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आधयािििक ििदा क े उदगाता

पातः सिरणीय पूजयपाद संत शी आसाराि जी िहाराज आज सिग ििश की


चेतना के साथ एकाििकता साधे हुए एक ऐसे बहजानी िहापुरष है िक िजनके बारे िे
कुछ ििखना किि को शििनिदा करना है । पूजयशी के ििए यह कहना िक उनका जनि
िसनध के निाब िजिे के बेराणी नािक गाँि िे ई.स. 1941 िे िि.सं. 1998 चैत िद 6 को
हुआ था, यह कहना िक उनके िपताशी बडे जिींदार थे, यह कहना िक उनहोने बचपन से
साधना शुर की थी और करीब तेईस साि की उम िे उनहोने आिि-साकािकार िकया था
– इियािद सब अपने िन को फुसिाने की कहािनयाँ िात है । उनके ििषय िे कुछ भी
कहना बहुत जयादती है । िौन ही यहाँ परि भाषण है । सारे ििश की चेतना के साथ
िजनकी एकतानता है उनको भिा िकस रीित से सथूि समबनधो और पिरितन
ि शीि
िियाओं के साथ बांधा जाये?
आज अिदािाद से करीब तीन-चार िक.िी. उतर िे पिित सिििा साबरिित के
िकनारे ऋिष-िुिनयो की तपोभूिि िे धिि िसधारी परि पूजयपाद संतशी िाखो-िाखो
िनुषयो के जीिनरथ के पथ-पदशक
ि बने हुए है । कुछ ही साि पहिे साबरिित की जो
कोतरे डरािनी और भयािह थीं, आज िही भूिि िाखो िोगो के ििए परि आशय और
आनंददायी तीथभ
ि ूिि बन चुकी है । हर रिििार और बुधिार को हजारो िोग आशि िे
आकर बहननद िे िसत संतशी के िुखारििंद से िनसत
ृ अित
ृ -िषाि का िाभ पाते है ।
धयान और सिसंग का अित
ृ िय पसाद पाते है । पूजयशी की पािन कुटीर के सािने
िसथत िनोकािनाओं को िसद करने िािे कलपिक
ृ सिान बड बादशाह की पिरििा करते
है ओर एक सपाह के ििए एक अदमय उिसाह और आननद भीतर भरकर िौट जाते है ।
कुछ साधक पूजयशी के पािन सािननधय िे आििोथान की ओर अगसर होते हुए
सथायी रप से आशि िे ही रहते है । इस आशि से थोडे ही दरूी पर िसथत ििहिा
आशि िे पूजयशी पेरणा से और पूजय िाता जी के संचािन िे रहकर कुछ सािधकाएँ
आििोथान के िागि पर चि रही है ।
अिदािाद और सूरत के अिािा िदलिी, आगरा, िनृदािन, हिषकेश, इनदौर, भोपाि,
उजजैन, रतिाि, जयपुर, उदयपुर, पुषकर-अजिेर, जोधपुर, आिेट, सुिेरपर, सागिाडा, राजकोट,
भािनगर, िहमितनगर, ििसनगर, िुणािाडा, ििसाड, िापी, उलहासनगर, औरं गाबाद, पकाशा,
नािशक एिं छोटे -िोटे कई सथानो िे भी िनोरमय आशि बन चुके है और िाखो-िाखो
िोग उनसे िाभािनित हो रहे है । हर साि इन आशिो िे िुखय चार धयान योग साधना
िशििर होते है । दे श-ििदे श के कई साधक-सािधकाएँ इन िशििरो िे सिमििित होकर
आधयािििक साधना के राजिागि पर चि रहे है । उनकी संखया िदनोिदन ििशाि हो रही
है । पूजयशी का पेि, आननद, उिसाह और आशासन से भरा पेरक िागद
ि शन
ि एिं सनेहपूणि
सािननधय उनके जीिन को पुििकत कर रहा है ।
िकसी को पूजयशी की िकताब ििि जाती है , िकसी को पूजयशी के पिचन की टे प
सुनने को ििि जाती है , िकसी को टी.िी. एिं चैनिो पर पूजयशी का दशन
ि -सिसंग ििि
जाता है . िकसी को पूजयशी का कोई िशषय, भक ििि जाता है और कोई शदािान तो
पूजयशी का केिि नाि सुनकर ही आशि िे चिा जाता है और पूजयशी का आिििक
पेि पाकर अननत ििशचेतना के साथ तार जोडने का सदभागी होता है । िह भी
आधयािििक साधना का िागि खुि जाने से आननद से भर जाता है ।
पूजयशी कहते है - तुि अपने को दीन-हीन कभी ित सिझो। तुि आििसिरप से
संसार की सबसे बडी सता हो। तुमहारे पैरो तिे सूयि और चनद सिहत हजारो पिृिियाँ
दबी हुई है । तुमहे अपने िासतििक सिरप िे जागने िात की दे र है । अपने जीिन को
संयि-िनयि और िििेक िैरागय से भरकर आििािभिुख बनाओ। अपने जीिन िे जरा
धयान की झिक िेकर तो दे खो! आििदे ि परिाििा की जरी झाँकी करके तो दे खो! बस,
िफर तो तुि अखणड बहाणड के नायक हो ही। िकसने तुमहे दीन-हीन बनाए रखा है ?
िकसने तुमहे अजानी और िूढ बनाए रखा है ? िानयताओं ने ही ना...? तो छोड दो उन
दःुखद िानयताओं को। जाग जाओ अपने सिरप िे। िफर दे खो, सारा ििश तुमहारी सता
के आगे झुकने को बाधय होता है िक नहीं? तुिको िसफि जगना है .... बस। इतना ही काफी
है । तुमहारे तीव पुरषाथि और सदगुर के कृ पा-पसाद से यह कायि िसद हो जाता है ।
कुणडििनी पारमभ िे िियाएँ करके अननिय कोष को शुद करती है । तुमहारे शरीर
को आिशयक हो ऐसे आसन, पाणायाि, िुदाएँ आिद अपने आप होने िगते है । अननिय
कोष, पाणिय कोष, िनोिय कोष की याता करते हुए कुणडििनी जब आननदिय कोष िे
पहुँचती है तब असीि आननद की अनुभूित होने िगती है । तिाि शिकयाँ, िसिदयाँ,
सािियि साधक िे पकट होने िगता है । कुणडििनी जगते ही बुरी आदते और वयसन दरू
होने िगते है ।
इस योग को िसदयोग भी कहा जाता है । आननदिय कोष से भी आगे गुणातीत
अिसथा करने के ििए इस िसदयोग का उपयोग हो सकता है तथा आििजान पाकर
जीिनिुक के ऊँचे िशखर पर पहुँचने के ििए योगासन सहाय रप हो सकते है ।
- शी योग ि ेदानत स ेिा स िि ित
अिदािाद आ शि

सिासिय क े ििए ि ं त
अचय ुताननत गो ििनद निोच चारणभ ेषजात।्
नशयिनत स किा रोगाः सिय ं सिय ं िदामयहि। ् ।
हे अचयुत! हो अननत! हे गोििनद! इस नािोचचारणसिरप औषध से तिाि रोग
नष हो जाते है , यह िै सिय कहता हूँ, यह िै सिय कहता हूँ.... सिय कहता हूँ।

पासताििक
साधारण िनुषय अननिय, पाणिय और िनोिय कोष िे जीता है । जीिन की
तिाि सुषुप शिकयाँ नहीं जगाकर जीिन वयथि खोता है । इन शिकयो को जगाने िे
आपको आसन खूब सहाय रप बनेगे। आसन के अभयास से तन तनदरसत, िन पसनन
और बुिद तीकण बनेगी। जीिन के हर केत िे सुखद सिपन साकार करने की कुँजी आपके
आनतर िन िे छुपी हुई पडी है । आपका अदभुत सािियि पकट करने के ििए ऋिषयो ने
सिाधी से समपाप इन आसनो का अििोकन िकया है ।
हजारो िषि की कसौिटयो िे कसे हुए, दे श-ििदे श िे आदरणीय िोगो के दारा आदर
पाये हुए इन आसनो की पुिसतका दे खने िे छोटी है पर आपके जीिन को अित िहान
बनाने की कुँिजयाँ रखती हुई आपके हाथ िे पहुँच रही है ।
इस पुिसतका को बार-बार पढो, आसनो का अभयास करो। िहमित रखो। अभयास
का सातिय जारी रखो। अदभुत िाभ होगा....... होगा........ अिशय होगा। सििित की सेिा
साथक
ि बनेगी।
संत श ी आ सारािजी बाप ू

बह चय ि -रका का िन त
ú निो भ गित े ि हाबि े पराििाय िनो िभिा िषत ं िनः सत ं भ कुर कुर
सिाहा।
रोज दध
ू िे िनहार कर 21 बार इस िंत का जप करे और दध
ू पी िे। इससे
बहचयि की रका होती है । सिभाि िे आििसात कर िेने जैसा यह िनयि है ।
राित िे गोद पानी िे िभगोकर सुबह चाट िेने से िीयध
ि ातु पुष होता है । बहचयि-
रका िे सहायक बनता है ।

आसनो की पिकया ि े आन े िाि े


कुछ शबदो की सिझ
रेचक का अथि है शास छोडना।
पूरक का अथि है शास भीतर िेना।
कुमभक का अथि है शास को भीतर या बाहर रोक दे ना। शास िेकर भीतर रोकने
की पििया को आनतर या आभयानतर कुमभक कहते है । शास को बाहर िनकािकर िफर
िापस न िेकर शास बाहर ही रोक दे ने की ििया को बिहकुिमभक कहते है ।
चि ः चि, आधयािििक शिकयो के केनद है । सथूि शरीर िे चिच
ि कु से िे िदखते
नहीं, कयोिक िे हिारे सूकि शरीर िे िसथत होते है । िफर भी सथूि शरीर के जानतनतु,

सनायु केनद के साथ उनकी सिानता जोडकर उनका िनदे श िकया जाता है । हिारे शरीर
िे ऐसे सात चि िुखय है । 1. िूिाधारः गुदा के पास िेरदणड के आिखरी िनके के पास
होता है । 2. सिािधषानः जननेिनदय से ऊपर और नािभ से नीचे के भाग िे होता है । 3.
ििणपुरः नािभकेनद िे होता है । 4. अनाहतः हदय िे होता है । 5. ििशुदः कणठ िे होता
है । 6. आजाचिः दो भौहो के बीच िे होता है । 7. सहसारः ििसतषक के ऊपर के भाग िे
जहाँ चोटी रखी जाती है , िहाँ होता है ।
नाडीः पाण िहन करने िािी बारीक नििकाओं को नाडी कहते है । उनकी संखया
72000 बतायी जाती है । इडा, िपंगिा और सुषुमना ये तीन िुखय है । उनिे भी सुषुमना
सबसे अिधक िहतिपूणि है ।

