भंजेउ रथ सारथी तुरंता ॥२॥
नाना िबिध ूहार कर सेषा । रा छस भयउ ूान अवसेषा ॥
रावन सुत िनज मन अनुमाना । संकठ भयउ हिर ह मम ूाना ॥३॥
बीरघाितनी छा ड़िस साँगी । तेज पुंज लिछमन उर लागी ॥
मु छा भई सि के लाग । तब चिल गयउ िनकट भय याग ॥४॥

दोहा
मेघनाद सम को ट सत जोधा रहे उठाइ ।
जगदाधार सेष किम उठै चले िखिसआइ ॥५४॥

सुनु िगिरजा बोधानल जासू । जारइ भुवन चािरदस आसू ॥


सक संमाम जीित को ताह । सेव हं सुर नर अग जग जाह ॥१॥
यह कौतूहल जानइ सोई । जा पर कृ पा राम कै होई ॥
सं या भइ फिर ौ बाहनी । लगे सँभारन िनज िनज अनी ॥२॥
ब्यापक ॄ अिजत भुवनेःवर । लिछमन कहाँ बूझ क नाकर ॥
तब लिग लै आयउ हनुमाना । अनुज दे िख ूभु अित दख
ु माना ॥३॥
जामवंत कह बैद सुषेना । लंकाँ रहइ को पठई लेना ॥
धिर लघु प गयउ हनुमंता । आनेउ भवन समेत तुरंता ॥४॥

दोहा
राम पदारिबंद िसर नायउ आइ सुषेन ।
कहा नाम िगिर औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥५५॥

राम चरन सरिसज उर राखी । चला ूभंजन सुत बल भाषी ॥


उहाँ दत
ू एक मरमु जनावा । रावन कालनेिम गृह आवा ॥१॥
दसमुख कहा मरमु ते हं सुना । पुिन पुिन कालनेिम िस धुना ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 27 - लंकाकांड

दे खत तु ह ह नग जे हं जारा । तासु पंथ को रोकन पारा ॥२॥


भिज रघुपित क हत आपना । छाँड़हु नाथ मृषा ज पना ॥
नील कंज तनु सुंदर ःयामा । दयँ राखु लोचनािभरामा ॥३॥
म त मोर मूढ़ता यागू । महा मोह िनिस सूतत जागू ॥
काल ब्याल कर भ छक जोई । सपनेहुँ समर क जीितअ सोई ॥४॥

दोहा
सुिन दसकंठ िरसान अित ते हं मन क न्ह िबचार ।
राम दत
ू कर मर ब यह खल रत मल भार ॥५६॥

अस कह चला रिचिस मग माया । सर मं दर बर बाग बनाया ॥


मा तसुत दे खा सुभ आौम । मुिन ह बूिझ जल िपय जाइ ौम ॥१॥
रा छस कपट बेष तहँ सोहा । मायापित दत
ू ह चह मोहा ॥
जाइ पवनसुत नायउ माथा । लाग सो कहै राम गुन गाथा ॥२॥
होत महा रन रावन राम हं । िजतह हं राम न संसय या म हं ॥
इहाँ भएँ म दे खेउँ भाई । यान ि बल मो ह अिधकाई ॥३॥
मागा जल ते हं द न्ह कमंडल । कह किप न हं अघाउँ थोर जल ॥
सर म जन किर आतुर आवहु । द छा दे उँ यान जे हं पावहु ॥४॥

दोहा
सर पैठत किप पद गहा मकर ं तब अकुलान ।
मार सो धिर द य तनु चली गगन चढ़ जान ॥५७॥

किप तव दरस भइउँ िनंपापा । िमटा तात मुिनबर कर सापा ॥


मुिन न होइ यह िनिसचर घोरा । मानहु स य बचन किप मोरा ॥१॥
अस कह गई अपछरा जबह ं । िनिसचर िनकट गयउ किप तबह ं ॥
कह किप मुिन गुरदिछना लेहू । पाछ हम ह मंऽ तु ह दे हू ॥२॥
िसर लंगूर लपे ट पछारा । िनज तनु ूगटे िस मरती बारा ॥
राम राम कह छाड़े िस ूाना । सुिन मन हरिष चलेउ हनुमाना ॥३॥
दे खा सैल न औषध चीन्हा । सहसा किप उपािर िगिर लीन्हा ॥
गह िगिर िनिस नभ धावत भयऊ । अवधपुर उपर किप गयऊ ॥४॥

दोहा
दे खा भरत िबसाल अित िनिसचर मन अनुमािन ।
िबनु फर सायक मारे उ चाप ौवन लिग तािन ॥५८॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 28 - लंकाकांड

परे उ मु िछ मह लागत सायक । सुिमरत राम राम रघुनायक ॥


सुिन िूय बचन भरत तब धाए । किप समीप अित आतुर आए ॥१॥
िबकल िबलो क कस उर लावा । जागत न हं बहु भाँित जगावा ॥
मुख मलीन मन भए दखार
ु । कहत बचन भिर लोचन बार ॥२॥
जे हं िबिध राम िबमुख मो ह क न्हा । ते हं पुिन यह दा न दख
ु द न्हा ॥
ज मोर मन बच अ काया । ूीित राम पद कमल अमाया ॥३॥
तौ किप होउ िबगत ौम सूला । ज मो पर रघुपित अनुकूला ॥
सुनत बचन उठ बैठ कपीसा । कह जय जयित कोसलाधीसा ॥४॥

सोरठा
लीन्ह किप ह उर लाइ पुल कत तनु लोचन सजल ।
ूीित न दयँ समाइ सुिमिर राम रघुकुल ितलक ॥५९॥

तात कुसल कहु सुखिनधान क । स हत अनुज अ मातु जानक ॥


किप सब चिरत समास बखाने । भए दखी
ु मन महँु पिछताने ॥१॥
अहह दै व म कत जग जायउँ । ूभु के एकहु काज न आयउँ ॥
जािन कुअवस मन धिर धीरा । पुिन किप सन बोले बलबीरा ॥२॥
तात गह होइ ह तो ह जाता । काजु नसाइ ह होत ूभाता ॥
चढ़ु मम सायक सैल समेता । पठव तो ह जहँ कृ पािनकेता ॥३॥
सुिन किप मन उपजा अिभमाना । मोर भार चिल ह किम बाना ॥
राम ूभाव िबचािर बहोर । बं द चरन कह किप कर जोर ॥४॥

दोहा
तव ूताप उर रािख ूभु जेहउँ नाथ तुरंत ।
अस कह आयसु पाइ पद बं द चलेउ हनुमंत ॥६०(क)॥
भरत बाहु बल सील गुन ूभु पद ूीित अपार ।
मन महँु जात सराहत पुिन पुिन पवनकुमार ॥६०(ख)॥

उहाँ राम लिछमन हं िनहार । बोले बचन मनुज अनुसार ॥


अध राित गइ किप न हं आयउ । राम उठाइ अनुज उर लायउ ॥१॥
सकहु न दिखत
ु दे िख मो ह काऊ । बंधु सदा तव मृदल
ु सुभाऊ ॥
मम हत लािग तजेहु िपतु माता । सहे हु िबिपन हम आतप बाता ॥२॥
सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुिन मम बच िबकलाई ॥
ज जनतेउँ बन बंधु िबछोहू । िपता बचन मनतेउँ न हं ओहू ॥३॥
सुत िबत नािर भवन पिरवारा । हो हं जा हं जग बार हं बारा ॥
अस िबचािर िजयँ जागहु ताता । िमलइ न जगत सहोदर ॅाता ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 29 - लंकाकांड

जथा पंख िबनु खग अित द ना । मिन िबनु फिन किरबर कर ह ना ॥


अस मम िजवन बंधु िबनु तोह । ज जड़ दै व िजआवै मोह ॥५॥
जैहउँ अवध कवन मुहु लाई । नािर हे तु िूय भाइ गँवाई ॥
ब अपजस सहतेउँ जग माह ं । नािर हािन िबसेष छित नाह ं ॥६॥
अब अपलोकु सोकु सुत तोरा । सहह िनठु र कठोर उर मोरा ॥
िनज जननी के एक कुमारा । तात तासु तु ह ूान अधारा ॥७॥
स पेिस मो ह तु ह ह गह पानी । सब िबिध सुखद परम हत जानी ॥
उत काह दै हउँ ते ह जाई । उठ कन मो ह िसखावहु भाई ॥८॥
बहु िबिध िसचत सोच िबमोचन । वत सिलल रािजव दल लोचन ॥
उमा एक अखंड रघुराई । नर गित भगत कृ पाल दे खाई ॥९॥

सोरठा
ूभु ूलाप सुिन कान िबकल भए बानर िनकर ।
आइ गयउ हनुमान िजिम क ना महँ बीर रस ॥६१॥

हरिष राम भटे उ हनुमाना । अित कृ त य ूभु परम सुजाना ॥


तुरत बैद तब क न्ह उपाई । उठ बैठे लिछमन हरषाई ॥१॥
दयँ लाइ ूभु भटे उ ॅाता । हरषे सकल भालु किप ॄाता ॥
किप पुिन बैद तहाँ पहँु चावा । जे ह िबिध तब हं ता ह लइ आवा ॥२॥
यह बृ ांत दसानन सुनेऊ । अित िबषाद पुिन पुिन िसर धुनेऊ ॥
ब्याकुल कुंभकरन प हं आवा । िबिबध जतन किर ता ह जगावा ॥३॥
जागा िनिसचर दे िखअ कैसा । मानहँु कालु दे ह धिर बैसा ॥
कुंभकरन बूझा कहु भाई । काहे तव मुख रहे सुखाई ॥४॥
कथा कह सब ते हं अिभमानी । जे ह ूकार सीता हिर आनी ॥
तात किपन्ह सब िनिसचर मारे । महामहा जोधा संघारे ॥५॥
दमु
ु ख सुरिरपु मनुज अहार । भट अितकाय अकंपन भार ॥
अपर महोदर आ दक बीरा । परे समर मह सब रनधीरा ॥६॥

दोहा
सुिन दसकंधर बचन तब कुंभकरन िबलखान ।
जगदं बा हिर आिन अब सठ चाहत क यान ॥६२॥

भल न क न्ह त िनिसचर नाहा । अब मो ह आइ जगाए ह काहा ॥


अजहँू तात यािग अिभमाना । भजहु राम होइ ह क याना ॥१॥
ह दससीस मनुज रघुनायक । जाके हनूमान से पायक ॥
अहह बंधु त क िन्ह खोटाई । ूथम हं मो ह न सुनाए ह आई ॥२॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 30 - लंकाकांड

क न्हे हु ूभू िबरोध ते ह दे वक । िसव िबरं िच सुर जाके सेवक ॥


नारद मुिन मो ह यान जो कहा । कहतेउँ तो ह समय िनरबहा ॥३॥
अब भिर अंक भटु मो ह भाई । लोचन सूफल करौ म जाई ॥
ःयाम गात सरसी ह लोचन । दे ख जाइ ताप ऽय मोचन ॥४॥

दोहा
राम प गुन सुिमरत मगन भयउ छन एक ।
रावन मागेउ को ट घट मद अ म हष अनेक ॥६३॥

म हष खाइ किर म दरा पाना । गजा बळाघात समाना ॥


कुंभकरन दमद
ु रन रं गा । चला दग
ु तिज सेन न संगा ॥१॥
दे िख िबभीषनु आग आयउ । परे उ चरन िनज नाम सुनायउ ॥
अनुज उठाइ दयँ ते ह लायो । रघुपित भ जािन मन भायो ॥२॥
तात लात रावन मो ह मारा । कहत परम हत मंऽ िबचारा ॥
ते हं गलािन रघुपित प हं आयउँ । दे िख दन ूभु के मन भायउँ ॥३॥
सुनु सुत भयउ कालबस रावन । सो क मान अब परम िसखावन ॥
धन्य धन्य त धन्य िबभीषन । भयहु तात िनिसचर कुल भूषन ॥४॥
बंधु बंस त क न्ह उजागर । भजेहु राम सोभा सुख सागर ॥५॥

दोहा
बचन कम मन कपट तिज भजेहु राम रनधीर ।
जाहु न िनज पर सूझ मो ह भयउँ कालबस बीर ।६४॥

