सिासिय क े ििए ि ं त
अचय ुताननत गो ििनद निोच चारणभ ेषजात।्
नशयिनत स किा रोगाः सिय ं सिय ं िदामयहि। ् ।
हे अचयुत! हो अननत! हे गोििनद! इस नािोचचारणसिरप औषध से तिाि रोग
नष हो जाते है , यह िै सिय कहता हूँ, यह िै सिय कहता हूँ.... सिय कहता हूँ।
पासताििक
साधारण िनुषय अननिय, पाणिय और िनोिय कोष िे जीता है । जीिन की
तिाि सुषुप शिकयाँ नहीं जगाकर जीिन वयथि खोता है । इन शिकयो को जगाने िे
आपको आसन खूब सहाय रप बनेगे। आसन के अभयास से तन तनदरसत, िन पसनन
और बुिद तीकण बनेगी। जीिन के हर केत िे सुखद सिपन साकार करने की कुँजी आपके
आनतर िन िे छुपी हुई पडी है । आपका अदभुत सािियि पकट करने के ििए ऋिषयो ने
सिाधी से समपाप इन आसनो का अििोकन िकया है ।
हजारो िषि की कसौिटयो िे कसे हुए, दे श-ििदे श िे आदरणीय िोगो के दारा आदर
पाये हुए इन आसनो की पुिसतका दे खने िे छोटी है पर आपके जीिन को अित िहान
बनाने की कुँिजयाँ रखती हुई आपके हाथ िे पहुँच रही है ।
इस पुिसतका को बार-बार पढो, आसनो का अभयास करो। िहमित रखो। अभयास
का सातिय जारी रखो। अदभुत िाभ होगा....... होगा........ अिशय होगा। सििित की सेिा
साथक
ि बनेगी।
संत श ी आ सारािजी बाप ू
बह चय ि -रका का िन त
ú निो भ गित े ि हाबि े पराििाय िनो िभिा िषत ं िनः सत ं भ कुर कुर
सिाहा।
रोज दध
ू िे िनहार कर 21 बार इस िंत का जप करे और दध
ू पी िे। इससे
बहचयि की रका होती है । सिभाि िे आििसात कर िेने जैसा यह िनयि है ।
राित िे गोद पानी िे िभगोकर सुबह चाट िेने से िीयध
ि ातु पुष होता है । बहचयि-
रका िे सहायक बनता है ।
सनायु केनद के साथ उनकी सिानता जोडकर उनका िनदे श िकया जाता है । हिारे शरीर
िे ऐसे सात चि िुखय है । 1. िूिाधारः गुदा के पास िेरदणड के आिखरी िनके के पास
होता है । 2. सिािधषानः जननेिनदय से ऊपर और नािभ से नीचे के भाग िे होता है । 3.
ििणपुरः नािभकेनद िे होता है । 4. अनाहतः हदय िे होता है । 5. ििशुदः कणठ िे होता
है । 6. आजाचिः दो भौहो के बीच िे होता है । 7. सहसारः ििसतषक के ऊपर के भाग िे
जहाँ चोटी रखी जाती है , िहाँ होता है ।
नाडीः पाण िहन करने िािी बारीक नििकाओं को नाडी कहते है । उनकी संखया
72000 बतायी जाती है । इडा, िपंगिा और सुषुमना ये तीन िुखय है । उनिे भी सुषुमना
सबसे अिधक िहतिपूणि है ।
आिशयक िनद ेश
1.भोजन के छः घणटे बाद, दध
ू पीने के दो घणटे बाद या िबलकुि खािी पेट ही
आसन करे ।
2.शौच-सनानािद से िनित
ृ होकर आसन िकये जाये तो अचछा है ।
3.शास िुह
ँ से न िेकर नाक से ही िेना चािहए।
4.गरि कमबि, टाट या ऐसा ही कुछ िबछाकर आसन करे । खुिी भूिि पर
िबना कुछ िबछाये आसन कभी न करे , िजससे शरीर िे िनिित
ि होने िािा ििदुत-
पिाह नष न हो जाये।
5.आसन करते सिय शरीर के साथ जबरदसती न करे । आसन कसरत नहीं है ।
अतः धैयप
ि ूिक
ि आसन करे ।
6.आसन करने के बाद ठं ड िे या तेज हिा िे न िनकिे। सनान करना हो तो
थोडी दे र बाद करे ।
7.आसन करते सिय शरीर पर कि से कि िस और ढीिे होने चािहए।
8.आसन करते-करते और िधयानतर िे और अंत िे शिासन करके,
िशिथिीकरण के दारा शरीर के तंग बने सनायुओं को आराि दे ।
9.आसन के बाद िूतियाग अिशय करे िजससे एकितत दिूषत तति बाहर
िनकि जाये।
10.आसन करते सिय आसन िे बताए हुए चिो पर धयान करने से और
