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अष्‍टकममः

जैन‍धमम‍के‍अनुसार‍अष्‍ट‍कमम‍ये‍हैं-‍
1.‍ज्ञानावरणीय‍कमम:-‍संतों‍व‍गुरुजनों‍का‍अपमान‍तथा‍उनके‍प्रतत‍ईष्‍या‍का‍भाव‍रखना।‍
2.‍ दर्मनावरणीय‍ कमम:-‍ तदव्‍यांगों‍ के‍ प्रतत‍ मानवीय‍ संवेदनाओं‍ की‍ कमी‍ तथा‍ इंतियों‍ का‍
दुरूपयोग‍करना।‍
3.‍वेदनीय‍कमम:-भौततक‍सुखों‍के‍प्रतत‍लगाव‍और‍उसके‍प्राप्‍त‍न‍होने‍पर‍दुखी‍होना‍।‍
4.‍ मोहनीय‍ कमम:-‍ अपने‍ स्‍वरूप‍ को‍ भूलकर‍ अपने‍ से‍ जुडी‍ अन्‍
य‍ चीजों,‍ भोगों‍ आतद‍ में
लुभाया‍जाना।‍
5.आयु‍कमम:-‍इस‍जीवन‍के‍तलए‍तनधातरत‍कमम,‍तजन्‍
हें‍हर‍हाल‍में‍भोगना‍होता‍है।‍‍
6.नाम‍कमम:-‍मनुष्‍य‍के‍‍रूप, रंग,‍स्वभाव, चाल-ढाल, आवाज‍आतद‍व्यतततत्व‍के‍तनधारक‍
कमम।‍
7.गोत्र‍कमम:-‍जातत, कुल, रूप, बल, तपस्या, ज्ञान, उपलत्यों‍और‍स्वातमत्व‍का‍अहंकार‍।
8.‍अंतराय‍कमम:-‍तकसी‍को‍र्ुभ‍कमों‍तथा‍भोजन‍का‍उपभोग करने‍आतद‍से‍रोकना‍।

तवस्‍
ततृ ‍तववरणः‍‍
1.‍ज्ञानावरणीय‍कमम:-
ज्ञान‍ देनेवाले‍ संतों‍ व‍ गुरुजनों‍ का‍ अपमान,‍ तनंदा,‍ तवरोध‍ करना,‍ उनके‍ प्रतत‍ ईष्‍या‍ का‍ भाव‍
रखना,‍ उनका‍ उपकार‍ न‍ मानना,‍ उनसे‍ व्‍यथम‍ का‍ वाद-तववाद‍ करना,‍ दूसरों‍ को‍ ज्ञान‍ प्राप्‍त‍
करने‍में‍बाधा‍पहुंचाना।‍
2.‍दर्मनावरणीय‍कमम:-
तवकलांगों‍के‍प्रतत‍मानवीय‍संवेदनाओं‍ की‍कमी,‍तमथ्या‍मान्यताओं‍ का‍प्रततपादन‍करना, पंच‍
इंतियों‍का‍दुरूपयोग‍करना, परोपकारी‍व्यवहार‍मे‍कमी,‍अत्यतधक‍तनिा‍आलस्य‍आतद।
3.‍वेदनीय‍कमम:-
जीव‍का‍भौततक‍सुखों‍के‍प्रतत‍लगाव‍और‍उसके‍प्राप्‍त‍न‍होने‍ पर‍दुखी‍होना‍।‍दान‍प्रवृति
का‍ अभाव, स्वाथीपन‍ आतद‍ से‍ जीवन‍ में‍ अर्ांतत क्रूरता‍ आतद‍ प्रकट‍ होते,‍ जबतक‍ दान,
धातममक रृद्धा‍आतद‍के‍कारण‍प्रर्ंसा‍व प्रततष्ठा‍की‍प्रातप्त होती‍है,‍यह‍सभी‍सुख‍क्षतणक‍
होने‍के‍कारण‍इनके‍पतरणम‍कटु होते‍हैं।
4.‍मोहनीय‍कमम:-
जैसे‍ नर्ा‍कर‍लेने‍ पर‍व्यततत को‍होर्‍नहीं‍रहता‍और‍वह‍तहत-अतहत‍का‍तवचार‍नहीं‍कर‍
सकता उसी‍प्रकार मोहनीय‍कमम‍ से‍ आत्मा‍अपने‍ को‍भूलकर‍अपने‍ से‍ जुडी‍चीजों‍में लुभा‍
जाती‍है।‍जीव‍भोगों‍में‍ही‍सुख‍मानने‍लगता‍है। तकसी‍जीव‍की हत्या‍करना, महापुरूषों‍और‍
गुरूओं‍ की‍ तनंदा‍ करना,‍ काम, क्रोध, अहंकार, लोभ, राग, द्वेष, कपट‍ आतद‍ मनोतवकार‍ व‍
यौनाकषमण, वेश्यागमन, बलात्कार‍आतद‍तवकृततयाँ मोहनीय‍कमम‍हैं‍।
5.आयु‍कमम:-
इस‍ जीवन‍(आयु)‍के‍तलए‍तनधातरत‍कमम,‍ तजन्‍
हें‍ हर‍हाल‍में‍ भोगना‍होता‍है।‍इनमें‍ तहंसक‍
कमम, संचय‍ वृति, मनुष्य-पर्ु‍ की‍ हत्या करना, नर्ीले‍ पदाथों‍ का‍ सेवन,‍ कपट, असत्य‍
भाषण, नाप-तौल‍में बेईमानी‍आतद‍के‍अलावा‍सरलता, तवनय, करूणा, अहंकार,‍संयम‍का‍
पालन,‍तपस्या‍भी‍र्ातमल‍हैं‍।‍ इन्‍
हें‍भोगे‍तबना‍मौत‍नहीं‍आ‍सकती।‍
6.नाम‍कमम:-
नामकमम‍ के‍कारण‍जीव‍की तवतभन्न‍प्रकार‍के‍र्रीर, गतत, जातत, रूप‍व‍रंग‍की‍रचना‍होती‍
है।‍ये‍अच्‍छ‍े या‍बुरे‍स्‍वभाव‍के‍तलए‍उिरदायी‍हैं‍।‍ये‍जीव‍के‍रूप, रंग‍स्वभाव, चाल-ढाल,
आवाज‍आतद‍व्यतततत्व‍के‍तनधारक‍हैं।‍
7.गोत्र‍कमम:-
इनमें‍ जातत, कुल, रूप, बल, तपस्या, ज्ञान, उपलत्याँ‍ और‍ स्वातमत्व‍ का‍ अहंकार‍ करना‍
परतनन्दा, आत्मप्रर्ंसा, देव, गुरू, र्ास्त्र‍का‍अतवनय‍आतद‍कमम‍आते‍हैं‍।‍‍
8.‍अंतराय‍कमम:-
तकसी‍को‍दान‍देने‍से‍रोकना, तकसी‍को‍लाभ‍न होने‍देना, तकसी‍के‍धातममक‍कायों‍में‍बाधा‍
डालना, तकसी‍को‍भोजन‍का‍उपभोग नहीं‍करने‍ देना‍आतद‍। ‍इन‍के‍कारण‍जीव‍के‍पास‍
भोग-उपभोग‍की‍सामग्री‍मौजूद‍होने‍पर भी‍वह‍उसका‍भोग-उपभोग‍नही‍कर‍पाता‍है।‍

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