बंधु बचन सुिन चला िबभीषन । आयउ जहँ ऽैलोक िबभूषन ॥


नाथ भूधराकार सर रा । कुंभकरन आवत रनधीरा ॥१॥
एतना किपन्ह सुना जब काना । कल कलाइ धाए बलवाना ॥
िलए उठाइ िबटप अ भूधर । कटकटाइ डार हं ता ऊपर ॥२॥
को ट को ट िगिर िसखर ूहारा । कर हं भालु किप एक एक बारा ॥
मुर यो न मन तनु टरयो न टारयो ।िजिम गज अक फलिन को माय ॥३॥
तब मा तसुत मु ठका हन्यो । पर यो धरिन ब्याकुल िसर धुन्यो ॥
पुिन उठ ते हं मारे उ हनुमंता । घुिमत भूतल परे उ तुरंता ॥४॥
पुिन नल नील ह अविन पछारे िस । जहँ तहँ पट क पट क भट डारे िस ॥
चली बलीमुख सेन पराई । अित भय ऽिसत न कोउ समुहाई ॥५॥

दोहा
अंगदा द किप मु िछत किर समेत सुमीव ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 31 - लंकाकांड

काँख दािब किपराज कहँु चला अिमत बल सींव ॥६५॥

उमा करत रघुपित नरलीला । खेलत ग ड़ िजिम अ हगन मीला ॥


भृकु ट भंग जो काल ह खाई । ता ह क सोहइ ऐिस लराई ॥१॥
जग पाविन क रित िबःतिरह हं । गाइ गाइ भविनिध नर तिरह हं ॥
मु छा गइ मा तसुत जागा । सुमीव ह तब खोजन लागा ॥२॥
सुमीवहु कै मु छा बीती । िनबुक गयउ ते ह मृतक ूतीती ॥
काटे िस दसन नािसका काना । गरिज अकास चलउ ते हं जाना ॥३॥
गहे उ चरन गह भूिम पछारा । अित लाघवँ उठ पुिन ते ह मारा ॥
पुिन आयसु ूभु प हं बलवाना । जयित जयित जय कृ पािनधाना ॥४॥
नाक कान काटे िजयँ जानी । फरा बोध किर भइ मन लानी ॥
सहज भीम पुिन िबनु ौुित नासा । दे खत किप दल उपजी ऽासा ॥५॥

दोहा
जय जय जय रघुबंस मिन धाए किप दै हह
ू ।
एक ह बार तासु पर छाड़े िन्ह िगिर त जूह ॥६६॥

कुंभकरन रन रं ग िब ा । सन्मुख चला काल जनु बु ा ॥


को ट को ट किप धिर धिर खाई । जनु टड़ िगिर गुहाँ समाई ॥१॥
को टन्ह गह सर र सन मदा । को टन्ह मीिज िमलव मह गदा ॥
मुख नासा ौवनिन्ह कं बाटा । िनसिर परा हं भालु किप ठाटा ॥२॥
रन मद म िनसाचर दपा । िबःव मिस ह जनु एह िबिध अपा ॥
मुरे सुभट सब फर हं न फेरे । सूझ न नयन सुन हं न हं टे रे ॥३॥
कुंभकरन किप फौज िबडार । सुिन धाई रजनीचर धार ॥
दे िख राम िबकल कटकाई । िरपु अनीक नाना िबिध आई ॥४॥

दोहा
सुनु सुमीव िबभीषन अनुज सँभारे हु सैन ।
म दे खउँ खल बल दल ह बोले रािजवनैन ॥६७॥

कर सारं ग सािज कट भाथा । अिर दल दलन चले रघुनाथा ॥


ूथम क न्ह ूभु धनुष टँ कोरा । िरपु दल बिधर भयउ सुिन सोरा ॥१॥
स यसंध छाँड़े सर ल छा । कालसप जनु चले सप छा ॥
जहँ तहँ चले िबपुल नाराचा । लगे कटन भट िबकट िपसाचा ॥२॥
कट हं चरन उर िसर भुजदं डा । बहुतक बीर हो हं सत खंडा ॥
घुिम घुिम घायल मह परह ं । उठ संभािर सुभट पुिन लरह ं ॥३॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 32 - लंकाकांड

लागत बान जलद िजिम गाजह ं । बहतक


ु दे खी क ठन सर भाज हं ॥
ंड ूचंड मुंड िबनु धाव हं । ध ध मा मा धुिन गाव हं ॥४॥

दोहा
छन महँु ूभु के सायकिन्ह काटे िबकट िपसाच ।
पुिन रघुबीर िनषंग महँु ूिबसे सब नाराच ॥६८॥

कुंभकरन मन दख िबचार । हित धन माझ िनसाचर धार ॥


भा अित बु महाबल बीरा । कयो मृगनायक नाद गँभीरा ॥१॥
कोिप मह धर लेइ उपार । डारइ जहँ मकट भट भार ॥
आवत दे िख सैल ूभू भारे । सरिन्ह का ट रज सम किर डारे ॥२॥
पुिन धनु तािन कोिप रघुनायक । छाँड़े अित कराल बहु सायक ॥
तनु महँु ूिबिस िनसिर सर जाह ं । िजिम दािमिन घन माझ समाह ं ॥३ ॥
सोिनत वत सोह तन कारे । जनु क जल िगिर गे पनारे ॥
िबकल िबलो क भालु किप धाए । िबहँ सा जब हं िनकट किप आए ॥४॥

दोहा
महानाद किर गजा को ट को ट गह कस ।
मह पटकइ गजराज इव सपथ करइ दससीस ॥६९॥

भागे भालु बलीमुख जूथा । बृकु िबलो क िजिम मेष ब था ॥


चले भािग किप भालु भवानी । िबकल पुकारत आरत बानी ॥१॥
यह िनिसचर दकाल
ु सम अहई । किपकुल दे स परन अब चहई ॥
कृ पा बािरधर राम खरार । पा ह पा ह ूनतारित हार ॥२॥
सक न बचन सुनत भगवाना । चले सुधािर सरासन बाना ॥
राम सेन िनज पाछ घाली । चले सकोप महा बलसाली ॥३॥
खिच धनुष सर सत संधाने । छूटे तीर सर र समाने ॥
लागत सर धावा िरस भरा । कुधर डगमगत डोलित धरा ॥४॥
लीन्ह एक ते हं सैल उपाट । रघुकुल ितलक भुजा सोइ काट ॥
धावा बाम बाहु िगिर धार । ूभु सोउ भुजा का ट मह पार ॥५॥
काट भुजा सोह खल कैसा । प छह न मंदर िगिर जैसा ॥
उम िबलोकिन ूभु ह िबलोका । मसन चहत मानहँु ऽेलोका ॥६॥

दोहा
किर िच कार घोर अित धावा बदनु पसािर ।
गगन िस सुर ऽािसत हा हा हे ित पुकािर ॥७०॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 33 - लंकाकांड

सभय दे व क नािनिध जान्यो । ौवन ूजंत सरासनु तान्यो ॥


िबिसख िनकर िनिसचर मुख भरे ऊ । तदिप महाबल भूिम न परे ऊ ॥१॥
सरिन्ह भरा मुख सन्मुख धावा । काल ऽोन सजीव जनु आवा ॥
तब ूभु कोिप तीॄ सर लीन्हा । धर ते िभन्न तासु िसर क न्हा ॥२॥
सो िसर परे उ दसानन आग । िबकल भयउ िजिम फिन मिन याग ॥
धरिन धसइ धर धाव ूचंडा । तब ूभु का ट क न्ह दइ
ु खंडा ॥३॥
परे भूिम िजिम नभ त भूधर । हे ठ दािब किप भालु िनसाचर ॥
तासु तेज ूभु बदन समाना । सुर मुिन सब हं अचंभव माना ॥४॥
सुर दं द
ु भीं
ु बजाव हं हरष हं । अःतुित कर हं सुमन बहु बरष हं ॥
किर िबनती सुर सकल िसधाए । तेह समय दे विरिष आए ॥५॥
गगनोपिर हिर गुन गन गाए । िचर बीररस ूभु मन भाए ॥
बेिग हतहु खल कह मुिन गए । राम समर मह सोभत भए ॥६॥

छं द
संमाम भूिम िबराज रघुपित अतुल बल कोसल धनी ।
ौम िबंद ु मुख राजीव लोचन अ न तन सोिनत कनी ॥
भुज जुगल फेरत सर सरासन भालु किप चहु दिस बने ।
कह दास तुलसी कह न सक छिब सेष जे ह आनन घने ॥

दोहा
िनिसचर अधम मलाकर ता ह द न्ह िनज धाम ।
िगिरजा ते नर मंदमित जे न भज हं ौीराम ॥७१॥

दन क अंत फर ं दोउ अनी । समर भई सुभटन्ह ौम घनी ॥


राम कृ पाँ किप दल बल बाढ़ा । िजिम तृन पाइ लाग अित डाढ़ा ॥१॥
छ ज हं िनिसचर दनु अ राती । िनज मुख कह सुकृत जे ह भाँती ॥
बहु िबलाप दसकंधर करई । बंधु सीस पुिन पुिन उर धरई ॥२॥
रोव हं नािर दय हित पानी । तासु तेज बल िबपुल बखानी ॥
मेघनाद ते ह अवसर आयउ । कह बहु कथा िपता समुझायउ ॥३॥
दे खेहु कािल मोिर मनुसाई । अब हं बहत
ु का कर बड़ाई ॥
इ दे व स बल रथ पायउँ । सो बल तात न तो ह दे खायउँ ॥४॥
एह िबिध ज पत भयउ िबहाना । चहँु दआर
ु लागे किप नाना ॥
इत किप भालु काल सम बीरा । उत रजनीचर अित रनधीरा ॥५॥
लर हं सुभट िनज िनज जय हे तू । बरिन न जाइ समर खगकेतू ॥६॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 34 - लंकाकांड

दोहा
मेघनाद मायामय रथ चढ़ गयउ अकास ॥
गजउ अ टहास किर भइ किप कटक ह ऽास ॥७२॥

सि सूल तरवािर कृ पाना । अ स कुिलसायुध नाना ॥


डारह परसु पिरघ पाषाना । लागेउ बृि करै बहु बाना ॥१॥
दस दिस रहे बान नभ छाई । मानहँु मघा मेघ झिर लाई ॥
ध ध मा सुिनअ धुिन काना । जो मारइ ते ह कोउ न जाना ॥२॥
ग ह िगिर त अकास किप धाव हं । दे ख ह ते ह न दिखत
ु फिर आव हं ॥
अवघट घाट बाट िगिर कंदर । माया बल क न्हे िस सर पंजर ॥३॥
जा हं कहाँ ब्याकुल भए बंदर । सुरपित बं द परे जनु मंदर ॥
मा तसुत अंगद नल नीला । क न्हे िस िबकल सकल बलसीला ॥४॥
पुिन लिछमन सुमीव िबभीषन । सरिन्ह मािर क न्हे िस जजर तन ॥
पुिन रघुपित स जूझे लागा । सर छाँड़इ होइ लाग हं नागा ॥५॥
ब्याल पास बस भए खरार । ःवबस अनंत एक अिबकार ॥
नट इव कपट चिरत कर नाना । सदा ःवतंऽ एक भगवाना ॥६॥
रन सोभा लिग ूभु हं बँधायो । नागपास दे वन्ह भय पायो ॥७॥

दोहा
िगिरजा जासु नाम जिप मुिन काट हं भव पास ।
सो क बंध तर आवइ ब्यापक िबःव िनवास ॥७३॥

चिरत राम के सगुन भवानी । तक न जा हं बुि बल बानी ॥


अस िबचािर जे त य िबरागी । राम ह भज हं तक सब यागी ॥१॥
ब्याकुल कटकु क न्ह घननादा । पुिन भा ूगट कहइ दबादा
ु ॥
जामवंत कह खल रहु ठाढ़ा । सुिन किर ता ह बोध अित बाढ़ा ॥२॥
बूढ़ जािन सठ छाँड़ेउँ तोह । लागेिस अधम पचारै मोह ॥
अस कह तरल िऽसूल चलायो । जामवंत कर गह सोइ धायो ॥३॥
मािरिस मेघनाद कै छाती । परा भूिम घुिमत सुरघाती ॥
पुिन िरसान गह चरन फरायौ । मह पछािर िनज बल दे खरायो ॥४॥
बर ूसाद सो मरइ न मारा । तब गह पद लंका पर डारा ॥
इहाँ दे विरिष ग ड़ पठायो । राम समीप सप द सो आयो ॥५॥