िानिसक जप करने से अिधक िाभ होता है ।
11.आसन के बाद थोडा ताजा जि पीना िाभदायक है . ऑिकसजन और
हाइडोजन िे ििभािजत होकर सिनध-सथानो का िि िनकािने िे जि बहुत
आिशयक होता है ।
12.िसयो को चािहए िक गभाि
ि सथा िे तथा िािसक धिि की अििध िे िे कोई
भी आसन कभी न करे ।
13.सिासिय के आकांकी हर वयिक को पाँच-छः तुिसी के पते पातः चबाकर
पानी पीना चािहए। इससे सिरणशिक बढती है , एसीडीटी एिं अनय रोगो िे िाभ
होता है ।
योगासन
पदा सन या कििा सन
इस आसन िे पैरो का आधार पद अथात
ि किि जैसा बनने से इसको पदासन या
कििासन कहा जाता है । धयान आजाचि िे अथिा अनाहत चि िे। शास रे चक,
कुमभक, दीघि, सिाभाििक।
िि िधः िबछे हुए आसन के ऊपर सिसथ होकर बैठे। रे चक करते करते दािहने पैर
को िोडकर बाँई जंघा पर रखे। बाये पैर को िोडकर दािहनी जंघा पर रखे। अथिा पहिे
बायाँ पैर और बाद िे दािहना पैर भी रख सकते है । पैर के तिुिे ऊपर की ओर और एडी
नािभ के नीचे रहे । घुटने जिीन से िगे रहे । िसर, गरदन, छाती, िेरदणड आिद पूरा भाग
सीधा और तना हुआ रहे । दोनो हाथ घुटनो के ऊपर जानिुदा िे रहे । (अँगूठे को तजन
ि ी
अँगि
ु ी के नाखून से िगाकर शेष तीन अँगुिियाँ सीधी रखने से जानिुदा बनती है ।)
अथिा बाये हाथ को गोद िे रखे। हथेिी ऊपर की और रहे । उसके ऊपर उसी पकार
दािहना हाथ रखे। दोनो हाथ की अँगुिियाँ परसपर िगी रहे गी। दोनो हाथो को िुटठी
बाँधकर घुटनो पर भी रख सकते है ।
रे चक पूरा होने के बाद कुमभक करे । पारं भ िे पैर जंघाओँ के ऊपर पैर न रख
सके तो एक ही पैर रखे। पैर िे झनझनाहट हो, किेश हो तो भी िनराश न होकर अभयास
चािू रखे। अशक या रोगी को चािहए िक िह जबरदसती पदासन िे न बैठे। पदासन
सशक एिं िनरोगी के ििए है । हर तीसरे िदन सिय की अििध एक ििनट बढाकर एक
घणटे तक पहुँचना चािहए।
दिष नासाग अथिा भूिधय िे िसथर करे । आँखे बंद, खुिी या अधि खुिी भी रख
सकते है । शरीर सीधा और िसथर रखे। दिष को एकाग बनाये।
भािना करे िक िूिाधार चि िे छुपी हुई शिक का भणडार खुि रहा है । िनमन
केनद िे िसथत चेतना तेज और औज के रप िे बदिकर ऊपर की ओर आ रही है ।
अथिा, अनाहत चि (हदय) िे िचत एकाग करके भािना करे िक हदयरपी किि िे से
सुगनध की धाराएँ पिािहत हो रही है । सिग शरीर इन धाराओं से सुगिनधत हो रहा है ।
िाभ ः पाणायाि के अभयासपूिक
ि यह आसन करने से नाडीतंत शुद होकर आसन
िसद होता है । ििशुद नाडीतंत िािे योगी के ििशुद शरीर िे रोग की छाया तक नहीं रह
सकती और िह सिेचछा से शरीर का ियाग कर सकता है ।
पदासन िे बैठने से शरीर की ऐसी िसथित बनती है िजससे शसन तंत, जानतंत
और रकािभसरणतंत सुवयििसथत ढं ग के कायि कर सकते है । फितः जीिनशिक का
ििकास होता है । पदासन का अभयास करने िािे साधक के जीिन िे एक ििशेष पकार
की आभा पकट होती है । इस आसन के दारा योगी, संत, िहापुरष िहान हो गये है ।
पदासन के अभयास से उिसाह िे ििृद होती है । सिभाि िे पसननता बढती है ।
िुख तेजसिी बनता है । बुिद का अिौिकक ििकास होता है । िचत िे आननद-उलिास
रहता है । िचनता, शोक, दःुख, शारीिरक ििकार दब जाते है । कुििचार पिायन होकर
सुििचार पकट होने िगते है । पदासन के अभयास से रजस और तिस के कारण वयग
बना हुआ िचत शानत होता है । सतिगुण िे अियंत ििृद होती है । पाणायाि, साितिक
