करौ कृपा ीरा धका, बनव बारंबार। बनी रहे मृ त मधुर सु च मंगलमय सुखसार।।
इस तो के पाठ क जो फल ु त बताई गयी है , उसे अनेक उ चको ट के संत व स चे साधक ारा अपने जीवन
म अनुभव कया गया है।
ीराधा कृपाकटा तो ( ह द अनुवाद स हत)
वराभय फुर करे भूतस पदालये, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥२।।
भावाथ–आप अशोक क वृ -लता से बने ए मं दर म वराजमान ह, मूंग,े अ न तथा लाल
प लव के समान अ ण का तयु कोमल चरण वाली ह, आप भ को अभी वरदान दे ने
वाली तथा अभयदान दे ने के लए सदै व उ सु क रहने वाली ह। आपके हाथ सु दर कमल के समान
ह, आप अपार ऐ य क आलय (भंडार), वा मनी ह, हे सव री माँ! आप मुझे कब अपने
कृपाकटा का अ धकारी बनाओगी?
मदो मदा तयौवने मोद मानम डते, यानुरागरं जते कला वलासप डते।
सलोलनीलकु तले सूनगु छगु फते, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥८।।
भावाथ–आप वण क माला से वभू षत ह तथा तीन रेखा यु शंख के समान सु दर क ठ
वाली ह, आपने अपने क ठ म कृ त के तीन गुण का मंगलसू धारण कया आ है , जसम तीन
रंग के र न का भूषण लटक रहा है। र न से दे द यमान करण नकल रही ह। आपके काले
घुंघराले केश द पु प के गु छ से अलंकृत ह, हे सव र क र तन दनी ! आप मुझे कब अपनी
कृपा से दे खकर अपने चरणकमल के दशन का अ धकारी बनाओगी?
अपार स वृ द धस पदांगल
ु ीनखे, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥११।।
भावाथ–अनंत को ट वैकु ठ क वा मनी ील मीजी आपक पूजा करती ह, ीपावतीजी,
इ ाणीजी और सर वतीजी ने भी आपक चरण व दना कर वरदान पाया है । आपके चरण-कमल
क एक उंगली के नख का यान करने मा से अपार स क ा त होती है , हे क णामयी माँ!
आप मुझे कब अपनी वा स यरस भरी से दे खोगी?
इतीदम त
ु तवं नश य भानुन दनी, करोतु संततं जनं कृपाकटा भाजनम्।
तो पाठ करने क व ध व फल ु त
राकायां च सता यां दश यां च वशु या, एकाद यां योद यां य: पठे साधक: सुधी।