दोहा
खगपित सब धिर खाए माया नाग ब थ ।
माया िबगत भए सब हरषे बानर जूथ ।७४(क)॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 35 - लंकाकांड

गह िगिर पादप उपल नख धाए कस िरसाइ ।


चले तमीचर िबकलतर गढ़ पर चढ़े पराइ ॥७४(ख)॥

मेघनाद के मुरछा जागी । िपत ह िबलो क लाज अित लागी ॥


तुरत गयउ िगिरबर कंदरा । कर अजय मख अस मन धरा ॥१॥
इहाँ िबभीषन मंऽ िबचारा । सुनहु नाथ बल अतुल उदारा ॥
मेघनाद मख करइ अपावन । खल मायावी दे व सतावन ॥२॥
ज ूभु िस होइ सो पाइ ह । नाथ बेिग पुिन जीित न जाइ ह ॥
सुिन रघुपित अितसय सुख माना । बोले अंगदा द किप नाना ॥३॥
लिछमन संग जाहु सब भाई । करहु िबधंस ज य कर जाई ॥
तु ह लिछमन मारे हु रन ओह । दे िख सभय सुर दख
ु अित मोह ॥४॥
मारे हु ते ह बल बुि उपाई । जे हं छ जै िनिसचर सुनु भाई ॥
जामवंत सुमीव िबभीषन । सेन समेत रहे हु तीिनउ जन ॥५॥
जब रघुबीर द िन्ह अनुसासन । कट िनषंग किस सािज सरासन ॥
ूभु ूताप उर धिर रनधीरा । बोले घन इव िगरा गँभीरा ॥६॥
ज ते ह आजु बध िबनु आव । तौ रघुपित सेवक न कहाव ॥
ज सत संकर कर हं सहाई । तदिप हतउँ रघुबीर दोहाई ॥७॥

दोहा
रघुपित चरन नाइ िस चलेउ तुरंत अनंत ।
अंगद नील मयंद नल संग सुभट हनुमंत ॥७५॥

जाइ किपन्ह सो दे खा बैसा । आहित


ु दे त िधर अ भसा ॥
क न्ह किपन्ह सब ज य िबधंसा । जब न उठइ तब कर हं ूसंसा ॥१॥
तदिप न उठइ धरे िन्ह कच जाई । लातिन्ह हित हित चले पराई ॥
लै िऽसुल धावा किप भागे । आए जहँ रामानुज आगे ॥२॥
आवा परम बोध कर मारा । गज घोर रव बार हं बारा ॥
कोिप म तसुत अंगद धाए । हित िऽसूल उर धरिन िगराए ॥३॥
ूभु कहँ छाँड़ेिस सूल ूचंडा । सर हित कृ त अनंत जुग खंडा ॥
उठ बहोिर मा ित जुबराजा । हत हं कोिप ते ह घाउ न बाजा ॥४॥
फरे बीर िरपु मरइ न मारा । तब धावा किर घोर िचकारा ॥
आवत दे िख बु जनु काला । लिछमन छाड़े िबिसख कराला ॥५॥
दे खेिस आवत पिब सम बाना । तुरत भयउ खल अंतरधाना ॥
िबिबध बेष धिर करइ लराई । कबहँु क ूगट कबहँु दिर
ु जाई ॥६॥
दे िख अजय िरपु डरपे क सा । परम बु तब भयउ अह सा ॥
लिछमन मन अस मंऽ ढ़ावा । एह पािप ह म बहत
ु खेलावा ॥७॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 36 - लंकाकांड

सुिमिर कोसलाधीस ूतापा । सर संधान क न्ह किर दापा ॥


छाड़ा बान माझ उर लागा । मरती बार कपटु सब यागा ॥८॥

दोहा
रामानुज कहँ रामु कहँ अस कह छाँड़ेिस ूान ।
धन्य धन्य तव जननी कह अंगद हनुमान ॥७६॥

िबनु ूयास हनुमान उठायो । लंका ार रािख पुिन आयो ॥


तासु मरन सुिन सुर गंधबा । चढ़ िबमान आए नभ सबा ॥१॥
बरिष सुमन दं द
ु भीं
ु बजाव हं । ौीरघुनाथ िबमल जसु गाव हं ॥
जय अनंत जय जगदाधारा । तु ह ूभु सब दे विन्ह िनःतारा ॥२॥
अःतुित किर सुर िस िसधाए । लिछमन कृ पािसन्धु प हं आए ॥
सुत बध सुना दसानन जबह ं । मु िछत भयउ परे उ मह तबह ं ॥३॥
मंदोदर दन कर भार । उर ताड़न बहु भाँित पुकार ॥
नगर लोग सब ब्याकुल सोचा । सकल कह हं दसकंधर पोचा ॥४॥

दोहा
तब दसकंठ िबिबध िबिध समुझा सब नािर ।
नःवर प जगत सब दे खहु दयँ िबचािर ॥७७॥

ितन्ह ह यान उपदे सा रावन । आपुन मंद कथा सुभ पावन ॥


पर उपदे स कुसल बहते
ु रे । जे आचर हं ते नर न घनेरे ॥१॥
िनसा िसरािन भयउ िभनुसारा । लगे भालु किप चािरहँु ारा ॥
सुभट बोलाइ दसानन बोला । रन सन्मुख जा कर मन डोला ॥२॥
सो अबह ं ब जाउ पराई । संजुग िबमुख भएँ न भलाई ॥
िनज भुज बल म बय बढ़ावा । दे हउँ उत जो िरपु चढ़ आवा ॥३॥
अस कह म त बेग रथ साजा । बाजे सकल जुझाऊ बाजा ॥
चले बीर सब अतुिलत बली । जनु क जल कै आँधी चली ॥४॥
असगुन अिमत हो हं ते ह काला । गनइ न भुजबल गब िबसाला ॥५॥

छं द
अित गब गनइ न सगुन असगुन व हं आयुध हाथ ते ।
भट िगरत रथ ते बािज गज िच करत भाज हं साथ ते ॥
गोमाय गीध कराल खर रव ःवान बोल हं अित घने ।
जनु कालदत
ू उलूक बोल हं बचन परम भयावने ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 37 - लंकाकांड

दोहा
ता ह क संपित सगुन सुभ सपनेहुँ मन िबौाम ।
भूत िोह रत मोहबस राम िबमुख रित काम ॥७८॥

चलेउ िनसाचर कटकु अपारा । चतुरंिगनी अनी बहु धारा ॥


िबिबध भाँित बाहन रथ जाना । िबपुल बरन पताक वज नाना ॥१॥
चले म गज जूथ घनेरे । ूािबट जलद म त जनु ूेरे ॥
बरन बरद िबरदै त िनकाया । समर सूर जान हं बहु माया ॥२॥
अित िबिचऽ बा हनी िबराजी । बीर बसंत सेन जनु साजी ॥
चलत कटक दगिसधुंर डगह ं । छुिभत पयोिध कुधर डगमगह ं ॥३॥
उठ रे नु रिब गयउ छपाई । म त थ कत बसुधा अकुलाई ॥
पनव िनसान घोर रव बाज हं । ूलय समय के घन जनु गाज हं ॥४॥
भेिर नफ िर बाज सहनाई । मा राग सुभट सुखदाई ॥
केहिर नाद बीर सब करह ं । िनज िनज बल पौ ष उ चरह ं ॥५॥
कहइ दसानन सुनहु सुभ टा । मदहु भालु किपन्ह के ठ टा ॥
ह मािरहउँ भूप ौ भाई । अस कह सन्मुख फौज रगाई ॥६॥
यह सुिध सकल किपन्ह जब पाई । धाए किर रघुबीर दोहाई ॥७॥

छं द
धाए िबसाल कराल मकट भालु काल समान ते ।
मानहँु सप छ उड़ा हं भूधर बृंद नाना बान ते ॥
नख दसन सैल महािमायु
ु ध सबल संक न मानह ं ।
जय राम रावन म गज मृगराज सुजसु बखानह ं ॥

दोहा
दहु ु दिस जय जयकार किर िनज िनज जोर जािन ।
िभरे बीर इत राम ह उत रावन ह बखािन ॥७९॥

रावनु रथी िबरथ रघुबीरा । दे िख िबभीषन भयउ अधीरा ॥


अिधक ूीित मन भा संदेहा । बं द चरन कह स हत सनेहा ॥१॥
नाथ न रथ न हं तन पद ऽाना । के ह िबिध िजतब बीर बलवाना ॥
सुनहु सखा कह कृ पािनधाना । जे हं जय होइ सो ःयंदन आना ॥२॥
सौरज धीरज ते ह रथ चाका । स य सील ढ़ वजा पताका ॥
बल िबबेक दम पर हत घोरे । छमा कृ पा समता रजु जोरे ॥३॥
ईस भजनु सारथी सुजाना । िबरित चम संतोष कृ पाना ॥
दान परसु बुिध सि ूचंड़ा । बर िब यान क ठन कोदं डा ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 38 - लंकाकांड

अमल अचल मन ऽोन समाना । सम जम िनयम िसलीमुख नाना ॥


कवच अभेद िबू गुर पूजा । एह सम िबजय उपाय न दजा
ू ॥५॥
सखा धममय अस रथ जाक । जीतन कहँ न कतहँु िरपु ताक ॥६॥

दोहा
महा अजय संसार िरपु जीित सकइ सो बीर ।
जाक अस रथ होइ ढ़ सुनहु सखा मितधीर ॥८०(क)॥
सुिन ूभु बचन िबभीषन हरिष गहे पद कंज ।
एह िमस मो ह उपदे सेहु राम कृ पा सुख पुंज ॥८०(ख)॥
उत पचार दसकंधर इत अंगद हनुमान ।
लरत िनसाचर भालु किप किर िनज िनज ूभु आन ॥८०(ग)॥

सुर ॄ ाद िस मुिन नाना । दे खत रन नभ चढ़े िबमाना ॥


हमहू उमा रहे ते ह संगा । दे खत राम चिरत रन रं गा ॥१॥
सुभट समर रस दहु ु दिस माते । किप जयसील राम बल ताते ॥
एक एक सन िभर हं पचार हं । एकन्ह एक मद मह पार हं ॥२॥
मार हं काट हं धर हं पछार हं । सीस तोिर सीसन्ह सन मार हं ॥
उदर िबदार हं भुजा उपार हं । गह पद अविन पट क भट डार हं ॥३॥
िनिसचर भट मह गाड़ ह भालू । ऊपर ढािर दे हं बहु बालू ॥
बीर बिलमुख जु िब े । दे िखअत िबपुल काल जनु बु े ॥४॥

छं द
बु े कृ तांत समान किप तन वत सोिनत राजह ं ।
मद हं िनसाचर कटक भट बलवंत घन िजिम गाजह ं ॥
मार हं चपेटिन्ह डा ट दातन्ह का ट लातन्ह मीजह ं ।
िच कर हं मकट भालु छल बल कर हं जे हं खल छ जह ं ॥

धिर गाल फार हं उर िबदार हं गल अँताविर मेलह ं ।


ूहलादपित जनु िबिबध तनु धिर समर अंगन खेलह ं ॥
ध मा काटु पछा घोर िगरा गगन मह भिर रह ।
जय राम जो तृन ते कुिलस कर कुिलस ते कर तृन सह ॥
दोहा
िनज दल िबचलत दे खेिस बीस भुजाँ दस चाप ।
रथ चढ़ चलेउ दसानन फरहु फरहु किर दाप ॥८१॥

धायउ परम बु दसकंधर । सन्मुख चले हह


ू दै बंदर ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 39 - लंकाकांड

गह कर पादप उपल पहारा । डारे िन्ह ता पर एक हं बारा ॥१॥


लाग हं सैल बळ तन तासू । खंड खंड होइ फूट हं आसू ॥
चला न अचल रहा रथ रोपी । रन दमद
ु रावन अित कोपी ॥२॥
इत उत झप ट दप ट किप जोधा । मद लाग भयउ अित बोधा ॥
चले पराइ भालु किप नाना । ऽा ह ऽा ह अंगद हनुमाना ॥३॥
पा ह पा ह रघुबीर गोसाई । यह खल खाइ काल क नाई ॥
ते ह दे खे किप सकल पराने । दसहँु चाप सायक संधाने ॥४॥

छं द
संधािन धनु सर िनकर छाड़े िस उरग िजिम उड़ लागह ं ।
रहे पूिर सर धरनी गगन दिस िबदिस कहँ किप भागह ं ॥
भयो अित कोलाहल िबकल किप दल भालु बोल हं आतुरे ।
रघुबीर क ना िसंधु आरत बंधु जन र छक हरे ॥