ििताहार और सदाचार के साथ पदासन का अभयास करने से अंतःसािी गंिथयो को
ििशुद रक िििता है । फितः वयिक िे कायश
ि िक बढने से भौितक एिं आधयािििक
ििकास शीघ होता है । बौिदक-िानिसक कायि करने िािो के ििए, िचनतन िनन करने
िािो के ििए एि ििदािथय
ि ो के ििए यह आसन खूब िाभदायक है । चंचि िन को िसथर
करने के ििए एिं िीयरिका के ििए या आसन अिदितय है ।
शि और कष रिहत एक घणटे तक पदासन पर बैठने िािे वयिक का िनोबि
खूब बढता है । भाँग, गाँजा, चरस, अफीि, ििदरा, तमबाकू आिद वयसनो िे फँसे हुए वयिक
यिद इन वयसनो से िुक होने की भािना और दढ िनशय के साथ पदासन का अभयास
करे तो उनके दवुयस
ि न सरिता से और सदा के ििए छूट जाते है । चोरी, जुआ, वयिभचार
या हसतदोष की बुरी आदत िािे युिक-युिितयाँ भी इस आसन के दारा उन सब
कुसंसकारो से िुक हो सकते है ।
कुष, रकिपत, पकाघात, ििािरोध से पैदा हुए रोग, कय, दिा, िहसटीिरया, धातुकय,
कैनसर, उदरकृ िि, ििचा के रोग, िात-कफ पकोप, नपुंसकिि, िनधवय आिद रोग पदासन के
अभयास से नष हो जाते है । अिनदा के रोग के ििए यह आसन रािबाण इिाज है । इससे
शारीिरक िोटापन कि होता है । शारीिरक एिं िानिसक सिासिय की सुरका के ििए यह
आसन सिोति है ।
पदासन िे बैठकर अिशनी िुदा करने अथात
ि गुदादार का बार-बार संकोच पसार
करने से अपानिायु सुषुमना िे पििष होता है । इससे काि ििकार पर जय पाप होने
िगती है । गुहोिनदय को भीतर की ओर िसकोडने से अथात
ि योिनिुदा या िजोिी करने से
िीयि उधिग
ि ािी होता है । पदासन िे बैठकर उडडीयान बनध, जािंधर बनध तथा कुमभक
करके छाती एिं पेट को फुिाने िक ििया करने से िकशुिद एिं कणठशुिद होती है ।
फितः भूख खुिती है , भोजन सरिता से पचता है , जलदी थकान नहीं होती। सिरणशिक
एिं आििबि िे ििृद होती है ।
यि-िनयिपूिक
ि िमबे सिय तक पदासन का अभयास करने से उषणता पकट
होकर िूिाधार चि िे आनदोिन उिपनन होते है । कुणडििनी शिक जागत
ृ होने की
भूििका बनती है । जब यह शिक जागत
ृ होती है तब इस सरि िदखने िािे पदासन की
िासतििक ििहिा का पता चिता है । घेरणड, शािणडलय तथा अनय कई ऋिषयो ने इस
आसन की ििहिा गायी है । धयान िगाने के ििए यह आसन खूब िाभदायक है ।
इदं पदासन ं पोकं सि ि वयािध ििनाशि। ्
द ु िि भं य ेन केनािप धीिता ि भयत े भुिि।।
इस पकार सिि वयािधयो को ििनष करने िािे पदासन का िणन
ि िकया। यह
दि
ु भ
ि आसन िकसी ििरिे बुिदिान पुरष को ही पाप होता है ।
(हठयोगपदीिपका, पथिोपदे श)
िसदासन
पदासन के बाद िसदासन का सथान आता है । अिौिकक िसिदयाँ पाप करने िािा
होने के कारण इसका नाि िसदासन पडा है । िसद योिगयो का यह िपय आसन है । यिो
िे बहचयि शष
े है , िनयिो िे शौच शष
े है िैसे आसनो िे िसदासन शष
े है ।
धयान आजाचि िे और शास, दीघि, सिाभाििक।
िि िधः आसन पर बैठकर पैर खुिे छोड दे । अब बाये पैर की एडी को गुदा और
जननेिनदय के बीच रखे। दािहने पैर की एडी को जननेिनदय के ऊपर इस पकार रखे
िजससे जननेिनदय और अणडकोष के ऊपर दबाि न पडे । पैरो का िि बदि भी सकते
है । दोनो पैरो के तिुिे जंघा के िधय भाग िे रहे । हथेिी ऊपर की ओर रहे इस पकार
दोनो हाथ एक दस
ू रे के ऊपर गोद िे रखे। अथिा दोनो हाथो को दोनो घुटनो के ऊपर
जानिुदा िे रखे। आँखे खुिी अथिा बनद रखे। शासोचछोिास आराि से सिाभाििक चिने