आिशयक िनद ेश
1.भोजन के छः घणटे बाद, दध
ू पीने के दो घणटे बाद या िबलकुि खािी पेट ही
आसन करे ।
2.शौच-सनानािद से िनित
ृ होकर आसन िकये जाये तो अचछा है ।
3.शास िुह
ँ से न िेकर नाक से ही िेना चािहए।
4.गरि कमबि, टाट या ऐसा ही कुछ िबछाकर आसन करे । खुिी भूिि पर
िबना कुछ िबछाये आसन कभी न करे , िजससे शरीर िे िनिित
ि होने िािा ििदुत-
पिाह नष न हो जाये।
5.आसन करते सिय शरीर के साथ जबरदसती न करे । आसन कसरत नहीं है ।
अतः धैयप
ि ूिक
ि आसन करे ।
6.आसन करने के बाद ठं ड िे या तेज हिा िे न िनकिे। सनान करना हो तो
थोडी दे र बाद करे ।
7.आसन करते सिय शरीर पर कि से कि िस और ढीिे होने चािहए।
8.आसन करते-करते और िधयानतर िे और अंत िे शिासन करके,
िशिथिीकरण के दारा शरीर के तंग बने सनायुओं को आराि दे ।
9.आसन के बाद िूतियाग अिशय करे िजससे एकितत दिूषत तति बाहर
िनकि जाये।
10.आसन करते सिय आसन िे बताए हुए चिो पर धयान करने से और
िानिसक जप करने से अिधक िाभ होता है ।
11.आसन के बाद थोडा ताजा जि पीना िाभदायक है . ऑिकसजन और
हाइडोजन िे ििभािजत होकर सिनध-सथानो का िि िनकािने िे जि बहुत
आिशयक होता है ।
12.िसयो को चािहए िक गभाि
ि सथा िे तथा िािसक धिि की अििध िे िे कोई
भी आसन कभी न करे ।
13.सिासिय के आकांकी हर वयिक को पाँच-छः तुिसी के पते पातः चबाकर
पानी पीना चािहए। इससे सिरणशिक बढती है , एसीडीटी एिं अनय रोगो िे िाभ
होता है ।

योगासन
पदा सन या कििा सन
इस आसन िे पैरो का आधार पद अथात
ि किि जैसा बनने से इसको पदासन या

कििासन कहा जाता है । धयान आजाचि िे अथिा अनाहत चि िे। शास रे चक,
कुमभक, दीघि, सिाभाििक।
िि िधः िबछे हुए आसन के ऊपर सिसथ होकर बैठे। रे चक करते करते दािहने पैर
को िोडकर बाँई जंघा पर रखे। बाये पैर को िोडकर दािहनी जंघा पर रखे। अथिा पहिे
बायाँ पैर और बाद िे दािहना पैर भी रख सकते है । पैर के तिुिे ऊपर की ओर और एडी
नािभ के नीचे रहे । घुटने जिीन से िगे रहे । िसर, गरदन, छाती, िेरदणड आिद पूरा भाग
सीधा और तना हुआ रहे । दोनो हाथ घुटनो के ऊपर जानिुदा िे रहे । (अँगूठे को तजन
ि ी
अँगि
ु ी के नाखून से िगाकर शेष तीन अँगुिियाँ सीधी रखने से जानिुदा बनती है ।)
अथिा बाये हाथ को गोद िे रखे। हथेिी ऊपर की और रहे । उसके ऊपर उसी पकार
दािहना हाथ रखे। दोनो हाथ की अँगुिियाँ परसपर िगी रहे गी। दोनो हाथो को िुटठी
बाँधकर घुटनो पर भी रख सकते है ।

रे चक पूरा होने के बाद कुमभक करे । पारं भ िे पैर जंघाओँ के ऊपर पैर न रख
सके तो एक ही पैर रखे। पैर िे झनझनाहट हो, किेश हो तो भी िनराश न होकर अभयास
चािू रखे। अशक या रोगी को चािहए िक िह जबरदसती पदासन िे न बैठे। पदासन
सशक एिं िनरोगी के ििए है । हर तीसरे िदन सिय की अििध एक ििनट बढाकर एक
घणटे तक पहुँचना चािहए।
दिष नासाग अथिा भूिधय िे िसथर करे । आँखे बंद, खुिी या अधि खुिी भी रख
सकते है । शरीर सीधा और िसथर रखे। दिष को एकाग बनाये।
भािना करे िक िूिाधार चि िे छुपी हुई शिक का भणडार खुि रहा है । िनमन
केनद िे िसथत चेतना तेज और औज के रप िे बदिकर ऊपर की ओर आ रही है ।
अथिा, अनाहत चि (हदय) िे िचत एकाग करके भािना करे िक हदयरपी किि िे से
सुगनध की धाराएँ पिािहत हो रही है । सिग शरीर इन धाराओं से सुगिनधत हो रहा है ।
िाभ ः पाणायाि के अभयासपूिक
ि यह आसन करने से नाडीतंत शुद होकर आसन
िसद होता है । ििशुद नाडीतंत िािे योगी के ििशुद शरीर िे रोग की छाया तक नहीं रह
सकती और िह सिेचछा से शरीर का ियाग कर सकता है ।
पदासन िे बैठने से शरीर की ऐसी िसथित बनती है िजससे शसन तंत, जानतंत
और रकािभसरणतंत सुवयििसथत ढं ग के कायि कर सकते है । फितः जीिनशिक का
ििकास होता है । पदासन का अभयास करने िािे साधक के जीिन िे एक ििशेष पकार
की आभा पकट होती है । इस आसन के दारा योगी, संत, िहापुरष िहान हो गये है ।
पदासन के अभयास से उिसाह िे ििृद होती है । सिभाि िे पसननता बढती है ।
िुख तेजसिी बनता है । बुिद का अिौिकक ििकास होता है । िचत िे आननद-उलिास
रहता है । िचनता, शोक, दःुख, शारीिरक ििकार दब जाते है । कुििचार पिायन होकर
सुििचार पकट होने िगते है । पदासन के अभयास से रजस और तिस के कारण वयग
बना हुआ िचत शानत होता है । सतिगुण िे अियंत ििृद होती है । पाणायाि, साितिक
ििताहार और सदाचार के साथ पदासन का अभयास करने से अंतःसािी गंिथयो को
ििशुद रक िििता है । फितः वयिक िे कायश
ि िक बढने से भौितक एिं आधयािििक
ििकास शीघ होता है । बौिदक-िानिसक कायि करने िािो के ििए, िचनतन िनन करने
िािो के ििए एि ििदािथय
ि ो के ििए यह आसन खूब िाभदायक है । चंचि िन को िसथर
करने के ििए एिं िीयरिका के ििए या आसन अिदितय है ।
शि और कष रिहत एक घणटे तक पदासन पर बैठने िािे वयिक का िनोबि
खूब बढता है । भाँग, गाँजा, चरस, अफीि, ििदरा, तमबाकू आिद वयसनो िे फँसे हुए वयिक
यिद इन वयसनो से िुक होने की भािना और दढ िनशय के साथ पदासन का अभयास
करे तो उनके दवुयस
ि न सरिता से और सदा के ििए छूट जाते है । चोरी, जुआ, वयिभचार
या हसतदोष की बुरी आदत िािे युिक-युिितयाँ भी इस आसन के दारा उन सब
कुसंसकारो से िुक हो सकते है ।
कुष, रकिपत, पकाघात, ििािरोध से पैदा हुए रोग, कय, दिा, िहसटीिरया, धातुकय,
कैनसर, उदरकृ िि, ििचा के रोग, िात-कफ पकोप, नपुंसकिि, िनधवय आिद रोग पदासन के
अभयास से नष हो जाते है । अिनदा के रोग के ििए यह आसन रािबाण इिाज है । इससे
शारीिरक िोटापन कि होता है । शारीिरक एिं िानिसक सिासिय की सुरका के ििए यह
आसन सिोति है ।
पदासन िे बैठकर अिशनी िुदा करने अथात
ि गुदादार का बार-बार संकोच पसार
करने से अपानिायु सुषुमना िे पििष होता है । इससे काि ििकार पर जय पाप होने
िगती है । गुहोिनदय को भीतर की ओर िसकोडने से अथात
ि योिनिुदा या िजोिी करने से
िीयि उधिग
ि ािी होता है । पदासन िे बैठकर उडडीयान बनध, जािंधर बनध तथा कुमभक
करके छाती एिं पेट को फुिाने िक ििया करने से िकशुिद एिं कणठशुिद होती है ।
फितः भूख खुिती है , भोजन सरिता से पचता है , जलदी थकान नहीं होती। सिरणशिक
एिं आििबि िे ििृद होती है ।
यि-िनयिपूिक
ि िमबे सिय तक पदासन का अभयास करने से उषणता पकट
होकर िूिाधार चि िे आनदोिन उिपनन होते है । कुणडििनी शिक जागत
ृ होने की
भूििका बनती है । जब यह शिक जागत
ृ होती है तब इस सरि िदखने िािे पदासन की
िासतििक ििहिा का पता चिता है । घेरणड, शािणडलय तथा अनय कई ऋिषयो ने इस
आसन की ििहिा गायी है । धयान िगाने के ििए यह आसन खूब िाभदायक है ।
इदं पदासन ं पोकं सि ि वयािध ििनाशि। ्
द ु िि भं य ेन केनािप धीिता ि भयत े भुिि।।
इस पकार सिि वयािधयो को ििनष करने िािे पदासन का िणन
ि िकया। यह
दि
ु भ
ि आसन िकसी ििरिे बुिदिान पुरष को ही पाप होता है ।
(हठयोगपदीिपका, पथिोपदे श)

िसदासन
पदासन के बाद िसदासन का सथान आता है । अिौिकक िसिदयाँ पाप करने िािा
होने के कारण इसका नाि िसदासन पडा है । िसद योिगयो का यह िपय आसन है । यिो
िे बहचयि शष
े है , िनयिो िे शौच शष
े है िैसे आसनो िे िसदासन शष
े है ।
धयान आजाचि िे और शास, दीघि, सिाभाििक।

