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ीराधाकृ ण के सा ात् दशन कराने वाला ीराधा कृपाकटा तवराज

करौ कृपा ीरा धका, बनव बारंबार। बनी रहे मृ त मधुर सु च मंगलमय सुखसार।।

ा नत बढ़ती रहै, बढ़ै न य व ास। अपण ह अवशेष अब जीवन के सब ास।।


कृ णव लभा ीराधा परमा मा ीकृ ण क आ मा व जीवन व पा ह। परम का वाम अ ाग ही इनका व प
है । वे ीकृ ण क आ ा दनी श और सुवण क -सी का त वाली ह। दे वी भागवत म कहा गया है–

‘ ीराधा ीकृ ण के ाण क अ ध ा ी दे वी ह। कारण यह है क परमा मा ीकृ ण उनके अधीन ह। वे रासे री


सदा उनके समीप रहती ह। वे न रह तो ीकृ ण टक ही नह ।’

गोलोक म ीराधा गोपीवेष म रासम डल म वराजती ह। भ पर कृपा करने के लए ही इ ह ने अवतार धारण


कया है । भगवान ीकृ ण के भ को दा य-भ दान करने वाली ीराधा ही ह य क वे सभी स प य म
दा य-भ को ही े मानती ह। ीराधा के अनेकानेक गुण म एक गुण ‘क णापूणा’ (क णा से पूण दयवाली)
है । कृ ण या ीराधा क क णा क सीमा नह है । वे अपने कृपाकटा से–नयन क कोर से नहार भी लेती ह
तो मनु य के तीन ताप का नाश हो जाता ह। भगवान ीकृ ण के साथ ीराधा क न य आराधना-उपासना करके
मनु य स चे अथ म अपना जीवन सफल कर सकता है।

ीराधा कृपाकटा तवराज : तो का राजा


ीराधाजी क तु तय म ीराधा कृपाकटा तो का थान सव प र है। इसी लए इसे ‘ ीराधा कृपाकटा
तवराज’ नाम दया गया है अथात्  तो का राजा। जभ म इस तु त को अ य त स मान का थान ा त है।
यह तो ब त ाचीन है । भ क ऐसी मा यता है क यह तो  ‘ऊ वामनायत ’ से लया गया है। जवा सय
क यह परम य तु त है । इसका गायन वृ दावन के व भ म दर म न य कया जाता है। इस तो के पाठ से
साधक न य नकुंजे र ीराधा और उनके ाणव लभ न य नकुंजे र जे न दन ीकृ ण क सुर-मु न लभ
कृपा साद अनायास ही ा त कर लेता है ।

उ , ना भ, हय क ठ तक, राधाकु ड मँझार। अंग डु बाए स लल म, पढ़ता जो सौ बार।।

ह सब इ छा पूण, हो वचन स त काल। वभव मले, दे रा धका दशन करे नहाल।।

रीझ तुरत दे ती अतुल वर रा धका कृपाल। हो जाते स मु ख कट य उनके नंदलाल।।

इस तो के पाठ क जो फल ु त बताई गयी है , उसे अनेक उ चको ट के संत व स चे साधक ारा अपने जीवन
म अनुभव कया गया है।
ीराधा कृपाकटा तो ( ह द अनुवाद स हत)

मुनी दवृ दव दते लोकशोकहा रणी, स व पंकजे नकुंजभू वला सनी।

जे दभानुन दनी जे द सूनस


ु ग
ं ते, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥१।।
भावाथ–सम त मु नगण आपके चरण क वंदना करते ह, आप तीन लोक का शोक र करने
वाली व स च फु लत मुखकमल वाली ह, आप धरा पर नकुंज म वलास करने वाली ह।
आप राजा वृषभानु क राजकुमारी ह, आप जराज न द कशोर ीकृ ण क चरसं गनी दये र
ह, हे जग जननी ीरा धके ! आप मुझे कब अपने कृपाकटा का पा बनाओगी?

अशोकवृ व लरी वतानम डप थते,  वाल वालप लव भा णा ङ् कोमले।

वराभय फुर करे भूतस पदालये, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥२।।
भावाथ–आप अशोक क वृ -लता से बने ए मं दर म वराजमान ह, मूंग,े अ न तथा लाल
प लव के समान अ ण का तयु कोमल चरण वाली ह, आप भ को अभी वरदान दे ने
वाली तथा अभयदान दे ने के लए सदै व उ सु क रहने वाली ह। आपके हाथ सु दर कमल के समान
ह, आप अपार ऐ य क आलय (भंडार), वा मनी ह, हे सव री माँ! आप मुझे कब अपने
कृपाकटा का अ धकारी बनाओगी?