दे । भूिधय िे, आजाचि िे धयान केिनदत करे । पाँच ििनट तक इस आसन का अभयास
कर सकते है । धयान की उचच कका आने पर शरीर पर से िन की पकड छूट जाती है ।
िाभ ः िसदासन के अभयास से शरीर की सिसत नािडयो का शुिदकरण होता है ।
पाणतति सिाभाििकतया ऊधिग
ि ित को पाप होता है । फितः िन को एकाग करना सरि
बनता है ।
पाचनििया िनयिित होती है । शास के रोग, हदय रोग, जीणज
ि िर, अजीणि, अितसार,
शुिदोष आिद दरू होते है । िंदािगन, िरोडा, संगहणी, िातििकार, कय, दिा, िधुपिेह, पिीहा
की ििृद आिद अनेक रोगो का पशिन होता है । पदासन के अभयास से जो रोग दरू होते
है िे िसदासन के अभयास से भी दरू होते है ।
बहचयि-पािन िे यह आसन ििशेष रप से सहायक होता है । ििचार पिित बनते
है । िन एकाग होता है । िसदासन का अभयासी भोग-िििास से बच सकता है । 72 हजार
नािडयो का िि इस आसन के अभयास से दरू होता है । िीयि की रका होती है ।
सिपनदोष के रोगी को यह आसन अिशय करन ा चा िहए।
योगीजन िसदासन के अभयास से िीयि की रका करके पाणायाि के दारा उसको
ििसतषक की ओर िे जाते है िजससे िीयि ओज तथा िेधाशिक िे पिरणत होकर िदवयता
का अनुभि करता है । िानिसक शिकयो का ििकास होता है ।
कुणडििनी शिक जागत
ृ करने के ििए यह आसन पथि सोपान है ।
िसदासन िे बैठकर जो कुछ प ढा जाता ह ै िह अ चछी तरह याद रह जा ता
है। ििदािथय
ि ो के ििए यह आसन ििशेष िाभदायक है । जठरािगन तेज होती है । िदिाग
िसथर बनता है िजससे सिरणशिक बढती है ।
आििा का धयान करने िािा योगी यिद ििताहारी बनकर बारह िषि तक िसदासन
का अभयास करे तो िसिद को पाप होता है । िसदासन िसद होने के बाद अनय आसनो
का कोई पयोजन नहीं रह जाता। िसदासन से केिि या केििी कुमभक िसद होता है । छः
िास िे भी केििी कुमभक िसद हो सकता है और ऐसे िसद योगी के दशन
ि -पूजन से
पातक नष होते है , िनोकािना पूणि होती है । िसदासन के पताप से िनबीज सिािध िसद
हो जाती है । िूिबनध, उडडीयान बनध और जािनधर बनध अपने आप होने िगते है ।
िसदासन जैसा दस
ू रा आसन नहीं है , केििी कुमभक के सिान पाणायाि नहीं है ,
खेचरी िुदा के सिान अनय िुदा नहीं है और अनाहत नाद जैसा कोई नाद नहीं है ।
िसदासन िहापुरषो का आसन है । सािानय वयिक हठपूिक
ि इसका उपयोग न करे ,
अनयथा िाभ के बदिे हािन होने की समभािना है ।
सिा ा गासन
भूिि पर सोकर शरीर को ऊपर उठाया जाता है इसििए इसको सिाग
ा ासन कहते
है ।
धयान ििशुदाखय चि िे, शास रे चक, पूरक और दीघ।ि
िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाएँ। शास को बाहर
िनकाि कर अथात
ि रे चक करके किर तक के दोनो पैर सीधे और परसपर िगे हुए
रखकर ऊपर उठाएं। िफर पीठ का भाग भी ऊपर उठाएं। दोनो हाथो से किर को आधार
दे । हाथ की कुहिनयाँ भूिि से िगे रहे । गरदन और कनधे के बि पूरा शरीर ऊपर की
और सीधा खडा कर दे । ठोडी छाती के साथ िचपक जाए। दोनो पैर आकाश की ओर रहे ।
दषी दोनो पैरो के अंगूठो की ओर रहे । अथिा आँखे बनद करके िचतििृत को कणठपदे श िे
ििशुदाखय चि िे िसथर करे । पूरक करके शास को दीघि, सािानय चिने दे ।
इस आसन का अभय़ास दढ होने के बाद दोनो पैरो को आगे पीछे झुकाते हुए,
जिीन को िगाते हुए अनय आसन भी हो सकते है । सिाग
ा ासन की िसथित िे दोनो पैरो
को जाँघो पर िगाकर पदासन भी िकया जा सकता है ।