िि िधः आसन पर बैठकर पैर खुिे छोड दे । अब बाये पैर की एडी को गुदा और
जननेिनदय के बीच रखे। दािहने पैर की एडी को जननेिनदय के ऊपर इस पकार रखे
िजससे जननेिनदय और अणडकोष के ऊपर दबाि न पडे । पैरो का िि बदि भी सकते
है । दोनो पैरो के तिुिे जंघा के िधय भाग िे रहे । हथेिी ऊपर की ओर रहे इस पकार
दोनो हाथ एक दस
ू रे के ऊपर गोद िे रखे। अथिा दोनो हाथो को दोनो घुटनो के ऊपर
जानिुदा िे रखे। आँखे खुिी अथिा बनद रखे। शासोचछोिास आराि से सिाभाििक चिने
दे । भूिधय िे, आजाचि िे धयान केिनदत करे । पाँच ििनट तक इस आसन का अभयास
कर सकते है । धयान की उचच कका आने पर शरीर पर से िन की पकड छूट जाती है ।
िाभ ः िसदासन के अभयास से शरीर की सिसत नािडयो का शुिदकरण होता है ।
पाणतति सिाभाििकतया ऊधिग
ि ित को पाप होता है । फितः िन को एकाग करना सरि
बनता है ।
पाचनििया िनयिित होती है । शास के रोग, हदय रोग, जीणज
ि िर, अजीणि, अितसार,
शुिदोष आिद दरू होते है । िंदािगन, िरोडा, संगहणी, िातििकार, कय, दिा, िधुपिेह, पिीहा
की ििृद आिद अनेक रोगो का पशिन होता है । पदासन के अभयास से जो रोग दरू होते
है िे िसदासन के अभयास से भी दरू होते है ।
बहचयि-पािन िे यह आसन ििशेष रप से सहायक होता है । ििचार पिित बनते
है । िन एकाग होता है । िसदासन का अभयासी भोग-िििास से बच सकता है । 72 हजार
नािडयो का िि इस आसन के अभयास से दरू होता है । िीयि की रका होती है ।
सिपनदोष के रोगी को यह आसन अिशय करन ा चा िहए।
योगीजन िसदासन के अभयास से िीयि की रका करके पाणायाि के दारा उसको
ििसतषक की ओर िे जाते है िजससे िीयि ओज तथा िेधाशिक िे पिरणत होकर िदवयता
का अनुभि करता है । िानिसक शिकयो का ििकास होता है ।
कुणडििनी शिक जागत
ृ करने के ििए यह आसन पथि सोपान है ।
िसदासन िे बैठकर जो कुछ प ढा जाता ह ै िह अ चछी तरह याद रह जा ता
है। ििदािथय
ि ो के ििए यह आसन ििशेष िाभदायक है । जठरािगन तेज होती है । िदिाग
िसथर बनता है िजससे सिरणशिक बढती है ।
आििा का धयान करने िािा योगी यिद ििताहारी बनकर बारह िषि तक िसदासन
का अभयास करे तो िसिद को पाप होता है । िसदासन िसद होने के बाद अनय आसनो
का कोई पयोजन नहीं रह जाता। िसदासन से केिि या केििी कुमभक िसद होता है । छः
िास िे भी केििी कुमभक िसद हो सकता है और ऐसे िसद योगी के दशन
ि -पूजन से
पातक नष होते है , िनोकािना पूणि होती है । िसदासन के पताप से िनबीज सिािध िसद
हो जाती है । िूिबनध, उडडीयान बनध और जािनधर बनध अपने आप होने िगते है ।
िसदासन जैसा दस
ू रा आसन नहीं है , केििी कुमभक के सिान पाणायाि नहीं है ,
खेचरी िुदा के सिान अनय िुदा नहीं है और अनाहत नाद जैसा कोई नाद नहीं है ।
िसदासन िहापुरषो का आसन है । सािानय वयिक हठपूिक
ि इसका उपयोग न करे ,
अनयथा िाभ के बदिे हािन होने की समभािना है ।
सिा ा गासन
भूिि पर सोकर शरीर को ऊपर उठाया जाता है इसििए इसको सिाग
ा ासन कहते
है ।
धयान ििशुदाखय चि िे, शास रे चक, पूरक और दीघ।ि
िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाएँ। शास को बाहर
िनकाि कर अथात
ि रे चक करके किर तक के दोनो पैर सीधे और परसपर िगे हुए
रखकर ऊपर उठाएं। िफर पीठ का भाग भी ऊपर उठाएं। दोनो हाथो से किर को आधार
दे । हाथ की कुहिनयाँ भूिि से िगे रहे । गरदन और कनधे के बि पूरा शरीर ऊपर की
और सीधा खडा कर दे । ठोडी छाती के साथ िचपक जाए। दोनो पैर आकाश की ओर रहे ।
दषी दोनो पैरो के अंगूठो की ओर रहे । अथिा आँखे बनद करके िचतििृत को कणठपदे श िे
ििशुदाखय चि िे िसथर करे । पूरक करके शास को दीघि, सािानय चिने दे ।
इस आसन का अभय़ास दढ होने के बाद दोनो पैरो को आगे पीछे झुकाते हुए,
जिीन को िगाते हुए अनय आसन भी हो सकते है । सिाग
ा ासन की िसथित िे दोनो पैरो
को जाँघो पर िगाकर पदासन भी िकया जा सकता है ।

पारमभ िे तीन से पाँच ििनट तक यह आसन करे । अभयासी तीन घणटे तक इस


आसन का सिय बढा सकते है ।
िाभ ः सिाग
ा ासन के िनिय अभयास से जठरािगन तेज होती है । साधक को अपनी
रिच के अनुसार भोजन की िाता बढानी चािहए। सिाग
ा ासन के अभयास से शरीर की
ििचा िटकने नहीं िगती तथा शरीर िे झुिरि याँ नहीं पडतीं। बाि सफेद होकर िगरते
नहीं। हर रोज एक पहर तक सिाग
ा ासन का अभयास करने से ििृयु पर ििजय िििती है ,
शरीर िे सािियि बढता है । तीनो दोषो का शिन होता है । िीयि की ऊधिग
ि ित होकर
अनतःकरण शुद होता है । िेधाशिक बढती है , िचर यौिन की पािप होती है ।
इस आसन से थायराइड नािक अनतःगिनथ की शिक बढती है । िहाँ रकसंचार
तीव गित से होने िगता है , इससे उसे पोषण िििता है । थायराइड के रोगी को इस
आसन से अदभुत िाभ होता है । िििर और पिीहा के रोग दरू होते है । सिरणशिक बढती
है । िुख पर से िुह
ँ ासे एिं अनय दाग दरू होकर िुख तेजसिी बनता है । जठर एिं नीचे
उतरी हुई आँते अपने िूि सथान पर िसथर होती है । पुरषातन गिनथ पर सिाग
ा ासन का
अचछा पभाि पडता है । सिपनदोष दरू होता है । िानिसक बौिदक पििृत करने िािो को
तथा ििशेषकर ििदािथय
ि ो को यह आसन अिशय करना चािहए।
िनदािगन, अजीणि, कबज, अशि, थायराइड का अलप ििकास, थोडे िदनो का
अपेनडीसाइिटस और साधारण गाँठ, अंगििकार, असिय आया हुआ िद
ृ िि, दिा, कफ, चिडी
के रोग, रकदोष, िसयो को िािसक धिि की अिनयिितता एिं ददि , िािसक न आना अथिा
अिधक आना इियािद रोगो िे इस आसन से िाभ होता है । नेत और ििसतषक की शिक
बढती है । उनके रोग दरू होते है ।
थायराइड के अित ििकासिािे, खूब किजोर हदयिािे और अियिधक चबीिािे
िोगो को िकसी अनुभिी की सिाह िेकर ही सिाग
ा ासन करना चािहए।
शीषास
ि न करने से जो िाभ होता है िे सब िाभ सिाग
ा ासन और
पादपिशिोतानसन करने से ििि जाते है । शीषास
ि न िे गफित होने से जो हािन होती है
िैसी हािन होने की संभािना सिाग
ा ासन और पादपिशिोतानासन िे नहीं है ।

हिासन
इस आसन िे शरीर का आकार हि जैसा बनता है इसििए इसको हिासन कहा
जाता है ।
धयान ििशुदाखया चि िे। शास रे चक और बाद िे दीघ।ि
िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाएँ। दोनो हाथ शरीर को
िगे रहे । अब रे चक करके शास को बाहर िनकाि दे । दोनो पैरो को एक साथ धीरे -धीरे
ऊँचे करते जाये। आकाश की ओर पूरे उठाकर िफर पीछे िसर के तरफ झुकाये। पैर
िबलकुि तने हुए रखकर पंजे जिीन पर िगाये। ठोडी छाती से िगी रहे । िचतििृत को
ििशुदाखया चि िे िसथर करे । दो-तीन ििनट से िेकर बीस ििनट तक सिय की अििध
बढा सकते है ।

िाभ ः हिासन के अभयास से अजीणि, कबज, अशि, थायराइड का अलप ििकास,


अंगििकार, असिय िद
ृ िि, दिा, कफ, रकििकार आिद दरू होते है । इस आसन से िििर
अचछा होता है । छाती का ििकास होता है । शसनििया तेज होकर ऑकसीजन से रक शुद
बनता है । गिे के ददि , पेट की बीिारी, संिधिात आिद दरू होते है । पेट की चरबी कि
होती है । िसरददि दरू होता है । िीयिििकार िनिूि
ि होता है । खराब ििचार बनद होते है ।
नाडी तंत शुद होता है । शरीर बििान और तेजसिी बनता है । गिभण
ि ी िसयो के िसिा हर
एक को यह आसन करना चािहए।
रीढ िे कठोरता होना यह िद
ृ ािसथा का िचह है । हिासन से रीढ िचीिी बनती
है , इससे युिािसथा की शिक, सफूिति, सिासिय और उिसाह बना रहता है । िेरदणड
समबनधी नािडयो के सिासिय की रका होकर िद
ृ ािसथा के िकण जलदी नहीं आते। जठर
की नािडयो को शिक पाप होती है ।
जठर की िाँसपेिशयाँ तथा पाचनतंत के अंगो की नािडयो की दब
ु ि
ि ता के कारण
अगर िंदािगन एिं कबज हो तो हिासन से दरू होते है । किर, पीठ एिं गरदन के रोग
नष होते है । िििर और पिीहा बढ गए हो तो हिासन से सािानय अिसथा िे आ जाते
है । काि केनद की शिक बढती है । अपानशिक का उिथान होकर उदानरपी अिगन का
योग होने से िीयश
ि िक ऊधिग
ि ािी बनती है । हिासन से िीयि का सतंभन होता है । यह
आसन अणडकोष की ििृद, पेिनियास, अपेिनडकस आिद को ठीक करता है । थायराइड
गिनथ की िियाशीिता बढती है । धयान करने से ििशुद चि जागत
ृ हो जाता है ।

पिनि ु कासन
शरीर िे िसथत पिन (िायु) यह आसन करने से िुक होता है । इसििए इसे
पिनिुकासन कहा जाता है ।

धयान ििणपुर चि िे। शास पहिे पूरक िफर कुमभक और रे चक।


िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाये। पूरक करके फेफडो
िे शास भर िे। अब िकसी भी एक पैर को घुटने से िोड दे । दोनो हाथो की अंगुिियो
को परसपर िििाकर उसके दारा िोडे हुए घुटनो को पकडकर पेट के साथ िगा दे । िफर
िसर को ऊपर उठाकर िोडे हुए घुटनो पर नाक िगाएं। दस
ू रा पैर जिीन पर सीधा रहे ।
इस ििया के दौरान शास को रोककर कुमभक चािू रखे। िसर और िोडा हुआ पैर भूिि
पर पूिि
ि त ् रखने के बाद ही रे चक करे । दोनो पैरो को बारी-बारी से िोडकर यह ििया
करे । दोनो पैर एक साथ िोडकर भी यह आसन हो सकता है ।