दोहा
िनज दल िबकल दे िख कट किस िनषंग धनु हाथ ।
लिछमन चले बु होइ नाइ राम पद माथ ॥८२॥

रे खल का मारिस किप भालू । मो ह िबलोकु तोर म कालू ॥


खोजत रहे उँ तो ह सुतघाती । आजु िनपाित जुड़ावउँ छाती ॥१॥
अस कह छाड़े िस बान ूचंडा । लिछमन कए सकल सत खंडा ॥
को टन्ह आयुध रावन डारे । ितल ूवान किर का ट िनवारे ॥२॥
पुिन िनज बानन्ह क न्ह ूहारा । ःयंदनु भंिज सारथी मारा ॥
सत सत सर मारे दस भाला । िगिर सृंगन्ह जनु ूिबस हं ब्याला ॥३॥
पुिन सत सर मारा उर माह ं । परे उ धरिन तल सुिध कछु नाह ं ॥
उठा ूबल पुिन मु छा जागी । छा ड़िस ॄ द िन्ह जो साँगी ॥४॥

छं द
सो ॄ द ूचंड सि अनंत उर लागी सह ।
पय बीर िबकल उठाव दसमुख अतुल बल म हमा रह ॥
ॄ ांड भवन िबराज जाक एक िसर िजिम रज कनी ।
ते ह चह उठावन मूढ़ रावन जान न हं िऽभुअन धनी ॥

दोहा
दे िख पवनसुत धायउ बोलत बचन कठोर ।
आवत किप ह हन्यो ते हं मुि ूहार ूघोर ॥८३॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 40 - लंकाकांड

जानु टे क किप भूिम न िगरा । उठा सँभािर बहत


ु िरस भरा ॥
मु ठका एक ता ह किप मारा । परे उ सैल जनु बळ ूहारा ॥१॥
मु छा गै बहोिर सो जागा । किप बल िबपुल सराहन लागा ॥
िधग िधग मम पौ ष िधग मोह । ज त िजअत रहे िस सुरिोह ॥२॥
अस कह लिछमन कहँु किप यायो । दे िख दसानन िबसमय पायो ॥
कह रघुबीर समुझु िजयँ ॅाता । तु ह कृ तांत भ छक सुर ऽाता ॥३॥
सुनत बचन उठ बैठ कृ पाला । गई गगन सो सकित कराला ॥
पुिन कोदं ड बान गह धाए । िरपु सन्मुख अित आतुर आए ॥४॥

छं द
आतुर बहोिर िबभंिज ःयंदन सूत हित ब्याकुल कयो ।
िगर यो धरिन दसकंधर िबकलतर बान सत बे यो हयो ॥
सारथी दसर
ू घािल रथ ते ह तुरत लंका लै गयो ।
रघुबीर बंधु ूताप पुंज बहोिर ूभु चरनिन्ह नयो ॥

दोहा
उहाँ दसानन जािग किर करै लाग कछु ज य ।
राम िबरोध िबजय चह सठ हठ बस अित अ य ॥८४॥

इहाँ िबभीषन सब सुिध पाई । सप द जाइ रघुपित ह सुनाई ॥


नाथ करइ रावन एक जागा । िस भएँ न हं मिर ह अभागा ॥१॥
पठवहु नाथ बेिग भट बंदर । कर हं िबधंस आव दसकंधर ॥
ूात होत ूभु सुभट पठाए । हनुमदा द अंगद सब धाए ॥२॥
कौतुक कू द चढ़े किप लंका । पैठे रावन भवन असंका ॥
ज य करत जबह ं सो दे खा । सकल किपन्ह भा बोध िबसेषा ॥३॥
रन ते िनलज भािज गृह आवा । इहाँ आइ बक यान लगावा ॥
अस कह अंगद मारा लाता । िचतव न सठ ःवारथ मन राता ॥४॥

छं द
न हं िचतव जब किर कोप किप गह दसन लातन्ह मारह ं ।
धिर केस नािर िनकािर बाहे र तेऽितद न पुकारह ं ॥
तब उठे उ बु कृ तांत सम गह चरन बानर डारई ।
एह बीच किपन्ह िबधंस कृ त मख दे िख मन महँु हारई ॥

दोहा

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 41 - लंकाकांड

ज य िबधंिस कुसल किप आए रघुपित पास ।


चलेउ िनसाचर बु होइ यािग िजवन कै आस ॥८५॥

चलत हो हं अित असुभ भयंकर । बैठ हं गीध उड़ाइ िसरन्ह पर ॥


भयउ कालबस काहु न माना । कहे िस बजावहु जु िनसाना ॥१॥
चली तमीचर अनी अपारा । बहु गज रथ पदाित असवारा ॥
ूभु सन्मुख धाए खल कस । सलभ समूह अनल कहँ जस ॥२॥
इहाँ दे वतन्ह अःतुित क न्ह । दा न िबपित हम ह ए हं द न्ह ॥
अब जिन राम खेलावहु एह । अितसय दिखत
ु होित बैदेह ॥३॥
दे व बचन सुिन ूभु मुसकाना । उठ रघुबीर सुधारे बाना ।
जटा जूट ढ़ बाँधै माथे । सोह हं सुमन बीच िबच गाथे ॥४॥
अ न नयन बािरद तनु ःयामा । अिखल लोक लोचनािभरामा ॥
क टतट पिरकर कःयो िनषंगा । कर कोदं ड क ठन सारं गा ॥५॥

छं द
सारं ग कर सुंदर िनषंग िसलीमुखाकर कट कःयो ।
भुजदं ड पीन मनोहरायत उर धरासुर पद लःयो ॥
कह दास तुलसी जब हं ूभु सर चाप कर फेरन लगे ।
ॄ ांड द गज कमठ अह मह िसंधु भूधर डगमगे ॥
दोहा
सोभा दे िख हरिष सुर बरष हं सुमन अपार ।
जय जय जय क नािनिध छिब बल गुन आगार ॥८६॥

एह ं बीच िनसाचर अनी । कसमसात आई अित घनी ।


दे िख चले सन्मुख किप भ टा । ूलयकाल के जनु घन घ टा ॥१॥
बहु कृ पान तरवािर चमंक हं । जनु दहँ दिस दािमनीं दमंक हं ॥
गज रथ तुरग िचकार कठोरा । गज हं मनहँु बलाहक घोरा ॥२॥
किप लंगूर िबपुल नभ छाए । मनहँु इं िधनु उए सुहाए ॥
उठइ धूिर मानहँु जलधारा । बान बुंद भै बृि अपारा ॥३॥
दहँु ु दिस पबत कर हं ूहारा । बळपात जनु बार हं बारा ॥
रघुपित कोिप बान झिर लाई । घायल भै िनिसचर समुदाई ॥४॥
लागत बान बीर िच करह ं । घुिम घुिम जहँ तहँ मह परह ं ॥
व हं सैल जनु िनझर भार । सोिनत सिर कादर भयकार ॥५॥

छं द
कादर भयंकर िधर सिरता चली परम अपावनी ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 42 - लंकाकांड

दोउ कूल दल रथ रे त चब अबत बहित भयावनी ॥


जल जंतुगज पदचर तुरग खर िबिबध बाहन को गने ।
सर सि तोमर सप चाप तरं ग चम कमठ घने ॥
दोहा
बीर पर हं जनु तीर त म जा बहु बह फेन ।
कादर दे िख डर हं तहँ सुभटन्ह के मन चेन ॥८७॥

म जह भूत िपसाच बेताला । ूमथ महा झो टं ग कराला ॥


काक कंक लै भुजा उड़ाह ं । एक ते छ िन एक लै खाह ं ॥१॥
एक कह हं ऐिसउ स घाई । सठहु तु हार दिरि न जाई ॥
कहँ रत भट घायल तट िगरे । जहँ तहँ मनहँु अधजल परे ॥२॥
खच हं गीध आँत तट भए । जनु बंसी खेलत िचत दए ॥
बहु भट बह हं चढ़े खग जाह ं । जनु नाविर खेल हं सिर माह ं ॥३॥
जोिगिन भिर भिर ख पर संच हं । भूत िपसाच बधू नभ नंच हं ॥
भट कपाल करताल बजाव हं । चामुंडा नाना िबिध गाव हं ॥४॥
जंबुक िनकर कट कट क ट हं । खा हं हआ
ु हं अघा हं दप ट हं ॥
को टन्ह ंड मुंड िबनु डो ल हं । सीस परे मह जय जय बो ल हं ॥५॥

छं द
बो ल हं जो जय जय मुंड ंड ूचंड िसर िबनु धावह ं ।
ख पिरन्ह ख ग अलुि झ जु झ हं सुभट भटन्ह ढहावह ं ॥
बानर िनसाचर िनकर मद हं राम बल दिपत भए ।
संमाम अंगन सुभट सोव हं राम सर िनकरिन्ह हए ॥

दोहा
रावन दयँ िबचारा भा िनिसचर संघार ।
म अकेल किप भालु बहु माया कर अपार ॥८८॥

दे वन्ह ूभु ह पयाद दे खा । उपजा उर अित छोभ िबसेषा ॥


सुरपित िनज रथ तुरत पठावा । हरष स हत मातिल लै आवा ॥१॥
तेज पुंज रथ दब्य अनूपा । हरिष चढ़े कोसलपुर भूपा ॥
चंचल तुरग मनोहर चार । अजर अमर मन सम गितकार ॥२॥
रथा ढ़ रघुनाथ ह दे खी । धाए किप बलु पाइ िबसेषी ॥
सह न जाइ किपन्ह कै मार । तब रावन माया िबःतार ॥३॥
सो माया रघुबीर ह बाँची । लिछमन किपन्ह सो मानी साँची ॥
दे खी किपन्ह िनसाचर अनी । अनुज स हत बहु कोसलधनी ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 43 - लंकाकांड

छं द
बहु राम लिछमन दे िख मकट भालु मन अित अपडरे ।
जनु िचऽ िलिखत समेत लिछमन जहँ सो तहँ िचतव हं खरे ॥
िनज सेन च कत िबलो क हँ िस सर चाप सिज कोसल धनी ।
माया हर हिर िनिमष महँु हरषी सकल मकट अनी ॥
दोहा
बहिर
ु राम सब तन िचतइ बोले बचन गँभीर ।
ं दजु दे खहु सकल ौिमत भए अित बीर ॥८९॥

अस कह रथ रघुनाथ चलावा । िबू चरन पंकज िस नावा ॥


तब लंकेस बोध उर छावा । गजत तजत सन्मुख धावा ॥१॥
जीतेहु जे भट संजुग माह ं । सुनु तापस म ितन्ह सम नाह ं ॥
रावन नाम जगत जस जाना । लोकप जाक बंद खाना ॥२॥
खर दषन
ू िबराध तु ह मारा । बधेहु ब्याध इव बािल िबचारा ॥
िनिसचर िनकर सुभट संघारे हु । कुंभकरन घननाद ह मारे हु ॥३॥
आजु बय सबु लेउँ िनबाह । ज रन भूप भािज न हं जाह ं ॥
आजु करउँ खलु काल हवाले । परे हु क ठन रावन के पाले ॥४॥
सुिन दबचन
ु कालबस जाना । िबहँ िस बचन कह कृ पािनधाना ॥
स य स य सब तव ूभुताई । ज पिस जिन दे खाउ मनुसाई ॥५॥

छं द
जिन ज पना किर सुजसु नास ह नीित सुन ह कर ह छमा ।
संसार महँ पू ष िऽिबध पाटल रसाल पनस समा ॥
एक सुमनूद एक सुमन फल एक फलइ केवल लागह ं ।
एक कह हं कह हं कर हं अपर एक कर हं कहत न बागह ं ॥

दोहा
राम बचन सुिन िबहँ सा मो ह िसखावत यान ।
बय करत न हं तब डरे अब लागे िूय ूान ॥९०॥

कह दबचन
ु बु दसकंधर । कुिलस समान लाग छाँड़ै सर ॥
नानाकार िसलीमुख धाए । दिस अ िब दस गगन मह छाए ॥१॥
पावक सर छाँड़ेउ रघुबीरा । छन महँु जरे िनसाचर तीरा ॥
छा ड़िस तीॄ सि िखिसआई । बान संग ूभु फेिर चलाई ॥२॥
को टक चब िऽसूल पबारै । िबनु ूयास ूभु का ट िनवारै ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 44 - लंकाकांड