हिासन
इस आसन िे शरीर का आकार हि जैसा बनता है इसििए इसको हिासन कहा
जाता है ।
धयान ििशुदाखया चि िे। शास रे चक और बाद िे दीघ।ि
िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाएँ। दोनो हाथ शरीर को
िगे रहे । अब रे चक करके शास को बाहर िनकाि दे । दोनो पैरो को एक साथ धीरे -धीरे
ऊँचे करते जाये। आकाश की ओर पूरे उठाकर िफर पीछे िसर के तरफ झुकाये। पैर
िबलकुि तने हुए रखकर पंजे जिीन पर िगाये। ठोडी छाती से िगी रहे । िचतििृत को
ििशुदाखया चि िे िसथर करे । दो-तीन ििनट से िेकर बीस ििनट तक सिय की अििध
बढा सकते है ।
पिनि ु कासन
शरीर िे िसथत पिन (िायु) यह आसन करने से िुक होता है । इसििए इसे
पिनिुकासन कहा जाता है ।
ििसया सन
ििसय का अथि है िछिी। इस आसन िे शरीर का आकार िछिी जैसा बनता है
अतः ििसयासन कहिाता है । पिाििनी पाणायाि के साथ इस आसन की िसथित िे िमबे
सिय तक पानी िे तैर सकते है ।
धयान ििशुदाखया चि िे। शास पहिे रे चक, बिहकुिमभक, िफर पूरक और रे चक।
िि िधः भूिि पर िबछे हुए आसन पर पदासन िगाकर सीधे बैठ जाये। िफर पैरो
को पदासन की िसथित िे ही रखकर हाथ के आधार से सािधानी पूिक
ि पीछे की ओर
िचत होकर िेट जाये। रे चक करके किर को ऊपर उठाये। घुटने, िनतंब और िसतक के
िशखा सथान को भूिि के सथान िगाये रखे। िशखासथान के नीचे कोई नरि कपडा
अिशय रखे। बाये हाथ से दािहने पैर का अंगूठा और दािहने हाथ से बाये पैर का अंगूठा
पकडे । दोनो कुहिनयाँ जिीन को िगाये रखे। कुमभक की िसथित िे रहकर दिष को पीछे
की ओर िसर के पास िे जाने की कोिशश करे । दाँत दबे हुए और िुह
ँ बनद रखे। एक
ििनट से पारमभ करके पाँच ििनट तक अभयास बढाये। िफर हाथ खोिकर, किर भूिि
को िगाकर िसर ऊपर उठाकर बैठ जाये। पूरक करके रे चक करे ।
पहिे भूिि पर िेट कर िफर पदासन िगाकर भी ििसयासन हो सकता है ।
िाभ ः मिसयासन से पूरा शरीर िजबूत बनता है । गिा, छाती, पेट की तिाि
बीिािरयाँ दरू होती है । आँखो की रोशनी बढती है । गिा साफ रहता है । शसनििया ठीक
से चिती है । कनधो की नसे उलटी िुडती है इससे छाती ि फेफडो का ििकास होता है ।
पेट साफ रहता है । आँतो का िैि दरू होता है । रकािभसरण की गित बढती है । फितः
चिडी के रोग नहीं होते। दिा और खाँसी दरू होती है । छाती चौडी बनती है । पेट की
चरबी कि होती है । इस आसन से अपानिायु की गित नीचे की ओर होने से ििािरोध
दरू होता है । थोडा पानी पीकर यह आसन करने से शौच-शुिद िे सहायता िििती है ।
ििसयासन से िसयो के िािसकधिि समबनधी सब रोग दरू होते है । िािसकसाि
िनयिित बनता है ।
भु जंगासन
इस आसन िे शरीर की आकृ ित फन उठाये हुए भुजंग अथात
ि सपि जैसी बनती है
इसििए इसको भुजग
ं ासना कहा जाता है ।
चिासन
इस आसन िे शरीर की आकृ ित चि जैसी बनती है । अतः चिासन कहा जाता
है ।
किटिपणडि दि नासन
इस आसन िे किटपदे श (किर के पास िािे भाग) िे िसथत िपणड अथात
ि
िूतिपणड का िदि न होता है , इससे यह आसन किटिपणडिदि नासन कहिाता है ।
अध ि ििसय ेनदासन
कहा जाता है िक ििसयेनदासन की रचना गोरखनाथ के गुर सिािी ििसयेनदनाथ
ने की थी। िे इस आसन िे धयान िकया करते थे। ििसयेनदासन की आधी िियाओं को
िेकर अधि
ि िसयेनदासन पचिित हुआ है ।
योग िु दासन
योगाभयास िे यह िुदा अित िहतिपूणि है , इससे इसका नाि योगिुदासन रखा