िाभ ः पिनिुकासन के िनयिित अभयास से पेट की चरबी कि होती है । पेट की


िायु नष होकर पेट ििकार रिहत बनता है । कबज दरू होता है । पेट िे अफारा हो तो इस
आसन से िाभ होता है । पातःकाि िे शौचििया ठीक से न होती हो तो थोडा पानी पीकर
यह आसन 15-20 बार करने से शौच खुिकर होगा।
इस आसन से सिरणशिक बढती है । बौिदक कायि करने िािे डॉकटर, िकीि,
सािहियकार, ििदाथी तथा बैठकर पििृत करने िािे िुनीि, वयापारी आिद िोगो को
िनयिित रप से पिनिुकासन करना चािहए।

ििसया सन
ििसय का अथि है िछिी। इस आसन िे शरीर का आकार िछिी जैसा बनता है
अतः ििसयासन कहिाता है । पिाििनी पाणायाि के साथ इस आसन की िसथित िे िमबे
सिय तक पानी िे तैर सकते है ।

धयान ििशुदाखया चि िे। शास पहिे रे चक, बिहकुिमभक, िफर पूरक और रे चक।
िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर पदासन िगाकर सीधे बैठ जाये। िफर पैरो
को पदासन की िसथित िे ही रखकर हाथ के आधार से सािधानी पूिक
ि पीछे की ओर
िचत होकर िेट जाये। रे चक करके किर को ऊपर उठाये। घुटने, िनतंब और िसतक के
िशखा सथान को भूिि के सथान िगाये रखे। िशखासथान के नीचे कोई नरि कपडा
अिशय रखे। बाये हाथ से दािहने पैर का अंगूठा और दािहने हाथ से बाये पैर का अंगूठा
पकडे । दोनो कुहिनयाँ जिीन को िगाये रखे। कुमभक की िसथित िे रहकर दिष को पीछे
की ओर िसर के पास िे जाने की कोिशश करे । दाँत दबे हुए और िुह
ँ बनद रखे। एक
ििनट से पारमभ करके पाँच ििनट तक अभयास बढाये। िफर हाथ खोिकर, किर भूिि
को िगाकर िसर ऊपर उठाकर बैठ जाये। पूरक करके रे चक करे ।
पहिे भूिि पर िेट कर िफर पदासन िगाकर भी ििसयासन हो सकता है ।
िाभ ः मिसयासन से पूरा शरीर िजबूत बनता है । गिा, छाती, पेट की तिाि
बीिािरयाँ दरू होती है । आँखो की रोशनी बढती है । गिा साफ रहता है । शसनििया ठीक
से चिती है । कनधो की नसे उलटी िुडती है इससे छाती ि फेफडो का ििकास होता है ।
पेट साफ रहता है । आँतो का िैि दरू होता है । रकािभसरण की गित बढती है । फितः
चिडी के रोग नहीं होते। दिा और खाँसी दरू होती है । छाती चौडी बनती है । पेट की
चरबी कि होती है । इस आसन से अपानिायु की गित नीचे की ओर होने से ििािरोध
दरू होता है । थोडा पानी पीकर यह आसन करने से शौच-शुिद िे सहायता िििती है ।
ििसयासन से िसयो के िािसकधिि समबनधी सब रोग दरू होते है । िािसकसाि
िनयिित बनता है ।

भु जंगासन
इस आसन िे शरीर की आकृ ित फन उठाये हुए भुजंग अथात
ि सपि जैसी बनती है
इसििए इसको भुजग
ं ासना कहा जाता है ।

धयान ििशुदाखया चि िे। शास ऊपर उठाते िक पूरक और नीचे की ओर जाते


सिय रे चक।
िि िधः भूिि पर िबछे हुए कमबि पर पेट के बि उलटे होकर िेट जाये। दोनो पैर
और पंजे परसपर िििे हुए रहे । पैरो के अंगूठो को पीछे की ओर खींचे। दोनो हाथ िसर के
तरफ िमबे कर दे । पैरो के अंगूठे, नािभ, छाती, ििाट और हाथ की हथेिियाँ भूिि पर
एक सीध िे रखे।
अब दोनो हथेिियो को किर के पास िे जाये। िसर और किर ऊपर उठाकर
िजतना हो सके उतने पीछे की ओर िोडे । नािभ भूिि से िगी रहे । पूरे शरीर का िजन
हाथ के पंजे पर आएगा। शरीर की िसथित किान जैसी बनेगी। िेरदणड के आिखरी भाग
पर दबाि केिनदत होगा। िचतििृत को कणठ िे और दिष को आकाश की तरफ िसथर
करे ।
20 सेकणड तक यह िसथित रखे। बाद िे धीरे -धीरे िसर को नीचे िे आये। छाती
भूिि पर रखे। िफर िसर को भूिि से िगने दे । आसन िसद हो जाने के बाद आसन
करते सिय शास भरके कुमभक करे । आसन छोडते सिय िूि िसथित िे आने के बाद
शास को खूब धीरे -धीरे छोडे । हर रोज एक साथ 8-10 बार यह आसन करे ।
िाभ ः घेरंड संिहता िे इसका िाभ बताते हुए कहा है - भुजग
ं ासन से जठरािगन
पदीप होती है , सिि रोगो का नाश होता है और कुणडििनी जागत
ृ होती है ।
िेरदणड के तिाि िनको को तथा गरदन के आसपास िािे सनायुओं को अिधक
शुद रक िििता है । फितः नाडी तंत सचेत बनता है , िचरं जीिी, शिकिान एिं सुदढ बनता
है । ििशेषकर ििसतषक से िनकिने िािे जानतंतु बििान बनते है । पीठ की हिडडय़ो िे
रहने िािी तिाि खरािबयाँ दरू होती है । पेट के सनायु िे िखंचाि आने से िहाँ के अंगो
को शिक िििती है । उदरगुहा िे दबाि बढने से कबज दरू होता है । छाती और पेट का
ििकास होता है तथा उनके रोग ििट जाते है । गभाश
ि य एिं बोनाशय अचछे बनते है ।
फितः िािसकसाि कषरिहत होता है । िािसक धिि समबनधी सिसत िशकायते दरू होती
है । अित शि करने के कारण िगने िािी थकान दरू होती है । भोजन के बाद होने िािे
िायु का ददि नष होता है । शरीर िे सफूिति आती है । कफ-िपतिािो के ििए यह आसन
िाभदायी है । भुजंगासन करने से हदय िजबूत बनता है । िधुपिेह और उदर के रोगो से
िुिक िििती है । पदर, अित िािसकसाि तथा अलप िािसकसाि जैसे रोग दरू होते है ।
इस आसन से िेरदणड िचीिा बनता है । पीठ िे िसथत इडा और िपंगिा नािडयो
पर अचछा पभाि पडता है । कुणडििनी शिक जागत
ृ करने के ििय यह आसन सहायक है ।
अिाशय की िाँसपेिशयो का अचछा ििकास होता है । थकान के कारण पीठ िे पीडा होती
हो तो िसफि एक बार ही यह आसन करने से पीडा दरू होती है । िेरदणड की कोई हडडी
सथानभष हो गई हो तो भुजंगासन करने से यथासथान िे िापस आ जाती है ।
धनुरासन
इस आसन िे शरीर की आकृ ित खींचे हुए धनुष जैसी बनती है अतः इसको
धनुरासन कहा जाता है ।

धयान ििणपुर चि िे। शास नीचे की िसथित िे रे चक और ऊपर की िसथित िे


पूरक।
िि िधः भूिि पर िबछे हुए कमबि पर पेट के बि उलटे होकर िेट जाये। दोनो
पैर परसपर िििे हुए रहे । अब दोनो पैरो को घुटनो से िोडे । दोनो हाथो को पीछे िे
जाकर दोनो पैरो को टखनो से पकडे । रे चक करके हाथ से पकडे हुए पैरो को कसकर
धीरे -धीरे खींचे। िजतना हो सके उतना िसर पीछे की ओर िे जाने की कोिशश करे । दिष
भी ऊपर एिं पीछे की ओर रहनी चािहए। सिग शरीर का बोझ केिि नािभपदे श के ऊपर
ही रहे गा। किर से ऊपर का धड एिं किर से नीचे पूरे पैर ऊपर की ओर िुडे हुए रहे गे।
कुमभक करके इस िसथित िे िटके रहे । बाद िे हाथ खोिकर पैर तथा िसर को
िूि अिसथा िे िे जाये और पूरक करे । पारं भ िे पाँच सेकणड यह आसन करे । धीरे -धीरे
सिय बढाकर तीन ििनट या उससे भी अिधक सिय इस आसन का अभयास करे । तीन-
चार बार यह आसन करना चािहए।
िाभ ः धनुरासन के अभयास से पेट की चरबी कि होती है । गैस दरू होती है । पेट
को रोग नष होते है । कबज िे िाभ होता है । भूख खुिती है । छाती का ददि दरू होता है ।
हदय की धडकन िजबूत बनती है । शास िक ििया वयििसथत चिती है । िुखाकृ ित सुंदर
बनती है । आँखो की रोशनी बढती है और तिाि रोग दरू होते है । हाथ-पैर िे होने िािा
कंपन रकता है । शरीर का सौनदयि बढता है । पेट के सनायुओँ िे िखंचाि आने से पेट को
अचछा िाभ होता है । आँतो पर खूब दबाि पडने से पेट के अंगो पर भी दबाि पडता है ।
फितः आँतो िे पाचकरस आने िगता है इससे जठरािगन तेज होती है , पाचनशिक बढती
है । िायुरोग नष होता है । पेट के केत िे रक का संचार अिधक होता है । धनुरासन िे
भुजग
ं ासन और शिभासन का सिािेश हो जाने के कारण इन दोनो आसनो के िाभ
िििते है । िसयो के ििए यह आसन खूब िाभकारक है । इससे िािसक धिि के ििकार,
गभाश
ि य के तिाि रोग दरू होते है ।

चिासन
इस आसन िे शरीर की आकृ ित चि जैसी बनती है । अतः चिासन कहा जाता
है ।

धयान ििणपुर चि िे। शास दीघि, सिाभाििक।


िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाये। घुटनो से पैर िोड
कर ऊपर उठाये। पैर के तिुिे जिीन से िगे रहे । दो पैरो के बीच करीब डे ढ फीट का
अनतर रखे। दोनो हाथ िसतक की तरफ उठाकर पीछे की ओर दोनो हथेिियो को जिीन
पर जिाये। दोनो हथेिियो के बीच भी करीब डे ढ फीट का अनतर रखे। अब हाथ और पैर
के बि से पूरे शरीर को किर से िोडकर ऊपर उठाये। हाथ को धीरे -धीरे पैर की ओर िे
जाकर सिपूशि शरीर का आकार ित
ृ या चि जैसा बनाये। आँखे बनद रखे। शास की गित
सिाभाििक चिने दे । िचतििृत ििणपुर चि (नािभ केनद) िे िसथर करे । आँखे खुिी भी
रख सकते है । एक ििनट से पाँच ििनट तक अभयास बढा सकते है ।
िाभ ः िेरदणड तथा शरीर की सिसत नािडयो का शुिदकरण होकर यौिगक चि
जागत
ृ होते है । िकिा तथा शरीर की किजोिरयाँ दरू होती है । िसतक, गदि न, पीठ, पेट,
किर, हाथ, पैर, घुटने आिद सब अंग िजबूत बनते है । सिनध सथानो ददि नहीं होता।
पाचनशिक बढती है । पेट की अनािशयक चरबी दरू होती है । शरीर तेजसिी और फुतीिा
बनता है । ििकारी ििचार नष होते है । सिपनदोष की बीिारी अिििदा होती है । चिासन
के िनयिित अभयास से िद
ृ ािसथा िे किर झुकती नहीं। शरीर सीधा तना हुआ रहता है ।