अनंगरंगमंगल संगभंगरु ुवां, सु व मं सस मं   ग तबाणपातनैः।

नर तरं वशीकृत तीतन दन दने, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥३।।


भावाथ–रास ड़ा के रंगमंच पर मंगलमय संग म आप अपनी बाँक भृकुट से आ य उ प
करते ए सहज कटा पी वाण क वषा करती रहती ह। आप ीन दन दन को नर तर अपने
बस म कये रहती ह, हे जग जननी वृ दावने री ! आप मुझे कब अपने कृपाकटा का पा
बनाओगी?

त ड़ सुवणच पक द तगौर व हे, मुख भापरा त-को टशारदे म डले।

व च च -संचर चकोरशावलोचने, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥४।।


भावाथ–आप बजली, वण तथा च पा के पु प के समान सुनहरी आभा से द तमान गोरे अंग
वाली ह, आप अपने मुखार वद क चाँदनी से शरदपू णमा के करोड़ च मा को लजाने वाली ह।
आपके ने पल-पल म व च च क छटा दखाने वाले चंचल चकोर शशु के समान ह, हे
वृ दावने री माँ! आप मुझे कब अपने कृपाकटा का अ धकारी बनाओगी?

मदो मदा तयौवने मोद मानम डते, यानुरागरं जते कला वलासप डते।

अन यध यकुंजराज कामके लको वदे , कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥५।।


भावाथ–आप अपने चरयौवन के आन द म म न रहने वाली ह, आनंद से पू रत मन ही आपका
सव म आभूषण है, आप अपने यतम के अनुराग म रंगी ई वलासपूण कला म पारंगत ह।
आप अपने अन य भ गो पका से ध य ए नकुंज-राज के म े ड़ा क वधा म भी वीण ह,
हे नकुँजे री माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा से कृताथ करोगी?

अशेषहावभाव धीरहीर हार भू षते, भूतशातकु भकु भ कु भकु भसु तनी।

श तमंदहा यचूणपूणसौ यसागरे, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥६।।


भावाथ–आप संपण ू हाव-भाव पी ग ृं ार से प रपूण ह, आप धीरज पी हीर के हार से
वभू षत ह, आप शु वण के कलश के समान अंग वाली ह, आपके पयोधर वणकलश के
समान मनोहर ह। आपक मंद-मंद मधुर मु कान सागर के समान आन द दान करने वाली है , हे
कृ ण या माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा से कृताथ करोगी?

मृणालबालव लरी तरंगरंगदोलते, लता ला यलोलनील लोचनावलोकने।

लल लुल मल मनो मु ध मोहना ये, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥७।।


भावाथ–जल क लहर से हलते ए नूतन कमल-नाल के समान आपक सुकोमल भुजाएँ ह,
आपके नीले चंचल ने पवन के झ क से नाचते ए लता के अ -भाग के समान अवलोकन करने
वाले ह। सभी के मन को ललचाने वाले, लुभाने वाले मोहन भी आप पर मु ध होकर आपके मलन
के लये आतुर रहते ह, ऐसे मनमोहन को आप आ य दे ने वाली ह, हे वृषभानु कशोरी ! आप मुझे
कब अपने कृपा अवलोकन ारा मायाजाल से छु ड़ाओगी?

सुवणमा लकां चते रेखक बुक ठगे,  सू मंगलीगुण र नद तद ध त।

सलोलनीलकु तले सूनगु छगु फते, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥८।।
भावाथ–आप वण क माला से वभू षत ह तथा तीन रेखा यु शंख के समान सु दर क ठ
वाली ह, आपने अपने क ठ म कृ त के तीन गुण का मंगलसू धारण कया आ है , जसम तीन
रंग के र न का भूषण लटक रहा है। र न से दे द यमान करण नकल रही ह। आपके काले
घुंघराले केश द पु प के गु छ से अलंकृत ह, हे सव र क र तन दनी ! आप मुझे कब अपनी
कृपा से दे खकर अपने चरणकमल के दशन का अ धकारी बनाओगी?

नत ब ब बल बमान पु पमेखलागुण, श तर न ककणी कलापम यमंजल


ु ।े

करी शु डद डका वरोहसोभगो के, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥९।।


भावाथ–आपका क टम डल फूल क माला से शोभायमान ह, म णमय ककणी म र न से
जड़े ए वणफूल लटक रहे ह जससे ब त मधुर झंकार हो रही है । आपक जंघाय हाथी क सूंड़
के समान अ य त सु दर ह। हे राधे महारानी ! आप मुझ पर कृपा करके कब संसार सागर से पार
लगाओगी?

अनेकम नादमंजु नूपुरारव खलत् , समाजराजहंसवंश न वणा तगौरवे।

वलोलहेमव लरी वड बचा चं मे, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्।।१०।।


भावाथ–अनेक वेदमं ो के समान झनकार करने वाले वणमय नूपरु चरण म ऐसे तीत होते ह
मानो मनोहर राजहस क पं गुज ं ायमान हो रही हो। चलते ए आपके अंग क छ व ऐसी लगती
है जैसे वणलता लहरा रही हो, हे जगद री ीराधे ! या कभी म आपके चरणकमल का दास हो
सकूंगा?