गया है ।
गोरकासन या भदासन
ियू रासन
िजासन
िजासन का अथि है बििान िसथित। पाचनशिक, िीयश
ि िक तथा सनायुशिक दे ने
िािा होने से यह आसन िजासन कहिाता है ।
सुपिजासन
शिासन
शिासन की पूणाि
ि सथा िे शरीर के तिाि अंग एिं ििसतषक पूणत
ि या चेषा रिहत
िकये जाते है । यह अिसथा शि (िुदे) जैसी होने से इस आसन को शिासन कहा जाता है ।
िि िधः िबछे हुए आसन पर िचत होकर िेट जाये। दोनो पैरो को परसपर से थोडे
अिग कर दे । दोनो हाथ भी शरीर से थोडे अिग रहे । इस पकार पैरो की ओर फैिा दे ।
हाथ की हथेिियाँ आकाश की तरफ खुिी रखे। िसर सीधा रहे । आँखे बनद।
िानिसक दिष से शरीर को पैर से िसर तक दे खते जाये। पूरे शरीर को िुदे की
तरह ढीिा छोड दे । हर एक अंग को िशिथि करते जाये।
शरीर िे समपूणि ििशाि का अनुभि करे । िन को भी बाहा ििषयो से हटाकर
एकाग करे । बारी-बारी से हर एक अंग पर िानिसक दिष एका््ग करते हुए भािना करे
िक िह अंग अब आराि पा रहा है । िेरी सब थकान उतर रही है । इस पकार भािना
करते-करते सब सनायुओं को िशिथि होने दे । शरीर के एक भी अंग िे कहीं भी तनाि
(टे नशन) न रहे । िशिथिीकरण की पििया िे पैर से पारमभ करके िसर तक जाये अथिा
िसर से पारमभ करके पैर तक भी जा सकते है । अनत िे, जहाँ से पारमभ िकया हो िहीं
पुनः पहुँचना चािहये। िशिथिीकरण की पििया से शरीर के तिाि अंगो का एिं
जानतंतुओं को ििशाि की अिसथा िे िा दे ना है ।
शिासन की दस
ू री अिसथा िे शासोचछोिास पर धयान दे ना है । शिासन की यही
िुखय पििया है । ििशेषकर, योग साधको के ििए िह अियनत उपयोगी है । केिि
शारीिरक सिासिय के ििये पथि भूििका पयाप
ि है ।
इसिे शास और उचछिास की िनयिितता, दीघत
ि ा और सिानता सथािपत करने
का िकय है । शास िनयिित चिे, िमबा और गहरा चिे, शास और उचछिास एक सिान
रहे तो िन को एकाग करने की शिक पाप होती है ।
शिासन यिद ठीक ढं ग से िकया जाए तो नाडीतंत इतना शांत हो जाता है िक
अभयासी को नींद आने िगती है । िेिकन धयान रहे , िनिनदत न होकर जागत रहना
आिशयक है ।
अनय आसन करने के बाद अंगो िे जो तनाि (टे नशन) पैदा होता है उसको
िशिथि करने के ििये अंत िे 3 से 5 ििनट तक शिासन करना चािहए। िदनभर िे
अनुकूिता के अनुसार दो-तीन बार शिासन कर सकते है ।
िाभ ः शिासन के दारा सनायु एिं िांसपेिशयो िे िशिथिीकरण से शिक बढती है ।
अिधक कायि करने की योगयता उसिे आती है । रकिाहिनयो िे, िशराओं िे रकपिाह तीव
होने से सारी थकान उतर जाती है । नाडीतंत को बि िििता है । िानिसक शिक िे ििृद
होती है ।
रक का दबाि कि करने के ििए, नाडीतंत की दब
ु ि
ि ता एिं उसके कारण होने िािे
रोगो को दरू करने के ििये शिासन खूब उपयोगी है ।
पादपिश िोतानासन
यह आसन करना किठन है इससे उगासन कहा जाता है । उग का अथि है िशि।
भगिान िशि संहारकताि है अतः उग या भयंकर है । िशिसंिहता िे भगिान िशि ने िुक
कणठ से पशंसा करते हुए कहा है ः यह आसन सिश
ि ष
े आसन है । इसको पयतपूिक
ि गुप
रखे। िसफि अिधकािरयो को ही इसका रहसय बताये।
ितबनध
िूिबनध
शौच सनानािद से िनित
ृ होकर आसन पर बैठ जाये। बायीं एडी के दारा सीिन या
योिन को दबाये। दािहनी एडी सीिन पर रखे। गुदादार को िसकोडकर भीतर की ओर ऊपर
खींचे। यह िूिबनध कहा जाता है ।