किटिपणडि दि नासन
इस आसन िे किटपदे श (किर के पास िािे भाग) िे िसथत िपणड अथात
ि
िूतिपणड का िदि न होता है , इससे यह आसन किटिपणडिदि नासन कहिाता है ।

धयान सिािधषान चि िे। शास पूरक और कुमभक।


िि िधः िबछे हुए कमबि पर पीठ के बि िचत होकर िेट जाये। दोनो हाथो को
आिने-सािने फैिा दे । िुिटठयाँ बनद रखे। दोनो पैरो को घुटनो से िोडकर खडे कर दे ।
पैर के तििे जिीन से िगे रहे । दोनो पैरो के बीच इतना अनतर रखे िक घुटनो को
जिीन पर झुकाने से एक पैर का घुटना दस
ू रे पैर की एडी को िगे... िसर दायीं ओर िुडे
तो दोनो घुटने दािहनी ओर जिीन को िगे। इस पकार 15-20 बार ििया करे । इस पकार
दोनो पैरो को एक साथ रखकर भी ििया करे ।
िाभ ः िजसको पथरी की तकिीफ हो उसे आशि (संत शी आसारािजी आशि,
साबरिित, अिदािाद-5) से िबना िूलय िििती कािी भसि करीब डे ढ गाि, भोजन से
आधा घणटा पूिि और भोजन के बाद एक िगिास पानी के साथ िेना चािहए और यह
आसन भूखे पेट ठीक ढं ग से करना चािहए। इससे पथरी के ददि िे िाभ होता है । पथरी
टु कडे -टु कडे होकर िूत के दारा बाहर िनकिने िगती है । िूतििकार दरू होता है । किर
ददि , साइिटका, रीढ की हडडी की जकडन, उदासीनता, िनराशा, डायािबटीजं, नपुंसकता, गैस, पैर
की गाँठ इियािद रोगो िे शीघ िाभ होता है । नािभ सथान से चयुत हो जाती हो तो पुनः
अपने सथान िे आ जाती है ।
िािसक धिि के सिय एिं गभाि
ि सथा िे िसयाँ यह आसन न करे । कबज का रोगी
सुबह शौच जाने से पहिे उषःपान करके यह आसन करे तो चििकािरक िाभ होता है ।
शास को अनदर भर के पेट को फुिाकर यह आसन करने से कबज जलदी दरू होता है ।

अध ि ििसय ेनदासन
कहा जाता है िक ििसयेनदासन की रचना गोरखनाथ के गुर सिािी ििसयेनदनाथ
ने की थी। िे इस आसन िे धयान िकया करते थे। ििसयेनदासन की आधी िियाओं को
िेकर अधि
ि िसयेनदासन पचिित हुआ है ।

धयान अनाहत चि िे। शास दीघ।ि


िि िधः दोनो पैरो को िमबे करके आसन पर बैठ जाओ। बाये पैर को घुटने से
िोडकर एडी गुदादार के नीचे जिाये। पैर के तििे को दािहनी जंघा के साथ िगा दे ।
अब दािहने पैर को घुटने से िोडकर खडा कर दे और बाये पैर की जंघा से ऊपर िे जाते
हुए जंघा के पीछे जिीन के ऊपर ऱख दे । आसन के ििए यह पूिभ
ि िू िका तैयार हो गई।
अब बाये हाथ को दािहने पैर के घुटने से पार करके अथात
ि घुटने को बगि िे
दबाते हुए बाये हाथ से दािहने पैर का अंगूठा पकडे । धड को दािहनी ओर िोडे िजससे
दािहने पैर के घुटने के ऊपर बाये कनधे का दबाि ठीक से पडे । अब दािहना हाथ पीठ के
पीछे से घुिाकर बाये पैर की जांघ का िनमन भाग पकडे । िसर दािहनी ओर इतना घुिाये
िक ठोडी और बायाँ कनधा एक सीधी रे खा िे आ जाय। छाती िबलकुि तनी हुई रखे।
नीचे की ओर झुके नहीं। िचतििृत नािभ के पीछे के भाग िे िसथत ििणपुर चि िे िसथर
करे ।
यह एक तरफ का आसन हुआ। इसी पकार पहिे दािहना पैर िोडकर, एडी गुदादार
के नीचे दबाकर दस
ू री तरफ का आसन भी करे । पारमभ िे पाँच सेकणड यह आसन
करना पयाप
ि है । िफर अभयास बढाकर एक एक तरफ एक एक ििनट तक आसन कर
सकते है ।
िाभ ः अधि
ि िसयेनदासन से िेरदणड सिसथ रहने से यौिन की सफूिति बनी रहती
है । रीढ की हिडडयो के साथ उनिे से िनकिने िािी नािडयो को भी अचछी कसरत ििि
जाती है । पेट के िििभनन अंगो को भी अचछा िाभ होता है । पीठ, पेट के निे, पैर, गदि न,
हाथ, किर, नािभ से नीचे के भाग एिं छाती की नािडयो को अचछा िखंचाि िििने से उन
पर अचछा पभाि पडता है । फितः बनधकोष दरू होता है । जठरािगन तीव होती है । ििकृ त
यकृ त, पिीहा तथा िनिषिय िक
ृ क के ििए यह आसन िाभदायी है । किर, पीठ और
सिनधसथानो के ददि जलदी दरू हो जाते है ।

योग िु दासन
योगाभयास िे यह िुदा अित िहतिपूणि है , इससे इसका नाि योगिुदासन रखा
गया है ।

धयान ििणपुर चि िे। शास रे चक, कुमभक और पूरक।


िि िधः पदासन िगाकर दोनो हाथो को पीठ के पीछे िे जाये। बाये हाथ से
दािहने हाथ की किाई पकडे । दोनो हाथो को खींचकर किर तथा रीढ के िििन सथान
पर िे जाये। अब रे चक करके कुमभक करे । शास को रोककर शरीर को आगे झुकाकर
भूिि पर टे क दे । िफर धीरे -धीरे िसर को उठाकर शरीर को पुनः सीधा कर दे और पूरक
करे । पारं भ िे यह आसन किठन िगे तो सुखासन या िसदासन िे बैठकर करे । पूणि िाभ
तो पदासन िे बैठकर करने से ही होता है । पाचनतनत के अंगो की सथानभषता ठीक
करने के ििए यिद यह आसन करते हो तो केिि पाँच-दस सेकणड तक ही करे , एक
बैठक िे तीन से पाँच बार। सािानयतः यह आसन तीन ििनट तक करना चािहए।
आधयािििक उदे शय से योगिुदासन करते हो तो सिय की अििध रिच और शिक के
अनुसार बढाये।
िाभ ः योगिुदासन भिी पकार िसद होता है तब कुणडिििन शिक जागत
ृ होती है ।
पेट की गैस की बीिारी दरू होती है । पेट एिं आँतो की सब िशकायते दरू होती है ।
किेजा, फेफडे , आिद यथा सथान रहते है । हदय िजबूत बनता है । रक के ििकार दरू होते
है । कुष और यौनििकार नष होते है । पेट बडा हो तो अनदर दब जाता है । शरीर िजबूत
बनता है । िानिसक शिक बढती है ।
योगिुदासन से उदरपटि सशक बनता है । पेट के अंगो को अपने सथान िटके
रहने िे सहायता िििती है । नाडीतंत और खास करके किर के नाडी िणडि को बि
िििता है ।
इस आसन िे ,सािनयतः जहाँ एिडयाँ िगती है िहाँ कबज के अंग होते है । उन
पर दबाि पडने से आँतो िे उतेजना आती है । पुराना कबज दरू होता है । अंगो की
सथानभषता के कारण होने िािा कबज भी, अंग अपने सथान िे पुनः यथाित िसथत हो
जाने से नष हो जाता है । धातु की दब
ु ि
ि ता िे योगिुदासन खूब िाभदायक है ।

गोरकासन या भदासन

धयान िूिाधार चि िे। शास पथि िसथित िे पूरक और दस


ू री िसथित िे
कुमभक।
िि िधः िबछे हुए आसन पर बैठ जाये। दािहना पैर घुटने से िोडकर एडी सीिन
(उपसथ और गुदा के िधय) के दािहने भाग िे और बायाँ पैर िोडकर एडी सीिन के बाये
भाग िे इस पकार रखे िक दोनो पैर के तििे एक दस
ू रे को िगकर रहे ।
रे चक करके दोनो हाथ सािने जिीन पर टे ककर शरीर को ऊपर उठाये और दोनो
पैर के पंजो पर इस पकार बैठे िक शरीर का िजन एडी के िधय भाग िे आये। अंगुिियो
िािा भाग छूटा रहे । अब पूरक करते-करते दोनो हाथो की हथेिियो को घुटनो पर रखे।
अनत िे कुमभक करके ठोडी छाती पर दबाये। िचतििृत िूिाधार चि िे और दिष भी
उसी िदशा िे िगाये। ििशः अभयास बढाकर दसके ििनट तक यह आसन करे ।
िाभ ः इस आसन के अभयास से पैर के सब सिनध सथान तथा सनायु सशक
बनते है । िायु ऊधिग
ि ािी होकर जठरािगन पदीप करता है । िदनो िदन जडता नष होने
िगती है । शरीर पतिा होता है । संकलपबि बढता है । बुिद तीकण होती है । कलपनाशिक
का ििकास होता है । पाणापान की एकता होती है । नादोिपित होने िगती है । िबनद ु िसथर
होकर िचत की चंचिता कि होती है । आहार का संपूणत
ि या पाचन हो जाने के कारण
िििूत अलप होने िगते है । शरीर शुिद होने िगती है । तन िे सफूिति एिं िन िे
पसननता अपने आप पकट होती है । सनायु सुदढ बनते है । धातुकय, गैस, िधुपिेह,
सिपनदोष, अजीणि, किर का ददि , गदि न की दब
ु ि
ि ता, बनधकोष, िनदािगन, िसरददि , कय,
हदयरोग, अिनदा, दिा, िूछारिोग, बिासीर, आंतपुचछ, पाणडु रोग, जिोदर, भगनदर, कोढ, उलटी,
िहचकी, अितसार, आँि, उदररोग, नेतििकार आिद असंखय रोगो िे इस आसन से िाभ होते
है ।