िनफल हो हं रावन सर कैस । खल के सकल मनोरथ जैस ॥३॥


तब सत बान सारथी मारे िस । परे उ भूिम जय राम पुकारे िस ॥
राम कृ पा किर सूत उठावा । तब ूभु परम बोध कहँु पावा ॥४॥

छं द
भए बु जु िब रघुपित ऽोन सायक कसमसे ।
कोदं ड धुिन अित चंड सुिन मनुजाद सब मा त मसे ॥
मँदोदर उर कंप कंपित कमठ भू भूधर ऽसे ।
िच कर हं द गज दसन गह मह दे िख कौतुक सुर हँ से ॥

दोहा
तानेउ चाप ौवन लिग छाँड़े िबिसख कराल ।
राम मारगन गन चले लहलहात जनु ब्याल ॥९१॥

चले बान सप छ जनु उरगा । ूथम हं हतेउ सारथी तुरगा ॥


रथ िबभंिज हित केतु पताका । गजा अित अंतर बल थाका ॥१॥
तुरत आन रथ चढ़ िखिसआना । अ स छाँड़ेिस िबिध नाना ॥
िबफल हो हं सब उ म ताके । िजिम परिोह िनरत मनसा के ॥२॥
तब रावन दस सूल चलावा । बािज चािर मह मािर िगरावा ॥
तुरग उठाइ कोिप रघुनायक । खिच सरासन छाँड़े सायक ॥३॥
रावन िसर सरोज बनचार । चिल रघुबीर िसलीमुख धार ॥
दस दस बान भाल दस मारे । िनसिर गए चले िधर पनारे ॥४॥
वत िधर धायउ बलवाना । ूभु पुिन कृ त धनु सर संधाना ॥
तीस तीर रघुबीर पबारे । भुजिन्ह समेत सीस मह पारे ॥५॥
काटतह ं पुिन भए नबीने । राम बहोिर भुजा िसर छ ने ॥
ूभु बहु बार बाहु िसर हए । कटत झ टित पुिन नूतन भए ॥६॥
पुिन पुिन ूभु काटत भुज सीसा । अित कौतुक कोसलाधीसा ॥
रहे छाइ नभ िसर अ बाहू । मानहँु अिमत केतु अ राहू ॥७॥

छं द
जनु राहु केतु अनेक नभ पथ वत सोिनत धावह ं ।
रघुबीर तीर ूचंड लाग हं भूिम िगरन न पावह ं ॥
एक एक सर िसर िनकर छे दे नभ उड़त इिम सोहह ं ।
जनु कोिप दनकर कर िनकर जहँ तहँ िबधुंतुद पोहह ं ॥

दोहा

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 45 - लंकाकांड

िजिम िजिम ूभु हर तासु िसर ितिम ितिम हो हं अपार ।


सेवत िबषय िबबध िजिम िनत िनत नूतन मार ॥९२॥

दसमुख दे िख िसरन्ह कै बाढ़ । िबसरा मरन भई िरस गाढ़ ॥


गजउ मूढ़ महा अिभमानी । धायउ दसहु सरासन तानी ॥१॥
समर भूिम दसकंधर को यो । बरिष बान रघुपित रथ तो यो ॥
दं ड एक रथ दे िख न परे ऊ । जनु िनहार महँु दनकर दरेु ऊ ॥२॥
हाहाकार सुरन्ह जब क न्हा । तब ूभु कोिप कारमुक लीन्हा ॥
सर िनवािर िरपु के िसर काटे । ते दिस िब दस गगन म ह पाटे ॥३॥
काटे िसर नभ मारग धाव हं । जय जय धुिन किर भय उपजाव हं ॥
कहँ लिछमन सुमीव कपीसा । कहँ रघुबीर कोसलाधीसा ॥४॥

छं द
कहँ रामु कह िसर िनकर धाए दे िख मकट भिज चले ।
संधािन धनु रघुबंसमिन हँ िस सरिन्ह िसर बेधे भले ॥
िसर मािलका कर कािलका गह बृंद बृंदिन्ह बहु िमलीं ।
किर िधर सिर म जनु मनहँु संमाम बट पूजन चलीं ॥

दोहा
पुिन दसकंठ बु होइ छाँड़ सि ूचंड ।
चली िबभीषन सन्मुख मनहँु काल कर दं ड ॥९३॥

आवत दे िख सि अित घोरा । ूनतारित भंजन पन मोरा ॥


तुरत िबभीषन पाछ मेला । सन्मुख राम सहे उ सोइ सेला ॥१॥
लािग सि मु छा कछु भई । ूभु कृ त खेल सुरन्ह िबकलई ॥
दे िख िबभीषन ूभु ौम पायो । गह कर गदा बु होइ धायो ॥२॥
रे कुभा य सठ मंद कुबु े । त सुर नर मुिन नाग िब े ॥
सादर िसव कहँु सीस चढ़ाए । एक एक के को टन्ह पाए ॥३॥
ते ह कारन खल अब लिग बाँ यो । अब तव कालु सीस पर ना यो ॥
राम िबमुख सठ चहिस संपदा । अस कह हनेिस माझ उर गदा ॥४॥

छं द
उर माझ गदा ूहार घोर कठोर लागत मह पर यो ।
दस बदन सोिनत वत पुिन संभािर धायो िरस भर यो ॥
ौ िभरे अितबल म लजु िब एकु एक ह हनै ।
रघुबीर बल दिपत िबभीषनु घािल न हं ता कहँु गनै ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 46 - लंकाकांड

दोहा
उमा िबभीषनु रावन ह सन्मुख िचतव क काउ ।
सो अब िभरत काल य ौीरघुबीर ूभाउ ॥९४॥

दे खा ौिमत िबभीषनु भार । धायउ हनूमान िगिर धार ॥


रथ तुरंग सारथी िनपाता । दय माझ ते ह मारे िस लाता ॥१॥
ठाढ़ रहा अित कंिपत गाता । गयउ िबभीषनु जहँ जनऽाता ॥
पुिन रावन किप हतेउ पचार । चलेउ गगन किप पूँछ पसार ॥२॥
ग हिस पूँछ किप स हत उड़ाना । पुिन फिर िभरे उ ूबल हनुमाना ॥
लरत अकास जुगल सम जोधा । एक ह एकु हनत किर बोधा ॥३॥
सोह हं नभ छल बल बहु करह ं । क जल िगिर सुमे जनु लरह ं ॥
बुिध बल िनिसचर परइ न पार यो । तब मा त सुत ूभु संभार यो ॥४॥

छं द
संभािर ौीरघुबीर धीर पचािर किप रावनु हन्यो ।
मह परत पुिन उठ लरत दे वन्ह जुगल कहँु जय जय भन्यो ॥
हनुमंत संकट दे िख मकट भालु बोधातुर चले ।
रन म रावन सकल सुभट ूचंड भुज बल दलमले ॥

दोहा
तब रघुबीर पचारे धाए कस ूचंड ।
किप बल ूबल दे िख ते हं क न्ह ूगट पाषंड ॥९५॥

अंतरधान भयउ छन एका । पुिन ूगटे खल प अनेका ॥


रघुपित कटक भालु किप जेते । जहँ तहँ ूगट दसानन तेते ॥१॥
दे खे किपन्ह अिमत दससीसा । जहँ तहँ भजे भालु अ क सा ॥
भागे बानर धर हं न धीरा । ऽा ह ऽा ह लिछमन रघुबीरा ॥२॥
दहँ दिस धाव हं को टन्ह रावन । गज हं घोर कठोर भयावन ॥
डरे सकल सुर चले पराई । जय कै आस तजहु अब भाई ॥३॥
सब सुर िजते एक दसकंधर । अब बहु भए तकहु िगिर कंदर ॥
रहे िबरं िच संभु मुिन यानी । िजन्ह िजन्ह ूभु म हमा कछु जानी ॥४ ॥

छं द
जाना ूताप ते रहे िनभय किपन्ह िरपु माने फुरे ।
चले िबचिल मकट भालु सकल कृ पाल पा ह भयातुरे ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 47 - लंकाकांड

हनुमंत अंगद नील नल अितबल लरत रन बाँकुरे ।


मद हं दसानन को ट को टन्ह कपट भू भट अंकुरे ॥

दोहा
सुर बानर दे खे िबकल हँ ःयो कोसलाधीस ।
सिज सारं ग एक सर हते सकल दससीस ॥९६॥

ूभु छन महँु माया सब काट । िजिम रिब उएँ जा हं तम फाट ॥


रावनु एकु दे िख सुर हरषे । फरे सुमन बहु ूभु पर बरषे ॥१॥
भुज उठाइ रघुपित किप फेरे । फरे एक एकन्ह तब टे रे ॥
ूभु बलु पाइ भालु किप धाए । तरल तम क संजुग मह आए ॥२॥
अःतुित करत दे वतिन्ह दे ख । भयउँ एक म इन्ह के लेख ॥
सठहु सदा तु ह मोर मरायल । अस कह कोिप गगन पर धायल ॥३॥
हाहाकार करत सुर भागे । खलहु जाहु कहँ मोर आगे ॥
दे िख िबकल सुर अंगद धायो । कू द चरन गह भूिम िगरायो ॥४॥

छं द
गह भूिम पार यो लात मार यो बािलसुत ूभु प हं गयो ।
संभािर उठ दसकंठ घोर कठोर रव गजत भयो ॥
किर दाप चाप चढ़ाइ दस संधािन सर बहु बरषई ।
कए सकल भट घायल भयाकुल दे िख िनज बल हरषई ॥

दोहा
तब रघुपित रावन के सीस भुजा सर चाप ।
काटे बहत
ु बढ़े पुिन िजिम तीरथ कर पाप ।९७॥

िसर भुज बा ढ़ दे िख िरपु केर । भालु किपन्ह िरस भई घनेर ॥


मरत न मूढ़ कटे उ भुज सीसा । धाए कोिप भालु भट क सा ॥१॥
बािलतनय मा ित नल नीला । बानरराज दिबद
ु बलसीला ॥
िबटप मह धर कर हं ूहारा । सोइ िगिर त गह किपन्ह सो मारा ॥२॥
एक नखिन्ह िरपु बपुष िबदार । भािग चल हं एक लातन्ह मार ॥
तब नल नील िसरिन्ह चढ़ गयऊ । नखिन्ह िललार िबदारत भयऊ ॥३॥
िधर दे िख िबषाद उर भार । ितन्ह ह धरन कहँु भुजा पसार ॥
गहे न जा हं करिन्ह पर फरह ं । जनु जुग मधुप कमल बन चरह ं ॥४॥
कोिप कू द ौ धरे िस बहोर । मह पटकत भजे भुजा मरोर ॥
पुिन सकोप दस धनु कर लीन्हे । सरिन्ह मािर घायल किप क न्हे ॥५॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 48 - लंकाकांड

हनुमदा द मु िछत किर बंदर । पाइ ूदोष हरष दसकंधर ॥


मु िछत दे िख सकल किप बीरा । जामवंत धायउ रनधीरा ॥६॥
संग भालु भूधर त धार । मारन लगे पचािर पचार ॥
भयउ बु रावन बलवाना । गह पद मह पटकइ भट नाना ॥७॥
दे िख भालुपित िनज दल घाता । कोिप माझ उर मारे िस लाता ॥८॥

छं द
उर लात घात ूचंड लागत िबकल रथ ते मह परा ।
गह भालु बीसहँु कर मनहँु कमलिन्ह बसे िनिस मधुकरा ॥
मु िछत िबलो क बहोिर पद हित भालुपित ूभु प हं गयौ ।
िनिस जािन ःयंदन घािल ते ह तब सूत जतनु करत भयो ॥