िाभ ः िूिबनध के अभयास से ििृयु को जीत सकते है । शरीर िे नयी ताजगी
आती है । िबगडते हुए सिासिय की रका होती है । बहचयि का पािन करने िे िूिबनध
सहायक िसद होता है । िीयि को पुष करता है , कबज को नष करता है , जठरािगन तेज होती
है । िूिबनध से िचरयौिन पाप होता है । बाि सफेद होने से रकते है ।
अपानिाय ऊधिग
ि ित पाकर पाणिायु के सुषुमना िे पििष होता है । सहसारचि िे
िचतििृत िसथर बनती है । इससे िशिपद का आननद िििता है । सिि पकार की िदवय
ििभूितयाँ और ऐशयि पाप होते है । अनाहत नाद सुनने को िििता है । पाण, अपान, नाद
और िबनद ु एकितत होने से योग िे पूणत
ि ा पाप होती है ।
उडडीय ान बनध
आसन पर बैठकर पूरा शास बाहर िनकाि दे । समपणत
ि या रे चक करे । पेट को
भीतर िसकोडकर ऊपर की ओर खींचे। नािभ तथा आँते पीठ की तरफ दबाये। शरीर को
थोडा सा आगे की तरफ झुकाये। यह है उडडीयानबनध।
िाभ ः इसके अभयास से िचरयौिन पाप होता है । ििृयु पर जय पाप होती है ।
बहचयि के पािन िे खूब सहायता िििती है । सिासिय सुनदर बनता है । कायश
ि िक िे
ििृद होती है । नयोिि और उडडीयानबनध जब एक साथ िकये जाते है तब कबज दि
ु
दबाकर भाग खडा होता है । पेट के तिाि अियिो की िाििश हो जाती है । पेट की
अनािशयक चरबी उतर जाती है ।
जािनधरबनध
आसन पर बैठकर पूरक करके कुमभक करे और ठोडी को छाती के साथ दबाये।
इसको जािनधरबनध कहते है ।
िाभ ः जािनधरबनध के अभयास से पाण का संचरण ठीक से होता है । इडा और
िपंगिा नाडी बनद होकर पाण-अपान सुषुमना िे पििष होते है । नािभ से अित
ृ पकट
होता है िजसका पान जठरािगन करता है । योगी इसके दारा अिरता पाप करता है ।
पदासन पर बैठ जाये। पूरा शास बाहर िनकाि कर िूिबनध, उडडीयानबनध करे ।
िफर खूब पूरक करके िूिबनध, उडडीयानबनध और जािनधरबनध ये तीनो बनध एक साथ
करे । आँखे बनद रखे। िन िे पणि (ú) का अथि के साथ जप करे ।
इस पकार पाणायाि सिहत तीनो बनध का एक साथ अभयास करने से बहुत िाभ
होता है और पायः चििकािरक पिरणाि आता है । केिि तीन ही िदन के समयक अभयास
से जीिन िे िािनत का अनुभि होने िगता है । कुछ सिय के अभयास से केिि या
केििी कुमभक सियं पकट होता है ।
केि िी कुमभक
केिि या केििी कुमभक का अथि है रे चक-पूरक िबना ही पाण का िसथर हो
जाना। िजसको केििी कुमभक िसद होता है उस योगी के ििए तीनो िोक िे कुछ भी
दि
ु भ
ि नहीं रहता। कुणडििनी जागत
ृ होती है , शरीर पतिा हो जाता है , िुख पसनन रहता
है , नेत ििरिहत होते है । सिि रोग दरू हो जाते है । िबनद ु पर ििजय होती है । जठरािगन
पजििित होती है ।
केििी कुमभक िसद िकये हुए योगी की अपनी सिि िनोकािनाये पूणि होती है ।
इतना ही नहीं, उसका पूजन करके शदािान िोग भी अपनी िनोकािनाये पूणि करने
िगते है ।
जो साधक पूणि एकागता से ितबनध सिहत पाणायाि के अभयास दारा केििी
कुमभक का पुरषाथि िसद करता है उसके भागय का तो पूछना ही कया? उसकी वयापकता
बढ जाती है । अनतर िे िहानता का अनुभि होता है । काि, िोध, िोभ, िोह, िद और
ििसर इन छः शतुओं पर ििजय पाप होती है । केििी कुमभक की ििहिा अपार है ।
जिन ेित
िि िधः एक ििटर पानी को गुनगुना सा गरि करे । उसिे करीब दस गाि शुद
निक डािकर घोि दे । सैनधि ििि जाये तो अचछा। सुबह िे सनान के बाद यह पानी
चौडे िुह