ियू रासन

इस आसन िे ियूर अथात


ि िोर की आकृ ित बनती है , इससे इसे ियूरासन कहा
जाता है ।
धयान ििणपुर चि िे। शास बाह कुमभक।
िि िधः जिीन पर घुटने िटकाकर बैठ जाये। दोनो हाथ की हथेिियो को जिीन
पर इस पकार रखे िक सब अंगिु ियाँ पैर की िदशा िे हो और परसपर िगी रहे । दोनो
कुहिनयो को िोडकर पेट के कोिि भाग पर, नािभ के इदि िगदि रखे। अब आगे झुककर
दोनो पैर को पीछे की िमबे करे । शास बाहर िनकाि कर दोनो पैर को जिीन से ऊपर
उठाये और िसर का भाग नीचे झुकाये। इस पकार पूरा शरीर जिीन के बराबर
सिानानतर रहे ऐसी िसथित बनाये। संपूणि शरीर का िजन केिि दो हथेिियो पर ही
रहे गा। िजतना सिय रह सके उतना सिय इस िसथित िे रहकर िफर िूि िसथित िे आ
जाये। इस पकार दो-तीन बार करे ।
िाभ ः ियूरासन करने से बहचयि-पािन िे सहायता िििती है । पाचन तंत के
अंगो की रक का पिाह अिधक बढने से िे अंग बििान और कायश
ि ीि बनते है । पेट के
भीतर के भागो िे दबाि पडने से उनकी शिक बढती है । उदर के अंगो की िशिथिता और
िनदािगन दरू करने िे ियूरासन बहुत उपयोगी है ।

िजासन
िजासन का अथि है बििान िसथित। पाचनशिक, िीयश
ि िक तथा सनायुशिक दे ने
िािा होने से यह आसन िजासन कहिाता है ।

धयान िूिाधार चि िे और शास दीघ।ि


िि िधः िबछे हुए आसन पर दोनो पैरो को घुटनो से िोडकर एिडयो पर बैठ जाये।
पैर के दोनो अंगूठे परसपर िगे रहे । पैर के तििो के ऊपर िनतमब रहे । किर और पीठ
िबलकुि सीधी रहे , दोनो हाथ को कुहिनयो से िोडे िबना घुटनो पर रख दे । हथेिियाँ नीचे
की ओर रहे । दिष सािने िसथर कर दे ।
पाँच ििनट से िेकर आधे घणटे तक िजासन का अभयास कर सकते है । िजासन
िगाकर भूिि पर िेट जाने से सुप िजासन होता है ।
िाभ ः िजासन के अभयास से शरीर का िधयभाग सीधा रहता है । शास की गित
िनद पडने से िायु बढती है । आँखो की जयोित तेज होती है । िजनाडी अथात
ि िीयध
ि ारा
नाडी िजबूत बनती है । िीयि की ऊधिग
ि ित होने से शरीर िज जैसा बनता है । िमबे सिय
तक सरिता से यह आसन कर सकते है । इससे िन की चंचिता दरू होकर वयिक िसथर
बुिदिािा बनता है । शरीर िे रकािभसरण ठीक से होकर शरीर िनरोगी एिं सुनदर बनता
है ।
भोजन के बाद इस आसन से बैठने से पाचन शिक तेज होती है । कबज दरू होती
है । भोजन जलदी हजि होता है । पेट की िायु का नाश होता है । कबज दरू होकर पेट के
तिाि रोग नष होते है । पाणडु रोग से िुिक िििती है । रीढ, किर, जाँघ, घुटने और पैरो िे
शिक बढती है । किर और पैर का िायु रोग दरू होता है । सिरणशिक िे ििृद होती है ।
िसयो के िािसक धिि की अिनयिितता जैसे रोग दरू होते है । शुिदोष, िीयद
ि ोष, घुटनो का
ददि आिद का नाश होता है । सनायु पुष होते है । सफूिति बढाने के ििए एिं िानिसक
िनराशा दरू करने के ििए यह आसन उपयोगी है । धयान के ििये भी यह आसन उति
है । इसके अभयास से शारीिरक सफूिति एिं िानिसक पसननता पकट होती है । िदन-
पितिदन शिक का संचय होता है इसििए शारीिरक बि िे खूब ििृद होती है । काग का
िगरना अथात
ि गिे के टािनसलस, हिडडयो के पोि आिद सथानो िे उिपनन होने िािे
शेतकण की संखया िे ििृद होने से आरोगय का सामाजय सथािपत होता है । िफर वयिक
बुखार से िसरददि से, कबज से, िंदािगन से या अजीणि जैसे छोटे -िोटे िकसी भी रोग से
पीिडत नहीं रहता, कयोिक रोग आरोगय के सामाजय िे पििष होने का साहस ही नहीं कर
पाते।

सुपिजासन

धयान ििशुदाखयाचि िे। शास दीघि, सािानय।


िि िधः िजासन िे बैठने के बाद िचत होकर पीछे की ओर भूिि पर िेट जाये।
दोनो जंघाएँ परसपर िििी रहे । अब रे चक करते बाये हाथ का खुिा पंजा दािहने कनधे के
नीचे इस पकार रखे िक िसतक दोनो हाथ के िास के ऊपर आये। रे चक पूरा होने पर
ितबनध करे । दिष िूिाधार चि की िदशा िे और िचतििृत िूिाधार चि िे सथािपत
करे ।
िाभ ः यह आसन करने िे शि बहुत कि है और िाभ अिधक होता है । इसके
अभयास से सुषम
ु ना का िागि अियनत सरि होता है । कुणडििनी शिक सरिता से
ऊधिग
ि िन कर सकती है ।
इस आसन िे धयान करने से िेरदणड को सीधा करने का शि नहीं करना पडता
और िेरदणड को आराि िििता है । उसकी काय़श
ि िक पबि बनती है । इस आसन का
अभयास करने से पायः तिाि अंतःसािी गिनथयो को, जैसे शीषस
ि थ गिनथ, कणठसथ
गिनथ, िूतिपणड की गनथी, ऊधिििपणड तथा पुरषाथि गिनथ आिद को पुिष िििती है ।
फितः वयिक का भौितक एिं आधयािििक ििकास सरि हो जाता है । तन-िन का
सिासिय पभािशािी बनता है । जठरािगन पदीप होती है । ििािरोध की पीडा दरू होती है ।
धातुकय, सिपनदोष, पकाघात, पथरी, बहरा होना, तोतिा होना, आँखो की दब
ु ि
ि ता, गिे के
टािनसि, शासनििका का सूजन, कय, दिा, सिरणशिक की दब
ु ि
ि ता आिद रोग दरू होते है ।

शिासन
शिासन की पूणाि
ि सथा िे शरीर के तिाि अंग एिं ििसतषक पूणत
ि या चेषा रिहत
िकये जाते है । यह अिसथा शि (िुदे) जैसी होने से इस आसन को शिासन कहा जाता है ।

िि िधः िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाये। दोनो पैरो को परसपर से थोडे
अिग कर दे । दोनो हाथ भी शरीर से थोडे अिग रहे । इस पकार पैरो की ओर फैिा दे ।
हाथ की हथेिियाँ आकाश की तरफ खुिी रखे। िसर सीधा रहे । आँखे बनद।
िानिसक दिष से शरीर को पैर से िसर तक दे खते जाये। पूरे शरीर को िुदे की
तरह ढीिा छोड दे । हर एक अंग को िशिथि करते जाये।
शरीर िे समपूणि ििशाि का अनुभि करे । िन को भी बाहा ििषयो से हटाकर
एकाग करे । बारी-बारी से हर एक अंग पर िानिसक दिष एका््ग करते हुए भािना करे
िक िह अंग अब आराि पा रहा है । िेरी सब थकान उतर रही है । इस पकार भािना
करते-करते सब सनायुओं को िशिथि होने दे । शरीर के एक भी अंग िे कहीं भी तनाि
(टे नशन) न रहे । िशिथिीकरण की पििया िे पैर से पारमभ करके िसर तक जाये अथिा
िसर से पारमभ करके पैर तक भी जा सकते है । अनत िे, जहाँ से पारमभ िकया हो िहीं
पुनः पहुँचना चािहये। िशिथिीकरण की पििया से शरीर के तिाि अंगो का एिं
जानतंतुओं को ििशाि की अिसथा िे िा दे ना है ।
शिासन की दस
ू री अिसथा िे शासोचछोिास पर धयान दे ना है । शिासन की यही
िुखय पििया है । ििशेषकर, योग साधको के ििए िह अियनत उपयोगी है । केिि
शारीिरक सिासिय के ििये पथि भूििका पयाप
ि है ।
इसिे शास और उचछिास की िनयिितता, दीघत
ि ा और सिानता सथािपत करने
का िकय है । शास िनयिित चिे, िमबा और गहरा चिे, शास और उचछिास एक सिान
रहे तो िन को एकाग करने की शिक पाप होती है ।
शिासन यिद ठीक ढं ग से िकया जाए तो नाडीतंत इतना शांत हो जाता है िक
अभयासी को नींद आने िगती है । िेिकन धयान रहे , िनिनदत न होकर जागत रहना
आिशयक है ।
अनय आसन करने के बाद अंगो िे जो तनाि (टे नशन) पैदा होता है उसको
िशिथि करने के ििये अंत िे 3 से 5 ििनट तक शिासन करना चािहए। िदनभर िे
अनुकूिता के अनुसार दो-तीन बार शिासन कर सकते है ।
िाभ ः शिासन के दारा सनायु एिं िांसपेिशयो िे िशिथिीकरण से शिक बढती है ।
अिधक कायि करने की योगयता उसिे आती है । रकिाहिनयो िे, िशराओं िे रकपिाह तीव
होने से सारी थकान उतर जाती है । नाडीतंत को बि िििता है । िानिसक शिक िे ििृद
होती है ।
रक का दबाि कि करने के ििए, नाडीतंत की दब
ु ि
ि ता एिं उसके कारण होने िािे
रोगो को दरू करने के ििये शिासन खूब उपयोगी है ।

पादपिश िोतानासन
यह आसन करना किठन है इससे उगासन कहा जाता है । उग का अथि है िशि।
भगिान िशि संहारकताि है अतः उग या भयंकर है । िशिसंिहता िे भगिान िशि ने िुक
कणठ से पशंसा करते हुए कहा है ः यह आसन सिश
ि ष
े आसन है । इसको पयतपूिक
ि गुप
रखे। िसफि अिधकािरयो को ही इसका रहसय बताये।