दोहा
मु छा िबगत भालु किप सब आए ूभु पास ।
िनिसचर सकल रावन ह घेिर रहे अित ऽास ॥९८॥

मासपारायण, छब्बीसवाँ िवौाम

तेह िनिस सीता प हं जाई । िऽजटा कह सब कथा सुनाई ॥


िसर भुज बा ढ़ सुनत िरपु केर । सीता उर भइ ऽास घनेर ॥१॥
मुख मलीन उपजी मन िचंता । िऽजटा सन बोली तब सीता ॥
होइ ह कहा कहिस कन माता । के ह िबिध मिर ह िबःव दखदाता
ु ॥२॥
रघुपित सर िसर कटे हुँ न मरई । िबिध िबपर त चिरत सब करई ॥
मोर अभा य िजआवत ओह । जे हं हौ हिर पद कमल िबछोह ॥३॥
जे हं कृ त कपट कनक मृग झूठा । अजहँु सो दै व मो ह पर ठा ॥
जे हं िबिध मो ह दख
ु दसह
ु सहाए । लिछमन कहँु कटु बचन कहाए ॥४॥
रघुपित िबरह सिबष सर भार । तक तक मार बार बहु मार ॥
ऐसेहुँ दख
ु जो राख मम ूाना । सोइ िबिध ता ह िजआव न आना ॥५॥
बहु िबिध कर िबलाप जानक । किर किर सुरित कृ पािनधान क ॥
कह िऽजटा सुनु राजकुमार । उर सर लागत मरइ सुरार ॥६॥
ूभु ताते उर हतइ न तेह । एह के दयँ बसित बैदेह ॥७॥

छं द
एह के दयँ बस जानक जानक उर मम बास है ।
मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है ॥
सुिन बचन हरष िबषाद मन अित दे िख पुिन िऽजटाँ कहा ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 49 - लंकाकांड

अब मिर ह िरपु एह िबिध सुन ह सुंदिर तज ह संसय महा ॥


दोहा
काटत िसर होइ ह िबकल छु ट जाइ ह तव यान ।
तब रावन ह दय महँु मिरह हं रामु सुजान ॥९९॥

अस कह बहत
ु भाँित समुझाई । पुिन िऽजटा िनज भवन िसधाई ॥
राम सुभाउ सुिमिर बैदेह । उपजी िबरह िबथा अित तेह ॥१॥
िनिस ह सिस ह िनंदित बहु भाँती । जुग सम भई िसराित न राती ॥
करित िबलाप मन हं मन भार । राम िबरहँ जानक दखार
ु ॥२॥
जब अित भयउ िबरह उर दाहू । फरकेउ बाम नयन अ बाहू ॥
सगुन िबचािर धर मन धीरा । अब िमिलह हं कृ पाल रघुबीरा ॥३॥
इहाँ अधिनिस रावनु जागा । िनज सारिथ सन खीझन लागा ॥
सठ रनभूिम छड़ाइिस मोह । िधग िधग अधम मंदमित तोह ॥४॥
ते हं पद गह बहु िबिध समुझावा । भौ भएँ रथ चढ़ पुिन धावा ॥
सुिन आगवनु दसानन केरा । किप दल खरभर भयउ घनेरा ॥५॥
जहँ तहँ भूधर िबटप उपार । धाए कटकटाइ भट भार ॥६॥

छं द
धाए जो मकट िबकट भालु कराल कर भूधर धरा ।
अित कोप कर हं ूहार मारत भिज चले रजनीचरा ॥
िबचलाइ दल बलवंत क सन्ह घेिर पुिन रावनु िलयो ।
चहँु दिस चपेटिन्ह मािर नखिन्ह िबदािर तनु ब्याकुल कयो ॥

दोहा
दे िख महा मकट ूबल रावन क न्ह िबचार ।
अंतर हत होइ िनिमष महँु कृ त माया िबःतार ॥१००॥

छं द
जब क न्ह ते हं पाषंड । भए ूगट जंतु ूचंड ॥
बेताल भूत िपसाच । कर धर धनु नाराच ॥१॥
जोिगिन गह करबाल । एक हाथ मनुज कपाल ॥
किर स सोिनत पान । नाच हं कर हं बहु गान ॥२॥
ध मा बोल हं घोर । रह पूिर धुिन चहँु ओर ॥
मुख बाइ धाव हं खान । तब लगे कस परान ॥३॥
जहँ जा हं मकट भािग । तहँ बरत दे ख हं आिग ॥
भए िबकल बानर भालु । पुिन लाग बरषै बालु ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 50 - लंकाकांड

जहँ तहँ थ कत किर कस । गजउ बहिर


ु दससीस ॥
लिछमन कपीस समेत । भए सकल बीर अचेत ॥५॥
हा राम हा रघुनाथ । कह सुभट मीज हं हाथ ॥
एह िबिध सकल बल तोिर । ते हं क न्ह कपट बहोिर ॥६॥
ूगटे िस िबपुल हनुमान । धाए गहे पाषान ॥
ितन्ह रामु घेरे जाइ । चहँु दिस ब थ बनाइ ॥७॥
मारहु धरहु जिन जाइ । कटकट हं पूँछ उठाइ ॥
दहँ दिस लँगूर िबराज । ते हं म य कोसलराज ॥८॥

छं द
ते हं म य कोसलराज सुंदर ःयाम तन सोभा लह ।
जनु इं िधनुष अनेक क बर बािर तुंग तमालह ॥
ूभु दे िख हरष िबषाद उर सुर बदत जय जय जय कर ।
रघुबीर एक ह तीर कोिप िनमेष महँु माया हर ॥१॥

माया िबगत किप भालु हरषे िबटप िगिर गह सब फरे ।


सर िनकर छाड़े राम रावन बाहु िसर पुिन मह िगरे ॥
ौीराम रावन समर चिरत अनेक क प जो गावह ं ।
सत सेष सारद िनगम किब तेउ तदिप पार न पावह ं ॥२॥

दोहा
ताके गुन गन कछु कहे जड़मित तुलसीदास ।
िजिम िनज बल अनु प ते माछ उड़इ अकास ॥१०१(क)॥
काटे िसर भुज बार बहु मरत न भट लंकेस ।
ूभु ब ड़त सुर िस मुिन ब्याकुल दे िख कलेस ॥१०१(ख)॥

काटत बढ़ हं सीस समुदाई । िजिम ूित लाभ लोभ अिधकाई ॥


मरइ न िरपु ौम भयउ िबसेषा । राम िबभीषन तन तब दे खा ॥१॥
उमा काल मर जाक ं ईछा । सो ूभु जन कर ूीित पर छा ॥
सुनु सरब य चराचर नायक । ूनतपाल सुर मुिन सुखदायक ॥२॥
नािभकुंड िपयूष बस याक । नाथ िजअत रावनु बल ताक ॥
सुनत िबभीषन बचन कृ पाला । हरिष गहे कर बान कराला ॥३॥
असुभ होन लागे तब नाना । रोव हं खर सृकाल बहु ःवाना ॥
बोल ह खग जग आरित हे तू । ूगट भए नभ जहँ तहँ केतू ॥४॥
दस दिस दाह होन अित लागा । भयउ परब िबनु रिब उपरागा ॥
मंदोदिर उर कंपित भार । ूितमा व हं नयन मग बार ॥५॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 51 - लंकाकांड

छं द
ूितमा द हं पिबपात नभ अित बात बह डोलित मह ।
बरष हं बलाहक िधर कच रज असुभ अित सक को कह ॥
उतपात अिमत िबलो क नभ सुर िबकल बोल ह जय जए ।
सुर सभय जािन कृ पाल रघुपित चाप सर जोरत भए ॥

दोहा
खैिच सरासन ौवन लिग छाड़े सर एकतीस ।
रघुनायक सायक चले मानहँु काल फनीस ॥१०२॥

सायक एक नािभ सर सोषा । अपर लगे भुज िसर किर रोषा ॥


लै िसर बाहु चले नाराचा । िसर भुज हन ंड मह नाचा ॥१॥
धरिन धसइ धर धाव ूचंडा । तब सर हित ूभु कृ त दइु खंडा ॥
गजउ मरत घोर रव भार । कहाँ रामु रन हत पचार ॥२॥
डोली भूिम िगरत दसकंधर । छुिभत िसंधु सिर द गज भूधर ॥
धरिन परे उ ौ खंड बढ़ाई । चािप भालु मकट समुदाई ॥३॥
मंदोदिर आग भुज सीसा । धिर सर चले जहाँ जगद सा ॥
ूिबसे सब िनषंग महु जाई । दे िख सुरन्ह दं द
ु भीं
ु बजाई ॥४॥
तासु तेज समान ूभु आनन । हरषे दे िख संभु चतुरानन ॥
जय जय धुिन पूर ॄ ड
ं ा । जय रघुबीर ूबल भुजदं डा ॥५॥
बरष ह सुमन दे व मुिन बृंदा । जय कृ पाल जय जयित मुकुंदा ॥६॥

छं द
जय कृ पा कंद मुकंद ंद हरन सरन सुखूद ूभो ।
खल दल िबदारन परम कारन का नीक सदा िबभो ॥
सुर सुमन बरष हं हरष संकुल बाज दं द
ु िभ
ु गहगह ।
संमाम अंगन राम अंग अनंग बहु सोभा लह ॥

िसर जटा मुकुट ूसून िबच िबच अित मनोहर राजह ं ।


जनु नीलिगिर पर त ड़त पटल समेत उड़गन
ु ॅाजह ं ॥
भुजदं ड सर कोदं ड फेरत िधर कन तन अित बने ।
जनु रायमुनीं तमाल पर बैठ ं िबपुल सुख आपने ॥

दोहा
कृ पा ि किर ूभु अभय कए सुर बृंद ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 52 - लंकाकांड

भालु कस सब हरषे जय सुख धाम मुकंद ॥१०३॥

पित िसर दे खत मंदोदर । मु िछत िबकल धरिन खिस पर ॥


जुबित बृंद रोवत उठ धा । ते ह उठाइ रावन प हं आई ॥१॥
पित गित दे िख ते कर हं पुकारा । छूटे कच न हं बपुष सँभारा ॥
उर ताड़ना कर हं िबिध नाना । रोवत कर हं ूताप बखाना ॥२॥
तव बल नाथ डोल िनत धरनी । तेज हन पावक सिस तरनी ॥
सेष कमठ सह सक हं न भारा । सो तनु भूिम परे उ भिर छारा ॥३॥
ब न कुबेर सुरेस समीरा । रन सन्मुख धिर काहँु न धीरा ॥
भुजबल िजतेहु काल जम सा । आजु परे हु अनाथ क ना ॥४॥
जगत िब दत तु हार ूभुताई । सुत पिरजन बल बरिन न जाई ॥
राम िबमुख अस हाल तु हारा । रहा न कोउ कुल रोविनहारा ॥५॥
तव बस िबिध ूपंच सब नाथा । सभय दिसप िनत नाव हं माथा ॥
अब तव िसर भुज जंबुक खाह ं । राम िबमुख यह अनुिचत नाह ं ॥६॥
काल िबबस पित कहा न माना । अग जग नाथु मनुज किर जाना ॥७॥

छं द
जान्यो मनुज किर दनुज कानन दहन पावक हिर ःवयं ।
जे ह नमत िसव ॄ ाद सुर िपय भजेहु न हं क नामयं ॥
आजन्म ते परिोह रत पापौघमय तव तनु अयं ।
तु हहू दयो िनज धाम राम नमािम ॄ िनरामयं ॥

दोहा
अहह नाथ रघुनाथ सम कृ पािसंधु न हं आन ।
जोिग बृंद दल
ु भ गित तो ह द िन्ह भगवान ॥१०४॥

मंदोदर बचन सुिन काना । सुर मुिन िस सबिन्ह सुख माना ॥


अज महे स नारद सनकाद । जे मुिनबर परमारथबाद ॥१॥
भिर लोचन रघुपित ह िनहार । ूेम मगन सब भए सुखार ॥
दन करत दे खीं सब नार । गयउ िबभीषनु मन दख
ु भार ॥२॥
बंधु दसा िबलो क दख
ु क न्हा । तब ूभु अनुज ह आयसु द न्हा ॥
लिछमन ते ह बहु िबिध समुझायो । बहिर
ु िबभीषन ूभु प हं आयो ॥३॥
कृ पा ि ूभु ता ह िबलोका । करहु बया पिरहिर सब सोका ॥
क िन्ह बया ूभु आयसु मानी । िबिधवत दे स काल िजयँ जानी ॥४॥