ँ िािे पात िे, कटोरे िे िेकर पैरो पर बैठ जाये। पात को दोनो हाथो से पकड कर
नाक के नथुने पानी िे डु बो दे । अब धीरे -धीरे नाक के दारा शास के साथ पानी को भीतर
खींचे और नाक से भीतर आते हुए पानी को िुँह से बाहर िनकािते जाये। नाक को पानी
िे इस पकार बराबर डु बोये रखे िजससे नाक दारा भीतर जानेिािे पानी के साथ हिा न
पिेश करे । अनयथा आँतरस-खाँसी आयेगी।
इस पकार पात का सब पानी नाक दारा िेकर िुख दारा बाहर िनकाि दे । अब
पात को रख कर खडे हो जाये। दोनो पैर थोडे खुिे रहे । दोनो हाथ किर पर रखकर शास
को जोर से बाहर िनकािते हुए आगे की ओर िजतना हो सके झुके। भिसका के साथ यह
ििया बार-बार करे , इससे नाक के भीतर का सब पानी बाहर िनकि जायेगा। थोडा बहुत
रह भी जाये और िदन िे कभी भी नाक से बाहर िनकि जाये तो कुछ िचनताजनक नहीं
है ।
नाक से पानी भीतर खींचने की यह ििया पारमभ िे उिझन जैसी िगेगी िेिकन
अभयास हो जाने पर िबलकुि सरि बन जायेगा।
िाभ ः ििसतषक की ओर से एक पकार का ििषैिा रस नीचे की ओर बहता है ।
यह रस कान िे आये तो कान के रोग होते है , आदिी बहरा हो जाता है । यह रस आँखो
की तरफ जाये तो आँखो का तेज कि हो जाता है , चशिे की जररत पडती है तथा अनय
रोग होते है । यह रस गिे की ओर जाये तो गिे के रोग होते है ।
िनयिपूिक
ि जिनेित करने से यह ििषैिा पदाथि बाहर िनकि जाता है । आँखो की
रोशनी बढती है । चशिे की जररत नहीं पडती। चशिा हो भी तो धीरे -धीरे नमबर कि
होते-होते छूट जाता भी जाता है । शासोचछोिास का िागि साफ हो जाता है । ििसतषक िे
ताजगी रहती है । जुकाि-सदी होने के अिसर कि हो जाते है । जिनेित की ििया करने
से दिा, टी.बी., खाँसी, नकसीर, बहरापन आिद छोटी-िोटी 1500 बीिीिरयाँ दरू होती है ।
जिनेित करने िािे को बहुत िाभ होते है । िचत िे पसननता बनी रहती है ।
गज कर णी
िि िधः करीब दो ििटर पानी गुनगुना सा गरि करे । उसिे करीब 20 गाि शुद
निक घोि दे । सैनधि ििि जाये तो अचछा है । अब पंजो के बि बैठकर िह पानी
िगिास भर-भर के पीते जाये। खूब िपये। अिधकाअिधक िपये। पेट जब िबलकुि भर
जाये, गिे तक आ जाये, पानी बाहर िनकािने की कोिशश करे तब दािहने हाथ की दो
बडी अंगिु ियाँ िुँह िे डाि कर उलटी करे , िपया हुआ सब पानी बाहर िनकाि दे । पेट
िबलकुि हलका हो जाये तब पाँच ििनट तक आराि करे ।
गजकरणी करने के एकाध घणटे के बाद केिि पतिी िखचडी ही भोजन िे िे।
भोजन के बाद तीन घणटे तक पानी न िपये, सोये नहीं, ठणडे पानी से सनान करे । तीन
घणटे के बाद पारमभ िे थोडा गरि पानी िपये।
िाभ ः गजकरणी से एिसडीटी के रोगी को अदभुत िाभ होता है । ऐसे रोगी को
चार-पाँच िदन िे एक बार गजकरणी चािहए। तिपशात िहीने िे एक बार, दो िहीने िे
एक बार, छः िहीने िे एक बार भी गजकरणी कर सकते है ।
पातःकाि खािी पेट तुिसी के पाँच-सात पते चबाकर ऊपर से थोडा जि िपये।
एसीडीटी के रोगी को इससे बहुत िाभ होगा।
िषो पुराने कबज के रोिगयो को सपाह िे एक बार गजकरणी की ििया अिशय
करनी चािहए। उनका आिाशय गिनथसंसथान किजोर हो जाने से भोजन हजि होने िे
गडबड रहती है । गजकरणी करने से इसिे िाभ होता है । फोडे , फुनसी, िसर िे गिी, सदी,
बुखार, खाँसी, दिा, टी.बी., िात-िपत-कफ के दोष, िजहा के रोग, गिे के रोग, छाती के
रोग, छाती का ददि एिं िंदािगन िे गजकरणी ििया िाभकारक है ।