धयान ििणपुर चि िे। शास पथि िसथित िे पूरक और दस


ू री िसथित िे रे चक
और िफर बिहकुिमभक।
िि िधः िबछे हुए आसन पर बैठ जाये। दोनो पैरो को िमबे फैिा दे । दोनो पैरो की
जंघा, घुटने, पंजे परसपर िििे रहे और जिीन के साथ िगे रहे । पैरो की अंगुियाँ घुटनो
की तरफ झुकी हुई रहे । अब दोनो हाथ िमबे करे । दािहने हाथ की तजन
ि ी और अंगूठे से
दािहने पैर का अंगूठा और बाये हाथ की तजन
ि ी और अंगूठे से बाये पैर का अंगूठा पकडे ।
अब रे चक करते-करते नीचे झुके और िसर को दोनो घुटनो के िधय िे रखे। ििाट घुटने
को सपशि करे और घुटने जिीन से िगे रहे । रे चक पूरा होने पर कुमभक करे । दिष एिं
िचतििृत को ििणपुर चि िे सथािपत करे । पारमभ िे आधा ििनट करके ििशः 15
ििनट तक यह आसन करने का अभयास बढाना चािहये। पथि दो-चार िदन किठन
िगेगा िेिकन अभयास हो जाने पर यह आसन सरि हो जाएगा।
िाभ ः पादपिशिोतनासन िे समयक अभयास से सुषुमना का िुख खुि जाता है
और पाण िेरदणड के िागि िे गिन करता है , फितः िबनद ु को जीत सकते है । िबनद ु को
जीते िबना न सिािध िसद होती है न िायु िसथर होता है न िचत शांत होता है ।
जो सी-पुरष काि ििकार से अियंत पीिडत हो उनहे इस आसन का अभयास
करना चािहए। इससे शारीिरक ििकार दब जाते है । उदर, छाती और िेरदणड को उति
कसरत िििती है अतः िे अिधक कायक
ि ि बनते है । हाथ, पैर तथा अनय अंगो के सिनध
सथान िजबूत बनते है । शरीर के सब तंत बराबर कायश
ि ीि होते है । रोग िात का नाश
होकर सिासिय़ का सामाजय सथािपत होता है ।
इस आसन के अभयास से िनदािगन, ििािरोध, अजीणि, उदररोग, कृ ििििकार, सदी,
िातििकार, किर का ददि , िहचकी, कोढ, िूतरोग, िधुपिेह, पैर के रोग, सिपनदोष, िीयिििकार,
रकििकार, एपेनडीसाइिटस, अणडििृद, पाणडू रोग, अिनदा, दिा, खटटी डकारे आना, जानतनतु
की दब
ु ि
ि ता, बिासीर, नि की सूजन, गभाश
ि य के रोग, अिनयिित तथा कषदायक िािसक,
बनधयिि, पदर, नपुंसकता, रकिपत, िसरोिेदना, बौनापन आिद अनेक रोग दरू होते है । पेट
पतिा बनता है । जठरािगन पदीप होती है । कफ और चरबी नष होते है ।
िशिसंिहता िे कहा है िक इस आसन से िायूदीपन होता है और िह ििृयु का
नाश करता है । इस आसन से शरीर का कद बढता है । शरीर िे अिधक सथूिता हो तो
कि होती है । दब
ु ि
ि ता हो तो िह दरू होकर शरीर सािानय तनदर
ु सत अिसथा िे आ जाता
है । नाडी संसथान िे िसथरता आती है । िानिसक शांित पाप होती है । िचनता एिं उतेजना
शांत करने के ििए यह आसन उति है । पीठ और िेरदणड पर िखंचाि आने से दोनो
ििकिसत होते है । फितः शरीर के तिाि अियिो पर अिधकार सथािपत होता है । सब
आसनो िे यह आसन सिप
ि धान है । इसके अभयास से कायाकलप (पिरितन
ि ) हो जाता है ।
यह आसन भगिान िशि को बहुत पयारा है । उनकी आजा से योगी गोरखनाथ ने
िोककलयाण हे तु इसका पचार िकया है । आप इस आसन के अदभुत िाभो से िाभािनित
हो और दस
ू रो को भी िसखाये।
पादपिशिोतानासन पूजयपाद आसारािजी बापू को भी बहुत पयारा है । उससे
पूजयशी को बहुत िाभ हुए है । अभी भी यह आसन उनके आरोगयिनिध का रकक बना
हुआ है ।
पाठक भाइयो! आप अिशय इस आसन का िाभ िेना। पारमभ के चार-पाँच िदन
जरा किठन िगेगा। बाद िे तो यह आसन आपका िशिजी के िरदान रप आरोगय किच
िसद हुए िबना नहीं रहे गा।

ितबनध
िूिबनध
शौच सनानािद से िनित
ृ होकर आसन पर बैठ जाये। बायीं एडी के दारा सीिन या
योिन को दबाये। दािहनी एडी सीिन पर रखे। गुदादार को िसकोडकर भीतर की ओर ऊपर
खींचे। यह िूिबनध कहा जाता है ।
िाभ ः िूिबनध के अभयास से ििृयु को जीत सकते है । शरीर िे नयी ताजगी
आती है । िबगडते हुए सिासिय की रका होती है । बहचयि का पािन करने िे िूिबनध
सहायक िसद होता है । िीयि को पुष करता है , कबज को नष करता है , जठरािगन तेज होती
है । िूिबनध से िचरयौिन पाप होता है । बाि सफेद होने से रकते है ।
अपानिाय ऊधिग
ि ित पाकर पाणिायु के सुषुमना िे पििष होता है । सहसारचि िे
िचतििृत िसथर बनती है । इससे िशिपद का आननद िििता है । सिि पकार की िदवय
ििभूितयाँ और ऐशयि पाप होते है । अनाहत नाद सुनने को िििता है । पाण, अपान, नाद
और िबनद ु एकितत होने से योग िे पूणत
ि ा पाप होती है ।

उडडीय ान बनध
आसन पर बैठकर पूरा शास बाहर िनकाि दे । समपणत
ि या रे चक करे । पेट को
भीतर िसकोडकर ऊपर की ओर खींचे। नािभ तथा आँते पीठ की तरफ दबाये। शरीर को
थोडा सा आगे की तरफ झुकाये। यह है उडडीयानबनध।
िाभ ः इसके अभयास से िचरयौिन पाप होता है । ििृयु पर जय पाप होती है ।
बहचयि के पािन िे खूब सहायता िििती है । सिासिय सुनदर बनता है । कायश
ि िक िे
ििृद होती है । नयोिि और उडडीयानबनध जब एक साथ िकये जाते है तब कबज दि

दबाकर भाग खडा होता है । पेट के तिाि अियिो की िाििश हो जाती है । पेट की
अनािशयक चरबी उतर जाती है ।

जािनधरबनध
आसन पर बैठकर पूरक करके कुमभक करे और ठोडी को छाती के साथ दबाये।
इसको जािनधरबनध कहते है ।
िाभ ः जािनधरबनध के अभयास से पाण का संचरण ठीक से होता है । इडा और
िपंगिा नाडी बनद होकर पाण-अपान सुषुमना िे पििष होते है । नािभ से अित
ृ पकट
होता है िजसका पान जठरािगन करता है । योगी इसके दारा अिरता पाप करता है ।
पदासन पर बैठ जाये। पूरा शास बाहर िनकाि कर िूिबनध, उडडीयानबनध करे ।
िफर खूब पूरक करके िूिबनध, उडडीयानबनध और जािनधरबनध ये तीनो बनध एक साथ
करे । आँखे बनद रखे। िन िे पणि (ú) का अथि के साथ जप करे ।
इस पकार पाणायाि सिहत तीनो बनध का एक साथ अभयास करने से बहुत िाभ
होता है और पायः चििकािरक पिरणाि आता है । केिि तीन ही िदन के समयक अभयास
से जीिन िे िािनत का अनुभि होने िगता है । कुछ सिय के अभयास से केिि या
केििी कुमभक सियं पकट होता है ।

केि िी कुमभक
केिि या केििी कुमभक का अथि है रे चक-पूरक िबना ही पाण का िसथर हो
जाना। िजसको केििी कुमभक िसद होता है उस योगी के ििए तीनो िोक िे कुछ भी
दि
ु भ
ि नहीं रहता। कुणडििनी जागत
ृ होती है , शरीर पतिा हो जाता है , िुख पसनन रहता
है , नेत ििरिहत होते है । सिि रोग दरू हो जाते है । िबनद ु पर ििजय होती है । जठरािगन
पजििित होती है ।
केििी कुमभक िसद िकये हुए योगी की अपनी सिि िनोकािनाये पूणि होती है ।
इतना ही नहीं, उसका पूजन करके शदािान िोग भी अपनी िनोकािनाये पूणि करने
िगते है ।
जो साधक पूणि एकागता से ितबनध सिहत पाणायाि के अभयास दारा केििी
कुमभक का पुरषाथि िसद करता है उसके भागय का तो पूछना ही कया? उसकी वयापकता
बढ जाती है । अनतर िे िहानता का अनुभि होता है । काि, िोध, िोभ, िोह, िद और
ििसर इन छः शतुओं पर ििजय पाप होती है । केििी कुमभक की ििहिा अपार है ।

जिन ेित
िि िधः एक ििटर पानी को गुनगुना सा गरि करे । उसिे करीब दस गाि शुद
निक डािकर घोि दे । सैनधि ििि जाये तो अचछा। सुबह िे सनान के बाद यह पानी
चौडे िुह
ँ िािे पात िे, कटोरे िे िेकर पैरो पर बैठ जाये। पात को दोनो हाथो से पकड कर
नाक के नथुने पानी िे डु बो दे । अब धीरे -धीरे नाक के दारा शास के साथ पानी को भीतर
खींचे और नाक से भीतर आते हुए पानी को िुँह से बाहर िनकािते जाये। नाक को पानी
िे इस पकार बराबर डु बोये रखे िजससे नाक दारा भीतर जानेिािे पानी के साथ हिा न
पिेश करे । अनयथा आँतरस-खाँसी आयेगी।
इस पकार पात का सब पानी नाक दारा िेकर िुख दारा बाहर िनकाि दे । अब
पात को रख कर खडे हो जाये। दोनो पैर थोडे खुिे रहे । दोनो हाथ किर पर रखकर शास
को जोर से बाहर िनकािते हुए आगे की ओर िजतना हो सके झुके। भिसका के साथ यह
ििया बार-बार करे , इससे नाक के भीतर का सब पानी बाहर िनकि जायेगा। थोडा बहुत
रह भी जाये और िदन िे कभी भी नाक से बाहर िनकि जाये तो कुछ िचनताजनक नहीं
है ।
नाक से पानी भीतर खींचने की यह ििया पारमभ िे उिझन जैसी िगेगी िेिकन
अभयास हो जाने पर िबलकुि सरि बन जायेगा।
िाभ ः ििसतषक की ओर से एक पकार का ििषैिा रस नीचे की ओर बहता है ।
यह रस कान िे आये तो कान के रोग होते है , आदिी बहरा हो जाता है । यह रस आँखो
की तरफ जाये तो आँखो का तेज कि हो जाता है , चशिे की जररत पडती है तथा अनय
रोग होते है । यह रस गिे की ओर जाये तो गिे के रोग होते है ।
िनयिपूिक
ि जिनेित करने से यह ििषैिा पदाथि बाहर िनकि जाता है । आँखो की
रोशनी बढती है । चशिे की जररत नहीं पडती। चशिा हो भी तो धीरे -धीरे नमबर कि
होते-होते छूट जाता भी जाता है । शासोचछोिास का िागि साफ हो जाता है । ििसतषक िे
ताजगी रहती है । जुकाि-सदी होने के अिसर कि हो जाते है । जिनेित की ििया करने
से दिा, टी.बी., खाँसी, नकसीर, बहरापन आिद छोटी-िोटी 1500 बीिीिरयाँ दरू होती है ।
जिनेित करने िािे को बहुत िाभ होते है । िचत िे पसननता बनी रहती है ।