दोहा

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 53 - लंकाकांड

मंदोदर आद सब दे इ ितलांजिल ता ह ।
भवन गई रघुपित गुन गन बरनत मन मा ह ॥१०५॥

आइ िबभीषन पुिन िस नायो । कृ पािसंधु तब अनुज बोलायो ॥


तु ह कपीस अंगद नल नीला । जामवंत मा ित नयसीला ॥१॥
सब िमिल जाहु िबभीषन साथा । सारे हु ितलक कहे उ रघुनाथा ॥
िपता बचन म नगर न आवउँ । आपु सिरस किप अनुज पठावउँ ॥२॥
तुरत चले किप सुिन ूभु बचना । क न्ह जाइ ितलक क रचना ॥
सादर िसंहासन बैठार । ितलक सािर अःतुित अनुसार ॥३॥
जोिर पािन सबह ं िसर नाए । स हत िबभीषन ूभु प हं आए ॥
तब रघुबीर बोिल किप लीन्हे । कह िूय बचन सुखी सब क न्हे ॥४॥

छं द
कए सुखी कह बानी सुधा सम बल तु हार िरपु हयो ।
पायो िबभीषन राज ितहँु पुर जसु तु हारो िनत नयो ॥
मो ह स हत सुभ क रित तु हार परम ूीित जो गाइह ।
संसार िसंधु अपार पार ूयास िबनु नर पाइह ॥

दोहा
ूभु के बचन ौवन सुिन न हं अघा हं किप पुंज ।
बार बार िसर नाव हं गह हं सकल पद कंज ॥१०६॥

पुिन ूभु बोिल िलयउ हनुमाना । लंका जाहु कहे उ भगवाना ॥


समाचार जान क ह सुनावहु । तासु कुसल लै तु ह चिल आवहु ॥१॥
तब हनुमंत नगर महँु आए । सुिन िनिसचर िनसाचर धाए ॥
बहु ूकार ितन्ह पूजा क न्ह । जनकसुता दे खाइ पुिन द न्ह ॥२॥
दरू ह ते ूनाम किप क न्हा । रघुपित दत
ू जानक ं चीन्हा ॥
कहहु तात ूभु कृ पािनकेता । कुसल अनुज किप सेन समेता ॥३॥
सब िबिध कुसल कोसलाधीसा । मातु समर जी यो दससीसा ॥
अिबचल राजु िबभीषन पायो । सुिन किप बचन हरष उर छायो ॥४॥

छं द
अित हरष मन तन पुलक लोचन सजल कह पुिन पुिन रमा ।
का दे उँ तो ह ऽेलोक महँु किप कमिप न हं बानी समा ॥
सुनु मातु म पायो अिखल जग राजु आजु न संसयं ।
रन जीित िरपुदल बंधु जुत पःयािम राममनामयं ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 54 - लंकाकांड

दोहा
सुनु सुत सदगुन सकल तव दयँ बसहँु हनुमंत ।
सानुकूल कोसलपित रहहँु समेत अनंत ॥१०७॥

अब सोइ जतन करहु तु ह ताता । दे ख नयन ःयाम मृद ु गाता ॥


तब हनुमान राम प हं जाई । जनकसुता कै कुसल सुनाई ॥१॥
सुिन संदेसु भानुकुलभूषन । बोिल िलए जुबराज िबभीषन ॥
मा तसुत के संग िसधावहु । सादर जनकसुत ह लै आवहु ॥२॥
तुरत हं सकल गए जहँ सीता । सेव हं सब िनिसचर ं िबनीता ॥
बेिग िबभीषन ितन्ह ह िसखायो । ितन्ह बहु िबिध म जन करवायो ॥३॥
बहु ूकार भूषन प हराए । िसिबका िचर सािज पुिन याए ॥
ता पर हरिष चढ़ बैदेह । सुिमिर राम सुखधाम सनेह ॥४॥
बेतपािन र छक चहँु पासा । चले सकल मन परम हलासा
ु ॥
दे खन भालु कस सब आए । र छक कोिप िनवारन धाए ॥५॥
कह रघुबीर कहा मम मानहु । सीत ह सखा पयाद आनहु ॥
दे खहँु किप जननी क ना । िबहिस कहा रघुनाथ गोसाई ॥६॥
सुिन ूभु बचन भालु किप हरषे । नभ ते सुरन्ह सुमन बहु बरषे ॥
सीता ूथम अनल महँु राखी । ूगट क िन्ह चह अंतर साखी ॥७॥

दोहा
ते ह कारन क नािनिध कहे कछुक दबाद
ु ।
सुनत जातुधानीं सब लागीं करै िबषाद ॥१०८॥

ूभु के बचन सीस धिर सीता । बोली मन बम बचन पुनीता ॥


लिछमन होहु धरम के नेगी । पावक ूगट करहु तु ह बेगी ॥१॥
सुिन लिछमन सीता कै बानी । िबरह िबबेक धरम िनित सानी ॥
लोचन सजल जोिर कर दोऊ । ूभु सन कछु क ह सकत न ओऊ ॥२॥
दे िख राम ख लिछमन धाए । पावक ूग ट काठ बहु लाए ॥
पावक ूबल दे िख बैदेह । दयँ हरष न हं भय कछु तेह ॥३॥
ज मन बच बम मम उर माह ं । तिज रघुबीर आन गित नाह ं ॥
तौ कृ सानु सब कै गित जाना । मो कहँु होउ ौीखंड समाना ॥४॥

छं द
ौीखंड सम पावक ूबेस कयो सुिमिर ूभु मैिथली ।
जय कोसलेस महे स बं दत चरन रित अित िनमली ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 55 - लंकाकांड

ूितिबंब अ लौ कक कलंक ूचंड पावक महँु जरे ।


ूभु चिरत काहँु न लखे नभ सुर िस मुिन दे ख हं खरे ॥१॥

धिर प पावक पािन गह ौी स य ौुित जग िब दत जो ।


िजिम छ रसागर इं दरा राम ह समप आिन सो ॥
सो राम बाम िबभाग राजित िचर अित सोभा भली ।
नव नील नीरज िनकट मानहँु कनक पंकज क कली ॥२॥

दोहा
बरष हं सुमन हरिष सुन बाज हं गगन िनसान ।
गाव हं कंनर सुरबधू नाच हं चढ़ ं िबमान ॥१०९(क)॥
जनकसुता समेत ूभु सोभा अिमत अपार ।
दे िख भालु किप हरषे जय रघुपित सुख सार ॥१०९(ख)॥

तब रघुपित अनुसासन पाई । मातिल चलेउ चरन िस नाई ॥


आए दे व सदा ःवारथी । बचन कह हं जनु परमारथी ॥१॥
दन बंधु दयाल रघुराया । दे व क िन्ह दे वन्ह पर दाया ॥
िबःव िोह रत यह खल कामी । िनज अघ गयउ कुमारगगामी ॥२॥
तु ह सम प ॄ अिबनासी । सदा एकरस सहज उदासी ॥
अकल अगुन अज अनघ अनामय । अिजत अमोघसि क नामय ॥३॥
मीन कमठ सूकर नरहर । बामन परसुराम बपु धर ॥
जब जब नाथ सुरन्ह दखु
ु पायो । नाना तनु धिर तु हइँ नसायो ॥४॥
यह खल मिलन सदा सुरिोह । काम लोभ मद रत अित कोह ॥
अधम िसरोमिन तव पद पावा । यह हमरे मन िबसमय आवा ॥५॥
हम दे वता परम अिधकार । ःवारथ रत ूभु भगित िबसार ॥
भव ूबाहँ संतत हम परे । अब ूभु पा ह सरन अनुसरे ॥६॥

दोहा
किर िबनती सुर िस सब रहे जहँ तहँ कर जोिर ।
अित सूेम तन पुल क िबिध अःतुित करत बहोिर ॥११०॥

छं द
जय राम सदा सुखधाम हरे । रघुनायक सायक चाप धरे ॥
भव बारन दारन िसंह ूभो । गुन सागर नागर नाथ िबभो ॥
तन काम अनेक अनूप छबी । गुन गावत िस मुनींि कबी ॥
जसु पावन रावन नाग महा । खगनाथ जथा किर कोप गहा ॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 56 - लंकाकांड

जन रं जन भंजन सोक भयं । गतबोध सदा ूभु बोधमयं ॥


अवतार उदार अपार गुनं । मह भार िबभंजन यानघनं ॥
अज ब्यापकमेकमना द सदा । क नाकर राम नमािम मुदा ॥
रघुबंस िबभूषन दषन
ू हा । कृ त भूप िबभीषन दन रहा ॥
गुन यान िनधान अमान अजं । िनत राम नमािम िबभुं िबरजं ॥
भुजदं ड ूचंड ूताप बलं । खल बृंद िनकंद महा कुसलं ॥
िबनु कारन दन दयाल हतं । छिब धाम नमािम रमा स हतं ॥
भव तारन कारन काज परं । मन संभव दा न दोष हरं ॥
सर चाप मनोहर ऽोन धरं । जरजा न लोचन भूपबरं ॥
सुख मं दर सुंदर ौीरमनं । मद मार मुधा ममता समनं ॥
अनव अखंड न गोचर गो । सब प सदा सब होइ न गो ॥
इित बेद बदं ित न दं तकथा । रिब आतप िभन्नमिभन्न जथा ॥
कृ तकृ य िबभो सब बानर ए । िनरखंित तवानन सादर ए ॥
िधग जीवन दे व सर र हरे । तव भि िबना भव भूिल परे ॥
अब दन दयाल दया किरऐ । मित मोिर िबभेदकर हिरऐ ॥
जे ह ते िबपर त बया किरऐ । दख
ु सो सुख मािन सुखी चिरऐ ॥
खल खंडन मंडन र य छमा । पद पंकज सेिवत संभु उमा ॥
नृप नायक दे बरदानिमदं । चरनांबुज ूेम सदा सुभदं ॥

दोहा
िबनय क िन्ह चतुरानन ूेम पुलक अित गात ।
सोभािसंधु िबलोकत लोचन नह ं अघात ॥१११॥

ते ह अवसर दसरथ तहँ आए । तनय िबलो क नयन जल छाए ॥


अनुज स हत ूभु बंदन क न्हा । आिसरबाद िपताँ तब द न्हा ॥१॥
तात सकल तव पुन्य ूभाऊ । जी य अजय िनसाचर राऊ ॥
सुिन सुत बचन ूीित अित बाढ़ । नयन सिलल रोमाविल ठाढ़ ॥२॥
रघुपित ूथम ूेम अनुमाना । िचतइ िपत ह द न्हे उ ढ़ याना ॥
ताते उमा मो छ न हं पायो । दसरथ भेद भगित मन लायो ॥३॥
सगुनोपासक मो छ न लेह ं । ितन्ह कहँु राम भगित िनज दे ह ं ॥
बार बार किर ूभु ह ूनामा । दसरथ हरिष गए सुरधामा ॥४॥

दोहा
अनुज जानक स हत ूभु कुसल कोसलाधीस ।
सोभा दे िख हरिष मन अःतुित कर सुर ईस ॥११२॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 57 - लंकाकांड

छं द
जय राम सोभा धाम । दायक ूनत िबौाम ॥
धृत ऽोन बर सर चाप । भुजदं ड ूबल ूताप ॥१॥
जय दषनािर
ू खरािर । मदन िनसाचर धािर ॥
यह दु मारे उ नाथ । भए दे व सकल सनाथ ॥२॥
जय हरन धरनी भार । म हमा उदार अपार ॥
जय रावनािर कृ पाल । कए जातुधान िबहाल ॥३॥
लंकेस अित बल गब । कए बःय सुर गंधब ॥
मुिन िस नर खग नाग । हठ पंथ सब क लाग ॥४॥
परिोह रत अित दु । पायो सो फलु पािप ॥
अब सुनहु दन दयाल । राजीव नयन िबसाल ॥५॥
मो ह रहा अित अिभमान । न हं कोउ मो ह समान ॥
अब दे िख ूभु पद कंज । गत मान ूद दख
ु पुंज ॥६॥
कोउ ॄ िनगुन याव । अब्य जे ह ौुित गाव ॥
मो ह भाव कोसल भूप । ौीराम सगुन स प ॥७॥
बैदे ह अनुज समेत । मम दयँ करहु िनकेत ॥
मो ह जािनए िनज दास । दे भि रमािनवास ॥८॥

छं द
दे भि रमािनवास ऽास हरन सरन सुखदायकं ।
सुख धाम राम नमािम काम अनेक छिब रघुनायकं ॥
सुर बृंद रं जन ंद भंजन मनुज तनु अतुिलतबलं ।
ॄ ाद संकर सेब्य राम नमािम क ना कोमलं ॥

दोहा
अब किर कृ पा िबलो क मो ह आयसु दे हु कृ पाल ।
काह कर सुिन िूय बचन बोले द नदयाल ॥११३॥