अन तको ट व णुलोक न प जा चते, हमा जा पुलोमजा- वरं चजावर दे ।

अपार स वृ द धस पदांगल
ु ीनखे, कदा क र यसीह मां कृपाकटा भाजनम्॥११।।
भावाथ–अनंत को ट वैकु ठ क वा मनी ील मीजी आपक पूजा करती ह, ीपावतीजी,
इ ाणीजी और सर वतीजी ने भी आपक चरण व दना कर वरदान पाया है । आपके चरण-कमल
क एक उंगली के नख का यान करने मा से अपार स क ा त होती है , हे क णामयी माँ!
आप मुझे कब अपनी वा स यरस भरी से दे खोगी?

मखे री ये री वधे री सुरे री,  वेदभारती री माणशासने री।

रमे री मे री मोदकानने री, जे री जा धपे ीरा धके नमो तुते॥१२।।


भावाथ–आप सभी कार के य क वा मनी ह, आप संपण ू या क वा मनी ह, आप वधा
दे वी क वा मनी ह, आप सब दे वता क वा मनी ह, आप तीन वेद (ऋक्, यजु और साम) क
वा मनी ह, आप संपणू जगत पर शासन करने वाली ह। आप रमा दे वी क वा मनी ह, आप मा
दे वी क वा मनी ह, आप अयो या के मोद वन क वा मनी अथात् सीताजी भी आप ही ह। हे
रा धके ! कब मुझे कृपाकर अपनी शरण म वीकार कर पराभ दान करोगी? हे जे री! हे ज
क अधी ा ी दे वी ीरा धके! आपको मेरा बार बार नमन है ।

इतीदम त
ु तवं नश य भानुन दनी, करोतु संततं जनं कृपाकटा भाजनम्।

भवे दै व सं चत- पकमनाशनं, लभे दा जे सूनु म डल वेशनम्।।१३।।


भावाथ–हे वृषभानुन दनी! मेरी इस नमल तु त को सुनकर सदै व के लए मुझ दास को अपनी
दया से कृताथ करने क कृपा करो। केवल आपक दया से ही मेरे ार ध कम , सं चत कम
और यामाण कम का नाश हो सकेगा, आपक कृपा से ही भगवान ीकृ ण के न य द धाम
क लीला म सदा के लए वेश हो जाएगा।

तो पाठ करने क व ध व फल ु त
राकायां च सता यां दश यां च वशु या, एकाद यां योद यां य: पठे साधक: सुधी।

यं यं कामयते कामं तं तं ा ो त साधक: राधाकृपाकटा ेण भ : या ेमल णा।१४


भावाथ–पू णमा के दन, शु लप क अ मी या दशमी को तथा दोन प क एकादशी और
योदशी को जो शु बु वाला भ इस तो का पाठ करेगा, वह जो भावना करेगा वही ा त
होगा, अ यथा न काम भावना से पाठ करने पर ीराधाजी क दया से पराभ ा त होगी।

उ मा े ना भमा े मा े कंठमा के, राधाकु ड-जले थ वा य: पठे साधक:शतम्।।

त य सवाथ स : यात् वां छताथ फलंलभेत,् ऐ य च लभे सा ा शा प य तरा धकाम्।।१५।।

भावाथ–इस तो के व धपूवक व ा से पाठ करने पर ीराधा-कृ ण का सा ा कार होता है ।


इसक व ध इस कार है–गोवधन म ीराधाकु ड के जल म जंघा तक या ना भपय त या
छाती तक या क ठ तक जल म खड़े होकर इस तो का १०० बार पाठ करे। इस कार कुछ दन
पाठ करने पर स पू ण मनोवां छत पदाथ ा त हो जाते ह। ऐ य क ा त होती है । भ को इ ह
से सा ात् ीराधाजी का दशन होता है ।

तेन सा त णादे व तु ा द े महावरम् येन प य त ने ा यां त यं यामसु दरम्।।


न य लीला वेशं च ददा त ी जा धप: अत: परतरं ा यं वै णवानां न व ते।।१६।।
भावाथ– ीराधाजी कट होकर स तापूवक वरदान दे ती ह अथवा अपने चरण का महावर
(जावक) भ के म तक पर लगा दे ती ह। वरदान म केवल ‘अपनी य व तु दो’ यही मांगना
चा हए। तब भगवान ीकृ ण कट होकर दशन दे ते है और स होकर ी जराजकुमार न य
लीला म वेश दान करते ह। इससे बढ़कर वै णव के लए कोई भी व तु नह है ।

कसी- कसी को राधाकु ड के जल म १०० पाठ करने पर एक ही दन म दशन हो जाता है । कसी-


को कुछ समय लग जाता है इस लए जब तक दशन न ह , पाठ करते रह। कसी को घर म ही न य
१०० पाठ करने से कुछ ही दन म इ ा त हो जाती है ।

सँ क ा - आचाय सोहन वेदपाठ मोबाइल - 9463405098


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