गज कर णी
िि िधः करीब दो ििटर पानी गुनगुना सा गरि करे । उसिे करीब 20 गाि शुद
निक घोि दे । सैनधि ििि जाये तो अचछा है । अब पंजो के बि बैठकर िह पानी
िगिास भर-भर के पीते जाये। खूब िपये। अिधकाअिधक िपये। पेट जब िबलकुि भर
जाये, गिे तक आ जाये, पानी बाहर िनकािने की कोिशश करे तब दािहने हाथ की दो
बडी अंगिु ियाँ िुँह िे डाि कर उलटी करे , िपया हुआ सब पानी बाहर िनकाि दे । पेट
िबलकुि हलका हो जाये तब पाँच ििनट तक आराि करे ।
गजकरणी करने के एकाध घणटे के बाद केिि पतिी िखचडी ही भोजन िे िे।
भोजन के बाद तीन घणटे तक पानी न िपये, सोये नहीं, ठणडे पानी से सनान करे । तीन
घणटे के बाद पारमभ िे थोडा गरि पानी िपये।
िाभ ः गजकरणी से एिसडीटी के रोगी को अदभुत िाभ होता है । ऐसे रोगी को
चार-पाँच िदन िे एक बार गजकरणी चािहए। तिपशात िहीने िे एक बार, दो िहीने िे
एक बार, छः िहीने िे एक बार भी गजकरणी कर सकते है ।
पातःकाि खािी पेट तुिसी के पाँच-सात पते चबाकर ऊपर से थोडा जि िपये।
एसीडीटी के रोगी को इससे बहुत िाभ होगा।
िषो पुराने कबज के रोिगयो को सपाह िे एक बार गजकरणी की ििया अिशय
करनी चािहए। उनका आिाशय गिनथसंसथान किजोर हो जाने से भोजन हजि होने िे
गडबड रहती है । गजकरणी करने से इसिे िाभ होता है । फोडे , फुनसी, िसर िे गिी, सदी,
बुखार, खाँसी, दिा, टी.बी., िात-िपत-कफ के दोष, िजहा के रोग, गिे के रोग, छाती के
रोग, छाती का ददि एिं िंदािगन िे गजकरणी ििया िाभकारक है ।

शरीर शोधन -कायाकलप


यह चािीस िदन का कलप है । पू््जयपाद आसारािजी बापू ने यह पयोग िकया
हुआ है । इससे शरीर सुडौि, सिसथ और फुतीिा बनता है । रक िे नये-नये कण बनते है ,
शरीर के कोषो की शिक बढती है । िन-बुिद िे चििकािरक िाभ होते है ।
िि िधः अगिे िदन पपीता, सेि आिद फि उिचत िाता िे िे। अथिा िुनकका 50
गाि दस घणटे पहिे िभगो दे । उनको उबािकर बीज िनकाि दे । िुनकका खा िे और
पानी पी िे।
पातःकाि उठकर संकलप करे िक इस कलप के दौरान िनिशत िकये हुए कायि
ि ि
के अनुसार ही रहँ गा।
शौच-सनानािद िनियकिि से िनित
ृ होकर सुबह 8 बजे 200 या 250 गाि गाय
का उबिा हुआ गुनगुना दध
ू िपये। पौन घणटा पूणि आराि करे । बाद िे िफर से दध
ू िपये।
शारीिरक शि कि से कि करे । ú सो s हं ह ंस ः इस िंत का िानिसक जप करे । कभी
शास को िनहारे । बस साकीभाि।
िनोराजय चिता हो तो ú ... जोर-जोर से जप करे ।
इस पकार शाि तक िजतना दध
ू हजि कर सके उतना दध
ू दो से तीन ििटर
िपये। 40 िदन तक केिि दगुधाहार के बाद 41 िे िदन िूँग का उबिा हुआ पानी,
िोसमिी का रस आिद िे। राित को अिधक िूग
ँ िािी हलकी िखचडी खाये। इस पकार
शरीर-शोधन-कायाकलप की पूणाह
ि ू ित करे ।
यिद बुिद तीकण बनानी हो, सिरणशिक बढानी हो, तो कलप के दौरान ú ऐं
निः इस िंत का जप करे । सूयि को अघयि दे ।
इस कलप िे दध
ू के िसिाय अनय कोई खुराक िेना िना है । चाय, तमबाकू आिद
वयसन िनिषद है । िसयो के संग से दरू रहना तथा बहचयि का पािन अियनत आिशयक
है ।

किज ु ग नही ं ..... करज ु ग ह ै यह


किजुग नह ीं करज ुग ह ै यह , यहा ँ िदन को द े अ र रात िे।
कया खूब सौदा नकद ह ै , इस हा थ द े उस हाथ ि े।। ट ेक
द ु िनया ँ अज ब बाजार है , कुछ िज नस 1
यां िक सा थ ि े।
नेकी का बद िा नेक ह ै , बद स े बदी की बात ि े।।
िेिा िखिा , िेिा ििि े , फि फूि द े , फि पात ि े।
आराि द े , आराि ि े , द ु ःख दद ि दे , आफत 2
िे।। 1 ।।
काँटा िकसी को ित ि गा गो िि सिे -गुि 3
फूिा है त ू।
िह त ेरे ह क 4
िे तीर ह ै , िक स बात पर झ ूिा ह ै त ू।।
ित आग ि े डा ि और को , कया घ ास का प ू िा है त ू।
सुन ऱख यह नकता 5
बेखबर , िक स बात पर भ ूिा ह ै त ू।।
किजुग नह ीं ...।। 2 ।।
शोखी शरारत ि करो -फन 6
सबका बस ेखा 7 है यहा ँ।
जो जो िदखा या और को , िह ख ुद भी द ेखा है यह ाँ।।
खोटी खरी जो क ुछ कही , ित सका पर ेखा 8 है यहा ँ।
जो जो पडा त ु िता ह ै ि ोि , ित ि ित ि का ि ेखा है यह ाँ।।
किजुग नह ीं ...।। 3 ।।
जो और की बसती 9
रखे , उसका भी ब सता ह ै प ूरा।
जो और क े िार े छुरी , उसको भी िग ता है छुरा।।
जो और की तोड े घडी , उसका भी ट ूटे ह ै घडा।
जो और की चेत े 10 बदी , उसका भी होता ह ै ब ुरा।।
किज ु ग नही ं ... ।। 4 ।।
जो और को फि द ेि ेगा , िह भी सदा फि पाि ेगा।
गेहूँ स े ग ेहूँ , जौ स े जौ , चाँि ि स े चा ँिि पाि ेगा।।
जो आज द ेि ेगा , यह ाँ , िै सा ही ि ह कि पाि ेगा।
कि द ेि े गा , कि पाि ेगा , िफर द ेि ेगा , िफर पाि ेगा।।
किज ु ग नही ं ... ।। 5 ।।
जो चाह े ि े च ि इ स घडी , सब िजन स यहा ँ त ैयार है।
आराि ि े आराि ह ै , आजार िे आ जार 11
है।।
द ु िनय ाँ न जान इस को ििया ँ , दरया की यह ि झधार ह ै।
औरो का ब ेडा पार कर , तेरा भी ब ेडा पार ह ै।।
किज ु ग नही ं ... ।। 6 ।।
तू और की तारीफ कर , तु झको सनाखिानी 12
ििि े।
कर ि ु िशकि आ सां औरो की , तुझको , भी आ सान ी िि िे।।
तू और को ि ेहिान कर , तु झको भ ी ि ेहिानी ििि े।
रोटी िख िा रोट ी िि िे , पान ी िप िा पान ी िि िे।।
किज ु ग नही ं ... ।। 7 ।।
जो ग ु ि 13
िखिाि े और का उ सका ही ग ु ि िखिता भी ह ै।
जो और का की िे 14 है ि ुँ ह , उसका ही ि ुँह िक िता भी ह ै।।
जो और का छीि े िजगर , उसका िज गर िछि ता भी ह ै।
जो और को देि े क पट , उसको कपट िििता भी ह ै।।
किज ु ग नही ं ... ।। 8 ।।
कर जो क ुछ करना है अब , यह द ि तो को ई आन 15
है।
नुकसान ि े न ुकसान ह ै , एहसान िे ए हसान ह ै।।
तोह ित ि े यहा ँ तो हित ििि े , तू फा न ि े त ूफान ह ै।
रेह िा न 16
को रहिान 17
है , शैतान को श ैतान है।।
किज ु ग नही ं ... ।। 9 ।।
यहा ँ ज हर दे तो ज हर ि े , शककर ि े श ककर द ेख ि े।
नेको का न ेकी का िजा , िूजी 18 को टककर द ेख ि े।।
िोती िद ये िोती िि िे , पिथर ि े पि थर देख िे।
गर त ु झको यह बािर 19
नह ीं तो त ू भी करक े द ेख ि े।।
किजुग नह ीं ... ।। 10 ।।
अप ने नफे के िासत े , ित और का न ुकसान कर।
तेरा भी न ुकसा ं होि े गा , इस बात पर त ू ध यान कर।।
खान ा जो खा सो द ेखकर , पान ी िप ये तो छानकर।
यां प ाँिो को रख फूँककर , और खोफ से ग ुजरान कर।।
किजुग नह ीं ... ।। 11 ।।
गफित की यह ज गह नही ं , तू सािह बे -इदराक 20
रह।
िदि शाद 21
ऱख िद ि शाह रह , गिनाक रख गिनाक रह।।
हर हाि ि े भी त ू नजीर 22
अब हर क दि की रह।
यह िह ि कां ह ै ओ ििय ाँ ! याँ पाक 23
रह ब ेबाक 24
रह।।
किजुग नह ीं ... ।। 12 ।।
1. िसतु 2. िुसीबत, 3. पुषप की तरह 4. तेरे ििये 5. रहसय 6. दगा-धोखा 7. घर 8.
परखना 9. नगरी 10. ििचार करे 11. दःुख 12. तारीफ-सतुित 13. फूि 14. िकसी को
बोिने न दे ना 15. घडी, पि 16. दयािान 17. दयािु भगिान 18. सताने िािा 19.
ििशास 20. तीव दषा, तेज सिझने िािा पुरष 21. पसननिचत 22. किि का नाि है
23. शुद पिित 24 िनडर।
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