सुनु सुरपित किप भालु हमारे । परे भूिम िनसचरिन्ह जे मारे ॥


मम हत लािग तजे इन्ह ूाना । सकल िजआउ सुरेस सुजाना ॥१॥
सुनु खगेस ूभु कै यह बानी । अित अगाध जान हं मुिन यानी ॥
ूभु सक िऽभुअन मािर िजआई । केवल सब ह द िन्ह बड़ाई ॥२॥
सुधा बरिष किप भालु िजआए । हरिष उठे सब ूभु प हं आए ॥
सुधाबृि भै दहु ु दल ऊपर । िजए भालु किप न हं रजनीचर ॥३॥
रामाकार भए ितन्ह के मन । मु भए छूटे भव बंधन ॥
सुर अंिसक सब किप अ र छा । िजए सकल रघुपित कं ईछा ॥४॥

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 58 - लंकाकांड

राम सिरस को दन हतकार । क न्हे मुकुत िनसाचर झार ॥


खल मल धाम काम रत रावन । गित पाई जो मुिनबर पाव न ॥५॥

दोहा
सुमन बरिष सब सुर चले चढ़ चढ़ िचर िबमान ।
दे िख सुअवस ूभु प हं आयउ संभु सुजान ॥११४(क)॥
परम ूीित कर जोिर जुग निलन नयन भिर बािर ।
पुल कत तन गदगद िगराँ िबनय करत िऽपुरािर ॥११४(ख)॥

मामिभर य रघुकुल नायक । धृत बर चाप िचर कर सायक ॥


मोह महा घन पटल ूभंजन । संसय िबिपन अनल सुर रं जन ॥१॥
अगुन सगुन गुन मं दर सुंदर । ॅम तम ूबल ूताप दवाकर ॥
काम बोध मद गज पंचानन । बसहु िनरं तर जन मन कानन ॥२॥
िबषय मनोरथ पुंज कंज बन । ूबल तुषार उदार पार मन ॥
भव बािरिध मंदर परमं दर । बारय तारय संसिृ त दःतर
ु ॥३॥
ःयाम गात राजीव िबलोचन । दन बंधु ूनतारित मोचन ॥
अनुज जानक स हत िनरं तर । बसहु राम नृप मम उर अंतर ॥४॥
मुिन रं जन मह मंडल मंडन । तुलिसदास ूभु ऽास िबखंडन ॥५॥

दोहा
नाथ जब हं कोसलपुर ं होइ ह ितलक तु हार ।
कृ पािसंधु म आउब दे खन चिरत उदार ॥११५॥

किर िबनती जब संभु िसधाए । तब ूभु िनकट िबभीषनु आए ॥


नाइ चरन िस कह मृद ु बानी । िबनय सुनहु ूभु सारँ गपानी ॥१॥
सकुल सदल ूभु रावन मार यो । पावन जस िऽभुवन िबःतार यो ॥
दन मलीन हन मित जाती । मो पर कृ पा क िन्ह बहु भाँती ॥२॥
अब जन गृह पुनीत ूभु क जे । म जनु किरअ समर ौम छ जे ॥
दे िख कोस मं दर संपदा । दे हु कृ पाल किपन्ह कहँु मुदा ॥३॥
सब िबिध नाथ मो ह अपनाइअ । पुिन मो ह स हत अवधपुर जाइअ ॥
सुनत बचन मृद ु द नदयाला । सजल भए ौ नयन िबसाला ॥४॥

दोहा
तोर कोस गृह मोर सब स य बचन सुनु ॅात ।
भरत दसा सुिमरत मो ह िनिमष क प सम जात ॥११६(क)॥
तापस बेष गात कृ स जपत िनरं तर मो ह ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 59 - लंकाकांड

दे ख बेिग सो जतनु क सखा िनहोरउँ तो ह ॥११६(ख)॥


बीत अविध जाउँ ज िजअत न पावउँ बीर ।
सुिमरत अनुज ूीित ूभु पुिन पुिन पुलक सर र ॥११६(ग)॥
करे हु क प भिर राजु तु ह मो ह सुिमरे हु मन मा हं ।
पुिन मम धाम पाइहहु जहाँ संत सब जा हं ॥११६(घ)॥

सुनत िबभीषन बचन राम के । हरिष गहे पद कृ पाधाम के ॥


बानर भालु सकल हरषाने । गह ूभु पद गुन िबमल बखाने ॥१॥
बहिर
ु िबभीषन भवन िसधायो । मिन गन बसन िबमान भरायो ॥
लै पुंपक ूभु आग राखा । हँ िस किर कृ पािसंधु तब भाषा ॥२॥
चढ़ िबमान सुनु सखा िबभीषन । गगन जाइ बरषहु पट भूषन ॥
नभ पर जाइ िबभीषन तबह । बरिष दए मिन अंबर सबह ॥३॥
जोइ जोइ मन भावइ सोइ लेह ं । मिन मुख मेिल डािर किप दे ह ं ॥
हँ से रामु ौी अनुज समेता । परम कौतुक कृ पा िनकेता ॥४॥

दोहा
मुिन जे ह यान न पाव हं नेित नेित कह बेद ।
कृ पािसंधु सोइ किपन्ह सन करत अनेक िबनोद ॥११७(क)॥
उमा जोग जप दान तप नाना मख ॄत नेम ।
राम कृ पा नह कर हं तिस जिस िनंकेवल ूेम ॥११७(ख)॥

भालु किपन्ह पट भूषन पाए । प हिर प हिर रघुपित प हं आए ॥


नाना िजनस दे िख सब क सा । पुिन पुिन हँ सत कोसलाधीसा ॥१॥
िचतइ सबिन्ह पर क िन्ह दाया । बोले मृदल
ु बचन रघुराया ॥
तु हर बल म रावनु मार यो । ितलक िबभीषन कहँ पुिन सार यो ॥२॥
िनज िनज गृह अब तु ह सब जाहू । सुिमरे हु मो ह डरपहु जिन काहू ॥
सुनत बचन ूेमाकुल बानर । जोिर पािन बोले सब सादर ॥३॥
ूभु जोइ कहहु तु ह ह सब सोहा । हमरे होत बचन सुिन मोहा ॥
दन जािन किप कए सनाथा । तु ह ऽेलोक ईस रघुनाथा ॥४॥
सुिन ूभु बचन लाज हम मरह ं । मसक कहँू खगपित हत करह ं ॥
दे िख राम ख बानर र छा । ूेम मगन न हं गृह कै ईछा ॥५॥

दोहा
ूभु ूेिरत किप भालु सब राम प उर रािख ।
हरष िबषाद स हत चले िबनय िबिबध िबिध भािष ॥११८(क)॥
किपपित नील र छपित अंगद नल हनुमान ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 60 - लंकाकांड

स हत िबभीषन अपर जे जूथप किप बलवान ॥११८(ख)॥


कह न सक हं कछु ूेम बस भिर भिर लोचन बािर ।
सन्मुख िचतव हं राम तन नयन िनमेष िनवािर ॥११८(ग)॥

अितसय ूीित दे ख रघुराई । िलन्हे सकल िबमान चढ़ाई ॥


मन महँु िबू चरन िस नायो । उ र दिस ह िबमान चलायो ॥१॥
चलत िबमान कोलाहल होई । जय रघुबीर कहइ सबु कोई ॥
िसंहासन अित उ च मनोहर । ौी समेत ूभु बैठै ता पर ॥२॥
राजत रामु स हत भािमनी । मे सृंग जनु घन दािमनी ॥
िचर िबमानु चलेउ अित आतुर । क न्ह सुमन बृि हरषे सुर ॥३॥
परम सुखद चिल िऽिबध बयार । सागर सर सिर िनमल बार ॥
सगुन हो हं सुंदर चहँु पासा । मन ूसन्न िनमल नभ आसा ॥४॥
कह रघुबीर दे खु रन सीता । लिछमन इहाँ ह यो इँ िजीता ॥
हनूमान अंगद के मारे । रन मह परे िनसाचर भारे ॥५॥
कुंभकरन रावन ौ भाई । इहाँ हते सुर मुिन दखदाई
ु ॥६॥

दोहा
इहाँ सेतु बाँ यो अ थापेउँ िसव सुख धाम ।
सीता स हत कृ पािनिध संभु ह क न्ह ूनाम ॥११९(क)॥
जहँ जहँ कृ पािसंधु बन क न्ह बास िबौाम ।
सकल दे खाए जान क ह कहे सबिन्ह के नाम ॥११९(ख)॥

तुरत िबमान तहाँ चिल आवा । दं डक बन जहँ परम सुहावा ॥


कुंभजा द मुिननायक नाना । गए रामु सब क अःथाना ॥१॥
सकल िरिषन्ह सन पाइ असीसा । िचऽकूट आए जगद सा ॥
तहँ किर मुिनन्ह केर संतोषा । चला िबमानु तहाँ ते चोखा ॥२॥
बहिर
ु राम जान क ह दे खाई । जमुना किल मल हरिन सुहाई ॥
पुिन दे खी सुरसर पुनीता । राम कहा ूनाम क सीता ॥३॥
तीरथपित पुिन दे खु ूयागा । िनरखत जन्म को ट अघ भागा ॥
दे खु परम पाविन पुिन बेनी । हरिन सोक हिर लोक िनसेनी ॥४॥
पुिन दे खु अवधपुर अित पाविन । िऽिबध ताप भव रोग नसाविन ॥५॥

दोहा
सीता स हत अवध कहँु क न्ह कृ पाल ूनाम ।
सजल नयन तन पुल कत पुिन पुिन हरिषत राम ॥१२०(क)॥
पुिन ूभु आइ िऽबेनीं हरिषत म जनु क न्ह ।

www.swargarohan.org
रामचिरतमानस - 61 - लंकाकांड

किपन्ह स हत िबून्ह कहँु दान िबिबध िबिध द न्ह ॥१२०(ख)॥

ूभु हनुमंत ह कहा बुझाई । धिर बटु प अवधपुर जाई ॥


भरत ह कुसल हमािर सुनाएहु । समाचार लै तु ह चिल आएहु ॥१॥
तुरत पवनसुत गवनत भयउ । तब ूभु भर ाज प हं गयऊ ॥
नाना िबिध मुिन पूजा क न्ह । अःतुती किर पुिन आिसष द न्ह ॥२॥
मुिन पद बं द जुगल कर जोर । चढ़ िबमान ूभु चले बहोर ॥
इहाँ िनषाद सुना ूभु आए । नाव नाव कहँ लोग बोलाए ॥३॥
सुरसिर नािघ जान तब आयो । उतरे उ तट ूभु आयसु पायो ॥
तब सीताँ पूजी सुरसर । बहु ूकार पुिन चरनिन्ह पर ॥४॥
द िन्ह असीस हरिष मन गंगा । सुंदिर तव अ हवात अभंगा ॥
सुनत गुहा धायउ ूेमाकुल । आयउ िनकट परम सुख संकुल ॥५॥
ूभु ह स हत िबलो क बैदेह । परे उ अविन तन सुिध न हं तेह ॥
ूीित परम िबलो क रघुराई । हरिष उठाइ िलयो उर लाई ॥६॥

छं द
िलयो दयँ लाइ कृ पा िनधान सुजान रायँ रमापती ।
बैठािर परम समीप बूझी कुसल सो कर बीनती ।
अब कुसल पद पंकज िबलो क िबरं िच संकर सेब्य जे ।
सुख धाम पूरनकाम राम नमािम राम नमािम ते ॥१॥

सब भाँित अधम िनषाद सो हिर भरत य उर लाइयो ।


मितमंद तुलसीदास सो ूभु मोह बस िबसराइयो ॥
यह रावनािर चिरऽ पावन राम पद रितूद सदा ।
कामा दहर िब यानकर सुर िस मुिन गाव हं मुदा ॥२॥

दोहा
समर िबजय रघुबीर के चिरत जे सुन हं सुजान ।
िबजय िबबेक िबभूित िनत ितन्ह ह दे हं भगवान ॥१२१(क)॥
यह किलकाल मलायतन मन किर दे खु िबचार ।
ौीरघुनाथ नाम तिज ना हन आन अधार ॥१२१(ख)॥

मासपारायण, स ाईसवाँ िवौाम

इित ौीमिामचिरतमानसे सकलकिलकलुषिव वंसने ष ः सोपानः समा ः ।

लंकाकाण्ड समा

www.swargarohan.org

Anda mungkin juga menyukai